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इस 15 वर्षीय विंबलडन खिलाड़ी के बारे में जानना जरूरी है...

    • आईचौक
    • Updated: 06 जुलाई, 2016 08:12 PM
  • 06 जुलाई, 2016 08:12 PM
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ब्रिटेन की रहने वाली फ्रांसेस्का जोंस मंगलवार को हुए विंबलडन जूनियर टूर्नामेंट में हार गईं. लेकिन जोंस अपनी इस हार के बावजूद कई लोगों के लिए प्रेरणा का विषय बन गई हैं.

फ्रांसेस्का की दोनों हथेलियों में तीन-तीन ही उंगलियां हैं. ऐसा एक्‍टोडर्मल डिस्प्लेस्क्सिया सिंड्रोम से पीडि़त होने के कारण हुआ.ऐसे में उनके लिए टेनिस रैकेट को थामना कभी भी आसान नहीं रहा. लेकिन, अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंसने जो मेहनत की है, अब वह इस खेल को फॉलो करने वालों में चर्चा का विषय बन गया है.

139 वर्ष पुराने इस टेनिस टूर्नामेंट के तीसरे दौर तक पहुंच गई थी जोंस. लेकिन, यहां वे अमेरिकी खिलाड़ी कालया डे से तीसरे दौर में हार गईं. लेकिन इस टूर्नामेंट से एंट्री तक का सफर किसी रोमांचक कहानी से कम नहीं है.

फ्रांसेस्का को अब तक कई दर्दनाक ऑपरेशन से गुजरना पड़ा है. लेकिन अपनी शारीरिक बनावट में आई कमियों को उन्हों ने अपने जज्बे से पूरा किया. टेनिस खेलने की शुरुआत तो उन्होंने सिर्फ व्या‍याम के बतौर ही शुरू की थी. लेकिन फिर इसमें उन्हेंन अपना लक्ष्य दिखाई देने लगा. वर्ल्ड चैंपियन बनने का.

 फ्रांसेस्का जोंस

9 साल की उम्र में ही उन्हों ने बार्सिलोना जाकर टेनिस अकेडमी ज्वाइन कर ली थी. जोन्स बताती हैं कि टेनिस खेलते समय उनको बैट कसकर पकड़ना पड़ता है. जिसकी वजह से उंगलियों में दर्द होता है और उनके नाखुन भी छिल जाते हैं.

जोंस की बनावट उनके लिए शारीरिक ही नहीं, मानसिक तकलीफ का कारण बन जाया करती थी. वे कहती हैं कि बचपन से हर कोई उन्हें चिढ़ाता आया है. लेकिन फिर उन्हों ने इसी मजाक को प्रेरणा का स्रोत बना लिया. लोग जब जब मजाक बनाते, वह मन में सोचतीं कि इन्हेंप मुझे कामयाब होकर दिखाना है. और आज उसी जज्बेो की वजह से जोन्स वर्ल्डक टेनिस की जूनियर श्रेणी में दुनिया की चौथे नंबर की खिलाड़ी...

फ्रांसेस्का की दोनों हथेलियों में तीन-तीन ही उंगलियां हैं. ऐसा एक्‍टोडर्मल डिस्प्लेस्क्सिया सिंड्रोम से पीडि़त होने के कारण हुआ.ऐसे में उनके लिए टेनिस रैकेट को थामना कभी भी आसान नहीं रहा. लेकिन, अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंसने जो मेहनत की है, अब वह इस खेल को फॉलो करने वालों में चर्चा का विषय बन गया है.

139 वर्ष पुराने इस टेनिस टूर्नामेंट के तीसरे दौर तक पहुंच गई थी जोंस. लेकिन, यहां वे अमेरिकी खिलाड़ी कालया डे से तीसरे दौर में हार गईं. लेकिन इस टूर्नामेंट से एंट्री तक का सफर किसी रोमांचक कहानी से कम नहीं है.

फ्रांसेस्का को अब तक कई दर्दनाक ऑपरेशन से गुजरना पड़ा है. लेकिन अपनी शारीरिक बनावट में आई कमियों को उन्हों ने अपने जज्बे से पूरा किया. टेनिस खेलने की शुरुआत तो उन्होंने सिर्फ व्या‍याम के बतौर ही शुरू की थी. लेकिन फिर इसमें उन्हेंन अपना लक्ष्य दिखाई देने लगा. वर्ल्ड चैंपियन बनने का.

 फ्रांसेस्का जोंस

9 साल की उम्र में ही उन्हों ने बार्सिलोना जाकर टेनिस अकेडमी ज्वाइन कर ली थी. जोन्स बताती हैं कि टेनिस खेलते समय उनको बैट कसकर पकड़ना पड़ता है. जिसकी वजह से उंगलियों में दर्द होता है और उनके नाखुन भी छिल जाते हैं.

जोंस की बनावट उनके लिए शारीरिक ही नहीं, मानसिक तकलीफ का कारण बन जाया करती थी. वे कहती हैं कि बचपन से हर कोई उन्हें चिढ़ाता आया है. लेकिन फिर उन्हों ने इसी मजाक को प्रेरणा का स्रोत बना लिया. लोग जब जब मजाक बनाते, वह मन में सोचतीं कि इन्हेंप मुझे कामयाब होकर दिखाना है. और आज उसी जज्बेो की वजह से जोन्स वर्ल्डक टेनिस की जूनियर श्रेणी में दुनिया की चौथे नंबर की खिलाड़ी हैं.

फ्रांसेस्का अपनी सफलता का श्रेय अपने हालात को देती है. कहना है कि उनके हालातों ने ही उन्हें और मजबूत बनाया. जिन हथेलियों से रैकेट पकड़ना होता है उन्हीं हथेलियों में पिछले साल बिंवलडन में आने पहले तीन ऑपरेशन कराये थे जो कि किसी आश्चर्य से कम नहीं है. लेकिन एक सफल खिलाड़ी को दर्द नहीं सिर्फ अपनी मंजिल दिखाई देती है. फ्रांसेस्का कहती है कि अगर मुझे दोबारा ऑपरेशन कराने की जरूरत पड़ी तो कराऊंगी और वो सब कुछ करूंगी जो मुझे मेरी मंजिल तक पंहुचाने के लिए करना होगा.

फ्रांसेस्का आज जो भी कुछ है अपनी बिमारी की वजह से ही है, ऐसा वह मानती हैं. उन्हें अपने माता-पिता (ऐडल और सिमन) से आर्शीवाद और आर्थिक रुप से पूरा सहयोग प्राप्त है और दोनों हर महीने में एक बार बर्सिलोना (फ्रांसेस्का की टेनिस अकाडमी) जाकर फ्रांसेस्का से मिलते हैं.

फ्रांसेस्का को पिछले साल भी बिंवलडन में खेलने का मौका मिला था लेकिन ऑपरेशन होने की वजह से मैच नही खेल पाई थीं. जबकि इस बार उनका खेलने का सपना पूरा हो गया.

फ्रांसेस्का का कहना है कि वो यहां जीतने के लिए खेलीं थीं, इसीलिए आज हारना बेहद निराश करने वाला था. लेकिन आज के मैच से जो भी सीखा है वो मैं आने वाले टूर्नामेंट में इस्तेमाल करूंगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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