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ये है नीतीश कुमार का गेम प्लान..

    • सुजीत कुमार झा
    • Updated: 24 अप्रिल, 2016 02:15 AM
  • 24 अप्रिल, 2016 02:15 AM
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नीतीश कुमार बार-बार कहते हैं कि वो प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं है क्योंकि उन्हें मालूम है कि परिस्थितियां बनती हैं तो उन्हें इस पद से कोई वंचित नहीं कर सकता है. उनका कहना है कि प्रधानमंत्री बनने की लालसा रखने वाले कभी प्रधानमंत्री नहीं बनते, जिसको बनना होता है वो बन ही जाते हैं.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की भूमिका अब बिहार तक ही सीमित नहीं है वो अब जनता दल यू के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बन चुके हैं. ऐसे में अब उन्हें बिहार की प्रशासनिक देखभाल के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पार्टी को आगे बढाने का काम भी करना है. हालांकि उन्होंने पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक से पहले ही पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर लाने और बीजेपी के खिलाफ बिगूल फूंकने पर अपना काम शुरू कर दिया है. हालांकि आज जनता दल यू की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पास कर दिया गया. अब वो जनता दल यू के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं और बिहार के मुख्यमंत्री भी.

राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद अपने पहले संबोधन में नीतीश कुमार ने बीजेपी के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया. उन्होंने कहा कि बीजेपी ने 2014 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद अपना कोई वायदा पूरा नहीं किया है. न ही काला धन वापस आया और न किसानों को उत्पादन लागत पर 50 प्रतिशत मुनाफा जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के वायदा को पूरा कर पाई. बीजेपी सरकार 2 करोड़ नई नौकरियां देने का वायदा भी पूरा नहीं कर पाई. यही नहीं नीतीश कुमार ने केन्द्र सरकार पर आरोप लगाया कि वो राज्यों का हक मार रही है. राजीव गांधी विद्य़ुतीकरण योजना के तहत जहां कांग्रेस के समय राज्य को 90 फीसदी राशि मिलती थी उसी योजना को बीजेपी ने दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण विद्य़ुतीकरण योजना में राशि घटा कर 60 प्रतिशत कर दी गई है. मनरेगा का भी वही हाल है.

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केन्द्र सरकार की नाकामियों का जिक्र करते हुए नीतीश कुमार ने कहा कि 'सबका साथ सबका विकास' का दावा भी झूठा निकला तभी तो देश में असहिष्णुता का माहौल बना....

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की भूमिका अब बिहार तक ही सीमित नहीं है वो अब जनता दल यू के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बन चुके हैं. ऐसे में अब उन्हें बिहार की प्रशासनिक देखभाल के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पार्टी को आगे बढाने का काम भी करना है. हालांकि उन्होंने पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक से पहले ही पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर लाने और बीजेपी के खिलाफ बिगूल फूंकने पर अपना काम शुरू कर दिया है. हालांकि आज जनता दल यू की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पास कर दिया गया. अब वो जनता दल यू के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं और बिहार के मुख्यमंत्री भी.

राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद अपने पहले संबोधन में नीतीश कुमार ने बीजेपी के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया. उन्होंने कहा कि बीजेपी ने 2014 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद अपना कोई वायदा पूरा नहीं किया है. न ही काला धन वापस आया और न किसानों को उत्पादन लागत पर 50 प्रतिशत मुनाफा जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के वायदा को पूरा कर पाई. बीजेपी सरकार 2 करोड़ नई नौकरियां देने का वायदा भी पूरा नहीं कर पाई. यही नहीं नीतीश कुमार ने केन्द्र सरकार पर आरोप लगाया कि वो राज्यों का हक मार रही है. राजीव गांधी विद्य़ुतीकरण योजना के तहत जहां कांग्रेस के समय राज्य को 90 फीसदी राशि मिलती थी उसी योजना को बीजेपी ने दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण विद्य़ुतीकरण योजना में राशि घटा कर 60 प्रतिशत कर दी गई है. मनरेगा का भी वही हाल है.

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केन्द्र सरकार की नाकामियों का जिक्र करते हुए नीतीश कुमार ने कहा कि 'सबका साथ सबका विकास' का दावा भी झूठा निकला तभी तो देश में असहिष्णुता का माहौल बना. बीजेपी की वजह से देश में सामाजिक अस्थिरता, आपसी बंटवारे का माहौल बना जो कि देश के सम्रग धर्मनिरपेक्ष और लंबे समय से चली आ रही गंगा-जमुनी तहजीब के खिलाफ है.

नीतीश कुमार बस इसी को देशव्यापी मुद्दा बनाना चाहते हैं तभी तो उन्होंने राष्ट्रीय अध्यक्ष की औपचारिक घोषणा से पहले की संघ मुक्त भारत की परिकल्पना करनी शुरू कर दी. बीजेपी ने कांग्रेस मुक्त भारत की कल्पना कर केन्द्र में गद्दी हथियाई, ठीक उसी तर्ज पर नीतीश कुमार ने संघ मुक्त भारत का नारा दे दिया. ताकि बीजेपी नेताओं द्वारा देश में बन रहे माहौल का फायदा उठाया जा सके. नीतीश कुमार ने कहा कि वो देशभक्त हैं लेकिन देशभक्त होने का सार्टिफिकेट उन्हें आरएसएस से नहीं चाहिए. जिन्होंने कभी देश की आजादी के लिए लड़ाई नहीं लड़ी वो आज देशभक्त बने हुए हैं. उन्होंने कहा कि अगर गैर-बीजेपी दल एक साथ मिल जाएं तो 2019 में इनकी विदाई तय है.

नीतीश कुमार जानते हैं कि अकेले बीजेपी का मुकाबला नहीं किया जा सकता है, यही कारण है जब 2014 के लोकसभा चुनाव में उनकी करारी हार हुई तब अपने घोर विरोधी लालूप्रसाद यादव की पार्टी से हाथ मिलाने में वो जरा भी नही हिचके. नीतीश कुमार की राजनीति केवल जाति या धर्म के आधार पर नहीं है, वो जानते हैं कि अगर समाज के कुछ तबकों का समर्थन मिल जाये तो बाकी का काम, उनके द्वारा लिए किए गए कार्य संभाल लेंगे. यही कारण है कि 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले आरजेडी के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया और उसकी सफलता ने बीजेपी के तोते उडा दिए. अब यही उदाहरण वो देश के सामने प्रस्तुत करना चाहते हैं.

 बीजेपी से अकेले मुकाबला नहीं किया जा सकता इसलिए लालू से हाथ मिलाया

वो देश की सभी गैर-बीजपी पार्टियों को जोड़ने में लगे हैं. पार्टी की राष्ट्रीय परिषद ने उन्हें इसके लिए अधिकृत भी किया है. नीतीश कुमार स्पष्ट कहते हैं कि गैर-संघवाद का नेता कौन होगा ये तो बाद में तय होगा, पहले एक साथ एक मंच पर तो आएं. ये एक तरह से गैर बीजेपी पार्टियों के लिए उनका आह्वान है. उन्होंने ये भी कहा कि आजादी के बाद सबसे पहले 60 के दशक में लोहिया कांग्रेस सरकार के खिलाफ अविश्वास का प्रस्ताव लाए थे, सब जानते थे कि सरकार जीत जाएगी लेकिन लोहिया जी ने चुनौती दी. ऐसे में गैर बीजेपी पार्टियों को भी एकजुट होकर देश में अपने वजूद को कायम रखना होगा.

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नीतीश कुमार ने कहा कि उन्होंने अप्रैल 2013 में ही तय कर लिया था कि वो बीजेपी से अलग होंगे, क्योंकि आने वाले समय में उनकी बीजेपी से नहीं बनेगी और जून 2013 में अलग होने की औपचारिक घोषणा भी हो गई. उन्होंने कहा कि हम लोग जब बीजेपी से अलग हुए तो बहुत लोगों को आश्चर्य हुआ लेकिन हमारे लिए सत्ता से ज्यादा हमारे सिद्धांत महत्वपूर्ण हैं. वो काफी कठिन दौर था. बीजेपी तो पीडीपी से भी सत्ता के लिए समझौता करती है जिनकी कोई विचारधारा एक दूसरे से नहीं मिलती. हमने आरजेडी से मिलकर महागठबंधन बनाया और उसका परिणाम सबके सामने है. बीजेपी तब अहंकार में थी.

नीतीश कुमार बिहार में मिली महागठबंधन की जीत के फॉर्मूले को पूरे देश में लागू करना चाहते हैं, इसलिए वो संघमुक्त भारत का नारा दे रहे हैं. नीतीश कुमार ने आज स्पष्ट कहा कि वो पीएम पद के उम्मीदवार नहीं हैं, वो केवल बीजेपी के खिलाफ सबको एक मंच पर लाना चाहते हैं. इसमें उनका कोई स्वार्थ नहीं है. महागठबंधन की नीति के चलते जैसे बीजेपी बिहार मे चित्त हुई उसी तरह से पूरे देश मे वो प्रयोग करने की चाहत रखते हैं और कुछ नहीं.

हालांकि बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मुलायम सिंह यादव और लालूप्रसाद यादव के साथ मिलकर नीतीश कुमार महागठबंधन बनाना चाहते थे लेकिन ऐन मौके पर मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी ने महागठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. हालांकि इसका नुकसान महागठबंधन को नहीं हुआ लेकिन कहा जा रहा है कि बीजेपी के दबाव की वजह से मुलायम सिंह ने ऐसा किया. अब यही स्थिति अजित सिंह के राष्ट्रीय लोकदल को लेकर है. महागठबंधन में मर्जर की सारी बात होने के बाद ऐन वक्त पर अजित सिंह ने कदम खींच लिए हैं, हालांकि अभी बात पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है लेकिन माना जा रहा है कि बीजेपी की तरफ से फिर कुछ पहल हुई है. यही हाल झारखंड विकास मोर्चा के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के साथ भी हो रहा है. कहने का मतलब नीतीश कुमार डाल-डाल चल रहे हैं तो बीजेपी पात-पात.

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रही बात जेडीयू एस की, तो उनसे मर्जर होने के समय से बातचीत चल रही है. कहने का मतलब ज्यादा ऑप्शन नहीं हैं नीतीश कुमार के पास. लेकिन ये भी बात सही है कि नीतीश कुमार जैसा चेहरा भी किसी पार्टी के पास नहीं है. न तो कांग्रेस के पास और न ही गैरबीजेपी पार्टियों के पास. ऐसे में ये माना जा रहा है कि अगर 2019 में कांग्रेस के सहयोग से सरकार बनने की स्थिति होती है, तो नीतीश कुमार से बेहतर कोई चेहरा नहीं हो सकता. क्योंकि नीतीश कुमार ही एक ऐसे नेता हैं जो बिहार के अलावा उतरप्रदेश, झारखंड, गुजरात और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों के वोटरों को प्रभावित कर सकते हैं. उनके बेदाग चेहरे पर वोट मिल सकता है. इसलिए नीतीश कुमार बार-बार कहते हैं कि वो प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं है क्योंकि उन्हें मालूम है कि परिस्थितियां बनती हैं तो उन्हें इस पद से कोई वंचित नहीं कर सकता है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री बनने की लालसा रखने वाले कभी प्रधानमंत्री नहीं बनते, जिसको बनना होता है वो बन ही जाते हैं.

नीतीश कुमार का समय भी आजकल अनूकूल है. पहले गठबंधन की महाजीत हुई, मुख्यमंत्री बने और अब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बन गए. एक और अच्छी बात ये हुई कि बीजेपी के विपरीत वो अपने वायदों को एक-एक कर पूरा करने में लग गए. उन्होंने बिहार में शराबबंदी का अपना वायदा पूरा किया. शराबबंदी एक ऐसा मुद्दा है जिसका उपयोग देश भर में किया जा सकता है, और वही काम नीतीश कुमार आने वाले समय में करने जा रहे हैं. सबसे पहले वो अपने पडोसी राज्य झारखंड जा रहे हैं, जहां महिलाओं ने उन्हें शराबबंदी के खिलाफ बिगुल फूंकने के लिए बुलाया है. उसके बाद वो अपने दूसरे पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश जायेंगें जहां वो संभवतः मई के दूसरे हफ्ते में बनारस और लखनऊ में शराबबंदी की मुद्दा उठायेंगे.

 शराबबंदी को देशव्यापी मुद्दा बनाना चाहते हैं नीतीश कुमार

अपने भाषण के दौरान नीतीश कुमार ने जिक्र किया कि उन्होंने अपने पड़ोसी राज्य के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिख कर आग्रह किया कि बिहार में शराबबंदी लागू हो रही है कृपया इसमें सहयोग करें. उन्होंने बताया कि झारखंड के मुख्यमंत्री के जवाब से उन्हें आश्चर्य हुआ, उन्होंने लिखा कि मैंने आपकी चिठ्ठी उत्पाद विभाग को उचित कार्रवाई के लिए भेज दी है. वहीं बिहार से लगे उत्तर प्रदेश को चिठ्ठी लिखने के बावजूद लगातार लाइसेंस दिए जा रहे हैं ताकि बिहार के लोग आकर वहां पी सकें. इस साल उत्तर प्रदेश के उत्पाद विभाग ने 32 करोड़ लीटर देशी शराब लोगों को पिलाने का लक्ष्य रखा है. नीतीश कुमार ने कहा कि नए लाइसेंस देने के कारण कई जगहों पर उत्तर प्रदेश में विरोध भी हुआ.

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शराबबंदी के इस मुद्दे को नीतीश कुमार देशव्यापी मुद्दा बनाना चाहते हैं और उन्हें लगता है कि ये मुद्दा बिहार की तरह देश के बाकि राज्यों में भी अच्छा काम करेगा. क्योंकि बिहार में इस मुहिम से उन्हें आपार समर्थन मिल रहा है. महिलाएं तो खुश हैं ही पुरूष भी खुश हैं. अब वो पत्नियों से मारपीट करने के बजाए उन्हें खाना बनाने में मदद कर रहे हैं. नीतीश कुमार ने कहा कि कुछ लोग उन्हें गालियां भी दे रहे हैं, लेकिन उसकी उन्हें परवाह नहीं है. बिहार में शराबबंदी हुई है तो कोई ये उम्मीद न करे कि इसपर से रोक हटेगी, ये हमेशा के लिए है.

खैर नीतीश कुमार राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते ही गैर बीजेपी पार्टियों को यह संदेश देने में सफल रहे कि अगर अपना वजूद बचाना है तो एक जुट होना पडेगा. और उन्हीं के नेतृत्व में होना पड़ेगा क्योंकि वो ही एक चेहरा हैं जो 2019 के चुनाव में नरेन्द्र मोदी को चुनौती दे सकते हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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