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4 उपाय, जिनके बाद ही बिकेगी सस्ती प्याज

    • राहुल मिश्र
    • Updated: 19 अगस्त, 2015 10:41 AM
  • 19 अगस्त, 2015 10:41 AM
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प्याज के कारोबार से जुड़े लोगों की मानें तो यदि मोदी सरकार इन चार कदमों को पूरी इच्छा शक्ति के साथ उठा ले तो इस देश में प्याज हमेशा सस्ती दरों पर ही मिला करेगी.

पिछले कई दशकों से प्याज राजनीति के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है. इमरजेंसी के दौर के बाद आई जनता सरकार ने बढ़ती महंगाई में प्याज के सामने सबसे पहले 1979 में घुटने टेक दिए थे. प्याज पर हुई जनता सरकार की फजीहत से 1980 में इंदिरा गांधी को एक बार फिर देश की कमान मिली तो उन्होंने जीत का श्रेय प्याज को दिया लेकिन अगले साल यही प्याज इंदिरा की सरकार को भी हिलाने लगी. 1981 में लोक दल के रामेश्वर सिंह राज्य सभा में प्याज की बढ़ती कीमत और कमजोर सप्लाई के विरोध में प्याज से बनी माला पहन कर पहुंच गए. और फिर 1998 में सुषमा स्वराज के नेतृत्व में बनी दिल्ली सरकार को इस्तीफा देना पड़ा.

आखिर क्यों प्याज का राजनीति के साथ ऐसा द्वंद्व चल रहा है? पिछले एक दशक के कांग्रेस सरकार के दौर में मॉनसून का आगमन होते ही प्याज की कीमतें हिलोरें मारने लगती हैं. फिर आनन फानन में या तो विदेश से प्याज मंगाई जाती हैं या फिर सरकारी दुकानों पर रेडियों और टेलीवीजन के विज्ञापनों के जरिए सस्ते दरों पर प्याज बेचे जाने का नजारा देखने को मिलता है. अगर प्याज की कीमतों का राजनीति से रिश्ता कुछ इस कदर है तो क्यों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले साल सत्ता संभालते ही वो जरूरी कदम नहीं उठाए जिससे प्याज की कीमतों का यह वार्षिक तांडव रुक सके.

देश में मंडियों के कारोबार से जुड़े लोगों का मानना है कि केन्द्र सरकार कई अहम मुद्दों को हल करने के लिए वाजिब पहल नहीं करती, लिहाजा प्याज जैसी जरूरी उपभोक्ता सामग्री हर साल एक संकट बन कर खड़ी हो जाती है. देश में प्याज के कारोबार से जुड़े इन्हीं लोगों की माने तो यदि कोई सरकार इन चार कदमों को पूरी इच्छा शक्ति के साथ उठा ले तो इस देश में प्याज हमेशा सस्ती दरों पर ही मिला करेगी.

1. प्याज स्टॉकिस्ट से सख्ती

इसके लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया जाना चाहिए जो देश में डिमांड और सप्लाई के नेटवर्क को दुरुस्त रख सके. इस फोर्स के जरिए इस चक्र से बिचौलियों, ब्लैकमार्केटियों और सटोरियों को दूर रखने की कोशिश की...

पिछले कई दशकों से प्याज राजनीति के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है. इमरजेंसी के दौर के बाद आई जनता सरकार ने बढ़ती महंगाई में प्याज के सामने सबसे पहले 1979 में घुटने टेक दिए थे. प्याज पर हुई जनता सरकार की फजीहत से 1980 में इंदिरा गांधी को एक बार फिर देश की कमान मिली तो उन्होंने जीत का श्रेय प्याज को दिया लेकिन अगले साल यही प्याज इंदिरा की सरकार को भी हिलाने लगी. 1981 में लोक दल के रामेश्वर सिंह राज्य सभा में प्याज की बढ़ती कीमत और कमजोर सप्लाई के विरोध में प्याज से बनी माला पहन कर पहुंच गए. और फिर 1998 में सुषमा स्वराज के नेतृत्व में बनी दिल्ली सरकार को इस्तीफा देना पड़ा.

आखिर क्यों प्याज का राजनीति के साथ ऐसा द्वंद्व चल रहा है? पिछले एक दशक के कांग्रेस सरकार के दौर में मॉनसून का आगमन होते ही प्याज की कीमतें हिलोरें मारने लगती हैं. फिर आनन फानन में या तो विदेश से प्याज मंगाई जाती हैं या फिर सरकारी दुकानों पर रेडियों और टेलीवीजन के विज्ञापनों के जरिए सस्ते दरों पर प्याज बेचे जाने का नजारा देखने को मिलता है. अगर प्याज की कीमतों का राजनीति से रिश्ता कुछ इस कदर है तो क्यों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले साल सत्ता संभालते ही वो जरूरी कदम नहीं उठाए जिससे प्याज की कीमतों का यह वार्षिक तांडव रुक सके.

देश में मंडियों के कारोबार से जुड़े लोगों का मानना है कि केन्द्र सरकार कई अहम मुद्दों को हल करने के लिए वाजिब पहल नहीं करती, लिहाजा प्याज जैसी जरूरी उपभोक्ता सामग्री हर साल एक संकट बन कर खड़ी हो जाती है. देश में प्याज के कारोबार से जुड़े इन्हीं लोगों की माने तो यदि कोई सरकार इन चार कदमों को पूरी इच्छा शक्ति के साथ उठा ले तो इस देश में प्याज हमेशा सस्ती दरों पर ही मिला करेगी.

1. प्याज स्टॉकिस्ट से सख्ती

इसके लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया जाना चाहिए जो देश में डिमांड और सप्लाई के नेटवर्क को दुरुस्त रख सके. इस फोर्स के जरिए इस चक्र से बिचौलियों, ब्लैकमार्केटियों और सटोरियों को दूर रखने की कोशिश की जाए.

2. मंडियों को सीधी सप्लाई

देश में प्याज की सबसे बड़ी मंडी नासिक है. इसके बाद मध्यप्रदेश के कुछ इलाकों से उत्तर भारत में प्याज की सप्लाई की जाती है. लेकिन नासिक मंडी में प्याज के आवक आंकड़ों को देखते हुए साफ तौर पर कहा जा सकता है कि अकेले यह मंडी पूरे देश को प्याज खिला सकती है. लिहाजा सरकार को चाहिए कि इस मंडी से उत्तर भारत में आवागमन के लिए स्पेशल कमोडिटी ट्रेन का संचालन शुरू करे जो प्रत्येक 15 दिनों में उत्तर भारत की मंडियों को सीधी सप्लाई कर सके.

3. सरकारी दरों पर उपलब्ध हो प्याज

इससे पहले कि किसी तरह से बाजार में प्याज की डिमांड और सप्लाई में असंगति बने, केन्द्र सरकार और प्रभावित सभी राज्य सरकारें रीटेल स्टोर से प्याज की बिक्री शुरू कर दें. इसके साथ ही इस काम में निजी क्षेत्र में बड़े रीटेलरों को भी साध लेना चाहिए और उनके जरिए भी सरकारी दरों पर प्याज की बिक्री की जानी चाहिए.

4. एसेंशियल गुड्स के लिए विशेष प्रावधान

जानकारों के मुताबिक, देश में प्याज की सप्लाई आमतौर पर मॉनसून में फसल खराब होने या फिर बिचौलियों के खेल के चलते देखने को मिलती है. ऐसी स्थिति में केन्द्र सरकार को विदेशों से प्याज इंपोर्ट करना पड़ता है. लेकिन, जरूरत इस बात की है कि केन्द्र सरकार को अपनी इंपोर्ट नीति में एसेंशियल गुड्स के लिए विशेष प्रावधान करने की जरूरत है और इससे पहले कि बाजार में डिमांड और सप्लाई का बैलेंस बिगड़े वह पड़ोसी मुल्कों से प्याज इंपोर्ट कर समय रहते ही अपना स्टॉक दुरुस्त कर सकें.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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