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उरी हमला : आखिर क्या विकल्प हैं भारत के पास

    • रीमा पाराशर
    • Updated: 19 सितम्बर, 2016 01:59 PM
  • 19 सितम्बर, 2016 01:59 PM
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जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लाहौर बस से भाईचारे का पैगाम लेकर गए तो बदले में पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध दिया. शायद पाकिस्तान के इसी नापाक रवैये की वजह से उरी हमले ने उस गुस्से को हवा दी है जो कहीं दबा हुआ था.

उरी में हुए आतंकी हमले ने दिसम्बर 1999 में हुए IC 814 के उस विमान अपहरण की याद दिला दी जिसने भारत को झकझोर दिया था. याद इसलिए ताज़ा हुई क्योंकि उरी हमले का मास्टर माइंड कोई और नहीं बल्कि जैश ए मोहम्मद का वही सरगना मौलाना मसूद अज़हर निकला जिसे आतंकियों ने विमान में फंसे यात्रियों को छोड़ने के बदले रिहा करवाया था. इसी मसूद अजहर ने पठानकोट हमले की साज़िश रची थी और 1999 से लेकर अब तक पाकिस्तान में रहकर लगातार भारत में दहशतगर्दी को अंजाम देने के मंसूबे बनाता रहा है.

बात सिर्फ मसूद अज़हर की नहीं है. लगातार भारत खासकर कश्मीर में बढ़ते आतंकी हमले संकेत दे रहे हैं कि पाकिस्तान को भारत की दोस्ती का पैगाम कभी मंज़ूर नहीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालते ही पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया. नवाज़ शरीफ को जन्मदिन की बधाई देने पाकिस्तान पहुंचे और नातीन को निकाह का तोहफा दिया लेकिन पाकिस्तान में बैठे आतंकियों ने पठानकोट को अंजाम दिया जिसपर पाकिस्तान आंख मूंदकर बैठा रहा.

यह भी पढ़ें- फिर हमारे जवान शहीद हो गए...लेकिन आखिर कब तक ?

इतिहास भी पाकिस्तान के इस रवैये की कहानी कहता है. जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लाहौर बस से भाईचारे का पैगाम लेकर गए तो बदले में पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध दिया. शायद पाकिस्तान के इसी नापाक रवैये की वजह से उरी हमले ने उस गुस्से को हवा दी है जो कहीं दबा हुआ था. राजनेताओं ने तो राजनीति के तहत मोदी सरकार को कड़े कदम ना उठाने के लिए कोसा लेकिन सोशल मीडिया पर देश की आम जनता खासकर युवाओ ने पाकिस्तान को सबक सिखाने की जमकर वकालत की.

उरी में हुए आतंकी हमले ने दिसम्बर 1999 में हुए IC 814 के उस विमान अपहरण की याद दिला दी जिसने भारत को झकझोर दिया था. याद इसलिए ताज़ा हुई क्योंकि उरी हमले का मास्टर माइंड कोई और नहीं बल्कि जैश ए मोहम्मद का वही सरगना मौलाना मसूद अज़हर निकला जिसे आतंकियों ने विमान में फंसे यात्रियों को छोड़ने के बदले रिहा करवाया था. इसी मसूद अजहर ने पठानकोट हमले की साज़िश रची थी और 1999 से लेकर अब तक पाकिस्तान में रहकर लगातार भारत में दहशतगर्दी को अंजाम देने के मंसूबे बनाता रहा है.

बात सिर्फ मसूद अज़हर की नहीं है. लगातार भारत खासकर कश्मीर में बढ़ते आतंकी हमले संकेत दे रहे हैं कि पाकिस्तान को भारत की दोस्ती का पैगाम कभी मंज़ूर नहीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालते ही पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया. नवाज़ शरीफ को जन्मदिन की बधाई देने पाकिस्तान पहुंचे और नातीन को निकाह का तोहफा दिया लेकिन पाकिस्तान में बैठे आतंकियों ने पठानकोट को अंजाम दिया जिसपर पाकिस्तान आंख मूंदकर बैठा रहा.

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इतिहास भी पाकिस्तान के इस रवैये की कहानी कहता है. जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लाहौर बस से भाईचारे का पैगाम लेकर गए तो बदले में पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध दिया. शायद पाकिस्तान के इसी नापाक रवैये की वजह से उरी हमले ने उस गुस्से को हवा दी है जो कहीं दबा हुआ था. राजनेताओं ने तो राजनीति के तहत मोदी सरकार को कड़े कदम ना उठाने के लिए कोसा लेकिन सोशल मीडिया पर देश की आम जनता खासकर युवाओ ने पाकिस्तान को सबक सिखाने की जमकर वकालत की.

 पठानकोट और फिर उरी..आगे क्या

इन लगातार हमलों ने आम लोगों का खून ज़रूर ख़ौला दिया है. खासकर सेना के जवानों की गिरती लाशें हर तरफ से आवाज़ बुलंद कर रही है कि पाकिस्तान को संदेश देने की ज़रूरत है. वह भारत के सब्र का इम्तिहान न ले.

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एक मत ये भी है कि पाकिस्तान की बौखलाहट की अहम वजह नरेंद्र मोदी का बलूचिस्तान पर दिया गया बयान है जिसने उसकी ज़मीन को हिला कर रख दिया है और वहां बैठे आतंकियों ने कश्मीर पर हमले तेज़ कर दिए.

लगभग दो महीने से कश्मीर घाटी अशांत है और स्थिति काबू में आते ही इस तरह की घटना सन्देश देती है कि कश्मीर मुद्दा जिस कदर इस वक़्त हावी है, पिछले कई सालों से नहीं था. ज़ाहिर है, प्रधानमंत्री के बलूचिस्तान के ज़िक्र ने उन बातों को हवा दी जिन्हें उठाये जाने की उम्मीद पाकिस्तान को नहीं थी. आने वाले दिनों में वो चुप बैठेगा इसकी उम्मीद नहीं दिखती. लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर जवाब हो क्या सकता है क्योंकि परमाणु शक्तियों से लैस दोनों ही देशो के बीच युद्ध आसान नहीं.

वो पहला नहीं आखिरी विकल्प हो सकता है. विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि पहले भारत को पाकिस्तान के साथ आर्थिक और कूटनीतिक रिश्ते पूरी तरह खत्म करने चाहिए जैसा की पहले भी हो चुका है. फिर अंतराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान पर आतंकवाद के खिलाफ कदम उठाने के लिए दबाव डालने की रणनीति बनाई जाए. इस फैसले से फिलहाल चौतरफा अपने अंदरूनी संकट से जूझ रहे पकिस्तान के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी.

दूसरा विकल्प है भारत वहां मौजूद आतंकियों के ठिकानों पर हवाई हमले कर उन्हें नेस्तोनाबूद करे जहां से भारत के खिलाफ हमलों को अंजाम देने की साज़िश रची जाती है. फिलहाल जिस तरह के बयान सरकार की तरफ से आ रहे हैं काफी हद तक मुमकिन है कि इस तरह के कदम उठाने की दिशा में आगे बढ़ा जाए. फ़िलहाल प्रधानमंत्री ने उम्मीद जताई है कि उरी हमले के दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा. सरकार के मंत्री और पार्टी के नेता भी कुछ इसी सुर में बात कर रहे हैं. इंतज़ार इसी बात का है कि आखिर इन सुरो को बुलंद करके कब और किस अंजाम तक पहुचाया जायेगा.

यह भी पढ़ें- पाकिस्तान क्यों हमेशा परमाणु हमले की धमकी देता है ?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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