• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
स्पोर्ट्स

Mirabai Chanu की उपलब्धियों पर जश्न से पहले उन जैसों के लिए क्यों न ज़मीन तैयार की जाए!

    • प्रतिमा सिन्हा
    • Updated: 25 जुलाई, 2021 03:44 PM
  • 25 जुलाई, 2021 03:44 PM
offline
आखिरकार मीराबाई चानू की बदौलत भारत को वेटलिफ्टिंग में अपना पहला पदक मिल ही गया. सवाल ये है कि हममें से आखिर कितने भारतीय पहले मीराबाई चानू को जानते थे ? क्या हमें उनकी शख़्सियत, क्षमता और संघर्ष का अंदाज़ा था ?

अच्छा तो आज हम सब मीराबाई चानू को जान गये हैं. अब हम सब गूगल करके उसके बारे में और जानेंगे. उसकी तारीफ़ के लिए शब्दकोश खंगालेंगे. और हो भी क्यों ना, मीराबाई चानू नाम के इस करिश्मे ने इतिहास में पहली बार ओलंपिक खेलों के पहले ही दिन भारत में पदक जीत लिया है. मेरी एक जिज्ञासा है. उन्हें छोड़कर जो खेलों में विशेष दिलचस्पी रखते हैं, हम सब 'देशप्रेमी जन' मीराबाई चानू को पहले भी जानते थे क्या? हमें उसकी शख़्सियत, क्षमता और संघर्ष का अंदाज़ा था क्या? (बावजूद इसके कि मीराबाई चानू पद्मश्री से विभूषित हैं.) जी नहीं, मैं इस अजेय, अनुकरणीय उपलब्धि को कम कर के नहीं देख रही. इसके लिए वही उत्साह और वही सम्मान मेरे मन में है जो किसी भी भारतीय के मन में इस समय होगा बल्कि उससे कहीं ज़्यादा क्योंकि इस उपलब्धि को अपनी मुट्ठी में करने वाली एक लड़की है और लड़कियों की किसी भी उपलब्धि को मैं चाँद-सूरज छूने से कम नहीं समझती. फिर यह तो ओलंपिक में पदक पाने जैसी उपलब्धि है, वाकई चांद-सूरज छू लेने जैसी.

मीराबाई चानू के लिए भले ही हम तालियां बजा रहे हों लेकिन सवालों की एक लंबी फेहरिस्त हमारे पास है

भारत के लिए वेटलिफ्टिंग में मेडल जीतने वाली दूसरी वेटलिफ्टर बन चुकी मीराबाई चानू की विजय-गाथा आज पूरा देश गा रहा है. लेकिन यही तो वो क्षण होता है जब हमें रुक कर कुछ सोचना भी चाहिए. मणिपुर के छोटे से गांव में जन्मी मीराबाई चानू अपने बचपन में जब पहाड़ों पर लकड़ियां बिन रही थी, सुनते हैं उस वक़्त उन नन्हीं आंखों में एक तीरंदाज़ बनने का सपना था लेकिन मशहूर वेटलिफ्टर कुंज रानी देवी की कहानी सुनने के बाद बच्ची का सपना बदल गया.

हालांकि लक्ष्य का संधान अब भी करना ही था. 2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स में अच्छे प्रदर्शन के बाद चानू ने रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर लिया था...

अच्छा तो आज हम सब मीराबाई चानू को जान गये हैं. अब हम सब गूगल करके उसके बारे में और जानेंगे. उसकी तारीफ़ के लिए शब्दकोश खंगालेंगे. और हो भी क्यों ना, मीराबाई चानू नाम के इस करिश्मे ने इतिहास में पहली बार ओलंपिक खेलों के पहले ही दिन भारत में पदक जीत लिया है. मेरी एक जिज्ञासा है. उन्हें छोड़कर जो खेलों में विशेष दिलचस्पी रखते हैं, हम सब 'देशप्रेमी जन' मीराबाई चानू को पहले भी जानते थे क्या? हमें उसकी शख़्सियत, क्षमता और संघर्ष का अंदाज़ा था क्या? (बावजूद इसके कि मीराबाई चानू पद्मश्री से विभूषित हैं.) जी नहीं, मैं इस अजेय, अनुकरणीय उपलब्धि को कम कर के नहीं देख रही. इसके लिए वही उत्साह और वही सम्मान मेरे मन में है जो किसी भी भारतीय के मन में इस समय होगा बल्कि उससे कहीं ज़्यादा क्योंकि इस उपलब्धि को अपनी मुट्ठी में करने वाली एक लड़की है और लड़कियों की किसी भी उपलब्धि को मैं चाँद-सूरज छूने से कम नहीं समझती. फिर यह तो ओलंपिक में पदक पाने जैसी उपलब्धि है, वाकई चांद-सूरज छू लेने जैसी.

मीराबाई चानू के लिए भले ही हम तालियां बजा रहे हों लेकिन सवालों की एक लंबी फेहरिस्त हमारे पास है

भारत के लिए वेटलिफ्टिंग में मेडल जीतने वाली दूसरी वेटलिफ्टर बन चुकी मीराबाई चानू की विजय-गाथा आज पूरा देश गा रहा है. लेकिन यही तो वो क्षण होता है जब हमें रुक कर कुछ सोचना भी चाहिए. मणिपुर के छोटे से गांव में जन्मी मीराबाई चानू अपने बचपन में जब पहाड़ों पर लकड़ियां बिन रही थी, सुनते हैं उस वक़्त उन नन्हीं आंखों में एक तीरंदाज़ बनने का सपना था लेकिन मशहूर वेटलिफ्टर कुंज रानी देवी की कहानी सुनने के बाद बच्ची का सपना बदल गया.

हालांकि लक्ष्य का संधान अब भी करना ही था. 2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स में अच्छे प्रदर्शन के बाद चानू ने रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर लिया था लेकिन वहां पहुंचने के बाद वह ख़ुद भी अपनी ही उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी. चैंपियन का मुक़ाबला किसी और से नहीं ख़ुद अपने आप से होता है तो नाकामियों से लगातार सीखते हुए चानू लगातार उस सीढ़ी पर चढ़ती चली गई जिसके शीर्ष पर ओलंपिक का रजत था.

संघर्ष-कथाएं, उपलब्धि-गाथाओं में बदलने के बाद बड़ी दिलचस्प लगती हैं लेकिन उनसे गुज़रना इतना दिलचस्प नहीं होता. कदम-कदम पर टूटना पड़ता है. गिरना और ख़ुद ही उठना पड़ता है. फिर हमारे देश का सामाजिक इतिहास गवाह है कि खेल के क्षेत्र में लड़कियों को क्या लड़कों को भी पर्याप्त संसाधन और प्रोत्साहन नहीं मिले.

हां, अपना खून-पसीना बहाने के बाद जब खिलाड़ी उपलब्धियों से देश का नाम ऊंचा करते हैं जो चहुं ओर तालियां ज़रूर बजने लगती हैं. इन तालियों को बजाने वालों में अक्सर वो भी शामिल होते हैं जिन्होंने अपने आसपास या अपने घर के बच्चों को करियर के रूप में खेल का चुनाव करने पर सहमति नहीं जताई होती है.

हम ज़रा अपने आस-पास नज़र डालें तो बहुत सारी मीराबाई चानू देख सकते हैं जिनकी कड़ी मेहनत को, संघर्ष को और जुनून को आज से ही हमारे प्रोत्साहन की ज़रूरत है. हम चाहें तो उनकी कहानी में अभी से शामिल हो सकते हैं लेकिन नहीं हम तो उस दिन का इंतज़ार करते हैं जब वे सारी चुनौतियों को ठेंगा दिखाकर, अपने बलबूते पर शिखर तक पहुंच जाएंगी और हमको तालियां बजाने पर मजबूर कर देंगी और तालियां बजाने में तो हम बहुत माहिर हैं.

देशप्रेमी होने के नाम पर हर गौरव का क्रेडिट लेना हमें बखूबी आता है, उसमें हमारा योगदान हो या ना हो, फ़र्क़ नहीं पड़ता. क्रेडिट तो हमने कल्पना चावला तक का ले लिया था. 49 किलोग्राम वर्ग में कर्णम मल्लेश्वरी ने 2000 में कांस्य जीता था. 21 साल बाद रजत मीराबाई चानू ने अर्जित किया है. हम फिर जयजयकार में लग गए हैं.

बिना इस प्रश्न पर ध्यान दिए हुए कि क्या स्वर्ण पदक के लिए भी हमें अगले 21 साल प्रतीक्षा करनी होगी जब फिर कोई और लड़की सुदूर भारत के छोटे से गांव से निकलकर अपने जुनून के बल पर आसमान छुयेगी काश, हम जीत का जश्न जिस ज़ोरदार तरीके से मनाते हैं, खेलों को वैसी ही संजीदगी के साथ ले पायें.

खास तौर पर एक महिला खिलाड़ी के लिए अनुकूल सामाजिक आर्थिक मानसिक वातावरण बना पाएं तो हमें मनचाहा मेडल पाने के लिए 21 वर्षों का इंतजार नहीं करना पड़ेगा. ये 'काश' सच में तब्दील हो, इसी उम्मीद के साथ, आज की नायिका मीराबाई चानू को आसमान भर मुबारकें. जीती रहो. जीतती रहो.

ये भी पढ़ें -

Mirabai Chanu: रियो की नाकामी से टोक्यो ओलिम्पिक में कामयाबी हासिल करने का प्रेरणादायक सफर!

... यूं ही नहीं कोई मिल्खा सिंह हो जाता है!

ओलंपिक टीम में बिहार से कोई नहीं, सवाल तो होगा ही कि क्यों नहीं खेलता बिहार?  

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    महेंद्र सिंह धोनी अपने आप में मोटिवेशन की मुकम्मल दास्तान हैं!
  • offline
    अब गंभीर को 5 और कोहली-नवीन को कम से कम 2 मैचों के लिए बैन करना चाहिए
  • offline
    गुजरात के खिलाफ 5 छक्के जड़ने वाले रिंकू ने अपनी ज़िंदगी में भी कई बड़े छक्के मारे हैं!
  • offline
    जापान के प्रस्तावित स्पोगोमी खेल का प्रेरणा स्रोत इंडिया ही है
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲