मानिए या ना मानिए, किसान आंदोलन ने देश का माहौल ठीक वैसे ही खराब कर दिया है, जैसा CAA के समय हुआ था. CAA के विरोध में हुए प्रदर्शनों और दंगों के दौरान धर्मों के बीच दरार आई थी, लेकिन किसान आंदोलन ने लोगों को जातियों में, राज्यों में, समुदायों में, अमीर-गरीब समेत कई टुकड़ो में बांट दिया है. ऐसा ही चलता रहा, तो वो दिन दूर नहीं, जब लोगों का घर से निकलना भी मुश्किल हो जाएगा. कहा जा सकता है कि ये एक काल्पनिक स्थिति है, लेकिन ट्विटर पर 'अजय देवगन कायर है' ट्रेंड कर रहा है. दरअसल, एक शख्स ने बॉलीवुड अभिनेता अजय देवगन की कार को सड़क पर रोक लिया और उन पर किसान आंदोलन का समर्थन न करने का आरोप लगाया. बीते कुछ दिनों में फिल्मों की शूटिंग रोकने से लेकर किसी मुद्दे पर अपनी राय जाहिर न करने तक पर फिल्मी सितारों को निशाना बनाया जा रहा है. लोग इसे 'अभिव्यक्ति की आजादी' का नाम दे रहे हैं. अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर लोगों के अंदर अराजकता भरती जा रही है. अगर आप किसी मुद्दे पर साथ हैं, तो ठीक है. लेकिन, अगर किसी अन्य मु्द्दे पर आप बोल चुके हैं और किसी 'खास' मुद्दे पर चुप हैं, तो लोग आपका हाल अजय देवगन जैसा कर देंगे. यह प्रवृत्ति समाज के लिए चुनौती है.
किसानों के नाम पर सहानुभूति जुटाने का ये एक घातक तरीका बनता जा रहा है. आलोचना करना ठीक है, लेकिन तभी जब वह स्वस्थ रूप से की जा रही हो. आलोचना के रूप में लोगों को सार्वजनिक तौर पर किसी के सम्मान को ठेस पहुंचाने का अधिकार कानून नहीं देता है. लोगों को विरोध के अन्य तरीकों की ओर जाना ही होगा. फिल्मी सितारों के ब्रांड एंडोर्समेंट्स के खिलाफ जाइए, उनकी फिल्मों का बायकॉट कीजिए. लोगों के हाथ में मतदान जैसी बड़ी संवैधानिक ताकत है, उसका प्रयोग कर सरकार को बेदखल कर दीजिए. लेकिन, ऐसे कृत्यों का बचाव करने से निश्चित तौर पर लोगों में गलत संदेश जाता है. यह न किसानों के हित में है और...
मानिए या ना मानिए, किसान आंदोलन ने देश का माहौल ठीक वैसे ही खराब कर दिया है, जैसा CAA के समय हुआ था. CAA के विरोध में हुए प्रदर्शनों और दंगों के दौरान धर्मों के बीच दरार आई थी, लेकिन किसान आंदोलन ने लोगों को जातियों में, राज्यों में, समुदायों में, अमीर-गरीब समेत कई टुकड़ो में बांट दिया है. ऐसा ही चलता रहा, तो वो दिन दूर नहीं, जब लोगों का घर से निकलना भी मुश्किल हो जाएगा. कहा जा सकता है कि ये एक काल्पनिक स्थिति है, लेकिन ट्विटर पर 'अजय देवगन कायर है' ट्रेंड कर रहा है. दरअसल, एक शख्स ने बॉलीवुड अभिनेता अजय देवगन की कार को सड़क पर रोक लिया और उन पर किसान आंदोलन का समर्थन न करने का आरोप लगाया. बीते कुछ दिनों में फिल्मों की शूटिंग रोकने से लेकर किसी मुद्दे पर अपनी राय जाहिर न करने तक पर फिल्मी सितारों को निशाना बनाया जा रहा है. लोग इसे 'अभिव्यक्ति की आजादी' का नाम दे रहे हैं. अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर लोगों के अंदर अराजकता भरती जा रही है. अगर आप किसी मुद्दे पर साथ हैं, तो ठीक है. लेकिन, अगर किसी अन्य मु्द्दे पर आप बोल चुके हैं और किसी 'खास' मुद्दे पर चुप हैं, तो लोग आपका हाल अजय देवगन जैसा कर देंगे. यह प्रवृत्ति समाज के लिए चुनौती है.
किसानों के नाम पर सहानुभूति जुटाने का ये एक घातक तरीका बनता जा रहा है. आलोचना करना ठीक है, लेकिन तभी जब वह स्वस्थ रूप से की जा रही हो. आलोचना के रूप में लोगों को सार्वजनिक तौर पर किसी के सम्मान को ठेस पहुंचाने का अधिकार कानून नहीं देता है. लोगों को विरोध के अन्य तरीकों की ओर जाना ही होगा. फिल्मी सितारों के ब्रांड एंडोर्समेंट्स के खिलाफ जाइए, उनकी फिल्मों का बायकॉट कीजिए. लोगों के हाथ में मतदान जैसी बड़ी संवैधानिक ताकत है, उसका प्रयोग कर सरकार को बेदखल कर दीजिए. लेकिन, ऐसे कृत्यों का बचाव करने से निश्चित तौर पर लोगों में गलत संदेश जाता है. यह न किसानों के हित में है और न ही किसान आंदोलन के. ऐसी ओछी हरकतों से सिर्फ आंदोलन की शुचिता का ही नहीं बल्कि देश का भी नुकसान ही होता है.
लिचिंग अब सोशल मीडिया पर भी होती है
'लिंचिग' अब केवल हत्या तक ही सीमित नहीं रह गई है. अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर अब कोई भी किसी की सार्वजनिक रूप से बेइज्जती (Public Shaming) कर सकता है. सवाल उठना लाजिमी है कि क्या अभिव्यक्ति की आजादी ने लोगों को आपके सम्मान को खुलेआम तार-तार कर देने का हक दे दिया है. सोशल मीडिया पर भी कमोबेश यही हाल है. मैं फिल्मी सितारों या खिलाड़ियों या मशहूर हस्तियों का 'जबरा फैन' नही हूं. लेकिन, अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर फैलाये जा रहे इस आतंक का मैं पुरजोर विरोध करता हूं. सोशल मीडिया पर भी आसानी से किसी के खिलाफ हेट कैंपेन चलाए जा सकते हैं. आखिर किसी के निजी विचारों पर आपका अतिक्रमण कैसे हो सकता है. संविधान आपको ये हक नहीं देता. अपनी स्वतंत्रता के सहारे आप किसी अन्य व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन नहीं कर सकते हैं. अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है, तो लोग उसे हीरो की तरह पेश करने लगते हैं.
अराजकता को अभिव्यक्ति की आजादी नहीं माना जा सकता
उदाहरण के तौर पर, मैं घर से बाहर निकलूं और कोई मुझे रोककर पूछने लगे कि आपने फलाने मुद्दे पर बोला था, लेकिन इस मुद्दे पर अभी तक कुछ नहीं कहा है. क्या उस शख्स को मुझसे ये सवाल पूछने का हक है? इसका जवाब है कि बिलकुल है. लेकिन वह इस सवाल के साथ हंगामा करते हुए वीडियो बनाने लगे, लाइव स्ट्रीमिंग करने लगे और किसी भी तरह से मेरे सम्मान को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करे, तो इसकी इजाजत संविधान नहीं देता है. मैं संविधान विशेषज्ञ नहीं हूं, लेकिन इतना जरूर जानता हूं कि ऐसा करना निश्चित रूप से अपराध की श्रेणी में आएगा. आज किसान आंदोलन के नाम पर यह किया जा रहा है, हो सकता है कि कल कोई आपकी विचारधारा, धर्म, जाति आदि के लिए भी ऐसा करने लगे. इस चलन पर रोक लगानी होगी. विरोध के नाम पर लोगों की अराजकता को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है.
सबके लिए खतरे की घंटी है ये चलन
एक लोकतांत्रिक देश में इस तरह का चलन समाज और हर एक व्यक्ति के लिए खतरे की घंटी है. अभिव्यक्ति की आजादी एक जटिल विषय है. लोग इसकी व्याख्या अपने हिसाब से करते हुए कुछ भी करने से हिचकते नही हैं. यह सीधे तौर पर अराजकता को बढ़ावा देना माना जा सकता है. कानून और संविधान की बात करने वाले अगर इसकी आड़ में कानून-व्यवस्था को ताक पर रखते हुए किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला करने लगेंगे, तो स्थितियां आगे चलकर और भयावह होती जाएंगी.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.