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ओह मानुषी छिल्लर, ये तुम क्या कर गई? लोग कितना ऑफेंड हैं

    • रणविजय सिंह
    • Updated: 22 नवम्बर, 2017 12:24 PM
  • 22 नवम्बर, 2017 12:24 PM
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मानुषी की जीत के बाद वही हुआ जो इस देश में सदियों से चलता चला आया है. लोगों के उनके बारे में बातें करनी शुरू कर दीं हैं. मानुषी पर हो रही ये बातें कहीं भी ये नहीं बता रहीं कि उनकी जीत एक सकारात्मक पहल है.

ओह मानुषी छिल्लर, ये तुम क्या कर गई? लोग कितना ऑफेंड हैं तुम्हारे मिस वल्र्ड के खिताब को लेकर, तुमने गुनाह किया ये जीतकर. कल रात से ही ये आभासी दुनिया (सोशल मीडिया) खत्म होने के कगार पर है! यहां लोग मर रहे हैं, आंसू छलक और गुस्सा फूट रहा है. लोगों का कहना है कि ‘मेरा सुंदर होना कोई उपलब्धि नहीं’, ‘ऐसी प्रतियोगिता (सौन्दर्य) होनी ही नहीं चाहिए? वगैरह-वगैरह.

मुझे तो लगता है तुम्हारी इस गुस्ताखी से कहीं सुंदर, खूबसूरत, स्मार्ट, हैंडसम जैसे शब्द ही न मिटा दिए जाएं. अगर इन प्रेम रस के शब्दों का खात्मा हुआ, तो इसकी जिम्मेदार सिर्फ तुम होगी. शायद अब गुलाब और इस जैसे फूलों को भी खूबसूरत न कहा जाएगा. क्यों कि इन्हें खूबसूरत कहना भी कहां तक जायज है. कांटों को भी तो बुरा लग सकता है! और इनकी खूबसूरती भी कोई उपलब्धि नहीं.

लोग ऑफेंड हैं कि कैसे मानुषी छिल्लर इतनी बड़ी प्रतियोगिता जीत गयी

लेकिन फिर मुझे ख्याल आया कि ये जो प्रतियोगित तुम जीती हो इसे कई काले लोग भी जीत चुके हैं. तो इसमें रंग को लेकर भेदभाव जैसा कुछ नहीं. और तो और तुम्हारे खिताब के नाम में भी कहीं ‘ब्यूटीफुल’ शब्द नहीं, उसमें तो ‘मिस’ शब्द है. तो ये सुंदर होने न होने की बात कहां से आई. हां, सुंदरता इस प्रतियोगिता का एक पैमाना जरूर है, मगर अंतिम और एक मात्र नहीं. लेकिन चाहे जो हो, तुमने लाख मेहनत की हो, हम ऑफेंड हैं तो हैं.

पता है हम सब इतने सधे हुए हैं कि आज तक हमने किसी की तरीफ नहीं की. किसी को खूबसूरत नहीं कहा. सिर्फ इस लिए कि उसके साथ खड़े किसी तीसरे को बुरा न लग जाए. इतना ही नहीं, मैं बहुत बुरा गाता हूं. इतना कि अगर गा दूं तो दो-चार लोग सुसाइड कर लें. और सच मानों ये मेरी उपलब्धि नहीं. ये कुदरत ने मुझे दिया है. फिर...

ओह मानुषी छिल्लर, ये तुम क्या कर गई? लोग कितना ऑफेंड हैं तुम्हारे मिस वल्र्ड के खिताब को लेकर, तुमने गुनाह किया ये जीतकर. कल रात से ही ये आभासी दुनिया (सोशल मीडिया) खत्म होने के कगार पर है! यहां लोग मर रहे हैं, आंसू छलक और गुस्सा फूट रहा है. लोगों का कहना है कि ‘मेरा सुंदर होना कोई उपलब्धि नहीं’, ‘ऐसी प्रतियोगिता (सौन्दर्य) होनी ही नहीं चाहिए? वगैरह-वगैरह.

मुझे तो लगता है तुम्हारी इस गुस्ताखी से कहीं सुंदर, खूबसूरत, स्मार्ट, हैंडसम जैसे शब्द ही न मिटा दिए जाएं. अगर इन प्रेम रस के शब्दों का खात्मा हुआ, तो इसकी जिम्मेदार सिर्फ तुम होगी. शायद अब गुलाब और इस जैसे फूलों को भी खूबसूरत न कहा जाएगा. क्यों कि इन्हें खूबसूरत कहना भी कहां तक जायज है. कांटों को भी तो बुरा लग सकता है! और इनकी खूबसूरती भी कोई उपलब्धि नहीं.

लोग ऑफेंड हैं कि कैसे मानुषी छिल्लर इतनी बड़ी प्रतियोगिता जीत गयी

लेकिन फिर मुझे ख्याल आया कि ये जो प्रतियोगित तुम जीती हो इसे कई काले लोग भी जीत चुके हैं. तो इसमें रंग को लेकर भेदभाव जैसा कुछ नहीं. और तो और तुम्हारे खिताब के नाम में भी कहीं ‘ब्यूटीफुल’ शब्द नहीं, उसमें तो ‘मिस’ शब्द है. तो ये सुंदर होने न होने की बात कहां से आई. हां, सुंदरता इस प्रतियोगिता का एक पैमाना जरूर है, मगर अंतिम और एक मात्र नहीं. लेकिन चाहे जो हो, तुमने लाख मेहनत की हो, हम ऑफेंड हैं तो हैं.

पता है हम सब इतने सधे हुए हैं कि आज तक हमने किसी की तरीफ नहीं की. किसी को खूबसूरत नहीं कहा. सिर्फ इस लिए कि उसके साथ खड़े किसी तीसरे को बुरा न लग जाए. इतना ही नहीं, मैं बहुत बुरा गाता हूं. इतना कि अगर गा दूं तो दो-चार लोग सुसाइड कर लें. और सच मानों ये मेरी उपलब्धि नहीं. ये कुदरत ने मुझे दिया है. फिर भी जब अरिजीत को नबंर 1 का खिताब मिलता है तो मैं ऑफेंड हो जाता हूं. क्योंकि उसके पास इतनी अच्छी आवाज कैसे है. लोगों को मुझे सुनना चहिए, ये खिताब मुझे मिलना चाहिए.

तो हम लोग इतने सीधे हैं. और तुम बेशर्मों की तरह वहां से खिताब जीत लाई. तुम्हें लगा हम खूश होंगे, तारीफ करेंगे. अरे यार, शोले के टाइम से गब्बर खुश नहीं हुआ. तो अब क्या घंटा होगा. यहां लोग बैठे ही हैं कि तमाम पॉजिटिव बातों में से एक नेगेटिव को पकड़कर क्रिएटिविटी दिखा दें. लेकिन इन्हें कौन बताए कि ये क्रिएशन नहीं ब्लंडर है. तमाम नेगेटिव में से पॉजिटिव क्रिएट करो तो क्रिएटिव माना जाए. ये क्या नेगेटिविटी फैलाए पड़े हो.

मानुषी की इस जीत के बाद लोगों ने पूरे सोशल मीडिया पर उनको ट्रोल करना शुरू कर दिया है

तुम 17 साल बाद पॉजिटिव बात लेकर आई और हम पिल पड़े उसे नेगेटिव बनाने में. क्योंकि हम ऑफेंड हैं. कई दफे मुझे लगता है हमारे देश में ही सबसे ज्यादा ऑफेंडेड लोग गुजर बसर कर रहे हैं. यहां हर शख्स ऑफेंड है, नजाने क्यों. तो इस ऑफेंड समाज में तुम्हारे इसे दो कौड़ी की प्रतियोगिता का कोई मोल नहीं. दफा हो जाओ यहां से.

खैर, आखिर में मैं अपनी बात करूंगा, क्योंकि अभी तक तो मानुषी को कोसा है. रूको एक बार और कोस लूं - बेशर्म लड़की सुंदरता का खिताब जीतकर आएगी, कम्बख्त. होह्ह्ह्, अब जाकर मन को सुकून मिला. हां तो मैं अपनी बात कह रहा था - मेरा मानना है हर इंसान अपने हिसाब से बेस्ट पाता है. अगर कोई रिक्शा वाला है तो उसने अपनी लाइफ में उस हिसाब की मेहनत की होगी. और जो कुछ भी उसे मिला है वो उसके लाइफ का बेस्ट है. अगर उसे प्लने ही चलाना था तो उसे उस हिसाब की तैयारी करनी थी.

फिर वो उसके लिए बेस्ट होता. और अगर उसे स्पेस में जाना था तो उस हिसाब की तैयारी. कुल जमा बात ये है कि, हम सब अपना बेस्ट पा रहे हैं. लेकिन उसमें खुश रहने की बजाए दूसरे के बेस्ट को पाने में मरे जा रहे हैं. प्लीज फर्जी मुद्दा बनाकर किसी को ट्रोल न करो. और ट्रोल ही करना है तो आज से इस जहां में मौजूद किसी खूबसूरत चीज को खूबसूरत मत कहना, क्योंकि कई और चीजें हैं जो बुरा मान सकती हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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