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Baba Ka Dhaba के बाद 'अम्मा की रसोई' इंटरनेट का नया सेंसेशन है!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 21 अक्टूबर, 2020 07:45 PM
  • 21 अक्टूबर, 2020 07:44 PM
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दिल्ली में बाबा का ढाबा (Baba Ka Dhaba) की अपार सफलता के बाद आगरा की 'अम्मा की रसोई' (Amma Ki Rasoi) इंटरनेट का नया सेंसेशन है. ये देखना सुखद है कि इंटरनेट और सोशल मीडिया ने नफरत के इस दौर में कुछ तो अच्छा किया और लोगों का जीवन बदला.

अभी दिन ही कितने हुए हैं. मानो कल की बात है. दिल्ली के मालवीय नगर में हनुमान मंदिर के पास खाने का एक ठीहा हुआ करता था. रिक्शे वाले, ऑटो वाले, कामगार, मजदूर आते और खाना खा कर चले जाते. ग्राहक जब ऐसे हों तो सुविधा और रेट क्या होंगे इसका अंदाजा बड़ी आसानी से लगाया जा सकता है. ढाबे से बाबा की दो जून की रोटी चल रही थी फिर लॉक डाउन हुआ तो बाबा का बिजनेस बिल्कुल ठप हो गया. दिन के 80 - 100 रुपए कमाना मुश्किल. 80 साल के बाबा की हालत पतली हो गयी. बात बीते दिनों की है एक यूट्यूबर बाबा के ढाबे (Baba Ka Dhaba) में आया और उसने बाबा के ढाबे की हालत का मार्मिक वर्णन करते हुए एक वीडियो सोशल मीडिया पर डाला. वीडियो जंगल की आग की तरह वायरल (Baba Ka Dhaba Viral Video) हुआ नतीजा ये निकला कि आज देश के सभी बड़े ब्रांड बाबा के ढाबे में जगह पाने को बेकरार हैं. हालिया दिनों में जिस ठीहे पर परिंदा पर नहीं मार रहा था आज वहां महंगी गाड़ियों और लोगों की लंबी लाइन है. लोग खाना खा रहे हैं. पैक करा रहे हैं सेल्फी ले रहे हैं भरपूर एन्जॉय कर रहे हैं. वो बाबा जो कल तक अपनी दुकान पर बैठकर मक्खियां हांकते थे आज उन्हें बात करने की फुरसत नहीं है. ये थी सोशल मीडिया की पावर. आज बाबा जिस मुकाम पर हैं उसकी एकमात्र वजह सोशल मीडिया है. बाबा से ही मिलती जुलती कहानी है ताज नगरी आगरा की रोटी वाली अम्मा (Roti Wali Amma) की. बाबा का ढाबा को सफल बनाने के बाद सोशल मीडिया योद्धाओं का अगला पड़ाव रोटी वाली अम्मा (Amma Ki Rasoi) को समृद्धि दिलाना है. आगरा के सेंट जॉन्स चौराहे पर एमजी रोड के पास रोटी वाली अम्मा की दुकान है. किसी सोशल मीडिया यूजर की नजर इसपर पड़ी वीडियो वायरल हुए. मीडिया में ख़बर आई और वो अम्मा जो अब तक सन्नाटे में थीं उनके हाथ की चूल्हे पर पकी रोटी खाने लोग आने लगे हैं.

बाबा जा ढाबा के बाद सोशल...

अभी दिन ही कितने हुए हैं. मानो कल की बात है. दिल्ली के मालवीय नगर में हनुमान मंदिर के पास खाने का एक ठीहा हुआ करता था. रिक्शे वाले, ऑटो वाले, कामगार, मजदूर आते और खाना खा कर चले जाते. ग्राहक जब ऐसे हों तो सुविधा और रेट क्या होंगे इसका अंदाजा बड़ी आसानी से लगाया जा सकता है. ढाबे से बाबा की दो जून की रोटी चल रही थी फिर लॉक डाउन हुआ तो बाबा का बिजनेस बिल्कुल ठप हो गया. दिन के 80 - 100 रुपए कमाना मुश्किल. 80 साल के बाबा की हालत पतली हो गयी. बात बीते दिनों की है एक यूट्यूबर बाबा के ढाबे (Baba Ka Dhaba) में आया और उसने बाबा के ढाबे की हालत का मार्मिक वर्णन करते हुए एक वीडियो सोशल मीडिया पर डाला. वीडियो जंगल की आग की तरह वायरल (Baba Ka Dhaba Viral Video) हुआ नतीजा ये निकला कि आज देश के सभी बड़े ब्रांड बाबा के ढाबे में जगह पाने को बेकरार हैं. हालिया दिनों में जिस ठीहे पर परिंदा पर नहीं मार रहा था आज वहां महंगी गाड़ियों और लोगों की लंबी लाइन है. लोग खाना खा रहे हैं. पैक करा रहे हैं सेल्फी ले रहे हैं भरपूर एन्जॉय कर रहे हैं. वो बाबा जो कल तक अपनी दुकान पर बैठकर मक्खियां हांकते थे आज उन्हें बात करने की फुरसत नहीं है. ये थी सोशल मीडिया की पावर. आज बाबा जिस मुकाम पर हैं उसकी एकमात्र वजह सोशल मीडिया है. बाबा से ही मिलती जुलती कहानी है ताज नगरी आगरा की रोटी वाली अम्मा (Roti Wali Amma) की. बाबा का ढाबा को सफल बनाने के बाद सोशल मीडिया योद्धाओं का अगला पड़ाव रोटी वाली अम्मा (Amma Ki Rasoi) को समृद्धि दिलाना है. आगरा के सेंट जॉन्स चौराहे पर एमजी रोड के पास रोटी वाली अम्मा की दुकान है. किसी सोशल मीडिया यूजर की नजर इसपर पड़ी वीडियो वायरल हुए. मीडिया में ख़बर आई और वो अम्मा जो अब तक सन्नाटे में थीं उनके हाथ की चूल्हे पर पकी रोटी खाने लोग आने लगे हैं.

बाबा जा ढाबा के बाद सोशल मीडिया ने आगरा की अम्मा की भी किस्मत बदल दी है

अभी दो दिन पहले की बात है अम्मा रोटियों के न बिकने से परेशान थीं मगर आज जब सोशल मीडिया पर उनकी रोटियों का चर्चा है लोगों की ठीक ठाक संख्या उनके पास रोटी खाने आ चुकी है. अम्मा खुश हैं उनके चेहरे पर मुस्कान है वो उन सभी को दुआएं दे रही हैं जिन्होंने उम्र के इस पड़ाव में उनकी मेहनत और खुद्दारी को समझा और उसे उचित सम्मान दिया. बताते चलें कि अम्मा की दुकान कोई आज की नहीं है.

अम्मा यानी 80 साल की भगवान देवी गुजरे 15 साल से आगरा के सेंट जॉन्स चौराहे पर चूल्हे पर पकी रोटियां बेच रही हैं. ये अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण है कि अम्मा के बच्चों ने उन्हें अपने साथ रखने से मना कर दिया लेकिन ये अम्मा का जज्बा ही था कि किसी के सामने हाथ फैलाने से बेहतर उन्होंने दुकान खोली और रोटियां बेच कर अपना जीवनयापन किया.

बात अम्मा के मेन्यू कि हो तो महंगाई के इस दौर में आज भी उनकी दुकान पर दस रुपए में एक प्लेट चावल तो वहीं 20 रुपए में 4 रोटियों के साथ 2 तरह की सब्जी मिलती है. बीते कुछ दिनों से मुफ़लिसी का शिकार अम्मा भगवान देवी का कारोबार आज फिर चल निकला है. जो आंखें कल तक ग्राहक तलाश रहीं थीं आज ये देख रही हैं कि कहीं रोटियां कच्ची तो नहीं रह गईं या फिर उन्होंने उसे ज्यादा तो नहीं पका दिया.

गौरतलब है कि जैसे ही अम्मा भगवान देवी की तंगहाली की दास्तां सोशल मीडिया पर आई लोगों का दिल पिघला. बात इस वक़्त की हो तो वो लोग जो प्रायः साफ सफाई की बात कहकर रोड साइड फ़ूड को देखकर नाक भौं सिकोड़ते थे आज वो लोग भी अम्मा के ठीहे पर उनके हाथ से पकी रोटियां खाने के लिए बेकरार हैं. रोटियों के लिए लोग कतार में हैं और अपनी पारी का इंतेजार कर रहे हैं. अम्मा ठेठ देसी अंदाज में रोटियां पका रही हैं और लोग उनका लुत्फ ले रहे हैं.

चाहे आगरा की अम्मा भगवान देवी हों या फिर दिल्ली के मालवीय नगर के कांटा प्रसाद दोनों ही बीते दिनों तंगहाली की ज़िंदगी जी रहे थे लेकिन आज इन दोनों का वक़्त बदला है. इन दोनों ही लोगों का वक़्त क्यों बदला इसकी एक बड़ी वजह सोशल मीडिया है. ज्ञात हो कि ये एक ऐसा वक़्त है जब नफरत अपने चरम पर है. सोशल मीडिया टूल चाहे वो फेसबुक हो या फिर ट्विटर उनका इस्तेमाल उन चीजों के लिए किया जा रहा है जो साफ तौर पर देश की अखंडता और एकता को प्रभावित कर रही हैं.

ऐसे में यदि उसी सोशल मीडिया का इस्तेमाल लोगों की भलाई के लिए हो रहा है तो ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि सोशल मीडिया पर यदि अंधेरे की भरमार है तो उजाले की किरण भी है जो रोते हुए लोगों के मुस्कुराने की वजह है.

इन दोनों मामलों को देखकर हम बस ये कहते हुए अपनी बात को विराम देंगे कि वो लोग जो इंटरनेट को तमाम बुराइयों की वजह मानते हैं उन्हें आगरा और दिल्ली से प्रेरणा लेनी चाहिए और इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि नफरतों के इस दौर में अच्छाई भी है और हमें उसे हाथों हाथ लेते हुए उसका प्रोत्साहन करना चाहिए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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