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काश! राहुल गांधी पैदल स्कूल गए होते तो हमारा विपक्ष इतना कमजोर न होता

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 21 जुलाई, 2017 06:39 PM
  • 21 जुलाई, 2017 06:39 PM
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राहुल हार्ड वर्कर तो हो सकते हैं, मगर ये स्मार्ट वर्कर तो बिल्कुल नहीं हैं. ये स्मार्ट वर्कर तब होते, जब ये पैदल चलकर स्कूल गए होते. यदि इन्होंने मेहनत से पढ़ाई की होती तो आज विपक्ष इतना कमजोर नहीं होता.

बड़े बुजुर्ग गलत नहीं होते, उनकी बातों में अनुभव होता है. अक्सर ही हमने अपने बड़े बुजुर्गों के मुंह से ये सुना है कि संघर्ष और शिक्षा के बल पर ही कोई व्यक्ति सफलता के नए आयाम हासिल कर पाता है. साथ ही न पढ़ने लिखने वाले छात्र के प्रति घर के बुज़ुर्ग समेत सबकी बस यही राय रहती है कि 'इसके बस का कुछ नहीं है, ये यूं ही बैठ के टाइम बर्बाद करेगा और मक्खियां मारेगा'.

कुछ दिन पहले राष्ट्रपति पद के चुनाव हुए थे, नतीजा जो आया उसमें देश की जनता को पता चला कि देश के 14वें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद होंगे. चुनाव के दिन से लेकर आज तक रामनाथ कोविंद हर जगह चर्चा में हैं. पूरे सोशल मीडिया पर इनके नाम के ट्रेंड और हैशटैग चल रहे हैं.

मैंने इनके नाम वाले हैशटैग पर क्लिक किया तो एक खबर मेरे सामने आई खबर कि रामनाथ कोविंद ने बड़े संघर्ष से जीवन जिया है. ये 6 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाते थे. इस खबर के बाद मेरे सामने ऐसे कई नाम आए जो पैदल चले और आज देश के सर्वोच्च पद पर हैं.

अगर राहुल पैदल स्कूल गए होते तो शायद हम वो देख रहे होते जो आज उनके लिए असंभव है

पैदल चलकर स्कूल जाने वाली बात को, यदि मैं अपने सन्दर्भ में रख कर देखूं तो मिलता है कि, पैदल चलकर मेरे दादा जी डॉक्टर बन गए. मेरे पिताजी सरकारी कर्मचारी बन गए. मौसा जी इंजीनियर, तो फूफा जी विश्व विद्यालय में प्रोफेसर बन गए. मैं भी खूब पैदल चला हूं मैं भी कुछ बन ही गया हूं.

जब मैंने पैदल चलने वाली बात को राजनीति में रखकर देखा तो मिला कि, गांधी जब पैदल चले तो समाज के बीच महात्मा कहलाए. कलाम साहब भी पैदल चलकर राष्ट्रपति बने. मोदी जी, नदी पार कर और पैदल स्कूल पहुंच प्रधान मंत्री बने. मुलायम सिंह भी पैदल चलकर बच्चों को पढ़ाने स्कूल जाते थे. यानी जेपी से लेकर लोहिया तक और फणीश्वरनाथ नाथ रेणु से लेकर मुंशी...

बड़े बुजुर्ग गलत नहीं होते, उनकी बातों में अनुभव होता है. अक्सर ही हमने अपने बड़े बुजुर्गों के मुंह से ये सुना है कि संघर्ष और शिक्षा के बल पर ही कोई व्यक्ति सफलता के नए आयाम हासिल कर पाता है. साथ ही न पढ़ने लिखने वाले छात्र के प्रति घर के बुज़ुर्ग समेत सबकी बस यही राय रहती है कि 'इसके बस का कुछ नहीं है, ये यूं ही बैठ के टाइम बर्बाद करेगा और मक्खियां मारेगा'.

कुछ दिन पहले राष्ट्रपति पद के चुनाव हुए थे, नतीजा जो आया उसमें देश की जनता को पता चला कि देश के 14वें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद होंगे. चुनाव के दिन से लेकर आज तक रामनाथ कोविंद हर जगह चर्चा में हैं. पूरे सोशल मीडिया पर इनके नाम के ट्रेंड और हैशटैग चल रहे हैं.

मैंने इनके नाम वाले हैशटैग पर क्लिक किया तो एक खबर मेरे सामने आई खबर कि रामनाथ कोविंद ने बड़े संघर्ष से जीवन जिया है. ये 6 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाते थे. इस खबर के बाद मेरे सामने ऐसे कई नाम आए जो पैदल चले और आज देश के सर्वोच्च पद पर हैं.

अगर राहुल पैदल स्कूल गए होते तो शायद हम वो देख रहे होते जो आज उनके लिए असंभव है

पैदल चलकर स्कूल जाने वाली बात को, यदि मैं अपने सन्दर्भ में रख कर देखूं तो मिलता है कि, पैदल चलकर मेरे दादा जी डॉक्टर बन गए. मेरे पिताजी सरकारी कर्मचारी बन गए. मौसा जी इंजीनियर, तो फूफा जी विश्व विद्यालय में प्रोफेसर बन गए. मैं भी खूब पैदल चला हूं मैं भी कुछ बन ही गया हूं.

जब मैंने पैदल चलने वाली बात को राजनीति में रखकर देखा तो मिला कि, गांधी जब पैदल चले तो समाज के बीच महात्मा कहलाए. कलाम साहब भी पैदल चलकर राष्ट्रपति बने. मोदी जी, नदी पार कर और पैदल स्कूल पहुंच प्रधान मंत्री बने. मुलायम सिंह भी पैदल चलकर बच्चों को पढ़ाने स्कूल जाते थे. यानी जेपी से लेकर लोहिया तक और फणीश्वरनाथ नाथ रेणु से लेकर मुंशी प्रेमचंद जो-जो पैदल चला वो कुछ न कुछ बन गया.

राहुल गांधी भी खूब पैदल चलते हैं. अमेठी और राय बरेली में, ये इतना पैदल चलते हैं कि कभी-कभी पैदल चलकर थक जाते हैं. और ये कहीं भी रुककर, किसी के घर जबरन मेहमान बन, जबरदस्ती उसकी थाली उठा लेते हैं और कुछ खाने को देने की फरियाद करते हैं. राहुल गांधी का मानना है कि, भले ही गरीबी स्टेट ऑफ माइंड है तो क्या हुआ, ऐसा करके आप किसी का भी दिल जीत सकते हैं, और उसके करीब आकर अपनी पैठ बना सकते हैं.

राहुल गांधी की ताजा हालत देखकर, मैं पूरे दावे के साथ कह सकता हूं कि राहुल हार्ड वर्कर तो हो सकते हैं, मगर ये स्मार्ट वर्कर तो बिल्कुल नहीं हैं. ये स्मार्ट वर्कर तब होते जब ये पैदल चलकर स्कूल गए होते. ऐसा इसलिए कि यदि इन्होंने बचपन में कंधे पर बस्ता डाला होता, नदी नाले झरने, डिवाइडर, जेब्रा क्रासिंग पार की होती और ये ऐसे ही स्कूल गए होते तो, शायद आज हमारा विपक्ष इतना कमजोर नहीं बल्कि एक मजबूत विपक्ष होता.

वो राहुल गांधी जिनके लिए गरीबी स्टेट ऑफ माइंड हैदेखा जाये तो राहुल ऐसे क्यों हैं, इसमें गलती राहुल गांधी की बिल्कुल नहीं है. ये हर उस इंसान के साथ होता है जो मुंह में चांदी का चम्मच रखकर जन्म लेता है. ऐसे लोगों के लिए संघर्ष केवल एक शब्द है, जिनसे ये प्रायः अब तक दूर ही रहे हैं. कहा जा सकता है कि इन लोगों ने संघर्ष को जिया नहीं है बल्कि उसे केवल और केवल किताबों में ही शायद पढ़ा है.

बहरहाल, हमें खुशी होती अगर भारत में आलू की फैक्ट्री और नारियल का जूस लाने वाले राहुल जी को नया सेशन स्टार्ट होने के बाद सोनिया जी ने कम से कम तीन हफ्ते तो पैदल स्कूल भेजा होता. कहा जा सकता है कि. शायद उसी की बदौलत उनमें कुछ बनने के गुण आ जाते. अगर ऐसा हो जाता तो इस देश की जनता वो न देखती जो उसे नहीं देखना था बल्कि उसे वो मिलता जिसकी उसे तलाश थी.

अंत में इतना ही कि अब राहुल को सबक मिल चुका है, और वो ये जान चुके हैं कि सफलता पैदल स्कूल जाने से ही मिलती है. हमें पूरा विश्वास है कि यदि भविष्य में राहुल की शादी हुई तो निश्चित ही वो अपने बच्चों को पैदल स्कूल भेजेंगे ताकि वो न सही कम से कम उनके बच्चे ही सोनिया जी का सपना पूरा कर दें.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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