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एक सीट का चुनाव और केजरीवाल के 5 टेस्ट

    • अंकित यादव
    • Updated: 21 अगस्त, 2017 03:37 PM
  • 21 अगस्त, 2017 03:37 PM
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मीडिया की चकाचौंध से दूर कुछ ही दिनों में दिल्ली में एक सीट पर विधानसभा उपचुनाव होने वाला है, ये एक सीट दिल्ली की राजनीति की दिशा तय कर देगी. कैसे? पढिए ये रिपोर्ट-

केजरीवाल की बदली रणनीति का टेस्ट

बीते दिनों अरविंद केजरीवाल ने 100 दिन से ज्यादा के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की, देश की सभी प्रमुख मीडिया इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस उम्मीद से पहुंची कि शायद आज अरविंद केजरीवाल अपने पुराने रूप में नजर आएं, और केंद्र सरकार को जमकर कोसें, लेकिन हैरानी तो तब हुई जब यह प्रेस कॉन्फ्रेंस केवल दिल्ली के ही एक मुद्दे तक सीमित रह गई, केजरीवाल ने एक बार भी मोदी का नाम नहीं लिया.

शांत रहना ही नई रणनीति का हिस्सा

दिल्ली में आए दिन मीडिया के सामने आने वाले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की ओर से मीडिया से इतनी ज्यादा दूरी अप्रत्याशित थी. दूसरे राज्यों के छोटे-छोटे मुद्दे पर भी मीडिया के सामने आक्रामकता से अपनी राय रखने वाले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अचानक से चुप हो गए थे. देश में जीएसटी से लेकर बिहार के जोड़तोड़ जैसे मुद्दों और मॅाब लांचिंग से लेकर गोरखपुर में हुए बड़े हादसे पर अरविंद केजरीवाल की चुप्पी हैरान करने वाली रही थी.

तब माना गया कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी दिल्ली की दरकती हुई जमीन को बचाने के लिए अब नई रणनीति को पूरे तरीके से अपना चुके हैं, और यह रणनीति है कि चाहे कुछ भी हो जाए, केंद्र सरकार और नरेंद्र मोदी का नाम नहीं लिया जाएगा, और केवल दिल्ली के मुद्दों पर ही ध्यान केंद्रित किया जाएगा.

कपिल मिश्रा के वार के असर का टेस्ट

लेकिन क्या केवल चुप्पी से ही छवि सुधर सकती है? क्या अब दिल्ली पर दोबारा ध्यान देकर दिल्ली का भरोसा जीता जा सकता है?  या कपिल मिश्रा के वार से हुए नुकसान का घाव भरना असंभव है. यकीन मानिए केजरीवाल को यह चिंता दिन प्रतिदिन सता रही होगी कि अब उनका राजनीतिक भविष्य किस ओर जाएगा.

राष्ट्रीय पटल पर चमकने...

केजरीवाल की बदली रणनीति का टेस्ट

बीते दिनों अरविंद केजरीवाल ने 100 दिन से ज्यादा के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की, देश की सभी प्रमुख मीडिया इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस उम्मीद से पहुंची कि शायद आज अरविंद केजरीवाल अपने पुराने रूप में नजर आएं, और केंद्र सरकार को जमकर कोसें, लेकिन हैरानी तो तब हुई जब यह प्रेस कॉन्फ्रेंस केवल दिल्ली के ही एक मुद्दे तक सीमित रह गई, केजरीवाल ने एक बार भी मोदी का नाम नहीं लिया.

शांत रहना ही नई रणनीति का हिस्सा

दिल्ली में आए दिन मीडिया के सामने आने वाले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की ओर से मीडिया से इतनी ज्यादा दूरी अप्रत्याशित थी. दूसरे राज्यों के छोटे-छोटे मुद्दे पर भी मीडिया के सामने आक्रामकता से अपनी राय रखने वाले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अचानक से चुप हो गए थे. देश में जीएसटी से लेकर बिहार के जोड़तोड़ जैसे मुद्दों और मॅाब लांचिंग से लेकर गोरखपुर में हुए बड़े हादसे पर अरविंद केजरीवाल की चुप्पी हैरान करने वाली रही थी.

तब माना गया कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी दिल्ली की दरकती हुई जमीन को बचाने के लिए अब नई रणनीति को पूरे तरीके से अपना चुके हैं, और यह रणनीति है कि चाहे कुछ भी हो जाए, केंद्र सरकार और नरेंद्र मोदी का नाम नहीं लिया जाएगा, और केवल दिल्ली के मुद्दों पर ही ध्यान केंद्रित किया जाएगा.

कपिल मिश्रा के वार के असर का टेस्ट

लेकिन क्या केवल चुप्पी से ही छवि सुधर सकती है? क्या अब दिल्ली पर दोबारा ध्यान देकर दिल्ली का भरोसा जीता जा सकता है?  या कपिल मिश्रा के वार से हुए नुकसान का घाव भरना असंभव है. यकीन मानिए केजरीवाल को यह चिंता दिन प्रतिदिन सता रही होगी कि अब उनका राजनीतिक भविष्य किस ओर जाएगा.

राष्ट्रीय पटल पर चमकने के बाद छा जाने का उनका सपना टूटता नजर आ रहा है. आने वाले दिनों में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की दिल्ली पर पकड़ और भरोसे का लिटमस टेस्ट कुछ दिन बाद होने वाले बवाना विधानसभा उपचुनाव के नतीजे काफी हद तक तय कर देंगे.

गलियों की खाक छानते केजरीवाल की मेहनत का टेस्ट

क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री के लिए एक सीट इतनी ज्यादा अहम हो गई है कि वह दिन रात एक किए हुए हैं. केजरीवाल बवाना विधानसभा की गलियों के चक्कर लगा रहे हैं, हर घर में जा रहे हैं लोगों से मिल रहे हैं, पुराने कार्यकर्ताओं का भरोसा जीतने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं. दूसरी पार्टियों को भ्रष्ट कहने वाले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सभी विपक्षी पार्टियों के क्षेत्र के नेताओं को अपनी पार्टी में बगैर कुछ सोचे-समझे शामिल किए जा रहे हैं.

बवाना विधानसभा की गलियों में पसीना बहा रहे हैं केजरीवाल

यह सब साफ दिखाता है कि मुख्यमंत्री केजरीवाल के लिए बवाना की एक सीट कितना मायने रखती है. यह सीट केजरीवाल के लिए इस मायने में भी बेहद अहम है कि केजरीवाल इस सीट को जीतकर ये मैसेज भी देना चाहते हैं कि अगर किसी दूसरे विधायक ने अपनी सीट खाली करके यही चाल चली तो उसका हश्र ऐसा ही होने वाला है.

बीजेपी की विधायक तोड़ने वाली रणनीति का टेस्ट

जब एकाएक आम आदमी पार्टी की तरफ से बवाना के विधायक ने सदस्यता से इस्तीफा देकर बीजेपी ज्वाइन कर ली थी, तब उस वक्त यह बड़ा दांव माना जा रहा था. चर्चा यह भी थी कि आम आदमी पार्टी के दूसरे कई विधायक भी अपनी विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर बीजेपी में जा सकते हैं और आम आदमी पार्टी में एक बड़ी फूट होने वाली है, हालांकि ऐसा तो नहीं हुआ,

लेकिन क्या बीजेपी का यह दांव सफल होने वाला है, या BJP को जोड़ तोड़ की इस कोशिश में मुंह की खानी पड़ेगी?

यह सवाल इस वजह से उठ रहा है क्योंकि केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को जमकर कोसने वाली दिल्ली बीजेपी अब उसी आम आदमी पार्टी के एक पूर्व विधायक के बल पर सीट जीतने की कवायद में है. प्रचार के दौरान कई बार बीजेपी के नेताओं से आम आदमी पार्टी के विधायकों के खिलाफ जमकर बयान निकल जाते हैं. फिर बाद में याद आता है कि जिसके लिए वोट मांग रहे हैं वह भी उसी पार्टी से आया है.

इतना ही नहीं BJP के लिए भीतरघात से लड़ना सबसे बड़ी चुनौती होने वाली है क्योंकि उस इलाके के बीजेपी के तमाम पुराने नेता अपनी पार्टी को छोड़कर आम आदमी पार्टी में जा चुके हैं.

कांग्रेस की पकड़ और वापसी का टेस्ट

इसी बीच दिल्ली में तेजी से वापसी करने को बेचैन कांग्रेस पार्टी इस इलाके में बेहद मजबूत नजर आ रही है. स्थानीय स्तर पर कांग्रेस के पास बेहद अनुभवी और मजबूत पकड़ वाला नेता हैं, तो वहीं विपक्षी पार्टियों के पास इसी बात की कमी. ये सीट जीतकर कांग्रेस पार्टी अपने कार्यकर्ताओं में ऑक्सीजन की सप्लाई जरूर भरना चाहेगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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