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कोविड प्रबंधन को लेकर योगी आदित्यनाथ अपनों के ही निशाने पर क्यों हैं?

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 01 मई, 2021 10:55 PM
  • 01 मई, 2021 10:55 PM
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कोविड (Covid 19) काल में काम को लेकर वाहवाही लूटने वाले योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) आखिर बीजेपी (BJP) नेताओं के ही निशाने पर क्यों आ गये हैं - कहीं नौकरशाही बनाम विधायिका की लड़ाई तो नहीं शुरू हो गयी है?

योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) पिछले साल कोविड 19 (Covid 19) टीम 11 के साथ मीटिंग कर रहे थे और तभी उनके पिता के निधन की खबर मिली. आंसू छलक आये. उसे पोंछ लिया - और फिर मीटिंग जारी रही. योगी ने पिता की अंत्येष्टि में शामिल होने की जगह सरकारी जिम्मेदारियों के निर्वहन को तरजीह दी. खुद ही बताया कि बाद में परिवार से जाकर मिलेंगे - ये कदम वाकई काबिल-ए-तारीफ था और किसी ने कोई कसर बाकी भी नहीं रखी.

टीम 11 ने 2020 में हालात को अच्छे से संभाला और प्रवासी मजदूरों को दूसरे राज्यों से बुलाकर घर तक पहुंचाने के साथ साथ कोटा में फंसे छात्रों को सुरक्षित उनके परिवार तक पहुंचाने का काम भी कोई मामूली प्रयास नहीं था. जाहिर है ये सारे काम योगी इसीलिये कर पाये क्योंकि टीम 11 मोर्चे पर डटी रही और कहीं आंच नहीं आने दिया.

साल भर बाद उसी टीम 11 पर सवाल उठने लगे. विरोधियों का तो काम ही होता है, बात बात पर पेंच फंसाना और आलोचना करना, लेकिन जब अपने राजनीतिक साथी ही शोर मचाने लगें. सवाल खड़े करने लगें - तो कोई भी दबाव में आ ही जाएगा और योगी आदित्यनाथ के साथ भी बिलकुल यही हुआ.

अपने आलोचकों के लगातार सवाल उठाने पर योगी आदित्यनाथ ने टीम 11 को छोटा कर टीम 9 कर दिया है - और अब उसमें सिर्फ नौकरशाह नहीं है, बल्कि, उनके दो कैबिनेट साथी भी शामिल कर दिये गये हैं.

तो क्या अब योगी आदित्यनाथ ने आलोचकों की जबान बंद कर दी है? हो सकता है बीजेपी (BJP) नेता योगी आदित्यनाथ के इस कदम से खामोश हो जायें, लेकिन वे लोग जिनकी बाकी बदइंतजामियों की वजह से सांसे ही खामोश हो जा रही हैं - और ऐसा सिर्फ आम लोगों के साथ नहीं ही हो रहा हो, ऐसा भी नहीं है. कोरोना संकट में बीजेपी यूपी में अपने कई मंत्री और विधायकों को भी खो चुकी है.

ऐसा लगता है जैसे योगी आदित्यनाथ जहां संभव होता है ताकत के बूते आवाज दबा देते हैं, लेकिन जहां गुंजाइश नहीं होती वहां ऐसे ही कागजी खानापूर्ति जैसे उपायों से काम चलाते हैं. योगी आदित्यनाथ की प्रशासनिक क्षमता पर सवाल तो शुरू से ही उठाये...

योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) पिछले साल कोविड 19 (Covid 19) टीम 11 के साथ मीटिंग कर रहे थे और तभी उनके पिता के निधन की खबर मिली. आंसू छलक आये. उसे पोंछ लिया - और फिर मीटिंग जारी रही. योगी ने पिता की अंत्येष्टि में शामिल होने की जगह सरकारी जिम्मेदारियों के निर्वहन को तरजीह दी. खुद ही बताया कि बाद में परिवार से जाकर मिलेंगे - ये कदम वाकई काबिल-ए-तारीफ था और किसी ने कोई कसर बाकी भी नहीं रखी.

टीम 11 ने 2020 में हालात को अच्छे से संभाला और प्रवासी मजदूरों को दूसरे राज्यों से बुलाकर घर तक पहुंचाने के साथ साथ कोटा में फंसे छात्रों को सुरक्षित उनके परिवार तक पहुंचाने का काम भी कोई मामूली प्रयास नहीं था. जाहिर है ये सारे काम योगी इसीलिये कर पाये क्योंकि टीम 11 मोर्चे पर डटी रही और कहीं आंच नहीं आने दिया.

साल भर बाद उसी टीम 11 पर सवाल उठने लगे. विरोधियों का तो काम ही होता है, बात बात पर पेंच फंसाना और आलोचना करना, लेकिन जब अपने राजनीतिक साथी ही शोर मचाने लगें. सवाल खड़े करने लगें - तो कोई भी दबाव में आ ही जाएगा और योगी आदित्यनाथ के साथ भी बिलकुल यही हुआ.

अपने आलोचकों के लगातार सवाल उठाने पर योगी आदित्यनाथ ने टीम 11 को छोटा कर टीम 9 कर दिया है - और अब उसमें सिर्फ नौकरशाह नहीं है, बल्कि, उनके दो कैबिनेट साथी भी शामिल कर दिये गये हैं.

तो क्या अब योगी आदित्यनाथ ने आलोचकों की जबान बंद कर दी है? हो सकता है बीजेपी (BJP) नेता योगी आदित्यनाथ के इस कदम से खामोश हो जायें, लेकिन वे लोग जिनकी बाकी बदइंतजामियों की वजह से सांसे ही खामोश हो जा रही हैं - और ऐसा सिर्फ आम लोगों के साथ नहीं ही हो रहा हो, ऐसा भी नहीं है. कोरोना संकट में बीजेपी यूपी में अपने कई मंत्री और विधायकों को भी खो चुकी है.

ऐसा लगता है जैसे योगी आदित्यनाथ जहां संभव होता है ताकत के बूते आवाज दबा देते हैं, लेकिन जहां गुंजाइश नहीं होती वहां ऐसे ही कागजी खानापूर्ति जैसे उपायों से काम चलाते हैं. योगी आदित्यनाथ की प्रशासनिक क्षमता पर सवाल तो शुरू से ही उठाये जाते रहे हैं - कोरोना संकट ने तो बस पर्दा हटाया है.

अपनों के भी निशाने पर योगी आदित्यनाथ

लखनऊ के जाने-माने इतिहासकार पद्मश्री डॉक्टर योगेश प्रवीण की कोविड 19 संक्रमण से हुई मौत को लेकर यूपी की स्वास्थ्य व्यवस्था की बदइंतजामियों को लेकर सवाल खड़े किये गये.

कोरोना के कहर से निबटने में नाकामी के आरोप कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की तरह ही पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी लगाये.

मामला तब गंभीर होने लगा जब यूपी सरकार के ही कानून मंत्री ब्रजेश पाठक ने अधिकारियों को लिखी एक चिट्ठी में योगेश प्रवीण को एंबुलेंस न मिल पाने का जिक्र किया. ब्रजेश पाठक का कहना रहा कि वो खुद सीएमओ से बात कर एंबुलेंस मुहैया करने को कहे थे, लेकिन घंटों बीत गये. वक्त रहते इलाज न मिलने के कारण ही योगेश प्रवीण को बचाया नहीं जा सका.

ब्रजेश पाठक ने चिट्ठी के जरिये अपनी ही सरकार में अधिकारियों की भूमिका पर सवाल खड़ा करके चेतावनी भी दे डाली कि लखनऊ की हालत कितनी खराब है और स्थिति पर जल्दी काबू नहीं पाया गया तो सब बेकाबू हो जाएगा. अपनी चिट्ठी में ब्रजेश पाठक ने लिखा कि अस्पतालों में बेड नहीं हैं, एंबुलेंस समय पर नहीं मिल पा रही है और न ही मरीज को इलाज मिल पा रहा है. समस्याओं की तरफ ध्यान आकर्षित करते हुए ब्रजेश पाठक ने कई सलाह भी दिये थे.

यूपी में बीेजेपी नेता सवाल तो नौकरशाहों के कामकाम पर रहे हैं, लेकिन टारगेट योगी आदित्यनाथ हैं

ब्रजेश पाठक की ही तरह मोहनलालगंज से सांसद कौशल किशोर, मेरठ के सांसद राजेंद्र अग्रवाल, बीजेपी विधायक दीनानाथ भास्कर, सुरेश भराला ने भी प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली पर सवाल उठाये थे. कौशल किशोर ने तो हालात नहीं सुधरने पर धरना प्रदर्शन करने तक की बात कर डाले थे.

बरेली के नवाबगंज से विधायक केसर सिंह गंगवार को भी जब लगा कि यूपी में तो मदद मिलने से रही तब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन को पत्र लिख कर अपने लिए दिल्ली के मैक्स हॉस्पिटल में बेड दिलाने की मांग की - जैसे तैसे नोएडा के एक अस्पताल में उनके लिए बेड का इंतजाम तो हुआ लेकिन जान नहीं बचायी जा सकी.

यूपी में अब तक तीन बीजेपी विधायक कोरोना वायरस के शिकार हो चुके हैं. पिता की मौत के बाद केसर सिंह के बेटे की टिप्पणी काफी चर्चित रही, 'धन्य है यूपी सरकार, धन्य हैं मोदी जी'. हालांकि, बाद में केसर सिंह का एक वीडियो भी सामने आया जिसमें मास्क नहीं लगाने को लेकर पूछे जाने पर उनका जवाब था - कोरोना खत्म हो गया, कहां है कोरोना?

पहले भी टीम 11 के हर सदस्य की मदद के लिए अफसरों की कमेटियां बनायी गयी थीं. नयी टीम 9 में भी वैसे ही इंतजाम किये गये हैं - अगर कोई प्रमुख बदलाव हुआ है तो ये है कि दो मंत्रियों को भी टीम में शामिल कर दिया गया है.

ऐसा करके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उस तोहमत से तो बच जा रहे हैं कि वो सब कुछ नौकरशाहों के भरोसे कर रहे हैं. लेकिन इसमें गलत क्या है - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी तो पिछली बार देश में कोरोना वायरस की स्थिति की निगरानी के लिए नौकरशाहों की ही टीम बनाये थे और 24 घंटे वो टीम काम करती रही - जितनी देर तक प्रधानमंत्री खुद जगे होते हर वक्त अफसरों की वो टीम उनको अपडेट करती रहती.

नयी व्यवस्था में योगी आदित्यनाथ ने चिकित्सा शिक्षा मंत्री सुरेश खन्ना और स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह को भी टीम 9 का हिस्सा बना दिया है - और उनके साथ साथ बाकी अफसरों के नीचे पहले की ही तरह अफसरों की टीमें बनायी गयी हैं. पहले की तरह ही नयी टीम के हर सदस्य की जिम्मेदारी बंटी हुई है, हां, महत्व के हिसाब से प्रमुख चीजों की जिम्मेदारी मंत्रियों को सौंपी गयी है.

सवाल उठाये जाने की बात अलग है लेकिन सच्चाई ये भी रही कि टीम 11 के कई सदस्य भी कोरोना संक्रमण के शिकार हो गये. कोरोना पॉजिटिव होने की स्थिति में वे अफसर भी होम आइसोलेशन से योगी आदित्यनाथ की ही तरह बीमारी की हालत में भी अपनी टीम से अपडेट लेते रहे और जरूरत के हिसाब से मार्गदर्शन भी देते रहे.

थोड़ा अजीब नहीं लगता कि मंत्रियों स्वास्थ्य मंत्री और चिकित्सा शिक्षा मंत्री को टीम 9 में शुमार कर देने से व्यावहारिक तौर पर क्या बदलाव होगा. कोरोना का मामला स्वास्थ्य से जुड़े होने के कारण पहले क्या ये मंत्री हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे होंगे - और अब क्या टीम में जोड़ देने से अफसरों से अलग कुछ नया कर देंगे?

तत्काल प्रभाव से टीम 9 एक्टिव तो हो गयी है, लेकिन कहीं कोई फर्क नजर आया हो ऐसा तो नहीं लगता. बाद की बात और है, लिहाजा इंतजार तो किया ही जा सकता है.

लगता तो ऐसा है कि योगी आदित्यनाथ के विरोधी जैसे पहले उनकी प्रशासनिक क्षमता पर सवाल खड़े करते थे और कहते रहे कि सब कुछ नौकरशाहों के भरोसे चल रहा है, ऐसे ही लोग नये सिरे से कोरोना वायरस के कहर के दौरान गड़बड़ियों का बहाना लेकर सवाल खड़े किये हैं.

अच्छा तो ये होता कि योगी आदित्यनाथ टीम 11 के कामकाज की समीक्षा कर उसी में फेरबदल कर बेहतर बनाते. आखिर उसी टीम ने तो पिछली बार ऐसा काम किया था जिसके चलते वाहवाही मिली थी. ये तो स्वाभाविक है कि काम ठीक हो तो तारीफ होती है और थोड़ा गड़बड़ हो तो सवाल उठते हैं - वैसे योगी आदित्यनाथ को भी ये तो समझ आ ही रहा होगा कि अफसरों का नाम लेकर उनके सारे विरोधी तो, दरअसल, खुद उनको ही टारगेट कर रहे हैं.

योगी आदित्यनाथ की प्रशासनिक क्षमता पर सवाल

योगी आदित्यनाथ के कोविड कंट्रोल टीम में बदलाव के लिए मजबूर होने की पहली वजह तो नौकरशाही और विधायिका के टकराव ही है - और दूसरी वजह वास्तव में उनके गलत फैसले हैं - और वे ही उनकी प्रशासनिक क्षमता पर सवाल भी खड़े कर रहे हैं.

लोकतंत्र में किसी भी तरह के विरोध को डंडे के बल पर नहीं दबाया जा सकता. योगी आदित्यनाथ पर ठाकुरवाद के भी आरोप लग चुके हैं. गोरखपुर के ही उनके करीबी विधायक रहे राधामोहन अग्रवाल का ऑडियो जो वायरल हुआ था, उसमें भी दबी जबान में यही बात सामने आयी थी.

जैसे अपराधियों के खिलाफ योगी आदित्यनाथ अपने पुलिस वालों की पीठ ठोक कर कहते हैं - ठोक दो, ऑक्सीजन की कमी का मुद्दा उठाने वालों के लिए भी वैसा ही फरमान जारी किया था. अस्पतालों से ऑक्सीजन की कमी की खबर तो आती लेकिन अस्पताल वालों ने सीधे तौर पर ऐसा कहने की बजाये मरीजों से ऑक्सीजन का इंतजाम खुद करने को कह दिया. वे ऐसा तो नहीं कहते कि ऑक्सीजन की कमी है, लेकिन ये नोटिस लिख कर टांग दे रहे हैं कि जब ऑक्सीजन की सप्लाई होगी तो दिया जाएगा. बताया गया कि अस्पताल वालों को कड़ा मैसेज दिया गया था कि ऑक्सीजन की कमी की बात मीडिया तक पहुंची तो उनके खिलाफ एक्शन लिया जाएगा.

योगी आदित्यनाथ चार साल से सरकार चला रहे हैं और अगले ही साल जनता के बीच हिसाब किताब के साथ जाने वाले हैं, उनको ये क्यों नहीं समझ आता कि अगर ऑक्सीजन की कमी नहीं है तो उसका अच्छे से प्रबंधन कैसे किया जाये कि जिसे जरूरत हो उसे उपलब्ध हो और बिना मतलब अफरातफरी न मचे. मुख्यमंत्री को तो ये पता लगाने की कोशिश करनी चाहिये कि कहीं ऑक्सीजन की कालाबाजारी और जमाखोरी तो नहीं हो रही. अगर ऐसा हो रहा है तो उसे ठीक करना चाहिये - लेकिन वो शिकायत करने वाले के खिलाफ एनएसए और संपत्ति सीज कर लेने के फरमान जारी कर देते हैं. ये हाल रहेगा तो प्रशासनिक क्षमता पर सवाल तो उठेंगे ही.

जैसे योगी आदित्यनाथ ने टीम 11 बनायी थी, ठीक वैसे ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी कोरोना पर काबू पाने के लिए कई उपाय किये हैं. बाकी जो इंतजाम किये वो तो किये ही, अपनी अपनी फील्ड के डॉक्टरों की भी एक विशेष टीम बनायी. इस कोविड टास्क फोर्स की भी खास बात यही रही कि इसमें 11 डॉक्टर शामिल किये गये - और मजे की बात ये है डॉक्टरों का काम पूरे वक्त सबको सही मेडिकल सलाह देना तो था ही, ये ध्यान रखना भी रहा कि ऑक्सीजन या जरूरी दवाओं का सही इस्तेमाल हो सके, न कि भागमभाग में जरूरतमंद तक पहुंचने से पहले ही स्टॉक खत्म हो जाये.

वो घटना भी यूपी की ही है जिस पर सुप्रीम कोर्ट को आदेश देना पड़ा है कि सोशल मीडिया के जरिये मदद मांगने वाले किसी व्यक्ति के खिलाफ कोई एक्शन न लिया जाये. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि कोई भी व्यक्ति सोशल मीडिया पर अपनी शिकायत दर्ज कराता है, तो उसे गलत जानकारी नहीं कहा जा सकता - कोर्ट का कहना है कि ऐसा हुआ तो उसे अदालत की अवमानना समझा जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट का ये आदेश यूपी की अमेठी पुलिस के उस एक्शन के बाद आया है जिसमें अपने बीमार नाना की मदद के लिए ट्वीट करने पर शशांक यादव नाम के युवक के खिलाफ महामारी एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया था. शशांक यादव ने ट्वीट कर अपने नाना के लिए ऑक्सीजन की गुहार लगायी थी. कुछ लोगों ने शशांक के ट्वीट को अमेठी की सांसद और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को टैग करते हुए रीट्वीट कर दिया - फिर तो प्रशासन को हरकत में आना ही था.

अमेठी पुलिस ने जांच पड़ताल के बाद शशांक यादव को पकड़ लिया. पुलिस के मुताबिक, शशांक के नाना कोरोना पॉजिटिव भी नहीं थे और उनकी हार्ट अटैक से मौत हुई थी - ऐसे में ऑक्सीजन की कोई जरूरत नहीं थी. हालांकि, शशांक यादव को पुलिस ने चेतावनी देकर छोड़ भी दिया.

हाल तो ये है कि योगी आदित्यनाथ एक कदम आगे बढ़ाते हैं और फिर दो कदम पीछे चले जाते हैं - इलाहाबाद हाई कोर्ट ने योगी सरकार को यूपी के पांच शहरों में लॉकडाउन लगाने का आदेश दिया था, लेकिन वो नहीं माना गया और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी. कोर्ट ने स्टे ऑर्डर भी दे दिया. बाद की एक सुनवाई में जज ने हाथ जोड़ कर कहा था कि हालात को देखते हुए लॉकडाउन लागू कर लीजिये.

पहले नाइट कर्फ्यू लागू हुआ. फिर वीकेंड कर्फ्यू लागू किया गया - दो दिन का. अब जाकर तीन दिन के लिए लॉकडाउन का आदेश जारी हुआ है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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