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4 कारण, अब धोनी को क्रिकेट से अलविदा कह देना चाहिए

    • आईचौक
    • Updated: 03 जुलाई, 2019 01:35 PM
  • 03 जुलाई, 2019 11:50 AM
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जैसे जैसे उम्र बढ़ रही है वो क्रिकेट धोनी से बहुत दूर होता जा रहा है जिसके लिए वो जाने जाते थे. विश्‍वकप के बाद धोनी को अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह देना चाहिए, क्‍योंकि इसके लिए उनके पास पर्याप्‍त कारण हैं.

37 साल के माही अपने अंतर्राष्ट्रीय करियर के आखिरी पड़ाव पर है. क्रिकेट का कोई भी ऐसा फैन, जिसने महेंद्र सिंह धोनी को खेलते देखा है. वो यही चाहेगा कि 2019 के वर्ल्ड कप के बाद जिस वक़्त वो अपने क्रिकेट का अंत करें, एक ऐसी पारी खेलें जो क्रिकेट प्रेमियों द्वारा लम्बे समय तक याद रखी जाए. इस बात में रत्ती बराबर भी शक नहीं है कि स्टंप्स के पीछे धोनी का किसी से कोई मुकाबला नहीं है. साथ ही जो सुझाव वो मैदान पर साथी खिलाड़ियों को देते हैं उसका भी कोई जवाब नहीं है. वहीं बात अगर कमेंटेटर्स की हो तो अब तो उन्होंने भी DRS को धोनी रिव्यू सिस्टम कहना शुरू कर दिया है. ऐसा इसलिए क्योंकि जब भी धोनी इसकी मांग करते हैं इसका बड़ा फायदा टीम इंडिया और कैप्टन कोहली को मिलता है.

एक तरफ कैप्टन कोहली हैं जो बात बेबात डीआरएस या अन्य किसी अपील को लिए जाने के लिए जाने जाते हैं. वहीं धोनी हैं, जिनका डीआरएस की मांग उठाना उनके धैर्य के अलावा उनका अनुभव दर्शाता है और बताता है कि उन्होंने मांग उठाकर एक समझदारी भरा फैसला किया है. लेकिन, क्या यह महान धोनी के लिए काफी है? बड़ा सवाल ये है कि धोनी के अन्दर से वो धोनी कहां गया जिसकी बैटिंग देखकर विरोधी टीम के खिलाड़ियों के पसीने छूट जाया करते थे. हां वही बल्लेबाज जो 2004 में टीम इंडिया में आया और अपने खेल के दम पर सफलता के वो झंडे गाड़े जहां तक पहुंचना किसी भी खिलाड़ी के लिए एक हसीन सपना होता है.

धोनी का शुमार टीम इंडिया के उन बल्लेबाजों में रहा है जिसे हारी हुई बाजी जीतना आता था

इस बात में भी कोई शक नहीं है कि हममें से शायद ही कोई ऐसा होगा जो ये चाहे कि धोनी रिटायर हों. मगर जैसा उनका खेल है और जैसे टीम के हालात हैं अगर टीम इंडिया को वर्ल्ड कप लेकर आना है तो उस स्थिति में धोनी का रिटायर्मेंट अपने आप में...

37 साल के माही अपने अंतर्राष्ट्रीय करियर के आखिरी पड़ाव पर है. क्रिकेट का कोई भी ऐसा फैन, जिसने महेंद्र सिंह धोनी को खेलते देखा है. वो यही चाहेगा कि 2019 के वर्ल्ड कप के बाद जिस वक़्त वो अपने क्रिकेट का अंत करें, एक ऐसी पारी खेलें जो क्रिकेट प्रेमियों द्वारा लम्बे समय तक याद रखी जाए. इस बात में रत्ती बराबर भी शक नहीं है कि स्टंप्स के पीछे धोनी का किसी से कोई मुकाबला नहीं है. साथ ही जो सुझाव वो मैदान पर साथी खिलाड़ियों को देते हैं उसका भी कोई जवाब नहीं है. वहीं बात अगर कमेंटेटर्स की हो तो अब तो उन्होंने भी DRS को धोनी रिव्यू सिस्टम कहना शुरू कर दिया है. ऐसा इसलिए क्योंकि जब भी धोनी इसकी मांग करते हैं इसका बड़ा फायदा टीम इंडिया और कैप्टन कोहली को मिलता है.

एक तरफ कैप्टन कोहली हैं जो बात बेबात डीआरएस या अन्य किसी अपील को लिए जाने के लिए जाने जाते हैं. वहीं धोनी हैं, जिनका डीआरएस की मांग उठाना उनके धैर्य के अलावा उनका अनुभव दर्शाता है और बताता है कि उन्होंने मांग उठाकर एक समझदारी भरा फैसला किया है. लेकिन, क्या यह महान धोनी के लिए काफी है? बड़ा सवाल ये है कि धोनी के अन्दर से वो धोनी कहां गया जिसकी बैटिंग देखकर विरोधी टीम के खिलाड़ियों के पसीने छूट जाया करते थे. हां वही बल्लेबाज जो 2004 में टीम इंडिया में आया और अपने खेल के दम पर सफलता के वो झंडे गाड़े जहां तक पहुंचना किसी भी खिलाड़ी के लिए एक हसीन सपना होता है.

धोनी का शुमार टीम इंडिया के उन बल्लेबाजों में रहा है जिसे हारी हुई बाजी जीतना आता था

इस बात में भी कोई शक नहीं है कि हममें से शायद ही कोई ऐसा होगा जो ये चाहे कि धोनी रिटायर हों. मगर जैसा उनका खेल है और जैसे टीम के हालात हैं अगर टीम इंडिया को वर्ल्ड कप लेकर आना है तो उस स्थिति में धोनी का रिटायर्मेंट अपने आप में महत्वपूर्ण है. आइये उन कारणों पर चर्चा की जाए जो बताते हैं कि आखिर क्यों टीम इंडिया की सफलता के लिए महेंद्र सिंह धोनी का रिटायर्मेंट बहुत ज़रूरी है.

अब वो फिनिशर नहीं रहा

वर्षों से धोनी की भूमिका पारी को खत्म करने की रही है, जो वह पिछले एक दशक से आसानी से कर रहे थे. लेकिन 2015 के विश्व कप के बाद, धोनी में कई बदलाव देखने को मिले. गौर करें तो मिलता है कि उनकी बल्लेबाजी में वो पैनापन लगातार कम होता रहा जिसके लिए वो जाने जाते थे. आज हमारे बीच से वो धोनी गायब है जिसे हमने कभी दुश्मनों के परखच्चे उड़ाते देखा. हां वो धोनी जो बिल्कुल अंत समय में पारी को बदल देता था और भारत को ऐसी जीत देता था जिसका मजा लोग लम्बे समय तक नहीं भूल पाते थे.

बात यदि हाल ही में हुए एशिया कप की हो तो एक ऐसे समय में जब उन्हें क्रीज पर रहना था वो लगातर आउट हुए. उस समय जब टीम मुसीबत में थी तब या तो रवींद्र जडेजा या फिर केदार जाधव ही थे जो लम्बे समय तक क्रीज पर टिके रहे.

सवाल उठा कि धोनी, जो टीम के सबसे मजबूत सिपाही हैं. जिनके पास अनुभव भरा पड़ा हुआ है आखिर ऐसा कैसे कर सकते हैं. ये कहना हमारे लिए अतिश्योक्ति नहीं है कि अगर यही स्थिति रही तो आने वाले वक़्त में जब भी टीम इंडिया का मैच किसी और टीम के साथ होगा ये बात उसे एक बड़ी मुसीबत में डालेगी.

धीमा स्ट्राइक रेट

बात उस वक़्त की है जब धोनी ने टीम इंडिया में अपने सफर की शुरुआत की थी. जैसे ही धोनी मैदान में आते वो पहली ही गेंद से अपनी आक्रामक बल्लेबाजी का परिचय देते और गेंद और गेंदबाज को जमकर पीटते. पर अब जब उनकी उम्र हो रही है स्थिति ऐसी नहीं है. अब वो क्रीज पर सेटल होने के लिए अतिरिक्त गेंदों का सहारा लेते हैं.

कहा जा सकता है कि जिस वक़्त तक धोनी संभलते हैं तब तक बहुत देर हो जाती है. 2018 में, उस वक़्त जब क्रिकेट की दुनिया में टी20 का राज है 15 मैचों में धोनी का स्ट्राइक रेट 67.21 था जोकि टीम के लिए किसी भी सूरत में मददगार नहीं था बल्कि इससे टीम इंडिया का ही नुकसान हुआ.

हालांकि हमने IPL 2018 के आईपीएल में उस वक़्त कुछ धमाकेदार पारियां देखीं थी जब धोनी CSK के लिए खेल रहे थे. लेकिन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कोई बदलाव नहीं हुआ और महेंद्र सिंह धोनी ने अपना प्रदर्शन जारी रखा.

उनके वो समर्थक जिन्होंने धोनी को नंबर 3 पर आकर श्रीलंका के खिलाफ 183 और पाकिस्तान के खिलाफ 148 रन बनाते देखा है, लम्बे समय से इंतजार में हैं कि धोनी कोई ऐतिहासिक पारी खेलें. वाकई धोनी की वो पारियां ऐसी थीं जिनपर कोई भी मोहित हो सकता है.

ऐसे कई मौके आए हैं जब धोनी के धीमे स्ट्राइक रेट ने टीम इंडिया को बड़ी मुसीबत में डाला है

मिडिल आर्डर के अस्थिर होने पर कम औसत

टीम इंडिया का मिडिल आर्डर कैसा है ये किसी से छुपा नहीं है. काफी लम्बे समय से इसपर अलग अलग प्रयोग चल रहे हैं. कह सकते हैं टीम इंडिया ने बैटिंग आर्डर में धोनी के ऊपर और नीचे कई खिलाड़ियों को मौका दिया है और वो केवल केदार जाधव ही है जो अपने को साबित कर पाए हैं. जधाव के मामले में भी दिलचस्प ये है कि बल्लेबाजी की अपेक्षा उन्होंने अपने को बतौर गेंदबाज प्रूव किया है.

अब इन सब बातों पर यदि गौर किया जाए तो मिलता है कि मिडिल आर्डर में धोनी की भूमिका अपने आप में महत्वपूर्ण हो जाती है. एक चट्टान की तरह उन्हें अन्य खिलाड़ियों को आधार देना था. उन्हें गाइड करना था. पर धोनी खुद अपने आप में तमाम तरह के अलग अलग संघर्षों का सामना कर रहे हैं और बाक़ी टीम के खिलाड़ियों को संभालने में नाकाम हैं.

इन तमाम बातों को यदि हम पुनः 2018 के खाके में रखकर देखें तो मिलता है 15 मैचों में उनका औसत 28.13 था. 2018 में धोनी एक अर्धशतक तक मारने में नाकाम थे और 42 उनका उच्चतम स्कोर था. वहीं 2017 में उनका औसत 60 था. 2016 में धोनी का औसत 27.80 था.

अब वो वक़्त आ गया है जब टीम इंडिया की बेहतरी के लिए धोनी को अपने आपको क्रिकेट से अलग कर लेना चाहिए

युवा कतार में हैं

बात जब टीम इंडिया में युवाओं पर आई है तो ऋषभ पंत का जिक्र होना स्वाभाविक है. विस्तृत फॉर्मेट में जिस तरह के खेल का प्रदर्शन पंत ने किया है उसने उन्हें एक अलग ही मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है. वहीं बात अगर शॉर्टर फॉर्मेट की हो तो यहां भी पंत का किसी से कोई मुकाबला नहीं है. उनकी जैसी शैली है वो अटैक करने के लिए जाने जाते हैं और यही वो खासियत है जो उन्हें मिडिल आर्डर में एक मजबूत जगह दे सकती है.

ऋषभ पंत ने जिस तरह एकदिवसीय क्रिकेट में टेस्ट के जरिये पदार्पण किया वो काफी चौंकाने वाला है. ऐसा इसलिए क्योंकि धोनी टेस्ट से संन्यास लेने की घोषणा कर चुके थे और इससे फायदा उन युवाओं को मिला जो टीम इंडिया में आने के लिए अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे. माना जाता है कि टेस्ट टीम ही वो जगह है तो मुख्य टीम में युवाओं को अवसर दे सकती है.

सारी बातों का सार यही है कि यदि पंत धोनी को रिप्लेस करते हैं तो न सिर्फ ये पंत के लिए अच्छा रहेगा बल्कि इसका सबसे ज्यादा फायदा टीम इंडिया को मिलेगा. ज्ञात हो कि पंत कई अहम मौकों पर अपनी प्रतिभा का परिचय दे चुके हैं और बता चुके हैं कि वही एक मात्र व्यक्ति हैं जिसे क्रिकेट प्रेमी भारत को विजय दिलाते हुए पसंद करेंगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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