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धोनी की चक्की अब धीमा पीसती है, पर महीन पीसती है

    • मंजीत ठाकुर
    • Updated: 31 मई, 2019 03:02 PM
  • 31 मई, 2019 03:02 PM
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क्रिकेट की दुनिया में महेंद्र सिंह धोनी अब भले ही धीमी पारी खेलने लगे हों, लेकिन वो जिस तरह अपना खेल बनाए हुए हैं उन्हें भारतीय टीम का तुरुप का इक्का ही माना जाना चाहिए.

पहले एक किस्साः बात थोड़ी पुरानी है. एक दफा धोनी नए खिलाड़ियों को क्रिकेट प्रशिक्षक एम.पी. सिंह से बल्लेबाजी के गुर सीखता देख रहे थे. बता रहे थे कि कैसे बैकलिफ्ट, पैरों का इस्तेमाल और डिफेंस करना है. सत्र के बाद उन्होंने क्रिकेट प्रशिक्षक एम पी सिंह से कहा कि वे दोबारा उन्हें वह सब सिखाएं. सिंह अकचका गए. उन्होंने कहा, ''तुम इंडिया के खिलाड़ी हो, शतक मार चुके हो और ये सब अब सीखना चाहते हो? धोनी ने सहजता से कहा, ''सीखना जरूरी है, कभी भी हो.” जाहिर है, खेल धोनी के स्वभाव में है और क्रिकेट उनके लिए पैदाइशी बात है.

फिल्म धोनी- द अनटोल्ड स्टोरी का वह दृश्य याद करिए, जब अपनी मोटरसाइकिलों की देख-रेख करते वक्त धोनी वह चीज हासिल कर लेते हैं, जो उनको कामयाब होने से रोक रही थी. धोनी रक्षात्मक खेल के लिए नहीं बने हैं. यही बात फिल्म में भी उनसे कही गई थी, और यही बात शायद धोनी ने इस बार समझ भी ली, पर इस दफा तरीका अलहदा है.

बढ़ती उम्र का तकाजा था कि उन्हें अपनी टाइमिंग पर काम करने की जरूरत थी. धोनी ने अपने बल्लों (वह अमूमन अपनी पारियों में दो वजन के अलग-अलग बल्लों का इस्तेमाल करते हैं) के वजन को कम कर लिया है. इसी से उनकी टाइमिंग बेहतर हो गई है. और शायद इस वजह से धोनी वही शॉटस लगा पा रहे हैं, जिसके मुरीद हम सभी रहे हैं.

महेंद्र सिंह धोनी भले ही अब उतनी धुंआधार पारी न खेलते हों, लेकिन वो टीम इंडिया के सबसे बेस्ट खिलाड़ियों में से एक हैं.

आपको 2004 के अप्रैल में पाकिस्तान के खिलाफ विशाखपट्नम के मैच की याद है? नवागंतुक और कंधे तक लंबे बालों वाले विकेट कीपर बल्लेबाज महेंद्र सिंह धोनी ने पाकिस्तानियों को वॉशिंग पाउडर से धोया और 123 गेंदों में 148 रन कूट दिए थे. फिर तो आपको 2005 के अक्टूबर में जयपुर वनडे की भी याद...

पहले एक किस्साः बात थोड़ी पुरानी है. एक दफा धोनी नए खिलाड़ियों को क्रिकेट प्रशिक्षक एम.पी. सिंह से बल्लेबाजी के गुर सीखता देख रहे थे. बता रहे थे कि कैसे बैकलिफ्ट, पैरों का इस्तेमाल और डिफेंस करना है. सत्र के बाद उन्होंने क्रिकेट प्रशिक्षक एम पी सिंह से कहा कि वे दोबारा उन्हें वह सब सिखाएं. सिंह अकचका गए. उन्होंने कहा, ''तुम इंडिया के खिलाड़ी हो, शतक मार चुके हो और ये सब अब सीखना चाहते हो? धोनी ने सहजता से कहा, ''सीखना जरूरी है, कभी भी हो.” जाहिर है, खेल धोनी के स्वभाव में है और क्रिकेट उनके लिए पैदाइशी बात है.

फिल्म धोनी- द अनटोल्ड स्टोरी का वह दृश्य याद करिए, जब अपनी मोटरसाइकिलों की देख-रेख करते वक्त धोनी वह चीज हासिल कर लेते हैं, जो उनको कामयाब होने से रोक रही थी. धोनी रक्षात्मक खेल के लिए नहीं बने हैं. यही बात फिल्म में भी उनसे कही गई थी, और यही बात शायद धोनी ने इस बार समझ भी ली, पर इस दफा तरीका अलहदा है.

बढ़ती उम्र का तकाजा था कि उन्हें अपनी टाइमिंग पर काम करने की जरूरत थी. धोनी ने अपने बल्लों (वह अमूमन अपनी पारियों में दो वजन के अलग-अलग बल्लों का इस्तेमाल करते हैं) के वजन को कम कर लिया है. इसी से उनकी टाइमिंग बेहतर हो गई है. और शायद इस वजह से धोनी वही शॉटस लगा पा रहे हैं, जिसके मुरीद हम सभी रहे हैं.

महेंद्र सिंह धोनी भले ही अब उतनी धुंआधार पारी न खेलते हों, लेकिन वो टीम इंडिया के सबसे बेस्ट खिलाड़ियों में से एक हैं.

आपको 2004 के अप्रैल में पाकिस्तान के खिलाफ विशाखपट्नम के मैच की याद है? नवागंतुक और कंधे तक लंबे बालों वाले विकेट कीपर बल्लेबाज महेंद्र सिंह धोनी ने पाकिस्तानियों को वॉशिंग पाउडर से धोया और 123 गेंदों में 148 रन कूट दिए थे. फिर तो आपको 2005 के अक्टूबर में जयपुर वनडे की भी याद होगी, जब श्रीलंका के खिलाफ धोनी ने 145 गेंदों में नाबाद 183 रन बनाए थे. पाकिस्तान के खिलाफ 2006 की फरवरी में लाहौर में नाबाद 72 रन की पारी हो, या फिर कराची में 56 गेंदों में नाबाद 77 रन.

यहां तक कि 2011 विश्व कप फाइनल में भी आखिरी छक्का उड़ाते धोनी का भावहीन चेहरा आपके चेहरे पर मुस्कुराहट ला देता होगा, जब 91 रन की नाबाद पारी के लिए धोनी ने महज 79 गेंदो का सामना किया था. हमारा वही धोनी वापस आ गया लगता है.

पिछले कुछ समय से महेंद्र सिंह धोनी अपने पुराने अवतार में दिख रहे हैं. हां, किरदार जरूर थोड़ा बदला है. धुनाई के उस्ताद, लेकिन कुटाई जरा उतनी करारी नहीं है. अब वह कसाई की तरह चापड़ (बड़ा चाकू) नहीं चलाते, अब वह शल्य चिकित्सक की तरह नजाकत से नश्तर फेरते हैं. बल्ला अब ऐसे चल रहा है जैसे चित्रकार कैनवास पर कूची फेर रहा हो. वही धोनी, जिसके लिए हम उनकी कद्र करते आ रहे हैं. धोनी, वही माही नजर आ रहे हैं, जिसे बरसों पहले हमने देखा था, तब, जब उनके बाल कंधों तक आते थे और थोड़े बरगैंडी कलर में रंगे होते थे. तब धोनी नौजवान थे. पर आज के धोनी के हाथों कुट-पिसकर गेंदबाज जब गेंद को हवा में उड़कर दर्शकों के बीच गिरते देख रहे होते हैं, तब जाकर उन्हें यकीन होता है कि अरे, उम्र के चौथे दशक में चल रहे अधेड़ धोनी के हाथों में हरक्यूलीज वाली ताकत अभी भी बरकरार है. और धोनी उस ताकत का बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं.

बस आप बांग्लादेश के खिलाफ क्रिकेट वर्ल्ड कप 2019 के दूसरे प्रैक्टिस मैच में 78 गेंद पर 113 रनों की पारी में उड़ाए गए सात छक्कों और आठ चौकों में लगी ताकत को याद भर कर लीजिए. माही ने साबित कर दिया कि बड़े खिलाड़ी को बस एक दफा गियर बदलना होता है.लेकिन, मैच में जिस बात की सबसे ज्यादा चर्चा हुई वह थी धोनी का बांग्लादेश को क्षेत्ररक्षण में मदद करना. धोनी ने भारत के लिए बल्लेबाजी करने के साथ-साथ बांग्लादेश की फील्डिंग सेट करने में भी मदद की. जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है.

असल में, भारतीय पारी का 39वां ओवर फेंका जाना था और स्ट्राइक पर महेंद्र सिंह धोनी थे. बांग्लादेश के स्पिनर सब्बीर रहमान गेंदबाजी कर रहे थे. सब्बीर जैसे ही ओवर की पहली गेंद फेंकने के लिए आगे बढ़े तभी धोनी ने गेंदबाज को रुकने का इशारा किया. इसके बाद धोनी ने लेग साइड के एक फील्डार को सही जगह पर खड़े होने को कहा जिससे सब्बीर भी सहमत नजर आए और इसके लिए उन्होंने हाथ दिखाकर धोनी को धन्यवाद दिया.

कम से कम भारतीय खेमे में धोनी ऐसे खिलाड़ी है जो क्रिकेट को बहुत बारीकी से अच्छे से समझते हैं. उनके लिए पहली गेंद से 300वीं गेंद (50 ओवर) तक मैदान पर हर गेंद के लिए एक तय योजना होती है.

धोनी की इस तूफानी पारी ने बता दिया कि वर्ल्ड कप में विरोधी गेंदबाजों के लिए उनके सामने टिक पाना आसान नहीं होगा. धोनी ने अपनी आईपीएल फॉर्म को बरकरार रखते हुए बांग्लादेशी गेंदबाजों की धज्जियां उड़ा दी. बल्लेबाजी की दावत मिलने पर पहली पारी खेलने उतरी भारत एक समय संकट में थी, लेकिन धोनी और राहुल ने अपने दम पर टीम को न सिर्फ अच्छी स्थिति में पहुंचाया बल्कि 359 रनों का विशाल स्कोर भी प्रदान किया. भारत ने दूसरे अभ्यास मैच में मंगलवार को बांग्लादेश को 95 रन से हराकर क्रिकेट महाकुंभ से पहले मनोबल बढ़ाने वाली जीत दर्ज की.

जीत के बाद भी सामान्य बने रहने में धोनी को अगर कोई टक्कर दे सकता है तो वह इकलौता भारतीय है अभिनव बिंद्रा. क्रिकेट में शांत बने रहने की जरूरत नहीं होती, उसके बावजूद धोनी ने अपने धैर्य से अपनी शख्सियत को और आभा ही बख्शी है. यह एक परिपक्व और स्थिर मस्तिष्क का संकेत है, जो इस बात को समझता है कि कामयाबी कोई एक बार में बहक जाने वाली चीज नहीं, इसे लगातार बनाए रखना पड़ता है. ऐसे लोग अतिउत्साहित नहीं होते. वे अपनी खुशी को अपने तक रखते हैं, इस तरह औसत लोगों से ज्यादा उपलब्धियां हासिल करते हैं. उन्होंने हमेशा आलोचकों का मुंह बंद किया है और सीनियर खिलाड़ियों से अपनी बात मनवाई है. उन्होंने छोटे शहरों की एक समूची पीढ़ी के लिए प्रेरणा का काम किया है. धोनी की कहानी शब्दों में बयां करना आसान नहीं. उनकी पारी अब भी जारी है.

हेलीकॉप्टर शॉट लगाने वाले धोनी ने खुद को इस बार रॉकेट की तरह स्थापित किया है. धोनी के दीवाने एक दफा खुश हैं. छक्के लग रहे हैं पर गगनचुंबी नहीं हैं. पर क्या फर्क पड़ता है ज्यादा जोर से मारो तो भी बाउंड्री के बाहर गिरती गेंद कितनी भी दूर जाए रन तो छह ही मिलते हैं. सनसनाते चौकों की बरसात से गेंदों के धागे खुलते देख रहे हैं. कमेंटेटर उनकी तेज नजर को धोनी रिव्यू सिस्टम कहकर हैरतजदा हो रहे हैं, तो कभी धन धनाधन धोनी कहकर मुंह बाए दे रहे हैं. कभी उनको तंज से महेंद्र बाहुबली कहने वाले सहवाग जैसे कमेंटेटर भी खामोश हैं. खामोश तो धोनी भी हैं, पर उनका बल्ला बोल रहा है. पर इस बार बल्ले से जैज़ नहीं शास्त्रीय संगीत के सुर निकल रहे हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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