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रियो पैरालंपिक में गोल्ड मेडल को उतना प्यार नहीं जितना ओलंपिक के रजत पदक को!

    • शुभम गुप्ता
    • Updated: 10 सितम्बर, 2016 03:21 PM
  • 10 सितम्बर, 2016 03:21 PM
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जब पी.वी. सिंधू और साक्षी मलिक अपना मुकाबला लड़ रही थी तो हर कोई पल-पल ट्वीट कर रहा था. जैसे ही मेडल की खबर आई, नेताओं ने ट्वीट की बारिश कर दी. मगर यहां मामला अलग है. देश ने गोल्ड मेडल जीता है. मगर किसी में उत्साह नहीं. न मीडिया में और न नेताओं में...क्यों

रियो पैरालंपिक में भारत के जाबाज़ों ने इतिहास रचा है. भारत के ऊंची कूद एथलीट मारियप्पन थांगावेलु ने पैरालंपिक खेलों में पुरुषों की ऊंची कूद टी-42 स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता, तो वरुण सिंह भाटी ने इसी स्पर्धा में कांस्य पदक अपने नाम किया. मारियप्पन ने 1.89 मीटर की कूद लगाई. जबकि भाटी ने अपना बेहतरीन प्रदर्शन देते हुए 1.86 मीटर की कूद लगाई.

दोनों ने ही हमारे देश का नाम रोशन किया है. मगर मीडिया से लेकर सरकार तक दोनों में ही कम उत्साह दिखाई दिया. जब आज सुबह इन दोनों ने मेडल जीते उसके बाद करीब एक घंटे तक तो किसी मीडिया चैनल ने ख़बर तक नही चलाई.

यहां तक की हमारे प्रधानमंत्री मोदी ने भी 2 घंटे बाद ट्वीट किया. देश के खेल मंत्री से तो ऐसी उम्मीद ही नहीं थी. इसका प्रसारण पहले ही देश में नही हो रहा है लिहाज़ा हमारे देश के प्रधानमंत्री की ज़िम्मेदारी थी कि वो सबसे पहले यह गुड न्यूज देश को देते. मगर नहीं जब कई लोगो ने उन्हें भी ट्वीट किये कि सर मारियप्पन थांगावेलु ने गोल्ड मेडल जीत लिया है कम से कम बधाई तो दे दीजिये तो उन्होंने करीब 2 घंटे बाद एक ट्वीट किया.

जब पी.वी. सिंधू और साक्षी मलिक अपना मुकाबला लड़ रही थी तो हर कोई पल-पल पर ट्वीट कर रहा था. जैसे ही मेडल की खबर आई, नेताओं ने ट्वीट की बारिश कर दी. मगर यहां मामला अलग है. देश ने गोल्ड मेडल जीता है. मगर किसी भी पार्टी में कोई उत्साह नही दिखा.

यह भी पढ़ें- काश, पीवी सिंधू के लिए भिड़े राज्य बाकी खिलाड़ियों की भी सुध लेते!

ये तो शुभकामनाओं की बात रही. अब सवाल सबसे बड़ा ये है कि क्या हिंदुस्तान के राज्यों की सरकारें उतना ही पैसा इन चैंपियंस को देगी जितना पी.वी. सिंधू...

रियो पैरालंपिक में भारत के जाबाज़ों ने इतिहास रचा है. भारत के ऊंची कूद एथलीट मारियप्पन थांगावेलु ने पैरालंपिक खेलों में पुरुषों की ऊंची कूद टी-42 स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता, तो वरुण सिंह भाटी ने इसी स्पर्धा में कांस्य पदक अपने नाम किया. मारियप्पन ने 1.89 मीटर की कूद लगाई. जबकि भाटी ने अपना बेहतरीन प्रदर्शन देते हुए 1.86 मीटर की कूद लगाई.

दोनों ने ही हमारे देश का नाम रोशन किया है. मगर मीडिया से लेकर सरकार तक दोनों में ही कम उत्साह दिखाई दिया. जब आज सुबह इन दोनों ने मेडल जीते उसके बाद करीब एक घंटे तक तो किसी मीडिया चैनल ने ख़बर तक नही चलाई.

यहां तक की हमारे प्रधानमंत्री मोदी ने भी 2 घंटे बाद ट्वीट किया. देश के खेल मंत्री से तो ऐसी उम्मीद ही नहीं थी. इसका प्रसारण पहले ही देश में नही हो रहा है लिहाज़ा हमारे देश के प्रधानमंत्री की ज़िम्मेदारी थी कि वो सबसे पहले यह गुड न्यूज देश को देते. मगर नहीं जब कई लोगो ने उन्हें भी ट्वीट किये कि सर मारियप्पन थांगावेलु ने गोल्ड मेडल जीत लिया है कम से कम बधाई तो दे दीजिये तो उन्होंने करीब 2 घंटे बाद एक ट्वीट किया.

जब पी.वी. सिंधू और साक्षी मलिक अपना मुकाबला लड़ रही थी तो हर कोई पल-पल पर ट्वीट कर रहा था. जैसे ही मेडल की खबर आई, नेताओं ने ट्वीट की बारिश कर दी. मगर यहां मामला अलग है. देश ने गोल्ड मेडल जीता है. मगर किसी भी पार्टी में कोई उत्साह नही दिखा.

यह भी पढ़ें- काश, पीवी सिंधू के लिए भिड़े राज्य बाकी खिलाड़ियों की भी सुध लेते!

ये तो शुभकामनाओं की बात रही. अब सवाल सबसे बड़ा ये है कि क्या हिंदुस्तान के राज्यों की सरकारें उतना ही पैसा इन चैंपियंस को देगी जितना पी.वी. सिंधू और साक्षी मलिक को दिया. जैसे कि सरकारों में एक मुक़ाबला शुरु हो गया था कि कौन कितनी जल्दी , कितना पैसा देता है. क्या सचिन बीएमडबल्यु की जगह कोई और ही कार गिफ्ट करेंगे? उम्मीद तो कम ही है. लगभग 14 करोड़ रुपये पी.वी. सिंधू को मिले.

 रियो में मेडल जीतने के बाद मारियप्पन (बाएं) और वरुण सिंह भाटी...

ऐसा नही है कि तमिलनाडु के मारियप्पन थांगावेलु और उत्तर प्रदेश के वरुण सिंह भाटी का सफर आसान रहा है. आप इनकी कहानी जानेगें तो आपकी आंखो से आंसू आ जाएगें.

अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू' की एक रिपोर्ट के मुताबिक मारियप्पन तब केवल 5 साल के थे जब गलत ढंग से मुड़ी बस ने उनके दाएं पैर को कुचल दिया था. मारियप्पन तब स्कूल जा रहे थे. उनका गांव पेरियावदगम्पति तमिलनाडु के सालेम शहर से करीब 50 किलोमीटर दूर स्थित है. यहीं वो घटना हुई. पैर घुटने के नीचे पूरी तरह खराब हो गया.

मारियप्पन की मां आज सब्जी बेचने का काम करती हैं. घटना के बाद तब उन्होंने तीन लाख का कर्ज लिया ताकि बेटे का इलाज हो सके. वो कर्ज ये परिवार आज भी चुका रहा है. बचपन में मारियप्पन को वॉलीबॉल खेलना अच्छा लगता था और अपने एक पैरे के खराब हो जाने के बावजूद वे इसे खेलते रहे. एक बार उनके शिक्षक ने कहा कि वे ऊंची कूद में हाथ क्यों नहीं आजमाते.

मारियप्पन को बात जंच गई. 14 साल की उम्र में उन्होंने पहली बार ऊंची कूद की प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लिया, वो भी सामान्य एथलीटों के खिलाफ. लेकिन इसे मारियप्पन का जज्बा ही कहिए, उस प्रतिस्पर्धा में वे दूसरे स्थान पर रहे. इसके बाद तो उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

देखिए, ये वीडियो रियो में कैसे गोल्ड मेडल जीता मारियप्पन ने..

 

कहानी वरुण सिंह भाटी की..

वरुण सिंह भाटी ग्रेटर नोएडा के जमालपुर गांव के रहने वाले हैं. जब बहुत छोटे थे तभी पोलियो के कारण उनका एक पैर खराब हो गया था. इसके बावजूद भाटी ने हिम्मत नहीं हारी. 21 साल के भाटी ने 2014 के इंचियोन पैरा-एशियाई खेलों में पांचवां स्थान हासिल किया था. यही नहीं, उसी साल चीन ओपन एथलेटिक्स चैपियनशिप में भी उन्होंने गोल्ड मेडल पर कब्जा जमाया.

 रियो में वरुण सिंह भाटी

देश इन दोनों को सलाम करता है. मगर अफसोस आज सरकार से लेकर मीडिया तक सभी में वो उत्साह नही दिखाई दिया जो ओलंपिक के समय दिखाई दिया था.

यह भी पढ़ें- ये ओलंपिक जरूर देखिएगा, यहां का बोल्‍ट जबर्दस्त प्रेरणा देता है


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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