यदि आप सच्चे भारतीय रहे हैं और दूरदर्शन युग में जन्मे हैं तो उस्ताद ज़ाकिर हुसैन साहब का वह विज्ञापन अभी तक न भूले होंगें. जिसमें वे एक बच्चे के साथ तबला बजाते हुए उसे "वाह! उस्ताद" कहते हैं और बच्चा हंसते हुए ज़वाब देता है "अजी, हुज़ूर वाह ताज़ बोलिए".
पहले देखिए वो ऐड-
ज़ाकिर साहब के हाथ में ताज़ चाय का कप और बैकड्रॉप में ताज़महल. किसी रोमांटिक फ़िल्म के ख़ुबसूरत दृश्य सा उभरता था. कितने जवां दिल तो ज़ाकिर साहब के घुंघराले, लहराते बाल और तबले की थाप पर फ़िदा होकर चाय पीने लगे थे... इश्क़ में पड़े सो अलग!
ये ताज़ है साहब! दुनिया जितना भारत को जानती है उतना ही 'ताज' को भी! ताजमहल किसी पहचान या कृपा का मोहताज़ नहीं है. कितने ही प्रेमी और वैवाहिक जोड़े इसी ताज़ के आगे साथ जीने-मरने की क़समें खाते हैं. कितनी ही आंखों में इसकी चमक मुहब्बत की रोशनियां बिखेरती हैं. कितनी धड़कनें इसकी दूधिया रोशनी में जवां होती हैं. कितनी यादें इसके परिसर की हरियाली में महक भरती हैं. प्रेम की निशानी बनी, चांदनी बिखेरती ये इमारत हम भारतवासियों की आंखों ही नहीं, दिल में भी बसती है.
देश से बाहर जाते हैं तो विदेशियों से परिचय के बीच में 'ताज़' ख़ुद-ब-ख़ुद चला आता है. जब वो कहते हैं "ओह इंडिया, नमस्ते. वी नो योर ताजमहल, इट्स ब्यूटीफुल!" तो न सिर्फ़ हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है बल्कि चेहरे की चमक भी किसी ताज़ से कम नहीं होती.
जो टूरिस्ट, भारत आते हैं उनकी सूची में पहला स्थान ताज़ ही लेता है. ताज़ ने कितनों को रोज़गार दिया. कितने फोटोग्राफरों ने जीवन इसी के प्रांगण में गुज़ारा. उनकी रोजी रोटी और करोड़ों देशवासियों की सबसे सुन्दर स्मृतियां यहीं से होकर गुजरती हैं.
आख़िर इतिहास से छेड़छाड़ करने से वर्तमान...
यदि आप सच्चे भारतीय रहे हैं और दूरदर्शन युग में जन्मे हैं तो उस्ताद ज़ाकिर हुसैन साहब का वह विज्ञापन अभी तक न भूले होंगें. जिसमें वे एक बच्चे के साथ तबला बजाते हुए उसे "वाह! उस्ताद" कहते हैं और बच्चा हंसते हुए ज़वाब देता है "अजी, हुज़ूर वाह ताज़ बोलिए".
पहले देखिए वो ऐड-
ज़ाकिर साहब के हाथ में ताज़ चाय का कप और बैकड्रॉप में ताज़महल. किसी रोमांटिक फ़िल्म के ख़ुबसूरत दृश्य सा उभरता था. कितने जवां दिल तो ज़ाकिर साहब के घुंघराले, लहराते बाल और तबले की थाप पर फ़िदा होकर चाय पीने लगे थे... इश्क़ में पड़े सो अलग!
ये ताज़ है साहब! दुनिया जितना भारत को जानती है उतना ही 'ताज' को भी! ताजमहल किसी पहचान या कृपा का मोहताज़ नहीं है. कितने ही प्रेमी और वैवाहिक जोड़े इसी ताज़ के आगे साथ जीने-मरने की क़समें खाते हैं. कितनी ही आंखों में इसकी चमक मुहब्बत की रोशनियां बिखेरती हैं. कितनी धड़कनें इसकी दूधिया रोशनी में जवां होती हैं. कितनी यादें इसके परिसर की हरियाली में महक भरती हैं. प्रेम की निशानी बनी, चांदनी बिखेरती ये इमारत हम भारतवासियों की आंखों ही नहीं, दिल में भी बसती है.
देश से बाहर जाते हैं तो विदेशियों से परिचय के बीच में 'ताज़' ख़ुद-ब-ख़ुद चला आता है. जब वो कहते हैं "ओह इंडिया, नमस्ते. वी नो योर ताजमहल, इट्स ब्यूटीफुल!" तो न सिर्फ़ हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है बल्कि चेहरे की चमक भी किसी ताज़ से कम नहीं होती.
जो टूरिस्ट, भारत आते हैं उनकी सूची में पहला स्थान ताज़ ही लेता है. ताज़ ने कितनों को रोज़गार दिया. कितने फोटोग्राफरों ने जीवन इसी के प्रांगण में गुज़ारा. उनकी रोजी रोटी और करोड़ों देशवासियों की सबसे सुन्दर स्मृतियां यहीं से होकर गुजरती हैं.
आख़िर इतिहास से छेड़छाड़ करने से वर्तमान को क्या लाभ मिलता है?
यूं भी इतिहास कुरेदने पर आएंगे तो कुछ भी शेष न रहेगा. ये सारी मीनारें, किले, इमारतें सब युद्धरत राजाओं की ही देन हैं. एक ने बनाया, दूसरे ने कब्ज़ा किया, तीसरे ने छीना.... इस बीच कितनी लाशें गिरीं और किस-किसकी.... उन्होंने भी इस एंगल से हिसाब न लगाया होगा, जैसे आजकल बहीखाते खोले जा रहे हैं. कहने का तात्पर्य यही है कि जब भी कोई इमारत मुद्दा बनी... बिखरा देश ही है... नुक़सान हमारा ही हुआ है और इस सबका हासिल? कुछ नहीं! इनसे भी जरुरी कई विषय हैं जिन पर चर्चा की आवश्यकता देशहित में होगी.
बाबरी से निकले अब ताज़ में हैं अटके
हम चांद को छूने में खजूर पे हैं लटके...
ग़ज़ब की हैं दलीलें, सोच क्या कमाल है
कहा था न मियां, ये साल बेमिसाल है
आओ झुकाएं मस्तक नव दीप अब जलाएं
जरूरत थी जिनको, सारे वो मुद्दे भटके...
खड्डे में कोई गिरता, नाले में बहता जाता
पेपर में दबा ढक्कन, हर ज़ुल्म सहता जाता
ये ज़ख्म है मुलायम, चलो मिलके भूल जाएं
लगे हैं धीरे-धीरे, पर जोर के हैं झटके...
अशिक्षा से हो लड़ाई, भूखों को मिले रोटी
इंसानियत की हत्या करके न नुचे बोटी
राहत की चाशनी में कोई ज़हर न मिलाएं...
है इल्तज़ा यही बस, चाहे ये तुमको खटके
हम चांद को छूने में खजूर पे हैं लटके...
वैसे एक मज़ेदार आईडिया भी है - इससे तो अच्छा था कि इसका नाम श्रीमती चमेली देवी स्मृति स्मारक / श्री बनवारीलाल निर्मित स्मारक ही रख दिया होता! क्योंकि ये निवाले निगलने में तो जनता एक्सपर्ट हो चुकी है. :D :D
कोई ना... लगे रहो!
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ताजमहल की ये हकीकत आपको उससे नफरत करने पर मजबूर कर देगी !
तो क्या अब, मोदी जी 15 अगस्त का भाषण भी लाल किले से नहीं देंगे...?
तो इसलिए ताजमहल भारत के लिए गर्व का कारण है
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.