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ये 30 पैसे किलो वाली प्याज ही 100 रुपये किलो बिकती, लेकिन...

    • राहुल मिश्र
    • Updated: 02 जून, 2016 12:56 PM
  • 02 जून, 2016 12:56 PM
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बीते एक दशक से प्याज की कालाबाजारी का खेल बदस्तूर जारी था. मानसून की दस्तक होते की प्याज की कीमतें आम आदमी के आंसुओं का सबब बन जाती. लेकिन इस बार सरकार ने डिमांड-सप्लाई के इस खेल को पूरी तरह मात दे दी है और नतीजा आपके सामने है.

बीते कई साल महंगाई के असर से आम आदमी की आंख से प्याज के आंसू बह थे. यानी रसोई में अहम किरदार निभाने वाली प्याज 20-30 रुपये प्रति किलो की औसत दर की जगह 100 रुपये प्रति किलो तक बिकती थी. इन उंची दरों पर कभी भी किसानों और व्यापारियों ने शिकायत नहीं की क्योंकि ये आंसू महज जनता की आंख से बह रहे थे और बाकी सभी तमाशा देख रहे थे.

आज इसी प्याज की कीमत देश की अहम मंडियों में दो कौड़ी की हो गई है. देश में प्याज की सबसे बड़ी मंडी नीमच (मध्यप्रदेश) में कीमत मात्र 30 पैसे प्रति किलो है. यही हाल दूसरी बड़ी मंडी नागपुर(महाराष्ट्र) का है. दोनों किसान और व्यापारी की आंख से आज प्याज के आंसू बह रहे हैं और वे उसे बेचने के बजाए सड़कों पर फेंक कर अपना विरोध जता रहे हैं.

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आखिर ऐसा क्या हुआ कि बीते एक दशक तक मानसून के दस्तक देते ही प्याज की कीमतें आसमान छूने लगती थी. लेकिन इस बार दिल्ली की मंडियों में भी 4 से 7 रुपये किलो प्याज आसानी से मिल रही है. प्याज की इन कीमतों से परेशान किसान और व्यापारी सरकार से मिनिमम सपोर्ट प्राइस की मांग कर रहे हैं और वे चाहते हैं कि सरकार किसानों को कम से कम 15 रुपये की दर से प्याज खरीद ले. लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है और उन्हें मजबूरी में अपनी प्याज को सड़क पर फेंकना पड़ रहा है. मंडियों में बैठे व्यापारी भी प्याज की कीमतों पर कयास लगाने से कतरा रहे हैं और औने-पौने दाम पर भी किसानों से प्याज खरीदने का रिस्क नहीं ले रहे हैं.

बीते कई साल महंगाई के असर से आम आदमी की आंख से प्याज के आंसू बह थे. यानी रसोई में अहम किरदार निभाने वाली प्याज 20-30 रुपये प्रति किलो की औसत दर की जगह 100 रुपये प्रति किलो तक बिकती थी. इन उंची दरों पर कभी भी किसानों और व्यापारियों ने शिकायत नहीं की क्योंकि ये आंसू महज जनता की आंख से बह रहे थे और बाकी सभी तमाशा देख रहे थे.

आज इसी प्याज की कीमत देश की अहम मंडियों में दो कौड़ी की हो गई है. देश में प्याज की सबसे बड़ी मंडी नीमच (मध्यप्रदेश) में कीमत मात्र 30 पैसे प्रति किलो है. यही हाल दूसरी बड़ी मंडी नागपुर(महाराष्ट्र) का है. दोनों किसान और व्यापारी की आंख से आज प्याज के आंसू बह रहे हैं और वे उसे बेचने के बजाए सड़कों पर फेंक कर अपना विरोध जता रहे हैं.

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आखिर ऐसा क्या हुआ कि बीते एक दशक तक मानसून के दस्तक देते ही प्याज की कीमतें आसमान छूने लगती थी. लेकिन इस बार दिल्ली की मंडियों में भी 4 से 7 रुपये किलो प्याज आसानी से मिल रही है. प्याज की इन कीमतों से परेशान किसान और व्यापारी सरकार से मिनिमम सपोर्ट प्राइस की मांग कर रहे हैं और वे चाहते हैं कि सरकार किसानों को कम से कम 15 रुपये की दर से प्याज खरीद ले. लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है और उन्हें मजबूरी में अपनी प्याज को सड़क पर फेंकना पड़ रहा है. मंडियों में बैठे व्यापारी भी प्याज की कीमतों पर कयास लगाने से कतरा रहे हैं और औने-पौने दाम पर भी किसानों से प्याज खरीदने का रिस्क नहीं ले रहे हैं.

प्याज की कालाबाजारी पर लगाम

गौरतलब है कि बीते साल इसी वक्त प्याज की कीमतों में आग लगना शुरू हुई थी. जून महीना खत्म होते-होते प्याज की कीमत सीधे 35-40 रुपये प्रति किलो से चढकर 70-80 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गई थी. सरकार के पास कृषि विभाग के आंकड़े बता रहे थे बाजार में प्याज की किल्लत नहीं है और दिखाई दे रही किल्लत को पैदा किया गया था. लिहाजा, सरकार ने मंडियों, स्टॉकिस्ट और कालाबाजारियों से बार-बार अपील की कि वह ब्लैकमार्केटिंग के लिए प्याज की होर्डिंग को बंद करे और बाजार में सप्लाई को दुरुस्त करे.

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तमाम अपील के बावजूद, दशकों से प्याज का खेल खेल रहे सटोरियों पर असर नहीं हुआ और सितंबर तक लगातार प्याज 100 रुपये किलो की दर से बिकती रही. गौरतलब है कि मानसून आते ही जून-जुलाई-अगस्त का महीना प्याज की खेती के लिए अहम रहता है और सितंबर आते ही प्याज की नई पैदावार बाजार का रुख करने लगती है. कालाबाजारियों को बाजार का पूर्वानुमान रहता है और वह फसल को मंडी पहुंचने के साथ-साथ स्टॉक करने लगते हैं. ज्यादातर बड़े किसान खुद इस होर्डिंग के काम को अंजाम देने में सक्षम रहते हैं और छोटे किसान पैदावार को मंडी ले जाने के खर्च से बचने के लिए कालाबाजारियों को सीधे बेच देते हैं.

व्यापारियों और किसानों की इस मिलीभगत के चलते बाजार में प्याज की कीमतों पर सप्लाई का दबाव पड़ने लगता है और नई फसल आने के बाद भी इस दबाव को कायम रखा जाता था. सरकार की तरफ से कालाबाजारियों पर छोटी-मोटी कारवाई कर दी जाती थी और कहीं-कहीं सरकार अपने स्टोर से सस्ती प्याज बेचने का काम शुरू कर देती थी. लेकिन साल दर साल प्याज का खेल यूं ही चलता रहता था.

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लेकिन बीते साल केन्द्र सरकार ने प्याज की कीमतों पर हो रही इस घोटालेबाजी को उसी के डिमांड-सप्लाई के खेल में पकड़ने का फैसला कर लिया. बीते साल खराब मानसून के बाद सितंबर में नई फसल जब बाजार पहुंची तो उसे मंडियों में प्याज की कमी के शुरुआती संकेत मिलने लगे. इन संकेतों के आधार पर अक्टूबर माह में विदेशो से दो बड़ी खेप इंपोर्ट कर ली गई. इसका असर यह हुआ कि घरेलू मंडियों में प्याज की सप्लाई बढ़ गई. यहां तक की कई जमाखोरों में अपना रिस्क कम करने के लिए अपने स्टॉक को भी मार्केट में ढकेल दिया. लेकिन कुछ बड़े खिलाड़ी अगले साल भी अल-नीनो और खराब मानसून की उम्मीद पर अपना स्टॉक बनाए रखे.

अब मौसम विभाग उम्मीद से बेहतर मानसून की भविष्यवाणी कर चुका है और कृषि विभाग का आंकलन है कि अच्छे मानसून में प्याज की पैदावार में 15-20 फीसदी की वृद्धि देखने को मिल सकती है. लिहाजा, इन दोनों खबरों से जमाखोरों के पास कोई विकल्प नहीं बचा और उन्हें भी अपने स्टॉक को बाजार का रुख करना पड़ गया. गौरतलब है कि बाजार में पहले से ही सरकारी स्टॉक से लगातार विदेशी प्याज की सप्लाई जारी रखी गई. लिहाजा, नीमच और नागपुर में प्याज 30 पैसे प्रति किलो तक गिर गई. इस दर पर भी मीडिया रिपोर्ट कह रहीं है कि कुछ व्यापारियों को लाखों रुपये लगाकर महज एक रुपये की आमदनी हुई है. अब ऐसी स्थिति में किसान या कारोबारी अपनी प्याज को सड़क पर फेंके न तो और क्या करे, क्योंकि इस साल इतना तय है कि प्याज की कीमतें 100 रुपये पर नहीं जाएंगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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