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राजस्थान के छात्रों ने दिखाया गहलोत को आईना

    • रमेश सर्राफ धमोरा
    • Updated: 08 सितम्बर, 2022 08:17 PM
  • 08 सितम्बर, 2022 08:17 PM
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राजस्थान (Rajasthan) में छात्र संघ के चुनाव (Student Union Election) परिणाम सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी (Congress) और मुख्य विपक्षी दल भाजपा (BJP) दोनों के लिए ही एक चेतावनी की तरह है. सबसे अधिक चिंता तो कांग्रेस पार्टी के लिए मानी जाएगी. क्योंकि, अगले साल प्रदेश में विधानसभा चुनाव (Assembly Election) होने हैं और चुनाव में सबसे अधिक भूमिका छात्रों व युवाओं की होती है.

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी सरकार को आमजन की सरकार बताते हैं. गहलोत सरकार दावा करती है कि देश में सबसे अधिक जनहित में काम करने वाली सरकार यदि कोई है. तो, वह राजस्थान की कांग्रेस सरकार है. उनकी सरकार द्वारा जनहित में किए जा रहे कार्यों की बदौलत ही राजस्थान में अगली बार फिर से कांग्रेस पार्टी की सरकार बनेगी. इसे हम मुख्यमंत्री गहलोत का अति आत्मविश्वास ही कह सकते हैं. क्योंकि, हाल ही में राजस्थान के महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों के छात्र संघ के संपन्न हुए चुनाव तो कुछ अलग ही कहानी बयां करते हैं.

कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई ने राजस्थान की सभी कॉलेजों व विश्वविद्यालयों में छात्र संघ के चुनाव में पूरी ताकत के साथ भाग लिया था. मगर परिणाम शून्य रहा. राजस्थान में भी एक सरकारी कॉलेज में कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई का प्रत्याशी अध्यक्ष नहीं बन पाया. इतना ही नहीं, जयपुर, जोधपुर सहित प्रदेश के सभी 14 सरकारी विश्वविद्यालयों के छात्र संघ अध्यक्ष के चुनाव में भी कांग्रेस प्रत्याशी पराजित हो गए. राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर के छात्र संघ के अध्यक्ष चुनाव में एनएसयूआई की प्रत्याशी रितु बराला तीसरे नंबर पर रहीं. जबकि, राज्य सरकार में मंत्री मुरारी लाल मीणा की बेटी निहारिका जोरवाल ने एनएसयूआई से टिकट नहीं मिलने पर वो निर्दलीय चुनाव लड़कर कांग्रेस प्रत्याशी से काफी अधिक वोट लेने में सफल रहीं.

हाल ही में राजस्थान के महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों के छात्र संघ के संपन्न हुए चुनाव कुछ अलग ही कहानी बयां करते हैं.

जोधपुर विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष के चुनाव में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सुपुत्र वैभव गहलोत एनएसयूआई के प्रत्याशी को जिताने के लिए दिन रात एक किए हुए थे. इसके बावजूद भी एनएसयूआई का प्रत्याशी...

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी सरकार को आमजन की सरकार बताते हैं. गहलोत सरकार दावा करती है कि देश में सबसे अधिक जनहित में काम करने वाली सरकार यदि कोई है. तो, वह राजस्थान की कांग्रेस सरकार है. उनकी सरकार द्वारा जनहित में किए जा रहे कार्यों की बदौलत ही राजस्थान में अगली बार फिर से कांग्रेस पार्टी की सरकार बनेगी. इसे हम मुख्यमंत्री गहलोत का अति आत्मविश्वास ही कह सकते हैं. क्योंकि, हाल ही में राजस्थान के महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों के छात्र संघ के संपन्न हुए चुनाव तो कुछ अलग ही कहानी बयां करते हैं.

कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई ने राजस्थान की सभी कॉलेजों व विश्वविद्यालयों में छात्र संघ के चुनाव में पूरी ताकत के साथ भाग लिया था. मगर परिणाम शून्य रहा. राजस्थान में भी एक सरकारी कॉलेज में कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई का प्रत्याशी अध्यक्ष नहीं बन पाया. इतना ही नहीं, जयपुर, जोधपुर सहित प्रदेश के सभी 14 सरकारी विश्वविद्यालयों के छात्र संघ अध्यक्ष के चुनाव में भी कांग्रेस प्रत्याशी पराजित हो गए. राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर के छात्र संघ के अध्यक्ष चुनाव में एनएसयूआई की प्रत्याशी रितु बराला तीसरे नंबर पर रहीं. जबकि, राज्य सरकार में मंत्री मुरारी लाल मीणा की बेटी निहारिका जोरवाल ने एनएसयूआई से टिकट नहीं मिलने पर वो निर्दलीय चुनाव लड़कर कांग्रेस प्रत्याशी से काफी अधिक वोट लेने में सफल रहीं.

हाल ही में राजस्थान के महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों के छात्र संघ के संपन्न हुए चुनाव कुछ अलग ही कहानी बयां करते हैं.

जोधपुर विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष के चुनाव में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सुपुत्र वैभव गहलोत एनएसयूआई के प्रत्याशी को जिताने के लिए दिन रात एक किए हुए थे. इसके बावजूद भी एनएसयूआई का प्रत्याशी हार गया. प्रदेश के 14 सरकारी विश्वविद्यालयों में से पांच पर भाजपा के छात्र संगठन एबीवीपी, दो पर वामपंथी छात्र संगठन एसएफआई और सात पर निर्दलीय प्रत्याशी अध्यक्ष बने हैं. राजस्थान में छात्र संघ के चुनाव परिणाम सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी और मुख्य विपक्षी दल भाजपा दोनों के लिए ही एक चेतावनी की तरह हैं. सबसे अधिक चिंता तो कांग्रेस पार्टी के लिए मानी जाएगी. क्योंकि, अगले साल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं और चुनाव में सबसे अधिक भूमिका छात्रों व युवाओं की होती है.

प्रदेश में हुए छात्र संघ चुनाव में कांग्रेस पार्टी के छात्र संगठन एनएसयूआई की करारी हार ने कांग्रेस को बैकफुट पर खड़ा कर दिया है. हालांकि, विधानसभा चुनाव में छात्र संघ चुनाव की ज्यादा भूमिका नहीं रहती है. मगर विपक्ष को तो कहने को मौका मिल गया है. पांच विश्वविद्यालयों में भाजपा समर्थित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रत्याशियों की जीत ने भाजपा को उत्साहित किया है. वहीं, आधे विश्वविद्यालयों में निर्दलीय प्रत्याशियों की जीत ने सभी राजनीतिक दलों को चौंका दिया है. राजस्थान के छात्रों ने चुनाव से ठीक साल भर पहले अपना रुझान दे दिया है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से लेकर सभी बड़े मंत्रियों के इलाकों में कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई को करारी हार का सामना करना पड़ा है.

गहलोत के गृह क्षेत्र जोधपुर की जयनारायण व्यास यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में एनएसयूआई हार गई है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के गृह जिले सीकर में शेखावाटी यूनिवर्सिटी और एसके कॉलेज में एनएसयूआई एसएफआई प्रत्याशियों से बुरी तरह हारी है. प्रदेश की किसी भी बड़ी यूनिवर्सिटी में एनएसयूआई का उम्मीदवार अध्यक्ष पद पर नहीं जीता. यह हालत तब है, जब कांग्रेस के कई विधायक और मंत्री पर्दे के पीछे से एनएसयूआई प्रत्याशियों को जिताने के लिए सक्रिय थे. राजस्थान यूनिवर्सिटी जयपुर में तो राज्य मंत्री मुरारीलाल मीणा की बेटी निहारिका जोरवाल बागी होकर चुनाव लड़ रही थीं. जोधपुर में अशोक गहलोत के बेटे और आरएसीए अध्यक्ष वैभव गहलोत ने कैम्पस में जाकर प्रचार किया था. लेकिन, वहां भी एनएसयूआई की करारी हार हुई. मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र में एनएसयूआई हार गई.

एनएसयूआई प्रदेशाध्यक्ष अभिषेक चौधरी भी जोधपुर जिले के हैं. लेकिन, वे भी किसी भी प्रत्याशी को नहीं जिता सके. चार मंत्रियों और दो बोर्ड चेयरमैन वाले जिले भरतपुर में महाराजा सूरजमल यूनिवर्सिटी में एबीवीपी जीत गई. जबकि, भरतपुर जिले में महाराजा विश्वेंद्र सिंह, भजनलाल जाटव, जाहिदा खान और सुभाष गर्ग मंत्री हैं. लेकिन, कॉलेज चुनावों में किसी का भी प्रभाव काम नहीं आया. गहलोत सरकार में स्वायत शासन मंत्री शांति धारीवाल के क्षेत्र की कोटा यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में एनएसयूआई को हार का सामना करना पड़ा है. बांसवाड़ा जिले से महेंद्रजीत सिंह मालवीय और अर्जुन बामणिया मंत्री हैं. वहां भी एनएसयूआई हारी है. बीकानेर में महाराजा गंगासिंह यूनिवर्सिटी और वेटरिनरी यूनिवर्सिटी में एनएसयूआई हार गई है. जबकि, वहां से डॉ. बीडी कल्ला और भंवर सिंह भाटी मंत्री हैं.

आदिवासी इलाके डूंगरपुर, बांसवाड़ा में एनएसयूआई को करारी हार का सामना करना पड़ा है. राजस्थान यूथ कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गणेश घोघरा के निर्वाचन क्षेत्र डूंगरपुर से लेकर पूरे जिले के चारों कॉलेजों में भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के छात्र संगठन की जीत हुई है. बांसवाड़ा में गोविंद गुरु यूनिवर्सिटी और कॉलेजो में एबीवीपी ने कांग्रेस को हराया है. आदिवासी क्षेत्र में इन नतीजों ने इस इलाके के युवाओं का रुझान साफ कर दिया है. विधानसभा चुनावों में यूथ वोटर्स बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं. पिछले कई चुनावों में यूथ वोटर्स ने सरकारें बदलने में बड़ी भूमिका निभाई है. छात्रसंघ चुनावों के नतीजों ने दोनों पार्टियों को भविष्य के लिए कई संकेत दिए हैं. यह साफ हो गया है कि यूथ वोटर्स को वही अपनी तरफ कर पाया है, जिसका ग्राउंड कनेक्ट मजूबत है. यूथ आम तौर पर सत्ता विरोधी रुझान का माना जाता है. यह ट्रेंड किसी ओर भी मुड़ सकता है.

बड़े नेताओं के इलाकों में कांग्रेस के छात्र संगठन की हार ने यूथ के रुझान को जाहिर कर दिया है. अब माना जा रहा है कि सरकार यूथ वोटर्स को आकर्षित करने के लिए ज्यादा फोकस कर सकती है. राजस्थान की राजनीति में कई छात्र नेता महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहें है. राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर के छात्रसंघ अध्यक्ष रहे कालीचरण सर्राफ, राजेंद्र राठौर, राजपाल सिंह शेखावत, अशोक लाहोटी अभी भाजपा में हैं तथा विधायक व मंत्री रह चुके हैं. इसी तरह महेश जोशी, रघु शर्मा, प्रताप सिंह खाचरियावास, महेंद्र चौधरी, राजकुमार शर्मा कांग्रेस के विधायक है. इनमें महेश जोशी व प्रताप सिंह खाचरियावास तो अभी राजस्थान सरकार में कैबिनेट मंत्री भी है. रघु शर्मा गुजरात कांग्रेस के प्रभारी है. छात्रसंघ अध्यक्ष रहे हनुमान बेनीवाल अभी नागौर से सांसद हैं. ज्ञान सिंह चौधरी पूर्व में मंत्री रह चुके हैं.

वहीं, आदर्श किशोर सक्सेना छात्रसंघ अध्यक्ष बनने के बाद आईएएस बनकर वरिष्ठ अधिकारी के रूप में सेवानिवृत्त हो चुके हैं. रणवीर सिंह गुढ़ा भी विधायक रह चुके हैं. एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष अभिषेक चौधरी ने प्रदेश में हुए छात्रसंघ चुनाव के नतीजों का ठीकरा पायलट गुट के कांग्रेसियों पर फोड़ा है. उन्होंने कहा कि छात्र संघ चुनाव में एनएसयूआई की हार का कारण पार्टी के जयचंद और विभीषण हैं. अभिषेक चौधरी ने कहा कि कांग्रेस पार्टी के भीतरघात की वजह से एनएसयूआई जीत हासिल नहीं कर पाई. प्रदेश के युवा इन जयचंदों और विभीषणों को पहचान गए हैं. युवा इन्हें कभी माफ नहीं करेगा. चौधरी ने कहा कि छात्र संघ चुनाव में एनएसयूआई का प्रदर्शन बेहतरीन रहा. एनएसयूआई को कुल मतदान के 39 प्रतिशत वोट मिले. जबकि, एबीवीपी को महज 21 प्रतिशत ही वोट मिले हैं. इस लिहाज से एनएसयूआई ने एबीवीपी से दुगुने वोट प्राप्त किए हैं. कई विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में एनएसयूआई के प्रत्याशी बहुत कम अंतर से चुनाव हारे. उन्होंने कहा कि इन छात्र संघ चुनाव परिणामों से संगठन ने एक सबक लिया है. आगामी छात्र संघ चुनाव के लिए अभी से तैयारी शुरू कर दी है. हम मेहनत करेंगे और आगे बढ़ेंगे.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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