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पृथ्वी शॉ की सबसे मुश्किल पारी आउट होने के बाद शुरू हुई

    • फ़ायक अतीक़ क़िदवई
    • Updated: 05 अक्टूबर, 2018 06:21 PM
  • 05 अक्टूबर, 2018 05:59 PM
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अपने डेब्यू टेस्ट में एक बेहद उम्दा पारी खेलकर क्रिकेट फैंस को चकित करने वाले पृथ्वी शॉ से अब देश को उम्मीदें बढ़ गई हैं. इतनी कि उनकी तुलना सचिन तेंडुलकर से करके नाजायज दबाव डाल दिया गया है.

पृथ्वी शॉ के बारे में सोशल मीडिया पर कई पोस्ट पढ़ी. अपने पहले ही टेस्ट डेब्यू में शतक लगाना बड़ी बात है. हालांकि इससे पहले भी कई खिलाड़ी ऐसा कर चुके हैं, जिसमें से कुछ कामयाब हुए हैं तो कुछ नाकामयाब भी. एक पोस्ट थी कि अगर उन्हें मौका मिला तो वो सचिन तेंदुलकर से बेहतर बैट्समैन बनेंगे. ये सच है कि पृथ्वी शॉ में टैलेंट बहुत है. सबसे बड़ी बात उसकी शॉट में टच भी बहुत अच्छा है. लेकिन दो तरह के प्लेयर होते हैं, एक जो बॉलर से आउट हो जाता है, दूसरा जो बॉलर को विकेट दे देता है. पृथ्वी शॉ दूसरी तरह का प्लेयर है, कई बार बॉलर उन्हें आउट नहीं करता बल्कि वो खुद ही बेज़रूरत की शॉट खेलकर अपना विकेट दान दे देते हैं.

इस बात में कोई संदेह नहीं कि पृथ्वी शॉ एक बहुत ही सधे हुए खेल का प्रदर्शन करते हैं

पृथ्वी शॉ आक्रामक हैं. जबकि सचिन अपनी पारी को मूर्तिकार की तरह गढ़ के बनाते थे, उन्हें मालूम रहता था कि, लम्बी पारी कैसे खेली जाती है. पारी की शुरुवात में सबसे पहले वो तेज़ रन बनाते फिर वो पचास रन तक, नब्बे के स्ट्राइक रेट से खेलते, उसके बाद पचास से पैंसठ रन तक काफी धीमे बैटिंग करते, इसी बीच दो तीन चार ओवर में तेज बैटिंग करके अस्सी रन पर आ जाते थे. इसके बाद वो थोड़ा ठहरकर सौ रन की तरफ जाते. सौ के बाद वो पैडल स्वीप, रिवर्स स्वीप, लेट कट आदि खेलते. ऐसी शॉट्स में रिस्क तो होता है लेकिन इससे थकान नहीं होती.

ऐसा नहीं है कि सचिन से ज्यादा लोगों में टैलेंट नहीं है, बहुत से प्लेयर आये जिनमें वाक़ई बहुत टैलेंट था लेकिन क्रिकेट एक ऐसा खेल है जिसमे, पिच, मौसम, बॉलर, बॉल, उम्र, सबका ख्याल रखना पड़ता है. ये वाक़ई इतना आसान नहीं है, इसे डेढ़ से दो दशक तक बनाये रखना आपके सीखते रहने जैसे व्यवहार और बदलाव की प्रवृत्ति को दर्शाता है.

सचिन को जब टेनिस एल्बो की दिक्कत...

पृथ्वी शॉ के बारे में सोशल मीडिया पर कई पोस्ट पढ़ी. अपने पहले ही टेस्ट डेब्यू में शतक लगाना बड़ी बात है. हालांकि इससे पहले भी कई खिलाड़ी ऐसा कर चुके हैं, जिसमें से कुछ कामयाब हुए हैं तो कुछ नाकामयाब भी. एक पोस्ट थी कि अगर उन्हें मौका मिला तो वो सचिन तेंदुलकर से बेहतर बैट्समैन बनेंगे. ये सच है कि पृथ्वी शॉ में टैलेंट बहुत है. सबसे बड़ी बात उसकी शॉट में टच भी बहुत अच्छा है. लेकिन दो तरह के प्लेयर होते हैं, एक जो बॉलर से आउट हो जाता है, दूसरा जो बॉलर को विकेट दे देता है. पृथ्वी शॉ दूसरी तरह का प्लेयर है, कई बार बॉलर उन्हें आउट नहीं करता बल्कि वो खुद ही बेज़रूरत की शॉट खेलकर अपना विकेट दान दे देते हैं.

इस बात में कोई संदेह नहीं कि पृथ्वी शॉ एक बहुत ही सधे हुए खेल का प्रदर्शन करते हैं

पृथ्वी शॉ आक्रामक हैं. जबकि सचिन अपनी पारी को मूर्तिकार की तरह गढ़ के बनाते थे, उन्हें मालूम रहता था कि, लम्बी पारी कैसे खेली जाती है. पारी की शुरुवात में सबसे पहले वो तेज़ रन बनाते फिर वो पचास रन तक, नब्बे के स्ट्राइक रेट से खेलते, उसके बाद पचास से पैंसठ रन तक काफी धीमे बैटिंग करते, इसी बीच दो तीन चार ओवर में तेज बैटिंग करके अस्सी रन पर आ जाते थे. इसके बाद वो थोड़ा ठहरकर सौ रन की तरफ जाते. सौ के बाद वो पैडल स्वीप, रिवर्स स्वीप, लेट कट आदि खेलते. ऐसी शॉट्स में रिस्क तो होता है लेकिन इससे थकान नहीं होती.

ऐसा नहीं है कि सचिन से ज्यादा लोगों में टैलेंट नहीं है, बहुत से प्लेयर आये जिनमें वाक़ई बहुत टैलेंट था लेकिन क्रिकेट एक ऐसा खेल है जिसमे, पिच, मौसम, बॉलर, बॉल, उम्र, सबका ख्याल रखना पड़ता है. ये वाक़ई इतना आसान नहीं है, इसे डेढ़ से दो दशक तक बनाये रखना आपके सीखते रहने जैसे व्यवहार और बदलाव की प्रवृत्ति को दर्शाता है.

सचिन को जब टेनिस एल्बो की दिक्कत हुई तो उन्होंने हाई बैकलिफ्ट से बैटिंग करना बंद कर दिया. जब स्पाइन में दिक्कत आई तो बैट का वजन कम कर दिया. कई बार बैटिंग की खराब फॉर्म आई तो बॉलिंग से योगदान दिया. जहां तक पृथ्वी शॉ की बात हो तो उनमें वैसा ही टैलेंट है जैसा हम अंडर 19 वर्ल्ड कप में देखते आये हैं, फिर वो कोहली हों, उन्मुक्त चंद हों, ईशान किशन हों या और भी बहुत से प्लेयर.

सचिन ने अपने अनुभव से सीखा है लाजमी है उनका खेल परिपक्व होगा

बाक़ी पृथ्वी शॉ से उम्मीदें बहुत हैं, लेकिन उनपर ऐसा दबाव बनाना ठीक नहीं ही. सफलता पाने से अधिक सफलता को पचा लेना होता है. हम सब विनोद काम्बली के टैलेंट को अच्छे से जानते हैं. वो जिस स्तर के प्लेयर थे उसके साथ उन्होंने न्याय नहीं किया. ऐसे मैं बीसों प्लेयरों के नाम गिना सकता हूं जिन्होंने टैलेंट के बावजूद अपने क्रिकेट को खराब किया.

उम्मीद करता हूं पृथ्वी शॉ लंबी रेस का घोड़ा साबित होंगे. उनमें महान प्लेयर बनने के सारे गुण हैं. इतना टैलेंट कड़े परिश्रम के बाद ही आता है. पिछले कई दशकों से हम सब ये देखते आ रहे हैं कि मुंबई हमेशा से खिलाड़ियों को राष्ट्रीय टीम में मंझा कर भेजती है इसलिए उनके प्लेयर टेक्निक और मानसिक रूप से काफी परिपक्व होते हैं.

पृथ्वी शॉ ने इंग्लिश पिचों का भी अनुभव लिया हुआ है. अपने शुरूआती दिनों में कई क्लब और स्कूल मैचों में शानदार प्रदर्शन किया है. हालांकि इन सबके बावजूद टीम के चयनकर्ताओं ने उन्हें इंग्लैंड के विरुद्ध उनकी पिचों पर मौका न देकर थोड़ा सूझबूझ का काम किया था.

टेस्ट मैचों में नौ सौ विकेट ले चुके एंडरसन और ब्रॉड की जोड़ी किसी भी युवा बैट्समैन का मनोबल गिराने के लिए काफी है. पृथ्वी के लिए वेस्टइंडीज के इस दौरे में डेब्यू कराना बेहतर रहा. अगला दौरा ऑस्ट्रेलिया का है और महत्त्वपूर्ण है. ऐसे में जब आप बैटिंग करने जायंगे तो आपको पिछले दौरे के रन मानसिक रूप से मज़बूत बनाएंगे. अंत मे यही कामना है कि उनका भविष्य उज्ज्वल हो और ये देश एक तीसरा लिटिल मास्टर देखे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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