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यूपी में एग्जिट पोल से भी बड़े सरप्राइज के लिए तैयार रहिये...

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 10 मार्च, 2017 03:58 PM
  • 10 मार्च, 2017 03:58 PM
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एग्जिट पोल आने पर अखिलेश यादव ने जो बात कही उससे तो ऐसा लगता है जैसे नतीजों का उन्हें भी पूर्वानुमान हो - और इसीलिए वो अब पत्थर की साइकिल के लिए भी तैयार हैं.

एग्जिट पोल और मतगणना के रुझान की कभी तुलना नहीं हो सकती. लेकिन यूपी के एग्जिट पोल और बिहार चुनाव की मतगणना के शुरुआती रुझान में तुलना की खास वजह है.

बिहार चुनाव के रुझान आने शुरू हुए तो बीजेपी के खाते में भारी बढ़त देखी गई, लेकिन लालू पर इस बात का जरा भी असर नहीं हुआ. उन्हें अपने अनुमान पर ज्यादा यकीन रहा. तब लालू ने डंके की चोट पर कहा - 'हम जीतेंगे...' नतीजों ने उनका भरोसा तोड़ा भी नहीं.

यूपी चुनाव को लेकर हुए एग्जिट पोल पर अखिलेश ने अपने रिएक्शन में एक ही झटके में जता दिया कि 'बुआ जी' के साथ गठबंधन का ऑप्शन पूरी तरह खुला हुआ है.

अखिलेश का अनुमान

बीबीसी के फेसबुक लाइव में अखिलेश यादव ने जो बात कही उससे तो ऐसा लगता है जैसे नतीजों का उन्हें भी पूर्वानुमान हो - और इसीलिए वो अब पत्थर की साइकिल के लिए भी तैयार हैं.

अखिलेश को मालूम है कि सत्ता से पूरी तरह बेदखल होने से बेहतर है कि थोड़ा बहुत ही सही कुर्सी पर जो भी बैठे हस्तक्षेप बना रहे. वैसे भी कांग्रेस के साथ समाजवादी पार्टी का गठबंधन बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के नाम पर ही हुआ. अब अगर नंबर कम पड़ गये तो मायावती से भी हाथ मिलाने में क्या दिक्कत है? आखिर बिहार में भी ऐसा करने के लिए ही तो नीतीश कुमार को कट्टर दुश्मन रहे लालू प्रसाद से हाथ मिलाना पड़ा. क्या महागठबंधन नहीं बनता तो नतीजा वही होता? संभव ही नहीं था.

यूपी में महागठबंधन का मामला अब भी 50-50 पर ही है. अखिलेश ने अपनी ओर से लगभग हां कर दी है, लेकिन मायावती अब भी अपने पत्ते नहीं खोल रहीं.

वैसे मायावती को भी गठबंधन से कोई एतराज नहीं है, शर्त सिर्फ ये है कि चुनाव से पहले नहीं. नतीजे आने तक तो कंडीशन यही अप्लाई होता है. मायावती की ओर से गठबंधन की संभावना तब शायद बिलकुल नहीं होती अगर कमान मुलायम के हाथ में होती - लेकिन अब तो ये रास्ता भी साफ हो चुका है.

वैसे अखिलेश के अलाएंस पार्टनर राहुल गांधी की राय बिलकुल अलग है, "हमारा गठबंधन जीत रहा है. ऐसे एग्जिट पोल्स...

एग्जिट पोल और मतगणना के रुझान की कभी तुलना नहीं हो सकती. लेकिन यूपी के एग्जिट पोल और बिहार चुनाव की मतगणना के शुरुआती रुझान में तुलना की खास वजह है.

बिहार चुनाव के रुझान आने शुरू हुए तो बीजेपी के खाते में भारी बढ़त देखी गई, लेकिन लालू पर इस बात का जरा भी असर नहीं हुआ. उन्हें अपने अनुमान पर ज्यादा यकीन रहा. तब लालू ने डंके की चोट पर कहा - 'हम जीतेंगे...' नतीजों ने उनका भरोसा तोड़ा भी नहीं.

यूपी चुनाव को लेकर हुए एग्जिट पोल पर अखिलेश ने अपने रिएक्शन में एक ही झटके में जता दिया कि 'बुआ जी' के साथ गठबंधन का ऑप्शन पूरी तरह खुला हुआ है.

अखिलेश का अनुमान

बीबीसी के फेसबुक लाइव में अखिलेश यादव ने जो बात कही उससे तो ऐसा लगता है जैसे नतीजों का उन्हें भी पूर्वानुमान हो - और इसीलिए वो अब पत्थर की साइकिल के लिए भी तैयार हैं.

अखिलेश को मालूम है कि सत्ता से पूरी तरह बेदखल होने से बेहतर है कि थोड़ा बहुत ही सही कुर्सी पर जो भी बैठे हस्तक्षेप बना रहे. वैसे भी कांग्रेस के साथ समाजवादी पार्टी का गठबंधन बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के नाम पर ही हुआ. अब अगर नंबर कम पड़ गये तो मायावती से भी हाथ मिलाने में क्या दिक्कत है? आखिर बिहार में भी ऐसा करने के लिए ही तो नीतीश कुमार को कट्टर दुश्मन रहे लालू प्रसाद से हाथ मिलाना पड़ा. क्या महागठबंधन नहीं बनता तो नतीजा वही होता? संभव ही नहीं था.

यूपी में महागठबंधन का मामला अब भी 50-50 पर ही है. अखिलेश ने अपनी ओर से लगभग हां कर दी है, लेकिन मायावती अब भी अपने पत्ते नहीं खोल रहीं.

वैसे मायावती को भी गठबंधन से कोई एतराज नहीं है, शर्त सिर्फ ये है कि चुनाव से पहले नहीं. नतीजे आने तक तो कंडीशन यही अप्लाई होता है. मायावती की ओर से गठबंधन की संभावना तब शायद बिलकुल नहीं होती अगर कमान मुलायम के हाथ में होती - लेकिन अब तो ये रास्ता भी साफ हो चुका है.

वैसे अखिलेश के अलाएंस पार्टनर राहुल गांधी की राय बिलकुल अलग है, "हमारा गठबंधन जीत रहा है. ऐसे एग्जिट पोल्स को हम बिहार में भी देख चुके हैं."

क्या राहुल गांधी के इस भरोसे की वजह प्रशांत किशोर का आंकलन है?

पीके का आंकलन

निश्चित रूप से अखिलेश के पास अपने इनपुट होंगे. उनके अपने सूत्र होंगे, खुफिया तंत्र होगा - और पूरे सूबे में घूमने के बाद लोगों के मूड का भी अंदाजा हो चुका होगा. शायद इसीलिए वो ऐसी बात कर रहे हैं. जानते तो अखिलेश भी हैं कि यादव परिवार में झगड़े के कारण वो चुनाव की तैयारियां ठीक से नहीं हो पायीं. विवाद चाहे ड्रामा हो या फिर हकीकत लेकिन एक बात तो साफ है, वक्त तो जाया हुआ ही. झगड़े से अखिलेश को जो फायदा हुआ उसके दूरगामी नतीजे तो अच्छे हो सकते हैं लेकिन तात्कालिक रूप से तो उन्हें नुकसान ही हुआ.

वैसे अखिलेश यादव ने अपने हिसाब से वोटों की जो भी पैमाईश की हो, कांग्रेस की चुनावी मुहिम के साथ साथ गठबंधन बन जाने पर समाजवादी पार्टी को भी टिप्स देने वाले पीके यानी प्रशांत किशोर का अनुमान बिलकुल अलग है.

एग्जिट पोल के उलट प्रशांत किशोर को लगता है कि यूपी में समाजवादी गठबंधन को 190 सीटें मिलेंगी. प्रशांत किशोर के हवाले से आ रही खबरों के अनुसार पंजाब में भी वो कांग्रेस की सरकार बनते देख रहे हैं - जो एग्जिट पोल से भी मैच करता है.

कौन जाने इनके 'मन की बात'...

जिस तरह समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस के गठबंधन में प्रियंका गांधी की अहम भूमिका रही, उसी तरह यूपी के संभावित महागठबंधन में नीतीश कुमार और सोनिया गांधी का बड़ा रोल बताया जा रहा है. यूपी के चुनाव अभियान पीके की शिरकत के चलते इन बातों को काफी बल मिल रहा है. हालांकि, मायावती और अखिलेश के बीच सौदे को पक्का कराने का जिम्मा एक सीनियर कांग्रेस नेता को मिला है जो सोनिया गांधी के करीबी बताये जाते है. चर्चा है कि कांग्रेस नेता इस काम में काफी पहले से लगे हुए हैं. वैसे सोनिया गांधी फिलहाल चेक अप के लिए विदेश गयी हुई हैं - और उनके आने की संभावना भी होली बाद है, तब तक नतीजे आ चुके होंगे.

...और सरप्राइज एलिमेंट

अखिलेश का अपना अनुमान है और पीके के मूल्यांकन का भी अलग तरीका होगा. जो लोग किसी पार्टी के कट्टर समर्थक होते हैं वे तो खुलेआम शेयर करते हैं कि वो किसे वोट देने जा रहे हैं या दे चुके. एग्जिट पोल की अपनी सीमाएं होती हैं. वही शख्स जब वोट डालकर निकलता है तो बाहर आकर जरूरी तो नहीं कि वो सही बात ही बताये. वोट उसने किसे दिया ये तो गोपनीय होता है लेकिन कैमरे पर या सर्वे करने वालों से वो जो भी बोलेगा वो तो सार्वजनिक होगा. जब उससे सवाल किये जा रहे होंगे तो उसके अगल बगल भी लोग होते हैं जिनसे जरूरी नहीं कि वो अपने वोट की बात शेयर करना चाहता हो. ऐसी तमाम परिस्थितियां होती हैं जब उसे कुछ न कुछ बोलना ही होता है - और वो बोल देता है.

सक्रिय लोगों में एक जमात खामोश वोटरों की भी होती है. उसे फॉलो किया जाय तो वो कई पार्टियों की रैली और सभाओं में देखा जा सकता है - लेकिन मजाल क्या कि कोई ये जान ले कि उसका वोट किसके हिस्से में पोल हो रहा है?

मायावती के काफी वोटर भी इसी कैटेगरी में आते हैं. वे भी हर जगह जाते हैं, लेकिन चुप रहते हैं. आंख कान पूरी तरह खुला रखते हैं लेकिन वो कभी किसी को कुछ भी नहीं बताते.

सोशल कैंपेन में तो बीजेपी का कोई मुकाबला नहीं. समाजवादी गठबंधन ने भी सोशल प्लेटफॉर्म पर खूब प्रचार प्रसार किया, लेकिन मायावती की पार्टी इस बार भी सोशल मीडिया पर उतनी एक्टिव नहीं रही. हां, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि वो पूरी तरह गायब रही लेकिन बाकियों के मुकाबले बेहद कम मौजूदगी दर्ज हुई.

बिहार के एग्जिट पोल भी गलत साबित हुए थे और उसकी वजह एक ये भी रही कि 70-80 सीटों पर तो जीत और हार का अंतर मुश्किल से दो हजार तक रहा.

यूपी चुनाव के मामले में भी काफी कुछ वैसा ही हो सकता है. 150-200 सीटें तो ऐसी हैं जहां बिलकुल कांटे का मुकाबला है, जबकि 60-80 सीटें यूपी में भी ऐसी मानी जा रही हैं जहां जीत का फैसला पांच सौ से डेढ़ हजार वोटों से होना है. ऐसे मुकाबले पूर्वी उत्तर प्रदेश में ज्यादा हो सकते हैं.

नतीजे तो नतीजे होते हैं. जरूरत एग्जिट पोल से आगे बढ़ कर सोचने की है - इसलिए बीजेपी को मिलने वाले संभावित बहुमत की तरह किसी और भी सरप्राइज के लिए भी तैयार रहना होगा.

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...और उत्‍तराखंड के पहाड़ों से लुढ़क गई कांग्रेस !

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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