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चुरा लो जीएसटी पर जोसफ को पता न चले

    • मनीष दीक्षित
    • Updated: 07 अगस्त, 2017 06:48 PM
  • 07 अगस्त, 2017 06:48 PM
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कारोबारी अब जीएसटी बचाने में लग गए हैं, कोई जूतों के अलग अलग बिल बना रहा है तो कोई सलवार-सूट में से दुपट्टे का बिल अलग बनाकर जीएसटी बचा रहा है.

जीएसटी बचाने और चुराने दोनों पर काम शुरू हो गया है. चेन्नई का एक जूता कारोबारी दाएं पैर के जूते का अलग बिल और बाएं पैर के जूते का अलग बिल बनाकर उन चतुर दुकानदारों की फेहरिस्त में आ गया जो जीएसटी के प्रावधानों को गच्चा देने की जुगत भिड़ा रहे हैं. इस कारोबारी ने हजार रुपए से कम के जूते के दो बिल बनाकर पांच फीसदी जीएसटी दिया अगर वो दोनों जूते एक साथ बेचता तो 18 परसेंट जीएसटी भरता. पांच सौ से कम के जूतों पर पांच फीसदी जीएसटी है.

इसी तरह एक हजार रुपए से ऊपर के कपड़ों पर 12 फीसदी जीएसटी है, तो सूरत के दुकानदार सलवार-सूट में से दुपट्टे का बिल अलग बनाकर 7 फीसदी जीएसटी बचा रहे हैं. 1000 रुपए से ऊपर के कपड़ों पर 12 फीसदी जीएसटी है, जबकि इससे कम पर पांच फीसदी.

1000 रुपए से ऊपर के कपड़ों पर 12 फीसदी जीएसटी है

पनीर, नेचुरल हनी, गेहूं, चावल, दाल और आटा जैसी चीजों पर जीएसटी शून्य है पर इनके रजिस्टर्ड ब्रांड पर 5 फीसदी टैक्स है. इससे रजिस्ट्रेशन न कराने वाले बड़े ब्रांड के दाम नहीं बढ़ेंगे जबकि पंजीकरण करा चुके ब्रांड का अनाज या अन्य सामान महंगा मिलेगा. कुछ ब्रांड अपना रजिस्ट्रेशन ही रद्द कराने की प्रक्रिया में हैं ताकि टैक्स बचाया जा सके.

नोएडा में जीएसटी बिल पर 3600 रुपए की कार बैटरी अगर दुकानदार 3100 रुपए में बेच रहा है तो या तो वो जीएसटी चुरा रहा है अथवा अपने मार्जिन से ग्राहक को छूट दे रहा है. क्योंकि बैटरी एमआरपी पर बेची नहीं जाती. बिल देकर चोरी संभव नहीं इसलिए अब मार्जिन पर कारोबार होगा.

नई दिल्ली के कश्मीरी गेट इलाके में एक ऑटो पार्ट्स कारोबारी का कहना था कि अब तो कपड़े पर भी जीएसटी लग गया है. ऑटो पार्ट्स कारोबारी से कपड़े पर टैक्स की चिंता की बात हैरान जरूर करती है. दरअसल, इसके पीछे टैक्स से बचने की कहानी छिपी हुई है....

जीएसटी बचाने और चुराने दोनों पर काम शुरू हो गया है. चेन्नई का एक जूता कारोबारी दाएं पैर के जूते का अलग बिल और बाएं पैर के जूते का अलग बिल बनाकर उन चतुर दुकानदारों की फेहरिस्त में आ गया जो जीएसटी के प्रावधानों को गच्चा देने की जुगत भिड़ा रहे हैं. इस कारोबारी ने हजार रुपए से कम के जूते के दो बिल बनाकर पांच फीसदी जीएसटी दिया अगर वो दोनों जूते एक साथ बेचता तो 18 परसेंट जीएसटी भरता. पांच सौ से कम के जूतों पर पांच फीसदी जीएसटी है.

इसी तरह एक हजार रुपए से ऊपर के कपड़ों पर 12 फीसदी जीएसटी है, तो सूरत के दुकानदार सलवार-सूट में से दुपट्टे का बिल अलग बनाकर 7 फीसदी जीएसटी बचा रहे हैं. 1000 रुपए से ऊपर के कपड़ों पर 12 फीसदी जीएसटी है, जबकि इससे कम पर पांच फीसदी.

1000 रुपए से ऊपर के कपड़ों पर 12 फीसदी जीएसटी है

पनीर, नेचुरल हनी, गेहूं, चावल, दाल और आटा जैसी चीजों पर जीएसटी शून्य है पर इनके रजिस्टर्ड ब्रांड पर 5 फीसदी टैक्स है. इससे रजिस्ट्रेशन न कराने वाले बड़े ब्रांड के दाम नहीं बढ़ेंगे जबकि पंजीकरण करा चुके ब्रांड का अनाज या अन्य सामान महंगा मिलेगा. कुछ ब्रांड अपना रजिस्ट्रेशन ही रद्द कराने की प्रक्रिया में हैं ताकि टैक्स बचाया जा सके.

नोएडा में जीएसटी बिल पर 3600 रुपए की कार बैटरी अगर दुकानदार 3100 रुपए में बेच रहा है तो या तो वो जीएसटी चुरा रहा है अथवा अपने मार्जिन से ग्राहक को छूट दे रहा है. क्योंकि बैटरी एमआरपी पर बेची नहीं जाती. बिल देकर चोरी संभव नहीं इसलिए अब मार्जिन पर कारोबार होगा.

नई दिल्ली के कश्मीरी गेट इलाके में एक ऑटो पार्ट्स कारोबारी का कहना था कि अब तो कपड़े पर भी जीएसटी लग गया है. ऑटो पार्ट्स कारोबारी से कपड़े पर टैक्स की चिंता की बात हैरान जरूर करती है. दरअसल, इसके पीछे टैक्स से बचने की कहानी छिपी हुई है. जीएसटी से पहले ऑटो पार्ट्स वाले कपड़े के नीचे अपना माल दबाकर यहां से वहां भेजते थे और कर बचाते थे. अब कपड़े की भी जांच-पड़ताल होगी.

दिल्ली के थोक मार्केट में टैक्स 40 फीसदी माल पर ही दिया जाता था

जीएसटी लागू होने के छह हफ्ते बाद भी दिल्ली के थोक मार्केट खारी बावली में धड़ल्ले से कैश पर बिना बिल के खरीद-फरोख्त जारी थी. यहां से माल खरीदने वाले एक कारोबारी बताते हैं कि पहले भी टैक्स 40 फीसदी माल पर ही दिया जाता था. अब सख्ती हुई तो शायद 50 फीसदी टैक्स दिया जाए पर बगैर बिलिंग की खरीद बंद नहीं हो सकती.

जानकार बताते हैं कि अंडर बिलिंग, बिजनेस स्प्लिट करना (कई भागों में बांटना), डैमेज दिखाना जैसे टैक्स से बचने के पुराने दांव अब भी आजमाए जाएंगे पर ज्यादा सावधानी के साथ. 20 लाख रु. तक के बिजनेस का रजिस्ट्रेशन काफी बढ़ जाएगा. इसमें भी रेस्तरां जैसे कारोबार जिनमें लगभग सारा कच्चा माल यानी सब्जी-राशन आदि कैश में खरीदा जाता है, का पंजीकरण बढ़ जाएगा. कैश आधारित बिजनेस से काले धन को सफेद करना आसन होता है. अंडर बिलिंग छोटे कारोबारियों के लिए अकेले मुश्किल होगी. अंडर बिलिंग पूरी बिजनेस चेन यानी फैक्ट्री का कच्चा माल खरीदने पर ही हो सकेगी. ट्रांसपोर्टर से लेकर रेलवे तक में दो नंबर के माल की ढुलाई होती है.

अर्थशास्त्री और जेएनयू के रिटायर्ड प्रोफोसर अरुण कुमार कहते हैं, ‘‘बिजनेसमैन बहुत ही चालाकी से काम करते हैं और उसमें कोई बदलाव नहीं आएगा. काले धन की समस्या हरेक बिजनेस में अलग-अलग तरीके से आती है. डॉक्टर 100 मरीज देखते हैं और डिक्लेयर 20 करते हैं. एक अर्थव्यवस्था टैक्स नेट के बाहर हमेशा चलती है और इसका खत्म होना नामुमकिन है. नकली चीजें बनाने वाले और मिलावट करने वाले हमेशा टैक्स दायरे से बाहर ही रहेंगे. पकड़ने के तरीके सरकार के पास जो पहले थे वे ही अब भी हैं. बदलाव सिर्फ इनपुट क्रेडिट वाला सिस्टम है. ओवर इनवाइसिंग और अंडर इनवाइसिंग मुश्किल हो जाएगी. जीएसटी से टैक्स चोरी कितनी रुकी यह बात इसके पूरी तरह से लागू होने पर ही पता चलेगी.’’

फाइनेंशियल कंसल्टेंट सचिन श्रीवास्तव कहते हैं, ‘‘कई कारोबार ऐसे होते हैं जिनमें जितना टैक्स बढ़ता है टैक्स चुराने वाला कारोबारी उतना खुश होता है क्योंकि टैक्स बढऩे से उसका मुनाफा और बढ़ जाता है.’’ जीएसटी बहुत बढिय़ा है लेकिन सिस्टम लागू करने वाले अधिकारी और कारोबारी, दोनों पुराने हैं ऐसे में कारोबारियों पर बहुत सख्ती के आसार नहीं दिखते.

जीएसटी की खुफिया इकाई जीएसटी इंटेलिजेंस का महानिदेशक जॉन जोसफ को बनाया गया है जो कि पहले राजस्व खुफिया इकाई (डीआरआई) में भी काम कर चुके हैं. अब इनका काम जीएसटी चुराने वालों की धरपकड़ करना है. जोसेफ का तजुर्बा और व्यापारियों के दांव में कौन आगे रहता है ये देखना दिलचस्प होगा. जीएसटी चोरी में जेल तक का प्रावधान है पर इसका असर देखने के लिए इंतजार करना होगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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