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गुजरात में दलित कांड के बाद क्या हटाई जा सकती हैं CM आनंदीबेन?

    • गोपी मनियार
    • Updated: 21 जुलाई, 2016 11:47 AM
  • 21 जुलाई, 2016 11:47 AM
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विपक्ष ही नहीं, अब तो सत्ताधारी पार्टी के कुछ असंतुष्ट नेता भी इस मुद्दे को हवा दे रहे हैं. कोशिश यह कि इसे एक राजनीतिक संकट के तौर पर पेश किया जाए. कहीं ऐसा तो नहीं कि वहां एक बड़ा दलित नेता बनने की होड़ मची है. क्योंकि चुनाव नजदीक है...

देश में गुजरात का विकास मॉडल लाने का ख्वाब दिखाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने अब गुजरात ने ही कई सवाल खड़े कर दिए हैं. सवालों के घेरे में सूबे की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल भी हैं. क्योंकि लगता है कि गुजरात में विकास से आगे अब जातिवादी राजनीति हावी हो रही है. शायद इसलिए, पहले पाटीदार आरक्षण आंदोलन और अब दलित कांड ने आनंदीबने को गुजरात की मुख्यमंत्री पद से हटाये जाने की बात को एक बार फिर तूल दे दिया है.

दरअसल, दलितकांड में जिस प्रकार सख्त एक्शन लेने में आनंदीबेन सरकार नाकामयाब रही, उसे देखते हुऐ हर एक राजनीतिक पार्टी अब खुद की दाल गलाने में लग गई है. शुरुआत BSP सुप्रीमो मायावतीने की. उन्होंने राज्यसभा में मुद्दे को उछाल कर आनंदीबेन की लॉ एंड ऑर्डर व्यवस्था पर ही सवाल खडे कर दिए. इस पर न सिर्फ राज्य सराकर घेरे में है. बल्कि, केन्द्र सरकार के लिये भी जवाब देना काफी मुश्किल हो गया है.

 चुनाव से पहले जाएगी आनंदीबेन की कुर्सी?

आनंदीबेन के खिलाफ विपक्ष ही नहीं, अब तो सत्ताधारी पार्टी के कुछ असंतुष्ट नेता भी इस मुद्दे को हवा दे रहे हैं. कोशिश यह कि इसे एक राजनीतिक संकट के तौर पर पेश किया जाए. जहां देखो वहां एक बड़ा दलित नेता बनने की होड़ मची है. कारण भी स्पष्ट हैं. चुनाव नजदीक है.

आनंदीबेन पटेल के लिये दलितकांड से पहले पाटीदार आंदोलन एक बडा संकट बन कर आया था. आंनदीबेन की सरकार अब भी इससे उबर नही पायी है. पाटीदार आंदोलन के बाद ओम माथुर ने एक रिपोर्ट बीजेपी आला कमान को सौंपी थी. इसमें कहा गया कि आनंदीबेन सरकार पाटीदार आंदोलन को रोकने में पूरी तरह नाकामयाब रही. इतना ही नही, आनंदीबेन के शासन में बीजेपी कार्यकर्ताओ के...

देश में गुजरात का विकास मॉडल लाने का ख्वाब दिखाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने अब गुजरात ने ही कई सवाल खड़े कर दिए हैं. सवालों के घेरे में सूबे की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल भी हैं. क्योंकि लगता है कि गुजरात में विकास से आगे अब जातिवादी राजनीति हावी हो रही है. शायद इसलिए, पहले पाटीदार आरक्षण आंदोलन और अब दलित कांड ने आनंदीबने को गुजरात की मुख्यमंत्री पद से हटाये जाने की बात को एक बार फिर तूल दे दिया है.

दरअसल, दलितकांड में जिस प्रकार सख्त एक्शन लेने में आनंदीबेन सरकार नाकामयाब रही, उसे देखते हुऐ हर एक राजनीतिक पार्टी अब खुद की दाल गलाने में लग गई है. शुरुआत BSP सुप्रीमो मायावतीने की. उन्होंने राज्यसभा में मुद्दे को उछाल कर आनंदीबेन की लॉ एंड ऑर्डर व्यवस्था पर ही सवाल खडे कर दिए. इस पर न सिर्फ राज्य सराकर घेरे में है. बल्कि, केन्द्र सरकार के लिये भी जवाब देना काफी मुश्किल हो गया है.

 चुनाव से पहले जाएगी आनंदीबेन की कुर्सी?

आनंदीबेन के खिलाफ विपक्ष ही नहीं, अब तो सत्ताधारी पार्टी के कुछ असंतुष्ट नेता भी इस मुद्दे को हवा दे रहे हैं. कोशिश यह कि इसे एक राजनीतिक संकट के तौर पर पेश किया जाए. जहां देखो वहां एक बड़ा दलित नेता बनने की होड़ मची है. कारण भी स्पष्ट हैं. चुनाव नजदीक है.

आनंदीबेन पटेल के लिये दलितकांड से पहले पाटीदार आंदोलन एक बडा संकट बन कर आया था. आंनदीबेन की सरकार अब भी इससे उबर नही पायी है. पाटीदार आंदोलन के बाद ओम माथुर ने एक रिपोर्ट बीजेपी आला कमान को सौंपी थी. इसमें कहा गया कि आनंदीबेन सरकार पाटीदार आंदोलन को रोकने में पूरी तरह नाकामयाब रही. इतना ही नही, आनंदीबेन के शासन में बीजेपी कार्यकर्ताओ के बीच अंदरुनी कलह भी बढ़ी है. इस रिपोर्ट के बाद लगातार ये बात भी होती रही थी कि आंनदीबेन को गुजरात के मुख्यमंत्री पद से हटाया जा सकता है.

यह भी पढ़ें- चार महीने में बीजेपी के चार गलत फैसले

आनंदीबेन के शासन के लिये ये भी बात कही जा रही है कि सरकार में अब सब से ज्यादा उनके बेटे-बेटी की चलती है. ऐसे में गुजरात कैबिनेट के कई मंत्री आनंदीबने से नाराज चल रहे है. यही वजह है कि गुजरात में अगर कोई आंदोलन होता है तो मंत्री आंदोलन को रोकने में निष्क्रिय हो जाते हे. न कोई डैमेज कंट्रोल होता है और न ही पूरी सच्चाई सरकार के सामने रखी जाती है.

आनंदीबेन की उम्र को लेकर भी उनको सीएम पद से हटाए जाने की अटकलें बार बार सामने आती रही हैं. दरअसल, बीजेपी में ये कहा जाता हे कि जो भी नेता 75 साल के होते है उन्हें बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल में भेजा दिया जाता है. हालांकि आनंदीबेन भी इस नवम्बर में 75 की हो रही हैं. ऐसे में संभव है कि आनंदीबेन को हटाकर किसी राज्य के राज्यपाल या फिर मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया जाए. वैसे, ये सब अभी अकटले ही हैं.

लेकिन ये तो है कि दलितकांड के बाद गुजरात में फैली हिंसा को रोकने में नाकामयाब रहीं आनंदीबेन सरकार को हटाने की बात सियासी हलकों में होने लगी हैं.

यह भी पढ़ें- मोदी कैबिनेट में गुजरात के दो पाटीदारों की एंट्री के मायने

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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