• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
स्पोर्ट्स

भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने हार के दिल जीता नहीं, बल्कि तोड़ा है

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 24 जुलाई, 2017 05:25 PM
  • 24 जुलाई, 2017 05:25 PM
offline
भारतीय महिला क्रिकेट टीम विश्‍वकप के फाइनल में बहुत ज्यादा प्रेशर ओढ़कर खेली और हार गई. एक जीता हुआ मैच. शर्मनाक हार. तो फिर सांत्‍वना किस बात की दी जा रही है ?

कुछ दिन पहले चैंपियंस ट्रॉफी में विराट कोहली की टीम फाइनल मुकाबले में पाकिस्‍तान से हार गई थी. क्‍या कुछ नहीं कहा गया था. और टीम इंडिया को ये आलोचना सुनना भी पड़ीं. सिर्फ इसलिए नहीं कि उनसे जीत की उम्‍मीद थी. ब‍ल्कि इसलिए कि हार तो किसी को भी अच्‍छी नहीं लगती. तो फिर ये कौन हैं, जो कह रहे हैं कि भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने फाइनल हार कर भी दिल जीत लिया. यदि ऐसा है तो विराट कोहली की टीम ने भी वही किया. है ना ?

भले ही आप अपने बंद एसी कमरों में, एचडी स्क्रीन पर, बीते दिन लॉर्ड्स में हुए इंडिया-इंग्लैंड के ऐतिहासिक मैच पर अपनी राय रखते हुए ये कहें कि 'अवर गर्ल्स प्लेड रियली वेल.' या फिर फेसबुक और ट्विटर पर, टीम इंडिया के सन्दर्भ में ट्वीट और पोस्ट लिख कर उन्हें कंसोल करें और ये कहें कि 'तमाम बाधाओं को पार करते हुए जिस तरह महिला क्रिकेट टीम का ये नया चेहरा सामने आया है, वो अवश्य ही टीम को बल देगा. इस हार से महिला टीम इंडिया को प्रेरणा मिलेगी, और फिर सभी प्रमुख ट्रॉफियों पर हमारी ही दावेदारी होगी. लेकिन, यह एक झूठ है. धोखा है. कोई हार कभी प्रेरणा नहीं देती है. 1983 की विश्‍वकप जीत ने ही भारतीय टीम की दिशा और दशा बदली.

सच्चाई से तो आप भी वाकिफ हैं. जब भारतीय महिला क्रिकेट टीम लक्ष्‍य का पीछा कर रही थी तो मैदान के बाहर बैठी खिलाड़ी अपने गले में टंगे भगवान वाले लॉकेट थामें थीं. सच्चाई यही है कि, हमारी टीम ने प्रेशर ओढ़ रखा था. तीन विकेट पर 191 रन बना लेने के बावजूद आत्‍मविश्‍वास कहीं से कहीं तक कायम नहीं हो पा रहा था. जी हां, इस हार के बाद मुझे झूलन गोस्वामी से शिकायत है, मिताली और हरमनप्रीत से भी नाराजगी है. वेदा कृष्णामूर्ति और दीप्ति शर्मा के खराब शॉट को तो मैं माफ ही नहीं कर सकता. हार, जीत खेल का नियम है. एक टीम जीतती है एक टीम हारती है, लेकिन मुझे अपनी टीम की ऐसी हार बर्दाश्‍त नहीं है.

दलील दी जा रही है कि भारतीय टीम टूर्नामेंट में क्‍वालिफायर खेलकर शामिल हुई है. ऐसे में उसका...

कुछ दिन पहले चैंपियंस ट्रॉफी में विराट कोहली की टीम फाइनल मुकाबले में पाकिस्‍तान से हार गई थी. क्‍या कुछ नहीं कहा गया था. और टीम इंडिया को ये आलोचना सुनना भी पड़ीं. सिर्फ इसलिए नहीं कि उनसे जीत की उम्‍मीद थी. ब‍ल्कि इसलिए कि हार तो किसी को भी अच्‍छी नहीं लगती. तो फिर ये कौन हैं, जो कह रहे हैं कि भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने फाइनल हार कर भी दिल जीत लिया. यदि ऐसा है तो विराट कोहली की टीम ने भी वही किया. है ना ?

भले ही आप अपने बंद एसी कमरों में, एचडी स्क्रीन पर, बीते दिन लॉर्ड्स में हुए इंडिया-इंग्लैंड के ऐतिहासिक मैच पर अपनी राय रखते हुए ये कहें कि 'अवर गर्ल्स प्लेड रियली वेल.' या फिर फेसबुक और ट्विटर पर, टीम इंडिया के सन्दर्भ में ट्वीट और पोस्ट लिख कर उन्हें कंसोल करें और ये कहें कि 'तमाम बाधाओं को पार करते हुए जिस तरह महिला क्रिकेट टीम का ये नया चेहरा सामने आया है, वो अवश्य ही टीम को बल देगा. इस हार से महिला टीम इंडिया को प्रेरणा मिलेगी, और फिर सभी प्रमुख ट्रॉफियों पर हमारी ही दावेदारी होगी. लेकिन, यह एक झूठ है. धोखा है. कोई हार कभी प्रेरणा नहीं देती है. 1983 की विश्‍वकप जीत ने ही भारतीय टीम की दिशा और दशा बदली.

सच्चाई से तो आप भी वाकिफ हैं. जब भारतीय महिला क्रिकेट टीम लक्ष्‍य का पीछा कर रही थी तो मैदान के बाहर बैठी खिलाड़ी अपने गले में टंगे भगवान वाले लॉकेट थामें थीं. सच्चाई यही है कि, हमारी टीम ने प्रेशर ओढ़ रखा था. तीन विकेट पर 191 रन बना लेने के बावजूद आत्‍मविश्‍वास कहीं से कहीं तक कायम नहीं हो पा रहा था. जी हां, इस हार के बाद मुझे झूलन गोस्वामी से शिकायत है, मिताली और हरमनप्रीत से भी नाराजगी है. वेदा कृष्णामूर्ति और दीप्ति शर्मा के खराब शॉट को तो मैं माफ ही नहीं कर सकता. हार, जीत खेल का नियम है. एक टीम जीतती है एक टीम हारती है, लेकिन मुझे अपनी टीम की ऐसी हार बर्दाश्‍त नहीं है.

दलील दी जा रही है कि भारतीय टीम टूर्नामेंट में क्‍वालिफायर खेलकर शामिल हुई है. ऐसे में उसका फाइनल तक पहुंच जाना ही बड़ी बात है. लेकिन मैं इस तर्क से इत्‍तेफाक नहीं रखता. भारतीय टीम अच्‍छा खेल रही थी और उसे अपना परफॉर्मेंस फाइनल जीतकर साबित करना था. हार कर नहीं. जीत तो जीत ही होती है. मिल्‍खा सिंह, पीटी उषा और दीपा करमाकर से मैडल न जीत पाने का दर्द पूछिए. और फिर मैडल मिलना क्‍या होता है, यह अभिनव बिंद्रा, राज्‍यवर्धन राठौर, साक्षी मलिक से पूछिए.

हमको ये स्वीकार कर लेना चाहिए कि हमारी टीम को इंग्लैंड ने बुरी तरह हराया है

जिस तरह आप अपनी कोरी सांत्‍वना से टीम इंडिया का मनोबल बढ़ा रहे हैं वो और कुछ नहीं बस भारतीय महिला क्रिकेट की जड़ों में मट्ठा डाल रहा है. हम आपको एक उदाहरण देना चाहेंगे, हो सकता है इससे आपको बात समझने में आसानी हो. आपने जीवन में अलग-अलग तरह की परीक्षाएं दी होंगी. या फिर लोगों को उन्हें देते हुए देखा होगा, अब मान लीजिये आपके घर में आपका बच्चा, भाई या बहन हाई स्कूल का इम्तेहान दे रहा हो, और परीक्षा का नतीजा आने पर पता चले कि वो बुरी तरह से फेल हुआ है, तो आपका रिएक्शन क्या होगा. यकीन मानिए आप उसे संतावना नहीं देंगे बल्कि डांटेंगे ताकि भविष्य में वो लापरवाही से दूर रहते हुए सफल बने. वहीं अगर आपके पड़ोसी का बच्चा हो, और आपको पता चले कि वो फेल हो गया है तो उसे देखते हुए आपके मुंह से निकलेगा कि 'अरे कोई बात नहीं एग्जाम ही तो था अगली बार और अच्छे से देना'.

मैंने ऊपर जो बातें कहीं हैं उसे पुनः पढ़िये और उस विरोधाभास को महसूस करिए जो अपने बच्चे और पड़ोसी के बच्चे के बीच दिख रहा है. आप पाएंगे कि हम अपने बच्चे को इसलिए डांट रहे हैं कि हमें उससे बहुत उम्मीदें हैं जबकि पड़ोसी का बच्चा हमारे लिए वो बच्चा है जिसके जीवन से, या जीवन में कुछ बनने से हमें कोई मतलब नहीं है, और हम सिर्फ एक औपचारिकता का निर्वाह कर रहे हैं.

हो सकता है इतनी बातों के बाद, आप वो समझ गए हों जो हम कहना चाह रहे हैं. दरअसल हकीकत यही है कि, आपके लिए ये एक मैच था. एक ऐसा मैच जिसकी बदौलत आप अपने चाहने वालों के बीच 'हितैषी' का टाइटल प्राप्त कर सकें. सोशल मीडिया पर लाइक, कमेंट, शेयर बटोर सकें. फेसबुक पर अपने लिखे पर वाऊ, हार्ट, सैड, एंग्री या अमेज्ड के रिएक्शन प्राप्त कर सकें. यदि आप अब भी टीम इंडिया की तारीफ कर रहे हैं तो जान लीजिये आप टीम को धोखे में रख रहे हैं जिस दिन आप अपनी मिथ्या और कपट से निकल कर बाहर आएंगे, आपको मिलेगा कि आपने ऐसा बहुत कुछ कर दिया है. जो न महिलाओं के हित में हैं. न उनके क्रिकेट के हित में है. मैं बीते दिन से ही लोगों के मुंह से सुन रहा हूं कि हमारे घर वालों ने ये मैच वैसे ही देखा जैसे वो पुरुषों का मैच देखते हैं. मैच के निर्णायक मोड़ पर जब एक के बाद एक विकेट गिर रहे थे तो मैंने अपने कलीग के मुंह से सुना कि 'अरे इन्हें रोटी बनाने की इतनी जल्दी क्या है. ये थोड़ा रुक के क्यों नहीं खेलतीं हो सकता है ये लोग मैच ही जिता दें.

जब हम ये बात मान चुके हैं कि, महिला का निर्माण केवल रोटी बनाने के लिए किया गया है तो फिर आखिर हम क्यों झूठ बोल रहे. क्यों हम सत्य को स्वीकारने में इतना असहज महसूस कर रहे. क्यों हम लगातार ये बात कह रहे हैं कि 'अरे कोई बात नहीं लड़कियों ने उम्दा प्रदर्शन किया है वो तो बस प्रेशर आ गया वरना ये ट्राफी हमसे कोई छीन नहीं सकता था.

अगर आप वाकई महिला क्रिकेट के हित में हैं तो उनकी जम के निंदा करिए. ठीक वैसे जैसे आपने तब की थी जब अभी बीते दिनों हमारी टीम आईसीसी चैंपियंस ट्राफी हार कर वापस घर आई थी. अगर आप ये मान लेते हैं कि इस मैच को भी हमारी महिला टीम ने पुरुषों की तरह खेला और वैसे ही हारा तो ये एक सराहने योग्य बात है लेकिन अगर आप इस गलतफहमी में जी रहे हैं कि, इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता था और ये हार भविष्य की जीत है. तो न सिर्फ आप अपने आप से झूठ बोल रहे हैं और अपने को धोखा दे रहे हैं. बल्कि आपने कभी चाहा ही नहीं कि हमारी बेटियां किचन से बाहर आएं और वो इतिहास रचें जिसकी मिसाल भविष्य में दी जा सके.

अंत में बस इतना ही कि बंद करिए ये सांत्‍वना का खेल, मत दीजिये झूठे दिलासे और ये मान लीजिये कि हम इंग्लैंड से महिला क्रिकेट का फाइनल हार चुके हैं और हमारे देश और खिलाडियों को एक शर्मनाक हार मिली है. 

ये भी पढ़ें -

ओपन लेटर : तुमने एक खूबसूरत कहानी रची है मिताली, उसका बेतरतीब अंत मत होने देना

1983 की तरह ये भारतीय महिला क्रिकेट का टर्निंग प्वाइंट है...

मिताली राज, सचिन नहीं हैं वो मिताली ही रहें तो अच्छा है    

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    महेंद्र सिंह धोनी अपने आप में मोटिवेशन की मुकम्मल दास्तान हैं!
  • offline
    अब गंभीर को 5 और कोहली-नवीन को कम से कम 2 मैचों के लिए बैन करना चाहिए
  • offline
    गुजरात के खिलाफ 5 छक्के जड़ने वाले रिंकू ने अपनी ज़िंदगी में भी कई बड़े छक्के मारे हैं!
  • offline
    जापान के प्रस्तावित स्पोगोमी खेल का प्रेरणा स्रोत इंडिया ही है
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲