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गर्व नहीं, शर्म बन गयी व्हाट्सऐप में उलझी पत्रकारिता!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 21 जनवरी, 2018 05:16 PM
  • 21 जनवरी, 2018 05:16 PM
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मौजूदा वक़्त की पत्रकारिता शर्मसार करने वाली है. ऐसा इसलिए क्योंकि जब पत्रकारिता फेसबुक और व्हाट्सऐप के भरोसे हो तब न तो ख़बरों में विश्वसनीयता ही बचती है और न ही उस खबर की नैतिकता.

माखनलाल चतुर्वेदी, प्रेमचंद और धर्मवीर भारती जैसे लोगों की कलम से शुरू हुई पत्रकारिता आज Twitter के ट्वीट, फेसबुक पोस्ट और Whatsapp के मैसेज तक सीमित है. तथ्‍यों को बिना परखे फेसबुक पर, फेसबुक के लिए लिखा जा रहा है. फेसबुक सरीखे सोशल मीडिया माध्यम पर लिखी उस चीज को मॉडिफाइड करते हुए खबर के रूप में व्हाट्सऐप पर शेयर किया जा रहा है. व्हाट्सऐप और ट्विटर पर आई कच्ची पक्की जानकारियां बड़ी खबरों का आधार बन रही हैं. और खबरों का पाठक या दर्शक अब राम भरोसे है.

देश की पत्रकारिता के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि, जो सच नहीं है उसका वायरल सच जानने का प्रयास किया जा रहा है. जो मौज मस्ती या फिर नफरत फैलाने और जलाने के लिए बातें लिखी जा रही हैं उनपर बड़ी बड़ी खबरे और संपादकीय लिखे जा रहे हैं. सवाल अपने आप से करिए और जानने का प्रयास करिए कि, आखिर हम किस दिशा में हैं? क्या हम किसी दिशा में भी हैं? या ये सब यूं ही नौकरी बजाने के लिए बिना किसी उद्देश्य के किया जा रहा है.

आज जो पत्रकारिता का स्वरूप है वही पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगा रहा है

सवाल कई हो सकते हैं. मगर उनका जवाब एक ही है. ये सोशल मीडिया का युग है. एक ऐसा युग जिसमें पत्रकार द्वारा भी, ख़बरों को इसलिए तैयार किया जा रहा है ताकि उसे लोगों द्वारा ज्यादा से ज्यादा शेयर किया जा सके. जब उद्देश्य अपनी कही बात को ज्यादा से ज्यादा शेयर कराना हो तो पत्रकारों के लिए लाजमी है कि वो मर्यादा को तोड़कर उसे तार-तार करें.

ये अपने आप में बड़ा शर्मनाक है कि, औरों से आगे निकलने की होड़ में उन बातों को सिरे से खारिज कर दिया जा रहा है जो पत्रकारिता का मूल हैं. इसके बजाए उन चीजों को अपने से जोड़ा जा रहा है जो कहीं से उठाई हुई हैं. नर्म कुर्सी पर टेक लगाकर, तेज रौशनी के साए...

माखनलाल चतुर्वेदी, प्रेमचंद और धर्मवीर भारती जैसे लोगों की कलम से शुरू हुई पत्रकारिता आज Twitter के ट्वीट, फेसबुक पोस्ट और Whatsapp के मैसेज तक सीमित है. तथ्‍यों को बिना परखे फेसबुक पर, फेसबुक के लिए लिखा जा रहा है. फेसबुक सरीखे सोशल मीडिया माध्यम पर लिखी उस चीज को मॉडिफाइड करते हुए खबर के रूप में व्हाट्सऐप पर शेयर किया जा रहा है. व्हाट्सऐप और ट्विटर पर आई कच्ची पक्की जानकारियां बड़ी खबरों का आधार बन रही हैं. और खबरों का पाठक या दर्शक अब राम भरोसे है.

देश की पत्रकारिता के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि, जो सच नहीं है उसका वायरल सच जानने का प्रयास किया जा रहा है. जो मौज मस्ती या फिर नफरत फैलाने और जलाने के लिए बातें लिखी जा रही हैं उनपर बड़ी बड़ी खबरे और संपादकीय लिखे जा रहे हैं. सवाल अपने आप से करिए और जानने का प्रयास करिए कि, आखिर हम किस दिशा में हैं? क्या हम किसी दिशा में भी हैं? या ये सब यूं ही नौकरी बजाने के लिए बिना किसी उद्देश्य के किया जा रहा है.

आज जो पत्रकारिता का स्वरूप है वही पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगा रहा है

सवाल कई हो सकते हैं. मगर उनका जवाब एक ही है. ये सोशल मीडिया का युग है. एक ऐसा युग जिसमें पत्रकार द्वारा भी, ख़बरों को इसलिए तैयार किया जा रहा है ताकि उसे लोगों द्वारा ज्यादा से ज्यादा शेयर किया जा सके. जब उद्देश्य अपनी कही बात को ज्यादा से ज्यादा शेयर कराना हो तो पत्रकारों के लिए लाजमी है कि वो मर्यादा को तोड़कर उसे तार-तार करें.

ये अपने आप में बड़ा शर्मनाक है कि, औरों से आगे निकलने की होड़ में उन बातों को सिरे से खारिज कर दिया जा रहा है जो पत्रकारिता का मूल हैं. इसके बजाए उन चीजों को अपने से जोड़ा जा रहा है जो कहीं से उठाई हुई हैं. नर्म कुर्सी पर टेक लगाकर, तेज रौशनी के साए में, कॉफ़ी की चुस्कियों के बीच उन उठाई हुई चीजों का विश्लेषण हो रहा है और उसे देश की जनता के सामने रखा जा रहा है.

मेरे लिए ये कहना बिल्कुल भी गलत नहीं है कि आज की पत्रकारिता व्हाट्स ऐप पर शुरू होकर व्हाट्स ऐप पर ही खत्म हो रही है. और साथ ही खत्म हो रही है पत्रकार की विश्वसनीयता, जिम्मेदारी और नैतिकता. आज भारतीय पत्रकारिता की विश्वसनीयता उतनी ही ख़बरों में है जितनी ख़बरें, ख़बरों में रहती हैं. चाहे टीवी हो, प्रिंट हो, वेब हो हर जगह कुछ ऐसा किया जा रहा है जिससे वो सबसे अलग दिखे.

कहा जा सकता है कि अलग दिखने की चाह ने पत्रकारिता को पत्रकार से अलग कर दिया है. जो कल तक पत्रकार थे वो आज कंटेंट राइटर हैं और प्रयास यही है कि उनका कंटेंट ज्यादा से ज्यादा लोगों के पास जाए. पूर्व में पत्रकार वर्तमान में कंटेंट राइटर, भविष्य क्या होगा अभी कुछ बताना जल्दबाजी है. मगर हां जो समय है वो चींख-चींख कर कह रहा है कि वर्तमान की अपेक्षा भविष्य कहीं बदतर और काला होगा.

आज जिस तरह की पत्रकारिता चल रही है उसका उद्देश्य चीजों को ज्यादा से ज्यादा शेयर कराना है

ऐसा क्यों होगा इसकी वजह से आप परिचित होंगे. आज पत्रकारिता का नहीं फिक्शन का दौर है. एक ऐसा फिक्शन, जिसे कभी बेतरतीबी से तो, कभी बहुत ही लाग लपेट के जनता के सामने, आगे ले जाने के लिए रखा जा रहा है. पता तो शायद आपको भी होगा. फिक्शन का कोई आधार नहीं होता, ये बस व्यक्ति की कल्पना होती है. पत्रकारिता के नाम पर परोसी जा रही कल्पना कितनी घातक होगी और इसके परिणाम क्या होंगे इसका एक बार अंदाजा लगाकर देखिये. स्थिति खुद ब खुद साफ हो जाएगी. मानिए इस बात को कि ये कल्पना देश को बर्बाद करने, उसे दंगे और फसाद की आग में झोंकने के लिए खर का काम करेगी.

चाहे राजनीतिक हो या सामाजिक आज जिन ख़बरों को हम व्हाट्सऐप जैसे माध्यम पर पढ़ रहे हैं उनमें से आधी से ज्यादा गलत हैं. अब जब गलत चीज के बल पर पत्रकारिता की जाएगी तो देश की दशा और दिशा क्या होगी आप खुद जानते हैं.  हर वायरल चीज सच नहीं होती और न ही सच होता है हर चीज का वायरल बनना. बात का अंत बस यही है कि पत्रकारिता के नाम पर हो रही धोखाधड़ी के लिए जितना जिम्मेदार पत्रकार है, उतनी ही जिम्मेदार वो जनता है जिसके लिए ऐसी पत्रकारिता कर उसे उसकी थाली में ख़बरों के रूप में परोसा जा रहा है.

अब बहुत हो गया. अब वो वक़्त आ गया है, जब हमें एक पत्रकार के तौर पर और साथ ही एक पाठक के तौर पर ऐसी ख़बरों का बहिष्कार कर देना चाहिए. यदि इस मुहीम के लिए हम आज सामने न आए तो कल हमारे पास सुधारने के लिए कुछ नहीं बचेगा. आज संभालना ही कल हमारे बचने का एकमात्र माध्यम है. कहा जा सकता है कि आज संभलने की इजाजत हमें समय खुद दे रहा है. वो समय, जो कल अधूरी जानकारियों और कल्पना की कलम के बल पर की जा रही पत्रकारिता के चलते हमसे कोसों दूर होगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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