• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
इकोनॉमी

जानिए बिना ब्याज का कर्ज देकर कैसे कमाते हैं इस्लामिक बैंक

    • राहुल मिश्र
    • Updated: 31 अगस्त, 2016 08:10 PM
  • 31 अगस्त, 2016 08:10 PM
offline
इस्लामिक बैंक वह बैंक है जो न तो किसी भी ग्राहक को दिए कर्ज पर ब्याज वसूलता है और न ही किसी भी ग्राहक की जमा धनराशि पर कोई ब्याज देता है. फिर कैसे चल रहे हैं दुनियाभर में इस्लामिक बैंक...

रिजर्व बैंक और भारत सरकार देश में बिना ब्‍याज वाली बैंकों के कामकाज की संभावना पर काम कर रहे हैं. ये बैंक हैं- इस्‍लामिक बैंक. हाल ही में देश के एक्जिम बैंक ने इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक के साथ मिलकर अहमदाबाद में पहले इस्लामिक बैंक की नींव रखने पर समझौता किया है. इसके लिए 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर का करार हुआ है.

इस्लामिक बैंकिंग यानी शरियत कानून के मुताबिक चलने वाले बैंक. शरियत कानून के मुताबिक ब्याज देना या सूद खाना दोनों हराम है. आप किसी से अधिक पैसे लेने की उम्मीद पर उसे कर्ज दें तो यह इस्लाम के खिलाफ है. वहीं अपना पैसा किसी के पास इस उम्मीद पर जमा करें कि कुछ समय बाद आपको ब्याज मिले तो इसे भी शरियत कानून गैर-इस्लामिक करार देता है.

इन्हीं नियमों को ध्यान में रखते हुए इस्लामिक बैंक वह बैंक है जो न तो किसी भी ग्राहक को दिए कर्ज पर ब्याज वसूलता है और न ही वह किसी भी ग्राहक की जमा धनराशि पर कोई ब्याज अदा करता है. बैंकिग के शब्दों में इसे जीरो पर्सेंट इंटरेस्ट कहा जाता है. ऐसे बैंक दुनिया के लगभग 50 देशों में मौजूद हैं और यहां लगभग 300 से अधिक संस्थाएं ऐसी बैंकिग का काम करती है.

इसे भी पढ़ें: दुनिया की पहली 'इस्लामिक' एयरलाइन...हिजाब में होंगी एयर होस्टेस!

अब सवाल उठता है कि जब कोई बैंक किसी ग्राहक से न तो ब्याज वसूलेगा और न ही किसी को ब्याज अदा करेगा तो वह बैंक कैसे काम करते हैं? उन बैंकों की कमाई कैसे होती है? और ऐसे बैंकों की जरूरत क्या है?

रिजर्व बैंक और भारत सरकार देश में बिना ब्‍याज वाली बैंकों के कामकाज की संभावना पर काम कर रहे हैं. ये बैंक हैं- इस्‍लामिक बैंक. हाल ही में देश के एक्जिम बैंक ने इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक के साथ मिलकर अहमदाबाद में पहले इस्लामिक बैंक की नींव रखने पर समझौता किया है. इसके लिए 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर का करार हुआ है.

इस्लामिक बैंकिंग यानी शरियत कानून के मुताबिक चलने वाले बैंक. शरियत कानून के मुताबिक ब्याज देना या सूद खाना दोनों हराम है. आप किसी से अधिक पैसे लेने की उम्मीद पर उसे कर्ज दें तो यह इस्लाम के खिलाफ है. वहीं अपना पैसा किसी के पास इस उम्मीद पर जमा करें कि कुछ समय बाद आपको ब्याज मिले तो इसे भी शरियत कानून गैर-इस्लामिक करार देता है.

इन्हीं नियमों को ध्यान में रखते हुए इस्लामिक बैंक वह बैंक है जो न तो किसी भी ग्राहक को दिए कर्ज पर ब्याज वसूलता है और न ही वह किसी भी ग्राहक की जमा धनराशि पर कोई ब्याज अदा करता है. बैंकिग के शब्दों में इसे जीरो पर्सेंट इंटरेस्ट कहा जाता है. ऐसे बैंक दुनिया के लगभग 50 देशों में मौजूद हैं और यहां लगभग 300 से अधिक संस्थाएं ऐसी बैंकिग का काम करती है.

इसे भी पढ़ें: दुनिया की पहली 'इस्लामिक' एयरलाइन...हिजाब में होंगी एयर होस्टेस!

अब सवाल उठता है कि जब कोई बैंक किसी ग्राहक से न तो ब्याज वसूलेगा और न ही किसी को ब्याज अदा करेगा तो वह बैंक कैसे काम करते हैं? उन बैंकों की कमाई कैसे होती है? और ऐसे बैंकों की जरूरत क्या है?

 लंदन स्थित इस्लामिक बैंक

इस्लामिक बैंक और एक साधारण बैंक को समझने के लिए आइए देखतें हैं दोनों बैंकों से कर्ज लेने की प्रक्रिया-

साधारण बैंक

फर्ज कीजिए आपको अपने शहर के किसी बैंक से एक लाख रुपये की मोटरसाइकिल खरीदने के लिए कर्ज लेना है. आपके कर्ज की अवधि 5 वर्ष की है. यह बैंक आपको बताएगा कि पांच साल की अवधि के लिए आपका कर्ज प्रति माह (12x5 महीने) के हिसाब से (चक्रवृद्धि ब्याज) चार फीसदी ब्याज जोडने के बाद कुल देय 1,22,100 रुपये होगा. आप यदि 1 लाख रुपये के लिए पांच साल में 22,100 रुपये बतौर ब्याज देने को तैयार हैं तो बैंक आपको कर्ज दे देगा.

वह आप के कर्ज पर प्रति माह के हिसाब से ब्याज जोड़ेगा और आपकी ईएमआई तय कर देगा. फिर आपको अगले पांच साल तक अपनी ईएमआई का भुगतान प्रति माह करना होगा.

इसे भी पढ़ें: मार्कंडेय काटजू का 'फतवा'

बहरहाल, साधारण बैंक से लिए कर्ज की पांच साल की अवधि के बीच आप यदि ईएमआई देने में चूकते हैं तो वह उस अवधि के लिए आपके ऊपर अलग से ब्याज थोप देगा और बैंक को अदा की जाने वाली कुल रकम में इजाफा हो जाएगा. इस बीच यदि आपको और पैसों की जरूरत पड़ती है तो बैंक आपको इसी कर्ज पर और पैसा दे देगा. हो सकता है वह ब्याज दरों में आपको बिना बताए परिवर्तन करे. जिससे आपकी ईएमआई भी समय-समय पर बढ़ती-घटती रहेगी. इसके अलावा वह आपके ईएमआई की अवधि में भी इजाफा कर सकता है औऱ आपको पांच साल से कुछ अधिक समय तक ईएमआई अदा करनी पड़ेगी. कुल मिलाकर बैंक से लिया गया कर्ज बैंक के लिए कमाई का सबब है. लिहाजा, वह कानून और नियमों के दायरे में रहते हुए आप से ज्यादा से ज्यादा ब्याज वसूलने के साथ अपनी कमाई को बढ़ाने की कोशिश में रहता है.

इस्लामिक बैंक

अब एक लाख रुपये की इसी मोटरसाइकिल के लिए यदि आप किसी इस्लामिक बैंक से कर्ज की गुहार लगाते हैं तो वह इस्लामिक बैंक आपसे सीधे कहेगा कि क्या आप 1,50,000 रुपये में वह मोटरसाइकिल बैंक से खरीदना चाहते हैं. यह राशि किसी साधारण बैंक से लिए कर्ज पर ब्याज जोड़कर थोड़ा अधिक रहती है. लेकिन इस्लामिक बैंक इसे ब्याज न कहकर अपना मुनाफा कहता है.

 शारजाह स्थित शारजाह इस्लामिक बैंक

आप यदि इस्लामिक बैंक की शर्त पर उक्त मोटरसाइकिल को 1,50,000 रुपये में खरीदने के लिए तैयार हैं तो बैंक मोटरसाइकिल की इस तय कीमत को 60 महीनों में बांटकर आपकी ईएमआई निर्धारित कर देगा. अब अगले 60 महीनों तक आपको निर्धारित ईएमआई का भुगतान करना होगा.

इस्लामिक बैंक से लिए इस कर्ज को चुकाने की 60 महीने की अवधि के दौरान आप किसी सूरत में अपनी ईएमआई के भुगतान से नहीं बच सकते. इस कर्ज के ऐवज में आपको बैंक से अधिक कर्ज नहीं मिल सकता. लिहाजा अधिक पैसा लेने के लिए आपको इस्लामिक बैंक से नए कर्ज की गुहार लगानी होगी. वहीं कर्ज के भुगतान के दौरान इस्लामिक बैंक आप के ऊपर दबाव बनाकर अपने पैसे की वसूली करने के लिए भी अधिकृत रहता है.

इसे भी पढ़ें: उर्जित पटेल के कंधे पर सवार रहेगा राजन की चुनौतियों का बेताल ?

इस्लामिक बैंक के कर्ज की खास बात यह है कि यदि आप समय से अपनी पूरी ईएमआई का भुगतान कर देतें हैं तो बैंक आपको अपने मुनाफे से कुछ राशि निकालकर बतौर ईनाम दे देगा. इस कर्ज में चूंकि किसी तरह का ब्याज नहीं रहता तो आप की ईएमआई शुरू से अंत तक एक रहती है और इस कर्ज अदायगी की समय सीमा में कोई हेरफेर नहीं होता.

अब दोनों बैंकों के कर्ज देने की प्रक्रिया को जानकर आपको समझ आ गया होगा कि आखिर कैसे इस्लामिक बैंक शरियत के नियम के मुताबिक बिना ब्याज के काम कर लेते हैं.

गौरतलब है कि भारत में मुसलमानों की बड़ी संख्या और कम साक्षरता के चलते कई गरीब मुसलमान परिवार इस्लामिक कानून के कारण बैंकिंग व्यवस्था से नहीं जुड़ पाते. खाड़ी देशों समेत अमेरिका और यूरोप के कुछ देशों में भी मुसलमानों को बैंकिग से जोड़ने के लिए ऐसे बैंकों को खोला गया है. भारत में केन्द्रीय रिजर्व बैंक पहले ही ऐसे बैंकों की स्थापना के लिए हरी झंड़ी दे चुका है. अब वह इसे हकीकत में लाने की कोशिश में लगा है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    Union Budget 2024: बजट में रक्षा क्षेत्र के साथ हुआ न्याय
  • offline
    Online Gaming Industry: सब धान बाईस पसेरी समझकर 28% GST लगा दिया!
  • offline
    कॉफी से अच्छी तो चाय निकली, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग दोनों से एडजस्ट कर लिया!
  • offline
    राहुल का 51 मिनट का भाषण, 51 घंटे से पहले ही अडानी ने लगाई छलांग; 1 दिन में मस्क से दोगुना कमाया
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲