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ओलंपिक में भारतीय टेनिस की लुटिया डुबोने की जिम्मेदारी कौन लेगा?

    • अभिषेक पाण्डेय
    • Updated: 07 अगस्त, 2016 06:50 PM
  • 07 अगस्त, 2016 06:50 PM
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ओलंपिक में भारत ने अब तक टेनिस में सिर्फ एक ही मेडल जीता है, तमाम स्टार खिलाड़ियों की मौजूदगी के बावजूद हर बार ओलंपिक में भारत को क्यों मेडल से महरूम रह जाना पड़ता है, जानिए?

अभी रियो ओलंपिक के लिए भारतीय टेनिस से जुड़े विवाद खत्म भी नहीं हुए थे कि भारतीय डबल्स टीम की पदक जीतने की उम्मीदें दम तोड़ गईं. लिएंडर पेस और रोहन बोपन्ना की जोड़ी रियो ओलंपिक के पहले ही दौर में हारकर बाहर हो गई.

ओलंपिक शुरू होने के पहले ही भारतीय टेनिस की पुरुष डबल्स टीम के चयन को लेकर काफी विवाद हुआ था. रोहन बोपन्ना ने पेस के साथ जोड़ीदार बनाए जाने पर नाखुशी जताई थी. मामला यहीं नहीं थमा और इन दोनों खिलाड़ियों के बीच मनमुटाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पेस और बोपन्ना ने रियो की प्रैक्टिस भी एकदूसरे से अलग की.

इन दोनों की जोड़ी रियो में पदक जीतने के लिए कितनी बेमेल थी, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि रियो ओलंपिक के पहले ही मुकाबले में भारत के ये दोनों स्टार खिलाड़ी मुकाबले में कहीं टिक ही नहीं पाए. पोलैंड के लुकास्ज कुबोट और मारसिन मैटकोवस्की की जोड़ी ने सीधे सेटों में पेस-बोपन्ना की अपने से कहीं चर्चित जोड़ी को 4-6, 6-7 से हराकर भारतीय अभियान शुरू होने से पहले ही उसे पटरी से उतार दिया.

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विवादों में घिरी रही पेस-बोपन्ना की जोड़ी रियो ओलंपिक के पहले ही दौर में बाहर हो गई

ओलंपिक में भारतीय टीम के लिए हार कोई नई बात नहीं है. हकीकत तो ये है कि पिछले कुछ दशक के दौरान कई ग्रैंड स्लैम पर कब्जा जमाने के बावजूद भी ओलंपिक में पदक...

अभी रियो ओलंपिक के लिए भारतीय टेनिस से जुड़े विवाद खत्म भी नहीं हुए थे कि भारतीय डबल्स टीम की पदक जीतने की उम्मीदें दम तोड़ गईं. लिएंडर पेस और रोहन बोपन्ना की जोड़ी रियो ओलंपिक के पहले ही दौर में हारकर बाहर हो गई.

ओलंपिक शुरू होने के पहले ही भारतीय टेनिस की पुरुष डबल्स टीम के चयन को लेकर काफी विवाद हुआ था. रोहन बोपन्ना ने पेस के साथ जोड़ीदार बनाए जाने पर नाखुशी जताई थी. मामला यहीं नहीं थमा और इन दोनों खिलाड़ियों के बीच मनमुटाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पेस और बोपन्ना ने रियो की प्रैक्टिस भी एकदूसरे से अलग की.

इन दोनों की जोड़ी रियो में पदक जीतने के लिए कितनी बेमेल थी, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि रियो ओलंपिक के पहले ही मुकाबले में भारत के ये दोनों स्टार खिलाड़ी मुकाबले में कहीं टिक ही नहीं पाए. पोलैंड के लुकास्ज कुबोट और मारसिन मैटकोवस्की की जोड़ी ने सीधे सेटों में पेस-बोपन्ना की अपने से कहीं चर्चित जोड़ी को 4-6, 6-7 से हराकर भारतीय अभियान शुरू होने से पहले ही उसे पटरी से उतार दिया.

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विवादों में घिरी रही पेस-बोपन्ना की जोड़ी रियो ओलंपिक के पहले ही दौर में बाहर हो गई

ओलंपिक में भारतीय टीम के लिए हार कोई नई बात नहीं है. हकीकत तो ये है कि पिछले कुछ दशक के दौरान कई ग्रैंड स्लैम पर कब्जा जमाने के बावजूद भी ओलंपिक में पदक जीतना भारत के लिए सपना ही साबित हुआ है. ओलंपिक में भारत ने टेनिस में एकमात्र पदक 1996 के अटलांटा ओलंपिक में जीता था, वह भी पेस ने सिंगल्स मुकाबले में जीता था.

डबल्स में भारत ओलंपिक में टेनिस में कभी कोई पदक नहीं जीत पाया है. वह भी तब जबकि लिएंडर पेस, महेश भूपति, सानिया मिर्जा जैसे सितारे एकदूसरे के साथ या विदेशी जोड़ीदारों के साथ मिलकर 36 ग्रैंड स्लैम जीत चुके हैं, वह भी पिछले दो दशक के अंदर ही. ये सफलता किसी भी देश का सिर गर्व से ऊंचा करने के लिए काफी है. लेकिन फिर ये सवाल और भी कड़ा हो जाता है कि आखिर ये स्टार खिलाड़ी ओलंपिक में कभी देश को पदक क्यों नहीं दिलवा पाए?

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राजनीति, अहम के टकराव और विवादों ने किया कबाड़ाः

ओलंपिक में भारतीय टेनिस के लिए पहला मेडल पेस ने 1996 के अटलांटा ओलंपिक में जीता. लेकिन उस इकलौती सफलता को छोड़कर आज तक भारत टेनिस में पदक जीतने के लिए तरसता ही रहा है. अटलांटा में जीते ब्रॉन्ज के अलावा सात बार ओलंपिक में उतरने के बावजूद लिएंडर पेस फिर कभी भारत को ओलंपिक में पदक नहीं जितवा पाए, जबकि इस बीत डबल्स और मिक्स्ड डबल्स में उन्होंने 18 ग्रैंड स्लैम अपने नाम किए. हैरानी की बात ये है कि जिस लिएंडर ने ओलंपिक में भारत को पहला पदक दिलाया, बाद के वर्षों में वही विवादों का सबसे बड़ा केंद्र भी बना.

पेस और भूपति की जोड़ी ने अपने टॉप के दौर में 1999-2001 के बीच तीन ग्रैंड स्लैम खिताब पर कब्जा जमाया. लेकिन इसके बाद आपसी मनमुटाव के कारण ये जोड़ी टूट गई. 2004 के एथेंस ओलंपिक में ये दोनों फिर साथ खेले और भारतीय टेनिस डबल्स टीम अपने ओलंपिक इतिहास में पदक के सबसे करीब भी इसी ओलंपिक में पहुंची थी. पेस-भूपति की जोड़ी सेमीफाइनल में पहुंच गई, लेकिन अंत में ब्रॉन्ज के लिए हुए मुकाबले में कड़े संघर्ष के बाद भी हार गई.

लिएंडर पेस और महेश भूपति की जोड़ी भी ओलंपिक में भारत को पदक नहीं दिला सकी

2008 के बीजिंग ओलंपिक में पेस-भूपति की जोड़ी का सफर क्वॉर्टर फाइनल से आगे नहीं बढ़ सका. इसके बाद फिर कभी ओलंपिक में पेस और भूपति साथ-साथ नहीं खेले. 2012 के लंदन ओलंपिक में दिखा कि कैसे स्टार खिलाड़ी अपने अहम की लड़ाई में देश का नुकसान करते हैं. एआईटीए ने पेस और भूपति को जोड़ीदार बनाने का फैसला किया लेकिन भूपति और रोहन बोपन्ना दोनों ही पेस के साथ खेलने को राजी नहीं हुए. तब एआईटीए ने पुरुषों की दो टीम भेजने का फैसला किया और भूपति और बोपन्ना की जोड़ी बनाई और पेस के जोड़ीदार बने विष्णुवर्द्धन.

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इतना ही नहीं पेस ने धमकी दी कि अगर सानिया मिर्जा को मिक्स्ड डबल्स के लिए उनका जोड़ीदार नहीं बनाया गया तो वे ओलंपिक से नाम वापस ले लेंगे. आखिरकार मिक्स्ड डबल्स के लिए पेस और सानिया मिर्जा की जोड़ी बनाई गई. सानिया के साथ खेलने के इच्छुक भूपति ने इसकी आलोचना की तो सानिया ने भी इस फैसले को पेस को खुश करने के लिए उन्हें ‘चारे’ की  तरह इस्तेमाल करने वाला बता डाला. इतने विवादों के बाद लंदन ओलंपिक में पहुंचे ये सभी भारतीय टेनिस स्टार चारों खाने चित्त हो गए और एक बार फिर टेनिस में भारत को कई पदक नहीं मिल सका.

ओलंपिक के चयन के विवादों से सानिया मिर्जा का नाम भी अछूता नहीं रहा है

रियो ओलंपिक के पहले भी टेनिस टीम का सिलेक्शन विवादों से अछूता नहीं रहा और बोपन्ना ने पेस के साथ जोड़ी बनाए जाने पर नाखुशी जता दी. इस विवाद और मनमुटाव का असर मैदान पर भी दिखा और ये जोड़ी पहले ही दौर में बाहर हो गई.

टेनिस में नई प्रतिभाओं के अभाव में डूबी लुटियाः

अगर आप गंभीरता से भारतीय टेनिस के खराब प्रदर्शन पर विचार करें तो आपको जो बातें साफ नजर आएंगी वे हैं, स्टार खिलाड़ियों के अहम का टकराव, देश से ज्यादा अपने निजी पसंद को तवज्जो देना, टीम के चुनाव में एआईटीए की राजनीति और पेस का जरूरत से ज्यादा समर्थन करना शामिल है.

इसके अलावा इसकी सबस बड़ी वजह है देश में टेनिस की उभरती प्रतिभाओं का अभाव. अगर टेनिस में नए सितारें आए होते तो भारतीय टेनिस फैंस 43 साल के लिएंडर पेस से रियो में ओलंपिक मेडल जीतने की उम्मीद न कर रहे होते. रियो में पेस और सानिया के जोड़ीदार बोपन्ना भी 36 साल के हो चुके हैं. यानी भारतीय टेनिस की उम्मीदों का भार उन खिलाड़ियों के कंधों पर है, जिनका सुनहरा दौर कब का बीत चुका है. ऐसे में नाकामी नहीं तो और क्या मिलेगी. पिछले कई दशकों से भारतीय टेनिस इन्हीं दो-चार गिने-चुने नामों के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा है. नई प्रतिभाओं के न आने से ही ये स्टार खिलाड़ी अपनी मनमानी करते रहे हैं.

अगर एआईटीए ने राजनीति के बजाय युवा प्रतिभाओं को निखारने में वक्त लगाया होता तो देश को रियो में देश को टेनिस में पदक जीतने के लिए यूं मायूस न होना पड़ता!    

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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