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मार्टिन क्रो की दमदार बल्लेबाजी हमेशा याद आएगी..

    • गोपाल शुक्ल
    • Updated: 03 मार्च, 2016 06:49 PM
  • 03 मार्च, 2016 06:49 PM
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मार्टिन क्रो आप आउट होते थे तो हमे खुशी होती थी. लेकिन आज जब मार्टिन क्रो इस तरह 'आउट' हुए हैं तो मन बहुत भारी हो रहा है. दिल तो यही कर रहा है कि हम फिर से उसी दौर में लौट जाएं और भारतीय टीम एक मैच और सही...हार जाए.

80 के दशक में कानपुर के एक छोटे से मोहल्ले में रहता था. घर के पास ही दोस्त रहता था जिसके पास ब्लैक एंड व्हाइट टीवी हुआ करता था. अंग्रेज़ी हमें नहीं आती थी. लेकिन क्रिकेट के मैच बड़े चाव से देखते थे. उस वक्त ऑस्ट्रेलिया के चैनल 9 का प्रसारण आता था और उस पर रिची बैनों कमेंट्री करते नजर आते थे. उनकी कमेंट्री समझ में तो नहीं आती थी लेकिन गुड शॉट और आउट जैसे शब्द समझ आ जाते थे. उस दौर में जब कभी न्यूज़ीलैंड के साथ मैच होता तो हम मानकर चलते थे कि भारत जीत जाएगा. हां! भारत की जीत में आगर कोई बाधा डाल सकता था तो वो थे "कौआ बंधु" (जेफ क्रो और मार्टिन क्रो).

कॉमेंट्री समझ में नहीं आती थी. लेकिन समझ में आता था तो मार्टिन क्रो का खौफ. जैसे ही वो आउट होते हम सबको मैच का नतीजा मिल जाता. कभी कभी तो हम मैच छोड़ कर भी उठ जाते थे. बचपन में मार्टिन क्रो के आउट हो जाने के बाद टीवी छोड़, उठकर चले जाना आज उनके प्रति हमारा विशुद्ध सम्मान सा प्रतीत होता है. खैर, बड़े होने के बाद थोड़ी बहुत अंग्रेजी सीखी, पढ़ी भी लेकिन बचपन में दिया वो सम्मान कभी किसी को न दे सके. आज उनके जाने के बाद मन कर रहा है कि टीवी पर फिर से बैठकर उनकी उस बैटिंग को देखें, जो हमारे लिए खौफ हुआ करती थी. मार्टिन क्रो आप आउट होते थे तो हमे खुशी होती थी. लेकिन आज जब मार्टिन क्रो इस तरह 'आउट' हुए हैं तो मन बहुत भारी हो रहा है. दिल तो यही कर रहा है कि हम फिर से उसी दौर में लौट जाएं और भारतीय टीम एक मैच और सही...हार जाए.

29 फरवरी 1992, ये तारीख बहुत लोगों के लिए यूं तो कोई खास महत्व नहीं रखती. लेकिन क्रिकेट देखने वाले और क्रिकेट से लगाव रखने वालों के लिए ये तारीख यकीनन एक अहम पड़ाव मानी जाती है. क्योंकि इसी दिन एक ऐसा तूफान लोगों को क्रिकेट के मैदान में देखने को मिला, जो उसके बाद कई वर्षों तक कई खिलाड़ियों के लिए जीवनदान साबित हुआ.
ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की संयुक्त मेजबानी में आईसीसी वर्ल्ड कप क्रिकेट खेला जा रहा था और 29 फरवरी को ऑकलैंड में मेजबान न्यूजीलैंड की टीम दक्षिण...

80 के दशक में कानपुर के एक छोटे से मोहल्ले में रहता था. घर के पास ही दोस्त रहता था जिसके पास ब्लैक एंड व्हाइट टीवी हुआ करता था. अंग्रेज़ी हमें नहीं आती थी. लेकिन क्रिकेट के मैच बड़े चाव से देखते थे. उस वक्त ऑस्ट्रेलिया के चैनल 9 का प्रसारण आता था और उस पर रिची बैनों कमेंट्री करते नजर आते थे. उनकी कमेंट्री समझ में तो नहीं आती थी लेकिन गुड शॉट और आउट जैसे शब्द समझ आ जाते थे. उस दौर में जब कभी न्यूज़ीलैंड के साथ मैच होता तो हम मानकर चलते थे कि भारत जीत जाएगा. हां! भारत की जीत में आगर कोई बाधा डाल सकता था तो वो थे "कौआ बंधु" (जेफ क्रो और मार्टिन क्रो).

कॉमेंट्री समझ में नहीं आती थी. लेकिन समझ में आता था तो मार्टिन क्रो का खौफ. जैसे ही वो आउट होते हम सबको मैच का नतीजा मिल जाता. कभी कभी तो हम मैच छोड़ कर भी उठ जाते थे. बचपन में मार्टिन क्रो के आउट हो जाने के बाद टीवी छोड़, उठकर चले जाना आज उनके प्रति हमारा विशुद्ध सम्मान सा प्रतीत होता है. खैर, बड़े होने के बाद थोड़ी बहुत अंग्रेजी सीखी, पढ़ी भी लेकिन बचपन में दिया वो सम्मान कभी किसी को न दे सके. आज उनके जाने के बाद मन कर रहा है कि टीवी पर फिर से बैठकर उनकी उस बैटिंग को देखें, जो हमारे लिए खौफ हुआ करती थी. मार्टिन क्रो आप आउट होते थे तो हमे खुशी होती थी. लेकिन आज जब मार्टिन क्रो इस तरह 'आउट' हुए हैं तो मन बहुत भारी हो रहा है. दिल तो यही कर रहा है कि हम फिर से उसी दौर में लौट जाएं और भारतीय टीम एक मैच और सही...हार जाए.

29 फरवरी 1992, ये तारीख बहुत लोगों के लिए यूं तो कोई खास महत्व नहीं रखती. लेकिन क्रिकेट देखने वाले और क्रिकेट से लगाव रखने वालों के लिए ये तारीख यकीनन एक अहम पड़ाव मानी जाती है. क्योंकि इसी दिन एक ऐसा तूफान लोगों को क्रिकेट के मैदान में देखने को मिला, जो उसके बाद कई वर्षों तक कई खिलाड़ियों के लिए जीवनदान साबित हुआ.
ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की संयुक्त मेजबानी में आईसीसी वर्ल्ड कप क्रिकेट खेला जा रहा था और 29 फरवरी को ऑकलैंड में मेजबान न्यूजीलैंड की टीम दक्षिण अफ्रीका का मुकाबला करने उतरने वाली थी. न्यूजीलैंड की कमान उस वक्त अपने जमाने के धुरंधर और आलराउंडर मार्टिन डेवड क्रो के हाथों में थी. दक्षिण अफ्रीका की टीम पहली बार आईसीसी वर्ल्ड कप में खेलने उतरी थी और उसे पहले ही मैच के बाद खिताब का प्रबल दावेदार माना जाने लगा था. दक्षिण अफ्रीका के पास अगर बेहतरीन बल्लेबाजों की एक लंबी फेहरिस्त थी तो उसके पास ऐसे गेंदबाज भी थे जो किसी भी टीम के कदम बड़ी आसानी से उखाड़ने में सक्षम थे. जबकि उसके मुकाबले न्यूजीलैंड की टीम का पलड़ा कुछ कमजोर नजर आ रहा था. वजह थी उसके ओपनर्स की ऑउट ऑफ फॉर्म और मध्यक्रम की बल्लेबाजी. इसके अलावा मार्टिन क्रो के पास ऐसे तूफानी गेंदबाज भी नहीं थे जो सामने वाली टीम में अपना खौफ पैदा कर सकें. ले दे कर न्यूजीलैंड के हक में एक ही चीज थी और वो थी उसका घरेलू मैदान, जिस पर वाकई न्यूजीलैंड की टीम न जाने कैसे इतनी ताकतवर हो जाती है कि उसे टकराने में बड़ी से बड़ी टीमों के पसीने निकल आते थे.

लेकिन अकेले इसी दम पर मार्टिन क्रो टीम को लेकर मैदान में नहीं उतरना चाहते थे. लिहाजा इस मैच में उन्होंने एक नया लेकिन अनोखा प्रयोग करने का इरादा किया. हालांकि मार्टिन क्रो के उस प्रयोग के लिए टीम का मैनेजमेंट कतई तैयार नहीं था. लेकिन उन्होंने कप्तान होने के नाते टीम की तमाम संभावित हार की जिम्मेदारी पहले ही स्वीकार करते हुए उस प्रयोग को अमली जामा पहनाने का इरादा किया और मैदान पर उतर गए.

उस मैच में पहले बल्लेबाजी दक्षिण अफ्रीका ने की और 50 ओवरों में सात विकेट पर 190 रन का स्कोर खड़ा किया. दक्षिण अफ्रीका को इतने कम स्कोर पर रोकने में मार्टिन क्रो इसलिए सफल रहे क्योंकि उन्होंने गेंदबाजी में अपने प्रयोग को आगे बढ़ाया और दीपक पटेल से पारी का दूसरा ही ओवर फिंकवाकर अफ्रीकी बल्लोंबाजों पर लगाम कस ली. फिर भी दक्षिण अफ्रीकी गेंदबाजों के सामने 191 रनों का लक्ष्य मामूली नहीं था. लेकिन उस रोज क्रिकेट की दुनिया ने क्रिकेट के मैदान पर तूफानी बल्लेबाजी का शानदार नमूना देखा. ऐसा जो उससे पहले क्रिकेट के किसी भी धुरंधर ने करने के बारे में सपने में भी नहीं सोचा था.

मार्टिन क्रो ने टीम मैनेजमेंट और क्रिकेट बोर्ड की बातों को नजरअंदाज करके मार्क ग्रेटबैच को पारी की शुरूआत करने के लिए उतारा. ये वही दौर था जब मार्क ग्रेटबैच का करियर करीब-करीब खत्म माना जा रहा था और टेस्ट टीम में भी उनकी जगह पक्की नहीं रह गई थी. लेकिन मार्टिन क्रो ने उन पर दांव खेला और उनसे पारी की शुरूआत करने को कहा. इस शर्त पर कि एक भी गेंद बेकार नहीं जाने देंगे.

क्रिकेट का ये वही दौर था जब शुरु के 15 ओवर में फील्डिंग की पाबंदियों की वजह से 30 गज की सीमारेखा के बाहर सिर्फ दो ही खिलाड़ियों को रखने की इजाजत थी. बस इसी पाबंदी को मार्टिन क्रो ने ग्रेटबैच से अपना हथियार बनाने को कहा. ग्रेटबैच ने अपने कप्तान की बात मानी और फिर मैदान पर जैसे रनों की बौछार कर डाली.

मार्क ग्रेटबैच की बल्लेबाजी के आगे दक्षिण अफ्रीका की सारी रणनीति धरी की धरी रह गई और उन्होंने हर गेंदबाज की धुनाई करते हुए महज 60 गेंदों की अपनी पारी में 68 रन बनाए. न्यूजीलैंड ने वो मुकाबला 50 ओवर से बहुत पहले सिर्फ 34.3 ओवरों में ही जीत लिया.

मार्क ग्रेटबैच को तूफानी ओपनर बनाने और 50 ओवर के मैच की दशा और दिशा बदलने का सेहरा वाकई मार्टिन क्रो के सिर बंधा. क्रिकेट प्रेमी अच्छी तरह समझ रहे होंगे कि मार्क ग्रेटबैच के इसी सिलसिले को बहुत बाद में श्रीलंका के सलामी बल्लेबाज सनथ जयसूर्या ने अच्छी तरह भुनाया और खूब नाम कमाया. इस नायाब प्रयोग के लिए ही नहीं बल्कि क्रिकेट को दिए अनगिनत योगदान के लिए मार्टिन क्रो हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगे.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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