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जनसंख्या असंतुलन से कैसे टूटते हैं देश? इस ट्विटर थ्रेड से समझिए...

    • आईचौक
    • Updated: 10 अक्टूबर, 2022 12:56 PM
  • 10 अक्टूबर, 2022 12:56 PM
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हाल ही में आरएसएस (RSS) चीफ मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने कहा था कि धर्म के आधार पर जनसंख्या असंतुलन (Population Imbalance) की अनदेखी करने के दुष्‍परिणाम सामने आना तय है. वैसे, बहुत से लोगों का मानना है कि भारत में जनसंख्या नीति लाकर सिर्फ मुस्लिमों को निशाना बनाया जाएगा. जनसंख्या असंतुलन से देश कैसे टूटते हैं? इसका जवाब इस ट्विटर थ्रेड से जानिए...

भारत में लगातार बढ़ती जनसंख्या हमेशा से ही चर्चा का विषय रहा है. हाल ही में आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने देश की बढ़ती जनसंख्‍या को गंभीर मुद्दा बताया था. मोहन भागवत ने कहा था कि देश को व्यापक जनसंख्या नीति की जरूरत है. इतना ही नहीं मोहन भागवत के अनुसार, धर्म के आधार पर जनसंख्या असंतुलन की अनदेखी करने के दुष्‍परिणाम सामने आना तय है. हालांकि, बहुत से लोगों का मानना है कि भारत में जनसंख्या नीति को लाकर सिर्फ मुस्लिमों को निशाना बनाया जाएगा. ये अलग बात है कि मोहन भागवत जनसंख्या नीति को सभी पर कड़ाई से लागू करने की बात करते हैं. खैर, इन तमाम बातों से इतर सबसे अहम सवाल ये है कि जनसंख्या असंतुलन से कैसे टूटते हैं देश? इस बारे में सोशल मीडिया पर एक @starboy नाम के यूजर ने एक ट्विटर थ्रेड के जरिये इसे विस्तार से समझाया है. हमने इस ट्विटर थ्रेड को शब्दश: अनुवाद किया है. इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है.

धर्म आधारित जनसांख्यिकीय असंतुलन किसी भी देश के लिए खतरनाक साबित हो सकता है.

जनसंख्या असंतुलन से कैसे टूटते हैं देश?

- यूजर ने अपने ट्वीट में लिखा है कि जनसंख्या बदलाव कैसे देश को तोड़ सकता है? इसके बारे में जानने के लिए ईस्ट तिमोर, साउथ सूडान, कोसोवा की केस स्टडी को पढ़ना चाहिए. जनसांख्यिकीय बदलाव कैसे देश के टुकड़े करता है, इस पर चरणबद्ध तरीके से बात करेंगे. आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने भी ईस्ट तिमोर, साउथ सूडान, कोसोवा का उदाहरण दिया था.

- केस स्टडी 1 : ईस्ट तिमोर पहले इंडोनेशिया का ही हिस्सा था. औपनिवेशिक काल में इस पर पुर्तगाल का कब्जा था. और, फिर 1975 में इस पर जापान ने कब्जा कर लिया. बाद में ये फिर से इंडोनेशिया में मिल गया. उस समय इंडोनेशिया का तानाशाह सुहार्तो...

भारत में लगातार बढ़ती जनसंख्या हमेशा से ही चर्चा का विषय रहा है. हाल ही में आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने देश की बढ़ती जनसंख्‍या को गंभीर मुद्दा बताया था. मोहन भागवत ने कहा था कि देश को व्यापक जनसंख्या नीति की जरूरत है. इतना ही नहीं मोहन भागवत के अनुसार, धर्म के आधार पर जनसंख्या असंतुलन की अनदेखी करने के दुष्‍परिणाम सामने आना तय है. हालांकि, बहुत से लोगों का मानना है कि भारत में जनसंख्या नीति को लाकर सिर्फ मुस्लिमों को निशाना बनाया जाएगा. ये अलग बात है कि मोहन भागवत जनसंख्या नीति को सभी पर कड़ाई से लागू करने की बात करते हैं. खैर, इन तमाम बातों से इतर सबसे अहम सवाल ये है कि जनसंख्या असंतुलन से कैसे टूटते हैं देश? इस बारे में सोशल मीडिया पर एक @starboy नाम के यूजर ने एक ट्विटर थ्रेड के जरिये इसे विस्तार से समझाया है. हमने इस ट्विटर थ्रेड को शब्दश: अनुवाद किया है. इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है.

धर्म आधारित जनसांख्यिकीय असंतुलन किसी भी देश के लिए खतरनाक साबित हो सकता है.

जनसंख्या असंतुलन से कैसे टूटते हैं देश?

- यूजर ने अपने ट्वीट में लिखा है कि जनसंख्या बदलाव कैसे देश को तोड़ सकता है? इसके बारे में जानने के लिए ईस्ट तिमोर, साउथ सूडान, कोसोवा की केस स्टडी को पढ़ना चाहिए. जनसांख्यिकीय बदलाव कैसे देश के टुकड़े करता है, इस पर चरणबद्ध तरीके से बात करेंगे. आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने भी ईस्ट तिमोर, साउथ सूडान, कोसोवा का उदाहरण दिया था.

- केस स्टडी 1 : ईस्ट तिमोर पहले इंडोनेशिया का ही हिस्सा था. औपनिवेशिक काल में इस पर पुर्तगाल का कब्जा था. और, फिर 1975 में इस पर जापान ने कब्जा कर लिया. बाद में ये फिर से इंडोनेशिया में मिल गया. उस समय इंडोनेशिया का तानाशाह सुहार्तो था. पूरी दुनिया में मुस्लिमों की सर्वाधिक आबादी इंडोनेशिया में है. सुहार्तो भी मुस्लिम था. लेकिन, वो धर्मनिरपेक्ष यानी सेकुलर मुस्लिम था. 1975 में ईस्ट तिमोर के हिस्से में मुस्लिम आबादी मुख्य रूप से बहुसंख्यक थी. उस समय वहां पर 20 फीसदी ही ईसाई थे. ऐसा माना जाता है कि सुहार्तो सबसे भ्रष्टाचारी तानाशाह था. ईस्ट तिमोर में गरीबी फैल गई और ईसाई मिशनरियों ने इसका फायदा उठाया.

- और, बड़े स्तर पर धर्म परिवर्तन शुरू हो गया. 1975 में जो ईसाई 20 फीसदी थे. 1990 में उनकी आबादी 95 फीसदी तक बढ़ गई. 1989 में ही ईसाई धर्म के सबसे बड़े धर्म गुरू पोप ने ईस्ट तिमोर का दौरा किया. ईस्ट तिमोर में धर्म परिवर्तन कराने के लिए जिम्मेदार बिशप कार्लोस को नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया. इंडोनेशिया के मुस्लिमों और तिमोर कैथोलिक ईसाईयों के बीच विवाद शुरू हो गए. ईस्ट तिमोर की कैथोलिक ईसाई आबादी ने अपने लिए अलग देश की मांग रख दी. 1999 में भीषण हिंसा हुई. आखिरकार अंतरराष्ट्रीय समुदाय और तिमोर के लोगों के दबाव पर इंडोनेशिया जनमत संग्रह कराने को लेकर तैयार हो गया.

- 1999 में संयुक्त राष्ट्र ने ईस्ट तिमोर का शासन-प्रशासन अपने कब्जे में ले लिया. जनमत संग्रह में 78 फीसदी लोगों ने अलग देश की मांग के पक्ष में वोट दिया. जिसके बाद इंडोनेशिया दो टुकड़ों में बंट गया. और, ईस्ट तिमोर एक अलग देश बन गया.

- केस स्टडी 2 : सूडान 97 फीसदी मुस्लिम आबादी के साथ एक इस्लामिक अफ्रीकन देश था. सूडान के दक्षिणी हिस्से में तेल के कई सारे भंडार थे. 1990 में साउथ सूडान में ईसाई आबादी केवल 5 फीसदी थी. और, यहां भी धर्म परिवर्तन का खेल शुरू हो गया. 2011 आते-आते सूडान के दक्षिणी हिस्से में 61 फीसदी ईसाईयों की आबादी हो गई. जिसके बाद सूडान के मुस्लिमों और साउथ सूडान के ईसाईयों के बीच गृह युद्ध शुरू हो गया. साउथ सूडान के लोगों ने सूडान रेवोल्यूशन पार्टी बनाई.

- सूडान ने इतिहास का सबसे बड़ा गृह युद्ध झेला था. लाखों लोग मारे गए और उस हिस्से से भागने को मजबूर हो गए. 2011 में संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में यहां जनमत संग्रह कराया गया. जिसमें साउथ सूडान के लोगों ने एक अलग देश का पक्ष लिया. सूडान के दो टुकड़े हो गए और साउथ सूडान एक अलग देश बन गया.

- केस स्टडी 3 : कोसोवो पहले यूगोस्लाविया का हिस्सा था. और, यूगोस्लाविया का बिखराव होने के बाद यह यूरोपीय देश सर्बिया का हिस्सा बन गया. यहां दो समुदाय मुख्य रूप से रहते थे. सर्बस और अलबेनियन्स. ज्यादातर सर्बस रूढ़िवादी ईसाई और अलबेनियन्स मुस्लिम थे. अधिक जन्मदर की वजह से कोसोवा के हिस्से में अलबेनियन्स की आबादी तेजी से बढ़ने लगी. 1921 में अलबेनियन्स की आबादी 65 फीसदी थी. जो 1991 में में 82 फीसदी से ज्यादा हो गई. सर्बस की आबादी इस इलाके में कम थी. लेकिन, वहां एक बहुत महत्वपूर्ण चर्च था.

- कोसोवा के अलबेनियन्स ने मानवाधिकारों के उल्लंघन और जातीय नरसंहार का मुद्दा उठाया. जिसके बाद गृह युद्ध छिड़ गया. ये सब छात्रों के प्रदर्शन से शुरू हुआ था. और, इसने गृह युद्ध की शक्ल ले ली. उन्होंने कोसोवा लिबरेशन आर्मी बनाई. फरवरी 1998 से जून 1999 तक सर्बिया के रिपब्लिक ऑफ यूगोस्लाविया और कोसोवा लिबरेशन आर्मी के बीच युद्ध हुआ. बड़ी संख्या में लोग मारे गए. दो लाख सर्बस को कोसोवा छोड़ना पड़ा. नाटो को इस मामले में दखल देनी पड़ी. 1999 में नाटो ने यूगोस्लाविया की सेना पर बम बरसाए. संयुक्त राष्ट्र और नाटो की सेनाओं ने कोसोवा पर अधिकार स्थापित कर लिया.

- 2001 में एक कार्यकारी सरकार बनाई गई. और, 2008 में कोसोवा एक अलग देश बन गया. इस तरह सर्बिया दो टुकड़ों में बंट गया. इसी बीच 2006 में सर्बिया के एक और हिस्से मोंटेनेग्रो में भी जनमत संग्रह हुआ. जिसके चलते सर्बिया एक बार फिर से बंट गया.

- तो, अगर हम इन तीनों केस स्टडी का विश्लेषण करेंगे. तो, हमें निम्नलिखित एक जैसे प्वाइंट्स नजर आऐंगे. पहला चरण : एक हिस्से में जनसांख्यिकीय बदलाव, दूसरा चरण : उस हिस्से के बहुसंख्यक समुदाय द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन, आर्थिक विषमता और भेदभाव की शिकायत, तीसरा चरण : प्रदर्शन शुरू, चौथा चरण : राज्य की जवाबी कार्रवाई है और प्रदर्शनों को कुचलना, पांचवा चरण : प्रदर्शन का गृह युद्ध में बदलना, छठवां चरण : अंतरराष्ट्रीय दबाव, सातवां चरण : अलग देश के लिए जनमत संग्रह, आठवां चरण : अलग देश

- अब इन केस स्टडी के बारे में हम जान चुके हैं. अब विश्लेषण कीजिए भारत के अलग-अलग हिस्सों में क्या हो रहा है या क्या हो रहा था? और, भविष्य में क्या हो सकता है? खासतौर से कश्मीर, पंजाब, उत्तर-पूर्व, केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में. क्यो मोदी ने किसान आंदोलन पर ताकत का इस्तेमाल नहीं किया? और, भारत को ऐसे चरम हालातों में क्या करना चाहिए? 

यहां पढ़े पूरा ट्विटर थ्रेड 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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