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क्या भारत तैयार था कैशलेस होने के लिए?

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 18 नवम्बर, 2016 04:15 PM
  • 18 नवम्बर, 2016 04:15 PM
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मोदी भक्त और मोदी विरोधी दोनों ही अपने-अपने तरीके से सोशल मीडिया पर नोटबंदी का मुद्दा उठाए हुए हैं. कालेधन पर नकेल कसने की चारों ओर से डिमांड थी, लेकिन सवाल ये है कि क्या भारत इस तरह के फैसेले के लिए तैयार था?

नोटबंदी के बाद से ही जहां देखो वहां या तो लोग लाइन में लगे हुए हैं या फिर कैशलेस ट्रांजैक्शन कर रहे हैं. बाजारों की रौनक जैसे चली गई है. शादियां टल गई हैं. मोदी भक्त और मोदी विरोधी दोनों ही अपने-अपने तरीके से सोशल मीडिया पर नोटबंदी का मुद्दा उठाए हुए हैं, लेकिन सवाल ये है कि क्या भारत इसके लिए तैयार था?

क्या कहते हैं आंकड़े-

भारत की जनसंख्या फिलहाल 1 अरब 33 करोड़ है. पिछले तीन सालों में सबसे ज्यादा 17.5 करोड़ अकाउंट्स खोले गए हैं. इसके अलावा, जन धन योजना में पिछले साल से लेकर अब तक जन धन योजना में लगभग 20 करोड़ अकाउंट खोले गए हैं.

 सांकेतिक फोटो

* भारत में हैं इतने अकाउंट-

8 मई 2015 को जारी की गई आरबीआई की प्रेस रिलीज के अनुसार 2014 में करीब 978 मिलियन यानी 97 करोड़ 8 लाख सेविंग्स बैंक अकाउंट थे. शहरों के मुकाबले गावों में इस दौर में ज्यादा डिपॉजिट देखा गया था.

आरबीआई प्रेस रिलीज यहां देखें

अब इस आंकड़े में अगर जनधन योजना के अकाउंट मिला दिए जाएं तो भी ये आंकड़ा एक अरब हुआ. अगर एवरेज को देखें तो इसमें दो साल के 10 करोड़ अकाउंट्स और जोड़े जा सकते हैं.

इसके अलावा, नॉन फाइनेंशियल अकाउंट्स जैसे पोस्ट ऑफिस सेविंग्स बैंक अकाउंट देखें जाएं तो देश के 6 लाख गावों में पोस्ट ऑफिस हैं. इनकी संख्या 10 लाख तक हो सकती है.

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नोटबंदी के बाद से ही जहां देखो वहां या तो लोग लाइन में लगे हुए हैं या फिर कैशलेस ट्रांजैक्शन कर रहे हैं. बाजारों की रौनक जैसे चली गई है. शादियां टल गई हैं. मोदी भक्त और मोदी विरोधी दोनों ही अपने-अपने तरीके से सोशल मीडिया पर नोटबंदी का मुद्दा उठाए हुए हैं, लेकिन सवाल ये है कि क्या भारत इसके लिए तैयार था?

क्या कहते हैं आंकड़े-

भारत की जनसंख्या फिलहाल 1 अरब 33 करोड़ है. पिछले तीन सालों में सबसे ज्यादा 17.5 करोड़ अकाउंट्स खोले गए हैं. इसके अलावा, जन धन योजना में पिछले साल से लेकर अब तक जन धन योजना में लगभग 20 करोड़ अकाउंट खोले गए हैं.

 सांकेतिक फोटो

* भारत में हैं इतने अकाउंट-

8 मई 2015 को जारी की गई आरबीआई की प्रेस रिलीज के अनुसार 2014 में करीब 978 मिलियन यानी 97 करोड़ 8 लाख सेविंग्स बैंक अकाउंट थे. शहरों के मुकाबले गावों में इस दौर में ज्यादा डिपॉजिट देखा गया था.

आरबीआई प्रेस रिलीज यहां देखें

अब इस आंकड़े में अगर जनधन योजना के अकाउंट मिला दिए जाएं तो भी ये आंकड़ा एक अरब हुआ. अगर एवरेज को देखें तो इसमें दो साल के 10 करोड़ अकाउंट्स और जोड़े जा सकते हैं.

इसके अलावा, नॉन फाइनेंशियल अकाउंट्स जैसे पोस्ट ऑफिस सेविंग्स बैंक अकाउंट देखें जाएं तो देश के 6 लाख गावों में पोस्ट ऑफिस हैं. इनकी संख्या 10 लाख तक हो सकती है.

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इन सबको जोड़कर भी देखें तो 20 करोड़ से ऊपर भारत की आबादी के पास बैंक अकाउंट नहीं है.

* डोरमेंट अकाउंट का रेट-

वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के अनुसार भारत में 43 प्रतिशत बैंक अकाउंट डोरमेंट हैं, जिसका मतलब ये है कि अकाउंट खोलने के बाद या पिछले एक साल में उसका इस्तेमाल नहीं किया गया है. 2015 में वर्ल्ड बैंक के एक स्टेटमेंट के अनुसार जन धन योजना में बनाए गए डोरमेंट अकाउंट्स को लेकर उसकी चिंता बढ़ गई है.

* इतने हैं डेबिट कार्ड-

जून 2016 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 66 करोड़ 18 लाख डेबिट कार्ड होल्डर हैं.

 सांकेतिक फोटो

* इतने हैं क्रेडिट कार्ड-

इसी रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2 करोड़ 45 लाख क्रेडिट कार्ड होल्डर हैं.

यहां देखें रिपोर्ट

अब क्यों ना की जाए चिंता?

20 करोड़ लोग (एवरेज) के पास कोई बैंक अकाउंट नहीं है. जिनके पास अकाउंट हैं उनमें से 43 प्रतिशत डोरमेंट अकाउंट हैं. इनमें से कई को तो याद भी नहीं होगा कि उनके पास कोई अकाउंट है भी. इसके बाद, 1 अरब 33 करोड़ की आबादी में से सिर्फ 68 करोड़ 63 लाख के पास डेबिट या क्रेडिट कार्ड है. 2 लाख लगभग एटीएम हैं भारत में. ऐसे में जिनके पास ना ही कोई बैंक अकाउंट है, ना ही कोई आईडी है, ना ही कोई क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड है क्या वो कैशलेस इकोनॉमी का फायदा उठा पाएगा? क्या भारत इस कदम के लिए तैयार था? सरकार का ये कदम अच्छा है, बेहतर है, लेकिन आखिर क्या होगा उन लोगों का जो ना तो बैंक जा सकते हैं ना ही पोस्ट ऑफिस में अकाउंट है और तो और उन गावों में साहूकार भी नहीं जो थोड़ा पैसा लेकर 500 रुपए या 1000 रुपए का नोट बदल दे. उनका क्या होगा?

कैशलेस इकोनॉमी की ओर भारत?

फेसबुक और ट्विटर पर बहुत सी ऐसी तस्वीरें सामने आ रही हैं जिनमें कोई सब्जी वाला, कोई फेरी वाला और पानीपुरी वाला भी Paytm का इस्तेमाल कर रहा है. अब अगर देखा जाए तो जब आधी से ज्यादा आबादी के पास बैंक अकाउंट ही नहीं है तो क्या ये तस्वीरें सच बोल रही हैं. भले ही कुछ लोग मॉर्डन हो गए हों, लेकिन कई ऐसे भी हैं जिनकी जिंदगी कैश पर ही टिकी है. कालोनी के रिक्शे वाले के पास 2 नोट हैं जिन्हें चलाना उसके लिए मुश्किल हो रहा है. बनिया पैसे ले नहीं रहा और घर में खाने पीने के लिए भी मुश्किल हो गई है.

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आर-के पुरम सेक्टन 8 के व्यस्त बाजार में इस समय मंदी छाई हुई है. किसी के पास पैसे नहीं है जिन्हें खर्च किया जा सके. बेकरी, सब्जी, खिलौने की दुकान आदि सब खाली पड़े हुए हैं. सब्जी वाले उधार तक देने को तैयार हैं, लेकिन उनके पास भी आगे का माल खरीदने के लिए पैसे नहीं. मेहंदी वाले तो आने वाले ग्राहकों से सिर्फ एक हाथ में मेहंदी लगवाने के लिए गुहर लगा रहे हैं, कई दिनों से इनके पास कोई ग्राहक नहीं आया. लोगों ने फिजूलखर्ची तो बंद कर दी है, लेकिन इन दुकनदारों की रोजीरोटी भी बंद हो गई है.

नोटबंदी के 10 दिनों में 47 मौतें हो चुकी हैं. लाइन में लगे हुए लोग परेशान हो रहे हैं. देश मिली जुली प्रतिक्रिया दे रहा है. लोग कह रहे हैं कि बदलाव अच्छा है.

 सांकेतिक फोटो

क्या होगा फायदा?

- महंगाई कम करने की ओर एक कदम है.- सोना सस्ता हो गया है. रुपए के कमजोर होने से क्रूड ऑयल और सोने के दामों पर असर पड़ा है. सोने का दाम साढ़े पांच महीने में सबसे निचले स्तर पर है. - बैंकों के पास पैसा बढ़ने से बैंक अपना इंट्रेस्ट रेट कम कर सकते हैं. इससे सीधे तौर पर महंगाई पर असर होगा. - कैशलेस इकोनॉमी के लिए पहला प्रयास है.- आगे चलकर ऐसी सर्विसेज जहां ज्यादा कैश लगता है, उनके दाम कम होने की उम्मीद है.

क्या हुआ है नुकसान-

- रुपया और कमजोर हो गया अभी 68 रुपए प्रति डॉलर का हिसाब चल रहा है. - आदी गोदरेज के CNBC को दिए एक इंटरव्यू के मुताबिक प्रॉपर्टी बाजार पर रेट बढ़ा-चढ़ाकर दिया जा रहा है. इतना अंतर नहीं आया है. - छोटे बिजनेसमैन को बहुत नुकसान हुआ है. मोदी सरकार ने 50 दिनों का समय मांगा है और इतने दिनों में छोटे बिजनेसमैन लाखों का नुकसान वहन करेंगे. - लोगों को रोजमर्रा की दिक्कतों का सामना करना पड़ा रहा है. 50 दिनों में नोटबंदी से होने वाली मौतों की संख्या बढ़ सकती है.

अब हम उम्मीद कर सकते हैं कि मोदी सरकार का ये कदम हमारे लिए फायदेमंद साबित हो. इसमें कोई शक नहीं कि ये कदम आने वाले समय में बड़े बदलाव लेकर आएगा. दिल्ली NCR में कई लोकल दुकनदार पेटीएम करने लगे हैं. मोबाइल वॉलेट का इस्तेमाल करने लगे हैं, लेकिन चिंता ज्यादा गावों की हैं जिन्हें अभी भी इस तकनीक तक पहुंचने में बहुत समय लगेगा.

टिप- अगर आप क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल कर रहे हैं तो ज्यादा इंट्रेस्ट रेट से बचने के लिए क्रेडिट कार्ड से मोबाइल वॉलेट जैसे पेटीएम, फ्रीचार्ज, ओलामनी आदि में पैसे ट्रांसफर कर लें. ये मोबाइल वॉलेट आपको कैशबैक की सुविधा भी देंगे और इससे सीधे तौर पर फायदा ही होगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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