• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

सबसे खतरनाक है रोहित के दोस्त का अकेलापन महसूस करना

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 12 मई, 2016 05:04 PM
  • 12 मई, 2016 05:04 PM
offline
राजू तब भी रोहित के इर्द गिर्द के हालात से वाकिफ थे. रोहित तब जिस दौर से गुजर रहे थे, क्या राजू भी अब उसी स्थिति से गुजर रहे हैं?

अच्छा सिर्फ इतना है कि राजू कुमार साहू ने मन की बात जाहिर कर दी है. बुरा इतना ज्यादा है कि राजू भी इन दिनों रोहित जैसा अकेला महसूस करने लगे हैं.

राजू साहू रोहित वेमुला के मामले में काफी सक्रिय रहे थे. रोहित को न्याय दिलाने के लिए होने वाले प्रदर्शनों में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. फिलहाल राजू हैदराबाद यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के महासचिव हैं. जब एक छात्रनेता खुद को अकेला महसूस करने लगे फिर आम छात्रों की क्या हालत होगी, बस सोचा जा सकता है.

अकेलापन / खालीपन

याद कीजिए रोहित वेमुला का वो आखिरी खत. जाते जाते रोहित ने लिखा था, "मेरा जन्म मेरी भयंकर दुर्घटना थी. मैं अपने बचपन के अकेलेपन से कभी उबर नहीं पाया. बचपन में मुझे किसी का प्यार नहीं मिला. अभी मैं आहत नहीं हूं. मैं दुखी नहीं हूं. मैं बस खाली हूं."

इसे भी पढ़ें: वेमुला की अंबेडकर से तुलना पर मायावती को एतराज क्यों?

रोहित ने जिस खालीपन की बात की थी, वो भी क्या अकेलापन ही नहीं था?

राजू का कहना है कि वो इन दिनों रोहित की तरह ही खुद को बहुत अकेला महसूस करने लगे हैं. राजू तब भी रोहित के इर्द गिर्द के हालात से वाकिफ थे. रोहित तब जिस दौर से गुजर रहे थे, क्या राजू भी अब उसी स्थिति से गुजर रहे हैं?

फर्क बस इतना है कि राजू ने अपनी मानसिक स्थिति सार्वजनिक तौर पर जाहिर कर दी है. ये तो अच्छा है कि राजू ने भी कोई खत लिखने की बजाए सीधे सीधे सबके सामने अपनी बात कह डाली. ज्यादा भले न हो कहने से मन का बोझ कुछ तो हल्का हो ही जाएगा.

लेकिन इतना ही काफी तो नहीं है. सवाल ये है कि रोहित की खुदकुशी के करीब चार महीने हो रहे हैं - और हालात अब भी जस की तस हैं. खासकर, राजू ने जिन बाहरी ताकतों का जिक्र छेड़ा है.

बाहरी...

अच्छा सिर्फ इतना है कि राजू कुमार साहू ने मन की बात जाहिर कर दी है. बुरा इतना ज्यादा है कि राजू भी इन दिनों रोहित जैसा अकेला महसूस करने लगे हैं.

राजू साहू रोहित वेमुला के मामले में काफी सक्रिय रहे थे. रोहित को न्याय दिलाने के लिए होने वाले प्रदर्शनों में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. फिलहाल राजू हैदराबाद यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के महासचिव हैं. जब एक छात्रनेता खुद को अकेला महसूस करने लगे फिर आम छात्रों की क्या हालत होगी, बस सोचा जा सकता है.

अकेलापन / खालीपन

याद कीजिए रोहित वेमुला का वो आखिरी खत. जाते जाते रोहित ने लिखा था, "मेरा जन्म मेरी भयंकर दुर्घटना थी. मैं अपने बचपन के अकेलेपन से कभी उबर नहीं पाया. बचपन में मुझे किसी का प्यार नहीं मिला. अभी मैं आहत नहीं हूं. मैं दुखी नहीं हूं. मैं बस खाली हूं."

इसे भी पढ़ें: वेमुला की अंबेडकर से तुलना पर मायावती को एतराज क्यों?

रोहित ने जिस खालीपन की बात की थी, वो भी क्या अकेलापन ही नहीं था?

राजू का कहना है कि वो इन दिनों रोहित की तरह ही खुद को बहुत अकेला महसूस करने लगे हैं. राजू तब भी रोहित के इर्द गिर्द के हालात से वाकिफ थे. रोहित तब जिस दौर से गुजर रहे थे, क्या राजू भी अब उसी स्थिति से गुजर रहे हैं?

फर्क बस इतना है कि राजू ने अपनी मानसिक स्थिति सार्वजनिक तौर पर जाहिर कर दी है. ये तो अच्छा है कि राजू ने भी कोई खत लिखने की बजाए सीधे सीधे सबके सामने अपनी बात कह डाली. ज्यादा भले न हो कहने से मन का बोझ कुछ तो हल्का हो ही जाएगा.

लेकिन इतना ही काफी तो नहीं है. सवाल ये है कि रोहित की खुदकुशी के करीब चार महीने हो रहे हैं - और हालात अब भी जस की तस हैं. खासकर, राजू ने जिन बाहरी ताकतों का जिक्र छेड़ा है.

बाहरी ताकतें

राजू की बात से मालूम होता है कि रोहित के नाम पर हैदराबाद में बड़े ही गंदे खेल खेले जा रहे हैं. आम छात्रों को गुमराह किया जा रहा है. रोज नयी नयी कहानियां गढ़ी जा रही हैं, जो राजू के मुताबिक कोरे झूठ के सिवा कुछ नहीं होता. इसके साथ ही राजू ने वहां सक्रिय बाहरी ताकतों की ओर भी संकेत किया है. राजू का कहना है कि आंदोलन को ऐसी ताकतों ने हाइजैक कर लिया है.

रोहित के रास्ते पर कितने छात्र?

राजू ने कुछ नाम भी लिये हैं, "जो मुझे समझ आ रहा है, मुहिम में कांग्रेस, लेफ्ट और अवसरवादी ताकतों द्वारा भारी फंडिंग हो रही है" राजू ने कांग्रेस और लेफ्ट के नाम तो लिये हैं लेकिन बाकियों को अवसरवादी ताकतों में समेट दिया है. आखिर बाकी अवसरवादी ताकतें कौन हैं? राजू को ये भी साफ कर देना चाहिये. अगर राजू ऐसा नहीं करते तो लगेगा कि राजू भी हर किसी का खुल कर नाम नहीं ले रहे हैं.

इसे भी पढ़ें: रोहित वेमुला के लिए मुंह काला करके रहती है यह युवती!

किसी का खुल कर नाम न लेने के पीछे दो ही कारण हो सकते हैं - एक, डर और दूसरा किसी प्रभाव के चलते. अगर राजू अपनी बात आधी अधूरी रखेंगे तो उसे भी किसी स्टेटमेंट के तौर पर समझा और समझाया जाने लगेगा. इससे राजू का तो नुकसान होगा ही - बाकी छात्रों की मुश्किलें भी वैसे ही बरकरार रहेंगी जिनके लिए रोहित के साथ और उसके बाद राजू संघर्ष करते रहे.

सियासी अखाड़ा

रोहित की खुदकुशी के बाद हैदराबाद पहुंचने वाले नेताओं का तांता लगा हुआ था. राहुल गांधी भी पहुंचे, अरविंद केजरीवाल भी पहुंचे. असदुद्दीन ओवैसी ने तो मुस्लिम और दलितों को जोड़ नयी मुद्दों की नई पैकेजिंग ही पेश कर डाली.

संसद में भी जोरशोर से मामले को उठाया गया. मां होने के अहसास पर प्रसव वेदना जैसे प्रलाप से लेकर सिर काट कर समर्पित करने की बातें हुईं, बशर्ते किसी को संतुष्टि न हो. उसने साफ भी कर दिया कि वो संतुष्ट नहीं है इसलिए सिर्फ बातें बनाने से काम नहीं चलने वाला.

बातें तो बातें ही होती हैं. रोहित को भारत मां का लाल भी बताया गया. फिर सवाल उठे कि कोई भारत मां का लाल देशद्रोही गतिविधियों में शामिल कैसे हो सकता है? और अगर कोई एंटी-नेशनल एक्टिविटी का हिस्सा रहा है तो वो भारत मां का लाल कैसे हो सकता है? बातें आईं और गईं, हो गईं.

और तमाम तरह की कवायद भी होती रहेंगी - कहीं इतिहास बदलने की, कहीं मानकों को बदलने की, कहीं नायकों को बदलने की, कहीं नामों को बदलने की - और कहीं सरकारों को बदलने की.

इससे उतना फर्क नहीं पड़ता. किसी को देशद्रोही बताकर जेल में डाल दिया जाए, तो भी गनीमत है. कम से कम, कभी न कभी वो ये साबित तो कर सकता है कि वो बेगुनाह रहा. फर्क इस बात से पड़ता है कि आप ऐसे हालात पैदा कर दें कि उसमें किसी को बेगुनाही साबित करने की गुंजाइश ही न बचे. रोहित ने कहा था, "मैं खाली हूं." राजू का कहना है, "अकेलापन महसूस करने लगा हूं." शब्द भले ही अलग अलग इस्तेमाल किये गये हों - भाव एक ही हैं.

खतरनाक ये नहीं कि है हैदराबाद यूनिवर्सिटी या जेएनयू या किसी और जगह फिलहाल क्या चल रहा है? उतना खतरनाक ये भी नहीं कि बाहरी ताकतें किस मकसद में लगी हैं और अपने मंसूबों को अंजाम तक पहुंचाने के लिए कौन सा रास्ता अख्तियार कर रही हैं? सबसे खतरनाक बात है रोहित के दोस्त का अकेलापन महसूस करना!

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲