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क्या यो-यो टेस्ट खिलाड़ियों की प्रतिभा से ज्यादा बड़ा हो गया है?

    • अभिनव राजवंश
    • Updated: 26 जून, 2018 05:48 PM
  • 26 जून, 2018 05:47 PM
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बेशक इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि फिटनेस किसी भी खिलाड़ी के लिए सबसे अहम होती है, और खिलाड़ी को फिट होना ही चाहिए. मगर टीम प्रबंधन का ये फैसला थोड़ा अटपटा जरूर लगता है कि किसी खिलाड़ी के चुनाव के बाद उसे अनफिट बता दिया जाता है.

''आपके अंदर निश्चित कुछ काबिलियत है लेकिन अगर आप फिट हैं तो आप इसमें निखार ला सकते हैं इसलिए हम यो-यो टेस्ट पर जोर देते हैं. अगर किसी को लगता है कि यह बहुत ज्यादा गंभीर नहीं है तो यह उनकी भूल है. वह जा सकते हैं. फिलॉस्फी सिंपल है 'यू पास यू प्ले, यू फेल यू सेल'''. रवि शास्त्री के यो-यो टेस्ट को लेकर दिए गए इस बयान से अंदाज़ा लगाना कठिन नहीं है कि भारतीय टीम मैनेजमेंट यो-यो टेस्ट को लेकर कितनी संजीदा है. यह यो-यो टेस्ट की ही फांस थी जिसने अम्बाती रायुडू के दो साल फिर से राष्ट्रीय टीम की ओर से खेलने का सपना तोड़ दिया और सुरेश रैना को उनकी जगह दे दी गयी. इससे पहले यो-यो टेस्ट पास ना कर पाने के कारण मोहम्मद सामी को भी अफ़ग़ानिस्तान के खिलाफ टेस्ट मैच में जगह नहीं मिल सकी थी, इसके अलावा यो-यो टेस्ट के कारण ही संजू सैमसन इंडिया ए की तरफ से इंग्लैंड दौरे से बाहर हो गए थे. इन खिलाडियों के अलावा समय-समय पर सुरेश रैना, युवराज सिंह, वाशिंगटन सुन्दर जैसे खिलाड़ी भी यो-यो टेस्ट की फांस में फंस चुके हैं.

यो-यो टेस्ट म्बाती रायुडू

हालांकि अब इस यो-यो टेस्ट पर बीसीसीआई के ट्रेजरर अनिरुद्ध चौधरी ने ही सवाल खड़े कर दिए हैं. चौधरी ने यो-यो टेस्ट की प्रासंगिकता को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाये गए प्रशासकों की समिति (CoA) को एक पत्र लिखा है. पत्र में उन्होंने पूछा है कि यो-यो टेस्ट कब और कैसे चयन के लिए एकमात्र फिटनेस मानदंड बन गया? उन्होंने अपने पत्र में गुजारिश की है कि उन्हें इसका पूरा विवरण उपलब्ध कराया जाए. इससे पहले चयन समिति के पूर्व प्रमुख रहे संदीप पाटिल ने भी इसको लेकर सवाल खड़े किये थे, इसके अलावा राहुल द्रविड़ ने भी अंडर 19 पर यो-यो टेस्ट को जरुरी बनाने से इंकार कर दिया था. मतलब जहां एक तरफ टीम मैनेजमेंट यो-यो टेस्ट को लेकर कुछ ज्यादा ही संजीदा नजर आ...

''आपके अंदर निश्चित कुछ काबिलियत है लेकिन अगर आप फिट हैं तो आप इसमें निखार ला सकते हैं इसलिए हम यो-यो टेस्ट पर जोर देते हैं. अगर किसी को लगता है कि यह बहुत ज्यादा गंभीर नहीं है तो यह उनकी भूल है. वह जा सकते हैं. फिलॉस्फी सिंपल है 'यू पास यू प्ले, यू फेल यू सेल'''. रवि शास्त्री के यो-यो टेस्ट को लेकर दिए गए इस बयान से अंदाज़ा लगाना कठिन नहीं है कि भारतीय टीम मैनेजमेंट यो-यो टेस्ट को लेकर कितनी संजीदा है. यह यो-यो टेस्ट की ही फांस थी जिसने अम्बाती रायुडू के दो साल फिर से राष्ट्रीय टीम की ओर से खेलने का सपना तोड़ दिया और सुरेश रैना को उनकी जगह दे दी गयी. इससे पहले यो-यो टेस्ट पास ना कर पाने के कारण मोहम्मद सामी को भी अफ़ग़ानिस्तान के खिलाफ टेस्ट मैच में जगह नहीं मिल सकी थी, इसके अलावा यो-यो टेस्ट के कारण ही संजू सैमसन इंडिया ए की तरफ से इंग्लैंड दौरे से बाहर हो गए थे. इन खिलाडियों के अलावा समय-समय पर सुरेश रैना, युवराज सिंह, वाशिंगटन सुन्दर जैसे खिलाड़ी भी यो-यो टेस्ट की फांस में फंस चुके हैं.

यो-यो टेस्ट म्बाती रायुडू

हालांकि अब इस यो-यो टेस्ट पर बीसीसीआई के ट्रेजरर अनिरुद्ध चौधरी ने ही सवाल खड़े कर दिए हैं. चौधरी ने यो-यो टेस्ट की प्रासंगिकता को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाये गए प्रशासकों की समिति (CoA) को एक पत्र लिखा है. पत्र में उन्होंने पूछा है कि यो-यो टेस्ट कब और कैसे चयन के लिए एकमात्र फिटनेस मानदंड बन गया? उन्होंने अपने पत्र में गुजारिश की है कि उन्हें इसका पूरा विवरण उपलब्ध कराया जाए. इससे पहले चयन समिति के पूर्व प्रमुख रहे संदीप पाटिल ने भी इसको लेकर सवाल खड़े किये थे, इसके अलावा राहुल द्रविड़ ने भी अंडर 19 पर यो-यो टेस्ट को जरुरी बनाने से इंकार कर दिया था. मतलब जहां एक तरफ टीम मैनेजमेंट यो-यो टेस्ट को लेकर कुछ ज्यादा ही संजीदा नजर आ रही है, तो कई जानकार इसे गैर जरूरी भी मान रहे हैं.

सबसे पहले यहां यह जान लेना जरुरी है कि आखिर यह यो-यो टेस्ट है क्या?

अगर साधारण शब्दों में समझें तो एक सॉफ्टवेयर के माध्यम से तय समय में तय दूरी कुछ विशेष तरीके से पूरी करनी होती है. इस टेस्ट में कई ‘कोन्स’ की मदद से 20 मीटर की दूरी पर दो लाइनें बनाईं जाती हैं. प्लेयर को लाइन से पीछे से शुरुआत करनी होती है. सिग्नल मिलते ही वह दौड़ना शुरू करता है. प्लेयर को 20 मीटर की दूरी पर बनी दो पंक्तियों के बीच लगातार दौड़ना होता है और जब बीप बजती है तो मुड़ना होता है. तय किए गए समय में खिलाड़ी को अपनी रफ्तार बढ़ानी होती है. अगर वह तय वक्त पर लाइन तक नहीं पहुंचता है तो दो और बीप बजने के बाद उसे अपनी रफ्तार में और इजाफा करना होता है. पूरी प्रक्रिया साफ्टवेयर बेस्ड होती है. इसमें नतीजे रेकॉर्ड किए जाते हैं. यानी यो-यो टेस्ट वो टेस्ट है जो किसी भी खिलाड़ी के फिट होने का प्रमाण देती है, या कम से कम भारतीय टीम प्रबंधन को तो ऐसा ही लगता है.

हालांकि यहां सवाल जरूर उठता है कि क्या अगर किसी खिलाड़ी के अच्छे प्रदर्शन के बाद टीम में जगह मिलती है तो उसे केवल इस बिना पर टीम से बाहर कर दिया जाये कि वो बाकियों से थोड़ा धीमा दौड़ता है ? बेशक इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि फिटनेस किसी भी खिलाड़ी के लिए सबसे अहम होती है, और खिलाड़ी को फिट होना ही चाहिए. मगर टीम प्रबंधन का ये फैसला थोड़ा अटपटा जरूर लगता है कि किसी खिलाड़ी के चुनाव के बाद उसे अनफिट बता दिया जाता है. यह मानने में कोई शक नहीं होना चाहिए कि अगर कोई खिलाड़ी आज के इस प्रतिस्पर्धी क्रिकेट में अंतिम 14 में जगह बनाने में कामयाब होता है, तो वो फिट है. क्योंकि अगर वो फिट नहीं होता तो शायद टीम में चयन के काबिल भी नहीं होता.

किसी खिलाड़ी के अच्छे प्रदर्शन के बावजूद उसे केवल इस बिना पर टीम से बाहर कर देना कि वो बाकियों से थोड़ा धीमा दौड़ता है, अच्छा नहीं है

यहां एक बात समझ लेना भी जरुरी है कि क्रिकेट में खिलाडियों को पूरे टाइम केवल भागना ही नहीं होता, जैसा आम तौर पर फुटबॉल, हॉकी में देखने को मिलता है. और यो-यो टेस्ट जैसा कोई टेस्ट अगर एक दशक पहले क्रिकेट में होता तो शायद सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण जैसे खिलाड़ी भारतीय टीम का हिस्सा ही नहीं हो पाते, क्योंकि ये बाकी खिलाडियों जितने चपल नहीं थे. हालांकि अपने बल्लों से इन्होंने क्या किया यह किसी से छिपा नहीं है. अब अगर अम्बाती रायुडू को ही ले तो अम्बाती रायुडू ने आईपीएल की 2018 सीजन में बल्ले से धमाल मचाते हुए 43 की शानदार औसत से 602 रन बनाये और चेन्नई की जीत में अहम योगदान भी दिया, मगर वो यो-यो टेस्ट पास ना होने के कारण टीम में नहीं है. यह बात हजम करना थोड़ा मुश्किल है कि कोई खिलाड़ी गेंद बल्ले से शानदार प्रदर्शन करने के बावजूद टीम में नहीं है.

जरुरत तो थी कि यो-यो टेस्ट को शामिल जरूर करें, मगर इसको लेकर इतना रिजिड ना हों. क्योंकि फिटनेस को पैमाना मान कर किसी के स्किल को इस तरह नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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