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संस्कृति

मेले तो कई देखे होंगे पर चुनावी मेला कहीं देखा है...

    • आलोक रंजन
    • Updated: 17 सितम्बर, 2016 06:27 PM
  • 17 सितम्बर, 2016 06:27 PM
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पंजाब में चुनावी बुखार चरम पर है. पंजाब की पार्टिया और राजनेता जनता को लुभाने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते है. इसी क्रम में पंजाब की सभी पार्टियों ने इस बार जिस स्थान को चुना वो था ऐतिहासिक छपार मेला.

पंजाब में चुनावी बुखार चरम पर है. पंजाब की पार्टिया और राजनेता जनता को लुभाने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते है. इसी क्रम में पंजाब की सभी पार्टियों ने इस बार जिस स्थान को चुना वो था ऐतिहासिक छपार मेला.

छपार मेला का आयोजन हर साल सितम्बर के महीने में लुधियाना के छपार गांव में लगता है जिसमे हजारो की संख्या में लोग आते है अपने संत गुग्गा पीर की आराधना करने के लिए. उनके याद में एक पवित्र स्थल 'गुग्गे दी मरही' भी वहां बनायीं गयी है.

बहरहाल, मेले के आखिरी दिन शुक्रवार को यह स्थान भी राजनीति से अछूता नहीं रह सका. सभी प्रमुख पार्टी - अकाली दल, भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी इत्यादि इस ग्रामीण मेले में अपनी अपनी सभाओं द्वारा लोगों को आगामी चुनाव के लिए लुभाने में लगे थे. एक-दूसरे पर उन्होंने आरोप- प्रत्यारोप लगाए. मुद्दे कई थे लेकिन जो मुद्दे प्रमुखता से उठाये गए. वे थे भ्रष्टाचार, ड्रग्स, यौन अपराध, प्रांतवाद, धार्मिक ग्रंथ का अपमान आदि.

पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह ने जहां आम आदमी पार्टी के साख पर सवाल उठाये वही आम आदमी पार्टी ने अकाली दल के बादल और कांग्रेस के अमरिंदर सिंह को वंशवाद राजनीति के लिए आड़े हाथो लिया. तो मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने आम आदमी पार्टी के समझदारी पर सवाल उठाये.

 मेला ही क्यों न हो..रैली तो वहां भी हो सकती है (फाइल फोटो)

यह मेला हर साल छपार गांव में लगता है और उसे पालिटिकल सभाओं का संगम भी एक तरह से कहा जा सकता है. लुधियाना, संगरूर और पटियाला जिला के गांव से हजारों लोग इस मेला में हिस्सा लेने आते हैं. पंजाब में चुनाव अगले साल होने वाले है और इसीलिए कोई भी पार्टी ऐसे मौकों को छोड़ना...

पंजाब में चुनावी बुखार चरम पर है. पंजाब की पार्टिया और राजनेता जनता को लुभाने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते है. इसी क्रम में पंजाब की सभी पार्टियों ने इस बार जिस स्थान को चुना वो था ऐतिहासिक छपार मेला.

छपार मेला का आयोजन हर साल सितम्बर के महीने में लुधियाना के छपार गांव में लगता है जिसमे हजारो की संख्या में लोग आते है अपने संत गुग्गा पीर की आराधना करने के लिए. उनके याद में एक पवित्र स्थल 'गुग्गे दी मरही' भी वहां बनायीं गयी है.

बहरहाल, मेले के आखिरी दिन शुक्रवार को यह स्थान भी राजनीति से अछूता नहीं रह सका. सभी प्रमुख पार्टी - अकाली दल, भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी इत्यादि इस ग्रामीण मेले में अपनी अपनी सभाओं द्वारा लोगों को आगामी चुनाव के लिए लुभाने में लगे थे. एक-दूसरे पर उन्होंने आरोप- प्रत्यारोप लगाए. मुद्दे कई थे लेकिन जो मुद्दे प्रमुखता से उठाये गए. वे थे भ्रष्टाचार, ड्रग्स, यौन अपराध, प्रांतवाद, धार्मिक ग्रंथ का अपमान आदि.

पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह ने जहां आम आदमी पार्टी के साख पर सवाल उठाये वही आम आदमी पार्टी ने अकाली दल के बादल और कांग्रेस के अमरिंदर सिंह को वंशवाद राजनीति के लिए आड़े हाथो लिया. तो मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने आम आदमी पार्टी के समझदारी पर सवाल उठाये.

 मेला ही क्यों न हो..रैली तो वहां भी हो सकती है (फाइल फोटो)

यह मेला हर साल छपार गांव में लगता है और उसे पालिटिकल सभाओं का संगम भी एक तरह से कहा जा सकता है. लुधियाना, संगरूर और पटियाला जिला के गांव से हजारों लोग इस मेला में हिस्सा लेने आते हैं. पंजाब में चुनाव अगले साल होने वाले है और इसीलिए कोई भी पार्टी ऐसे मौकों को छोड़ना नहीं चाहती है.

इस मेले में जहां एक ओर लोगों के लिए मनोरंजन और खाने की दुकानें थीं तो वहीं दूसरी और अकाली दल, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के रैलियों के मंच. जिस तरह पंजाब में इन धार्मिक मेलों में राजनितिक मंच सजता है शायद ही देश के अन्य किसी राज्य में देखने को मिलता होगा. और इसलिए यहां की सभी पार्टिया इस मेले को काफी महत्व देती है और हर साल मुख्य पार्टियों के सभी बड़े नेता इस मेले में शिरकत करते हैं.

छपार मेला सभी पार्टियों के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि ये मालवा क्षेत्र में आता है. पंजाब की करीब 65 से अधिक विधानसभा सीट इसी क्षेत्र में पड़ती है. पंजाब के विधानसभा की रोड इसी क्षेत्र से होकर जाती है. अकाली दल को पिछली बार सबसे ज्यादा सीट इसी क्षेत्र से मिली थी. हाल ही में केजरीवाल ने पंजाब का दौर किया तो अपना पूरा ध्यान इस क्षेत्र में केंद्रित किया था.

पंजाब में साल भर दूसरे-दूसरे जगहों में भी मेले लगते रहते है. पंजाब में मेलो की काफी अहमियत है. इन मेलों को एकता के प्रतिक के रूप में भी देखा जाता है. सभी धर्म और जाति के लोग इसमें शिरकत करते हैं. छपार की ही तरह आने वाले समय में जैसे जनवरी में माघी मेला का आयोजन पंजाब में किया जायेगा. पंजाब में चुनाव भी 2017 के प्रारम्भ में ही होने वाले है और ऐसे समय में किसी भी पार्टी के लिए इन मेलों से अच्छी जगह नहीं हो सकती जहा से वो अपनी बात ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचा सके.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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