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SRK माया है असल में 'पठान' दकियानूस है, जिसे पढ़ी लिखी लड़कियां एक फूटी आंख नहीं भातीं!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 23 दिसम्बर, 2022 08:39 PM
  • 23 दिसम्बर, 2022 08:39 PM
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अफगानिस्तान में तालिबान ने आदेश जारी किया है जिसमें सभी यूनिवर्सिटीज को तुरंत लड़कियों की शिक्षा को रोकने का निर्देश दिया गया है. तालिबानी उच्च शिक्षा मंत्री ने घोषणा करते हुए कहा है कि आदेश मुल्क में तत्काल प्रभाव से लागू होगा. तालिबान की तरफ से इस फैसले का आना भर था. विरोध के स्वर बुलंद हो गए हैं और हर कोई पठानों की नीयत पर सवालिया निशान लगा रहा है.

चर्चा में शाहरुख़ हैं. बहस पठान को लेकर है. सोशल मीडिया पर 'पठान' को लेकर बज लगातार बना हुआ है. फिल्म आने में भले ही अभी ठीक ठाक वक़्त हो. लेकिन इसके दो गाने हमारे सामने हैं. (बेशर्म रंग और झूमे जो पठान) गाने को देखें तो लग यही रहा है कि इन गानों से यश राज कैम्प 'पठान' की एक दूसरी ही छवि दुनिया को दिखाना चाहता है. जैसा ट्रीटमेंट 'पठान' को दिया गया है प्रयास यही है कि जनता ये मान बैठे या इसा बात पर यकीन कर ले कि पठान कूल है. स्टाइलिश है. उसमें एक अलग तरह का स्वैग है. वो नामुमकिन को मुमकिन कर सकता है. लेकिन क्या 'पठान' की सच्चाई यही है? क्या पठान भला है? क्या अपने चरित्र से पठान दुनिया को इन्फ़्लुएंस कर सकता है? सीधा जवाब है नहीं. पठान की हकीकत वैसी नहीं है जैसी यश राज कैम्प अपनी फिल्म में दिखाने वाला है. असल ज़िन्दगी में पठान दकियानूस है, रूढ़िवादी विचारधारा का एक ऐसा पक्षधर है, जिसे पढ़ी लिखी लड़कियां एक फूटी आंख भी नहीं भातीं. कथन को पढ़कर हैरत में आने की कोई बहुत ज्यादा जरूरत नहीं है. हमें बस रुपहले पर्दे के मोह से खुद को निकलना होगा और तालिबान शासित अफगानिस्तान का रुख करना होगा. अफगानिस्तान में तालिबान ने आदेश जारी किया है जिसमें सभी यूनिवर्सिटीज को तुरंत लड़कियों की शिक्षा को रोकने का निर्देश दिया गया है. तालिबानी उच्च शिक्षा मंत्री ने घोषणा करते हुए कहा है कि आदेश मुल्क में तत्काल प्रभाव से लागू होगा.

यूनिवर्सिटीज में लड़कियों की शिक्षा को रोकने का निर्देश देकर तालिबानी पठानों ने अपनी असली सूरत दिखा दी है 

तालिबान ने ये फैसला क्यों लिया? इस फैसले पर तमाम दलीलें हो सकती हैं. मगर एक संगठन के रूप में तालिबान इस बात को बखूबी जानता है कि मुल्क में अगर लड़कियां और बच्चियां पढ़ लिख गयीं तो आने वाले वक़्त में उन...

चर्चा में शाहरुख़ हैं. बहस पठान को लेकर है. सोशल मीडिया पर 'पठान' को लेकर बज लगातार बना हुआ है. फिल्म आने में भले ही अभी ठीक ठाक वक़्त हो. लेकिन इसके दो गाने हमारे सामने हैं. (बेशर्म रंग और झूमे जो पठान) गाने को देखें तो लग यही रहा है कि इन गानों से यश राज कैम्प 'पठान' की एक दूसरी ही छवि दुनिया को दिखाना चाहता है. जैसा ट्रीटमेंट 'पठान' को दिया गया है प्रयास यही है कि जनता ये मान बैठे या इसा बात पर यकीन कर ले कि पठान कूल है. स्टाइलिश है. उसमें एक अलग तरह का स्वैग है. वो नामुमकिन को मुमकिन कर सकता है. लेकिन क्या 'पठान' की सच्चाई यही है? क्या पठान भला है? क्या अपने चरित्र से पठान दुनिया को इन्फ़्लुएंस कर सकता है? सीधा जवाब है नहीं. पठान की हकीकत वैसी नहीं है जैसी यश राज कैम्प अपनी फिल्म में दिखाने वाला है. असल ज़िन्दगी में पठान दकियानूस है, रूढ़िवादी विचारधारा का एक ऐसा पक्षधर है, जिसे पढ़ी लिखी लड़कियां एक फूटी आंख भी नहीं भातीं. कथन को पढ़कर हैरत में आने की कोई बहुत ज्यादा जरूरत नहीं है. हमें बस रुपहले पर्दे के मोह से खुद को निकलना होगा और तालिबान शासित अफगानिस्तान का रुख करना होगा. अफगानिस्तान में तालिबान ने आदेश जारी किया है जिसमें सभी यूनिवर्सिटीज को तुरंत लड़कियों की शिक्षा को रोकने का निर्देश दिया गया है. तालिबानी उच्च शिक्षा मंत्री ने घोषणा करते हुए कहा है कि आदेश मुल्क में तत्काल प्रभाव से लागू होगा.

यूनिवर्सिटीज में लड़कियों की शिक्षा को रोकने का निर्देश देकर तालिबानी पठानों ने अपनी असली सूरत दिखा दी है 

तालिबान ने ये फैसला क्यों लिया? इस फैसले पर तमाम दलीलें हो सकती हैं. मगर एक संगठन के रूप में तालिबान इस बात को बखूबी जानता है कि मुल्क में अगर लड़कियां और बच्चियां पढ़ लिख गयीं तो आने वाले वक़्त में उन कट्टरपंथी फैसलों का विरोध कर सकती हैं जो अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता का मूल है. यानी अपना मूल बचाने के लिए तालिबान ने वो फैसला ले लिया है जो इस बात की तस्दीख कर देता है कि सोच के लिहाज से तालिबानी कठमुल्ले आज भी उन्हीं प्रथाओं का पालन कर रहे हैं जो किसी भी मुल्क को गर्त में ले जाने का पूरा सामर्थ्य रखती हैं.

जिक्र अफगानिस्तान में महिलाओं के मूल अधिकारों में शामिल शिक्षा के हनन का हुआ है. ऐसे में हमें तालिबान के उच्च शिक्षा मंत्रालय से आ रही बातों को समझ लेना चाहिए.तालिबान के उच्च शिक्षा मंत्रालय ने कहा है कि अगली सूचना तक लड़कियों को अफगानिस्तान की यूनिवर्सिटीज में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाएगी. उच्च शिक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता द्वारा पुष्टि किए गए एक लेटर में देश की सभी पब्लिक और प्राइवेट यूनिवर्सिटीज को तुरंत लड़कियों की शिक्षा को रोकने का निर्देश दिया गया है.

महिला शिक्षा के तहत अफगानिस्तान के हालात कोई पहली बार नहीं ख़राब हुए. महिला शिक्षा को लेकर बीते साल अगस्त में ही तालिबान ने लड़कियों को सेकंडरी स्कूलों से बाहर का रास्ता दिखाया था. तालिबान द्वारा जब अशरफ गनी के साम्राज्य पर कब्ज़ा किया गया तभी उन्होंने इस बात को जाहिर कर दिया था कि आश्वासनों के बावजूद लड़कियों को सेकंडरी स्कूलों में जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी.

ऐसे में अब जबकि यूनिवर्सिटीज में लड़कियों पर बैन का फरमान आ ही गया है तो ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि एक बार फिर अपना असली चाल चरित्र और चेहरे से तालिबान ने दुनिया को आईना दिखा दिया है. ध्यान रहे पूर्व में ऐसे तमाम मौके आए थे जब विश्व पटल से मिली आलोचना के बाद तालिबान ने अलग अलग मंचों का इस्तेमाल कर इस मैसेज को फैलाया कि किसी अन्य दल की तरह वो भी मॉडर्न विचारों के साथ साथ मॉडर्न एजुकेशन का हिमायती है.

जैसा कि हमें पता है. सच को बहुत देर तक पर्दे के पीछे नहीं रखा जा सकता. महिला शिक्षा को लेकर अपने इस नए फरमान के बाद एक बार फिर तालिबान ये साबित करता नजर आता है कि जिसकी जो फितरत है उसे लाख चोगे में रख दिया जाए वो बदल नहीं सकती.

तालिबान के महिला शिक्षा को लेकर जारी किये गए इस फरमान के बाद प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गयी है. पूरे मुल्क में प्रोटेस्ट हो रहा है लेकिन इस पूरे मामले में जो सबसे बड़ी राहत की बात है वो ये कि महिलाओं को आम पुरुषों का पूरा समर्थन और सहयोग मिल रहा है. अफगानिस्तान से जुड़े कई ऐसे भी वीडियो सामने आ रहे हैं जिनमें हम कॉलेज और यूनिवर्सिटीज के बाहर महिला और पुरुषों दोनों को तालिबान सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए देखा जा सकता है.

जैसे हालात अफगानिस्तान में तैयार हो रहे हैं इस बात में कोई शक नहीं है कि पठानों ने मुल्क को तबाह और बर्बाद कर दिया है. वहां तालिबान को सत्ता मिलना वैसा ही है जैसे बंदर को उस्तरा मिलना. बंदर के हाथ उस्तरा लग चुका है और जैसा कि हम देख रहे हैं फ़िलहाल वो दूसरों को घायल कर उन्हें दुःख दे रहा है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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