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‘खबर’ बनाने से पहले खबर का ‘सत्यापन’ क्या जरूरी नहीं?

    • रोहित श्रीवास्तव
    • Updated: 09 मार्च, 2016 01:50 PM
  • 09 मार्च, 2016 01:50 PM
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समस्या यह है कि आज जिन खबरों को 'खबर' बनना चाहिए वह 'डस्ट्बिन' में चली जाती हैं क्योंकि उन्हे पढ़ने और देखने वाला भी कोई नहीं है. लोगो को भी ऐसी ‘विवादित’ खबरें खूब भाती हैं जभी ‘प्रासंगिक-खबरों’ की जगह 'बेखबर' और ‘बेअसर’ खबरें 'खबरें' बनती है.

जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार की एक फोटो वाइरल हो गई है. जिसमें वो एक महिला के साथ बैठें नजर आ रहे हैं. आज के सोशल मीडिया संसार मे (फेसबुक और ट्विटर पर) कोई भी विवादित फोटो, विडियो या लेख चंद क्षणों मे आग की तरह फेल जाता है. उस आग की लपटों मे वो लोग भी आते हैं जो बिना सोचे-समझे (बिना सत्यापित किए) उसे ‘शेयर’ करते हुए, आगे बढ़ाने या ‘वाइरल’ करने का काम करते हैं. 'वाइरल' के इस दौर मे लोग ‘शेयर’ (सांझा करने का) का बटन दबा देते हैं बेशक उन्हें उस विषय की पूरी जानकारी ज्ञात न हो. कन्हैया के ही मामले में अभी कोई महिला को 'प्रोफेसर' बता रहा है.... तो कोई जेएनयू की एक 'विद्यार्थी'.....लेकिन किसी को पूर्ण सत्य का ज्ञान नहीं है. फिर भी विवादित फोटो का ‘वाइरल’ होना बदस्तूर जारी है.

कन्हैया की वायरल हुई तस्वीर

न्यूज़ बनाने वाले भी (वो पीछे न रह जाए की) होड़ मे धड़ाधड़ खबरें बना रहे है. उसके नीचे डिसलेमर लगा (कि उन्हें फोटो की सच्चाई ज्ञात नहीं) अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त हो रहे हैं. सवाल यह है कि क्या ऐसी खबरों और फोटो को छापने से पहले क्या उन्हें तथ्यों का सत्यापन नहीं करना चाहिए. उनकी नैतिक ज़िम्मेदारी नहीं बनती है कि वे ‘सत्यापित-खबर’ को ही अपनी ‘खबरों’ मे जगह दें. पूर्व मे ऐसे कई मामले उभर कर सामने आए हैं जहां गलत खबर छापने या दिखाने के लिए न्यूज़ चैनलों और पोर्टलों को माफी मांगनी पड़ी है. बावजूद इसके, बिना सत्यापन किए, खबरें बनाई जा रही हैं और दिखाई जा रही हैं. सवाल यह भी है कि क्या माफी भर मांगने से आपकी ज़िम्मेदारी खत्म हो जाती है.

समस्या यह है कि आज जिन...

जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार की एक फोटो वाइरल हो गई है. जिसमें वो एक महिला के साथ बैठें नजर आ रहे हैं. आज के सोशल मीडिया संसार मे (फेसबुक और ट्विटर पर) कोई भी विवादित फोटो, विडियो या लेख चंद क्षणों मे आग की तरह फेल जाता है. उस आग की लपटों मे वो लोग भी आते हैं जो बिना सोचे-समझे (बिना सत्यापित किए) उसे ‘शेयर’ करते हुए, आगे बढ़ाने या ‘वाइरल’ करने का काम करते हैं. 'वाइरल' के इस दौर मे लोग ‘शेयर’ (सांझा करने का) का बटन दबा देते हैं बेशक उन्हें उस विषय की पूरी जानकारी ज्ञात न हो. कन्हैया के ही मामले में अभी कोई महिला को 'प्रोफेसर' बता रहा है.... तो कोई जेएनयू की एक 'विद्यार्थी'.....लेकिन किसी को पूर्ण सत्य का ज्ञान नहीं है. फिर भी विवादित फोटो का ‘वाइरल’ होना बदस्तूर जारी है.

कन्हैया की वायरल हुई तस्वीर

न्यूज़ बनाने वाले भी (वो पीछे न रह जाए की) होड़ मे धड़ाधड़ खबरें बना रहे है. उसके नीचे डिसलेमर लगा (कि उन्हें फोटो की सच्चाई ज्ञात नहीं) अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त हो रहे हैं. सवाल यह है कि क्या ऐसी खबरों और फोटो को छापने से पहले क्या उन्हें तथ्यों का सत्यापन नहीं करना चाहिए. उनकी नैतिक ज़िम्मेदारी नहीं बनती है कि वे ‘सत्यापित-खबर’ को ही अपनी ‘खबरों’ मे जगह दें. पूर्व मे ऐसे कई मामले उभर कर सामने आए हैं जहां गलत खबर छापने या दिखाने के लिए न्यूज़ चैनलों और पोर्टलों को माफी मांगनी पड़ी है. बावजूद इसके, बिना सत्यापन किए, खबरें बनाई जा रही हैं और दिखाई जा रही हैं. सवाल यह भी है कि क्या माफी भर मांगने से आपकी ज़िम्मेदारी खत्म हो जाती है.

समस्या यह है कि आज जिन खबरों को 'खबर' बनना चाहिए वह 'डस्ट्बिन' में चली जाती हैं क्योंकि उन्हे पढ़ने और देखने वाला भी कोई नहीं है. लोगो को भी ऐसी ‘विवादित’ खबरें खूब भाती हैं जभी ‘प्रासंगिक-खबरों’ की जगह 'बेखबर' और ‘बेअसर’ खबरें 'खबरें' बनती है.

अंतत: वाइरल हुई विवादित ‘सामग्री’ की सच्चाई जो भी हो. लेकिन नैतिकता कहती है कि हमें ‘शेयर’ करने और ‘खबर’ बनाने से पहले उसका सत्यापन जरूर कर लेना चाहिए.

 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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