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कौन है सुधा, और क्यों उनका स्वयंवर ट्विटर पर Talk Of The Town है?

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 23 अगस्त, 2022 09:37 PM
  • 23 अगस्त, 2022 09:37 PM
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यूपी की धावक और स्टेट चैम्पियन सुधा का स्वयंवर ट्विटर पर ट्रेंड में है.मामले के तहत, तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. हर वो व्यक्ति जो शादी के लिए सुधा की अनूठी शर्त को सुन रहा है, हैरत में है.

मैडल जीतने वाली धावक सुधा का स्वयंवर... इस अनोखे स्वयंवर की बात सोशल मीडिया पर जंगल की आग की तरह फैल रही है. अपनी तरह के अनूठे इस स्वयंवर के बारे में जो कोई भी सुन रहा है वो अपने हिसाब से तर्क दे रहा है. तर्क दे भी क्यों न? हिंदुस्तान जैसे देश में, मिडिल क्लास के बीच कामयाबी का मतलब पद-प्रतिष्ठा, मान-सम्मान नहीं है. बिल्कुल नहीं है. मिडिल क्लास वाला जुल्मी जमाना, 'कामयाब' उसी को मानता है, जो शादी शुदा है. जिसके बच्चे हैं.

शादी को लेकर मिडिल क्लास के बीच एक अलग किस्म की फैंटेसी है.  इस वर्ग का मानना यही है कि अगर कोई मेहनती है तो सफलता तो झक मारकर उसके पास आ ही जाएगी, लेकिन अगर 'समय रहते उसने हाथ न पीले किये या फिर केस अगर लड़की का हो और उसकी डोली न उठी, तो गड़बड़ है. यक़ीनन शादी को लेकर मिडिल क्लास की बातें इरिटेटिंग हैं और इनसे बचा तभी जा सकता है जब आप 'सुधा' सरीखे होशियार हों. सुधा उत्तर प्रदेश से हैं, धावक हैं और 400 मीटर में स्टेट चैम्पियन हैं. लेकिन लोगों को उससे क्या? सिर्फ सारा दोष लोगों को ही क्यों दें. मां पिता को भी उनकी ये उपलब्धि समझ में नहीं आती. धावक होने के नाते मेडल सुधा ला ही चुकी हैं तो अब बस उनकी शादी हो जाए यही सबका सपना है. शादी को लेकर लोगों के सवाल से सुधा आहत नहीं हुईं. बल्कि उन्होंने अपने खास अंदाज में एक तगड़ा समाधान निकाला. चूंकि सुधा रेसर हैं इसलिए उन्होंने शर्त रखी है कि जो उन्हें रेस में हराएगा वो उसकी दुल्हनिया बनेंगी.

धावक सुधा ने अपनी शादी के लिए जो शर्त राखी उसे लेकर सोशल मीडिया पर चर्चा होनी हिओ थी

न न इस स्वयंवर को लेकर हैरत में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है. असल में तमाम वेरिफाइड एकाउंट्स द्वारा धावक सुधा सिंह की  एक तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही है. तस्वीर में इस बात...

मैडल जीतने वाली धावक सुधा का स्वयंवर... इस अनोखे स्वयंवर की बात सोशल मीडिया पर जंगल की आग की तरह फैल रही है. अपनी तरह के अनूठे इस स्वयंवर के बारे में जो कोई भी सुन रहा है वो अपने हिसाब से तर्क दे रहा है. तर्क दे भी क्यों न? हिंदुस्तान जैसे देश में, मिडिल क्लास के बीच कामयाबी का मतलब पद-प्रतिष्ठा, मान-सम्मान नहीं है. बिल्कुल नहीं है. मिडिल क्लास वाला जुल्मी जमाना, 'कामयाब' उसी को मानता है, जो शादी शुदा है. जिसके बच्चे हैं.

शादी को लेकर मिडिल क्लास के बीच एक अलग किस्म की फैंटेसी है.  इस वर्ग का मानना यही है कि अगर कोई मेहनती है तो सफलता तो झक मारकर उसके पास आ ही जाएगी, लेकिन अगर 'समय रहते उसने हाथ न पीले किये या फिर केस अगर लड़की का हो और उसकी डोली न उठी, तो गड़बड़ है. यक़ीनन शादी को लेकर मिडिल क्लास की बातें इरिटेटिंग हैं और इनसे बचा तभी जा सकता है जब आप 'सुधा' सरीखे होशियार हों. सुधा उत्तर प्रदेश से हैं, धावक हैं और 400 मीटर में स्टेट चैम्पियन हैं. लेकिन लोगों को उससे क्या? सिर्फ सारा दोष लोगों को ही क्यों दें. मां पिता को भी उनकी ये उपलब्धि समझ में नहीं आती. धावक होने के नाते मेडल सुधा ला ही चुकी हैं तो अब बस उनकी शादी हो जाए यही सबका सपना है. शादी को लेकर लोगों के सवाल से सुधा आहत नहीं हुईं. बल्कि उन्होंने अपने खास अंदाज में एक तगड़ा समाधान निकाला. चूंकि सुधा रेसर हैं इसलिए उन्होंने शर्त रखी है कि जो उन्हें रेस में हराएगा वो उसकी दुल्हनिया बनेंगी.

धावक सुधा ने अपनी शादी के लिए जो शर्त राखी उसे लेकर सोशल मीडिया पर चर्चा होनी हिओ थी

न न इस स्वयंवर को लेकर हैरत में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है. असल में तमाम वेरिफाइड एकाउंट्स द्वारा धावक सुधा सिंह की  एक तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही है. तस्वीर में इस बात का जिक्र है कि निकट भविष्य में एक दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाएगा. दौड़ में सुधा के अलावा वो तमाम  युवक होंगे जो उनसे शादी करने के इच्छुक हैं. मौके पर जो कोई भी युवक सुधा को रेस में हरा देगा वो उसके गले में वरमाला डाल देंगी और उसकी हमसफ़र हो जाएंगी.

तस्वीर का सोशल मीडिया पर तैरना भर था. चाहे वो महिला हितों पर बात और काम करने वाले लोग हों या फिर आम नागरिक सभी ने सुधा के इस फैसले को हाथों हाथ लिया है. मामले के मद्देनजर प्रतिक्रियाएं ऐसी भी हैं जिनमें लोग इस बात पर बल दे रहे हैं कि अगर सुधा में टैलेंट है तो उसकी कद्र तभी होगी जब उन्हें कोई अपना जैसा मिलेगा.

वहीं तमाम लोग जो धावक सुधा सिंह को फुल सपोर्ट कर रहे हैं. ये भी कहते पाए जा रहे हैं कि यही वो तरीका है जिससे उनसे शादी करने वाले युवक समझ पाएंगे कि यदि वो एक मुकाम पर पहुंची हैं तो ; उसके लिए उन्होंने कितनी मेहनत की है.

विषय धावक सुधा के फैसले के समर्थन या विरोध का नहीं है लेकिन मामले के तहत जो बात सबसे ज्यादा अखरती है वो ये कि जब सुधा न केवल स्पोर्ट्स में करियर बना रही हैं बल्कि आगे भी बढ़ रही हैं तो आखिर लोगों को, उनके मां बाप को उनकी शादी कराने की इतनी जल्दबाजी क्यों थी?

सवाल सिर्फ सुधा से जुड़ा नहीं है. हर वो लड़की जो कामयाब है उसकी कामयाबी की वैल्यू तब ही क्यों है? जब वो शादी करने का फैसला करती है. या फिर शादी करने के लिए राजी होती है?  शादी कब होगी? इस सवाल के रूप में लड़कियां जिस चुनौती का सामना कर रही हैं वो पैट्रिआर्कि से लेकर कंडीशनिंग तक कुछ भी हो सकता है.

बहरहाल जब जबकि सुधा ने ये फैसला ले ही लिया है तो देखना दिलचस्प कि वो दौड़ जीतती हैं या फिर हार कर बाजीगर  बनती हैं. सवाल कई हैं जवाब के लिए हमें बस कुछ दिनों का इंतजार करना पड़ेगा. बाकी विषय क्योंकि शादी है तो ये अनोखा फैसला लेने वाली  सुधा भी जानती हैं कि ट्रैक पर वो कितना भी दौड़ लें लेकिन समाज उन्हें मान्यता तभी देगा जब उनके घर से उनकी डोली उठेगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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