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महिलाओं की आजादी के मायने नग्नता नहीं है जनाब !

    • ताबिश सिद्दीकी
    • Updated: 27 अप्रिल, 2017 06:51 PM
  • 27 अप्रिल, 2017 06:51 PM
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भारत की जिस महिला ने लंदन में नग्न साइकिल रेस में हिस्सा लिया, उसके चर्चे एक साल बाद हो रहे हैं. इस्लामिक कट्टरपंथी उसकी तस्वीरें प्रोग्रेसिव मुस्लिम महिलाओं के प्रोफाइल पर पोस्ट कर पूछ रहे हैं...

भारत की मीनल जैन ने एक साल पहले लंदन में नग्न साइकिल रेस में हिस्सा लिया तो यहां और किसी को कोई परेशानी नहीं हुई, मगर आज इस्लामिक कट्टरपंथियों ने खूब जम कर आपत्ति जताई और हंसी उड़ाई. ये खूब हंस रहे हैं और उसकी नग्न फोटो शेयर कर के थू-थू कर रहे हैं.

इस मानसिकता को आप जरा समझिये. ये बहुत पुरानी चाल है इन लोगों को, ये नग्नता पर हंसते हैं, ये नाचने गाने पर हंसते हैं. आप अभिनेता बनेंगे तो ये आपको भांड कहके दुत्कारेंगे. ये क़ाफ़िर शब्द को गाली की तरह इस्तेमाल करेंगे ताकि आप को क़ाफ़िर होने में शर्म महसूस होने लगे. ये हम लोगों को हतोत्साहित करने के लिए राफ़ाजी, मुश्रिक़ लिखेंगे और उसका अभियान चलाएंगे ताकि हम लोग शर्म से चुप हो जाएं. ये इनकी चाल होती है क्योंकि ये आपको हर तरह से वही मनवाने की कोशिश में लगे रहते हैं जो "इनके वाले" इस्लाम में सही है.

ये हर उस चीज को दुत्कारते हैं जो इनके धर्म के हिसाब से सही नहीं है. कहीं सुना है दुनिया में आपने कि "शराबी के पास से या शराब से बदबू" आती है? ये इनकी चाल थी भारत में और इन्होंने बड़ी चालाकी से हर शराबी को बदबूदार बना दिया और दूसरे धर्म का व्यक्ति भी भारत में शराब की खुशबू सूंघ कर नाक भौं सिकोड़ने लगा. ये "बदबू" वाला सिस्टम इनका चलाया हुआ है जैसे क़ाफ़िर को इन्होंने गाली बना दिया. ये बड़े शातिर होते हैं और लगभग सारे भारत की मानसिकता बदल दी इन लोगों ने. पर्दे को इन्होंने ऐसा "दैवीय" बता दिया और बिना परदे की औरतों को ये नंगा बताने लगे और उसी शर्म में भारतीय औरतें भी घूंघट में छिप गयीं. इस्लाम के आने से पहले भारत में किसी भी प्रकार के पर्दे और घूंघट का कोई वर्णन नहीं मिलता है.

आप किसी के नंगे होने का समर्थन "अभिव्यक्ति की आज़ादी" की वजह से करें तो ये आपको कहेंगे कि आप अपनी बहन बेटियों को नंगा घुमाइये. ये सीधे ऐसे हमले...

भारत की मीनल जैन ने एक साल पहले लंदन में नग्न साइकिल रेस में हिस्सा लिया तो यहां और किसी को कोई परेशानी नहीं हुई, मगर आज इस्लामिक कट्टरपंथियों ने खूब जम कर आपत्ति जताई और हंसी उड़ाई. ये खूब हंस रहे हैं और उसकी नग्न फोटो शेयर कर के थू-थू कर रहे हैं.

इस मानसिकता को आप जरा समझिये. ये बहुत पुरानी चाल है इन लोगों को, ये नग्नता पर हंसते हैं, ये नाचने गाने पर हंसते हैं. आप अभिनेता बनेंगे तो ये आपको भांड कहके दुत्कारेंगे. ये क़ाफ़िर शब्द को गाली की तरह इस्तेमाल करेंगे ताकि आप को क़ाफ़िर होने में शर्म महसूस होने लगे. ये हम लोगों को हतोत्साहित करने के लिए राफ़ाजी, मुश्रिक़ लिखेंगे और उसका अभियान चलाएंगे ताकि हम लोग शर्म से चुप हो जाएं. ये इनकी चाल होती है क्योंकि ये आपको हर तरह से वही मनवाने की कोशिश में लगे रहते हैं जो "इनके वाले" इस्लाम में सही है.

ये हर उस चीज को दुत्कारते हैं जो इनके धर्म के हिसाब से सही नहीं है. कहीं सुना है दुनिया में आपने कि "शराबी के पास से या शराब से बदबू" आती है? ये इनकी चाल थी भारत में और इन्होंने बड़ी चालाकी से हर शराबी को बदबूदार बना दिया और दूसरे धर्म का व्यक्ति भी भारत में शराब की खुशबू सूंघ कर नाक भौं सिकोड़ने लगा. ये "बदबू" वाला सिस्टम इनका चलाया हुआ है जैसे क़ाफ़िर को इन्होंने गाली बना दिया. ये बड़े शातिर होते हैं और लगभग सारे भारत की मानसिकता बदल दी इन लोगों ने. पर्दे को इन्होंने ऐसा "दैवीय" बता दिया और बिना परदे की औरतों को ये नंगा बताने लगे और उसी शर्म में भारतीय औरतें भी घूंघट में छिप गयीं. इस्लाम के आने से पहले भारत में किसी भी प्रकार के पर्दे और घूंघट का कोई वर्णन नहीं मिलता है.

आप किसी के नंगे होने का समर्थन "अभिव्यक्ति की आज़ादी" की वजह से करें तो ये आपको कहेंगे कि आप अपनी बहन बेटियों को नंगा घुमाइये. ये सीधे ऐसे हमले करेंगे और ये इनकी बहुत ही पुरानी चाल है. ये हर उस चीज़ को दुत्कारते हैं जो इनके धर्म के हिसाब से गलत हो और ये हर उस नाजायज़ बात का भरपूर समर्थन करेंगे जो इनके हिसाब से इनके धर्म में सही है. ऐसे ही दुत्कार दुत्कार के इन्होंने संघ और अन्य भारतीय संगठनों ने शरीया अपनाने पर मजबूर कर दिया और ये सारे संगठन लगभग अब हर वो बात मानते हैं जो शरीया सम्मत हो. चाहे प्रेमी जोड़ों पर पहरा लगाना हो और चाहे शराब बंदी का जुनून. इन्होंने दुत्कार-दुत्कार के ऐसी हीन भावना भर दी कि लोग अपने धर्म का मूल भूलकर उसके उलट चल दिए.

तो इन्हें तड़पने दीजिये और दुत्कारने दीजिये. मीनल जैन नंगी हुई हैं और ये आपसे ये कहलवा ही लेंगे कि ये "गलत है". कल ये आपसे जैन और नागा साधुओं के भी नंगे होने पर असहमति दर्ज करवा लेंगे और आप अपनी असहमति दे देंगे. मगर आप ये कभी नहीं समझ पाएंगे कि इनके हिसाब से गलत क्या क्या है. इनके हिसाब से सारी मानवता और सारी प्रकृति ही गलत है क्योंकि यहां सब कुछ इस्लाम सम्मत नहीं है और जो इस्लाम सम्मत नहीं है वो गलत है.

सरमद काशानी सूफी फकीर नंगा रहता था. औरंगजेब के समय में मौलाना नमाज़ के लिए निकलते तो उसे देख उनका वुज़ू टूट जाता था और उन्होंने औरंगजेब से शिकायत की कि ये नंगा रहता है इसे सुधारिये. औरंगजेब ने उससे कलमा पढ़ने को बोला तो सरमद ने सिर्फ आधा कलमा पढ़ा. और इस बात को वजह बनाकर उसका सिर काट दिया गया. उसका सिर जामा मस्जिद की सीढ़ियों ने लुढ़कता हुआ नीचे आ गिरा था. इनको सिर्फ मीनल जैन से ही नहीं एक सूफी के नंगे होने से भी परेशानी थी.

अगर ये काफिर कहें तो खुश होइए, ये मुश्रिक बोलें तो फख़्र से मुस्कुराइये, राफ़ाजी बोलें तो धन्यवाद दीजिये इन्हें. इनकी दुत्कारने वाली चाल में मत फंसिए अब. वैसे ज़िन्दगी जीईये जो आपको पसंद हो और उसे सपोर्ट कीजिये जो आपको सही लगे दिल से. फिर भले आपको नग्नता पसंद न हो तो बस मुंह फेर लीजिये मगर इनके दुत्कारने वाले खेल में शामिल मत होइए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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