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यूपी निकाय चुनाव : योगी की अग्निपरीक्षा और बीजेपी के 2019 के एजेंडे की प्रयोगशाला

    • आईचौक
    • Updated: 10 नवम्बर, 2017 05:06 PM
  • 10 नवम्बर, 2017 05:06 PM
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योगी आदित्यनाथ को बीजेपी केरल से लेकर हिमाचल तक हिंदुत्व के पोस्टर बॉय के तौर पर पेश कर चुकी है, लेकिन उनका असली इम्तिहान यूपी में होना है और खासतौर पर खुद उनके शहर गोरखपुर में...

गुजरात और हिमाचल प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के प्रचार का कितना असर हुआ बाद में पता चलेगा, उससे पहले ही यूपी का हाल मालूम हो जाएगा. असल में, यूपी नगर निकाय चुनावों के नतीजे एक दिसंबर को ही आ जाएंगे जबकि गुजरात और हिमाचल के 18 दिसंबर को. बीजेपी के चुनाव अभियान के तहत योगी गुजरात और हिमाचल दोनों का दौरा कर चुके हैं.

यूपी निकाय चुनाव के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का अभियान अयोध्या से शुरू होने जा रहा है. कुर्सी संभालने के बाद योगी के लगातार दौरे तो संकेत दे ही रहे थे, अयोध्या में दिवाली मनाकर ये संकेत भी दे दिये कि आगे का एजेंडा क्या रहने वाला है.

अयोध्या से शुरुआत

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार योगी आदित्यनाथ निकाय चुनाव के लिए प्रचार अभियान की शुरुआत पहले मुजफ्फरनगर से करने वाले थे. बाद में इसमें बदलाव कर अयोध्या को फाइनल किया गया. अब 14 नवंबर को वो अयोध्या से इसकी शुरुआत करेंगे. अयोध्या के अलावा उसी दिन वो गोंडा और बहराइच में भी चुनावी सभाएं संबोधित करेंगे. 15 नवंबर को कानपुर का कार्यक्रम तय किया गया है. निकाय चुनावों में योगी ही सुपरस्टार कैंपेनर हैं जैसे विधानसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रहे. ऐसे में योगी के सभी 16 नगर पालिकाओं में चुनाव प्रचार की अपेक्षा है. योगी के अलावा बीजेपी के सांसद और विधायक अपने अपने इलाके में उम्मीदवारों के लिए प्रचार करेंगे.

सबका साथ, सबका विकास और...

बीजेपी नेता तो बता तो रहे हैं कि अयोध्या के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए ये फैसला लिया गया है, लेकिन पार्टी का हिंदुत्व एजेंडा इससे ज्यादा साफ हो रहा है. माना जा रहा है कि अयोध्या में दिवाली पर बीजेपी को मिले पब्लिक सपोर्ट से पार्टी बेहद उत्साहित है. यही वजह है कि बाकी जगहों से ज्यादा जोर अयोध्या पर है ताकि...

गुजरात और हिमाचल प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के प्रचार का कितना असर हुआ बाद में पता चलेगा, उससे पहले ही यूपी का हाल मालूम हो जाएगा. असल में, यूपी नगर निकाय चुनावों के नतीजे एक दिसंबर को ही आ जाएंगे जबकि गुजरात और हिमाचल के 18 दिसंबर को. बीजेपी के चुनाव अभियान के तहत योगी गुजरात और हिमाचल दोनों का दौरा कर चुके हैं.

यूपी निकाय चुनाव के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का अभियान अयोध्या से शुरू होने जा रहा है. कुर्सी संभालने के बाद योगी के लगातार दौरे तो संकेत दे ही रहे थे, अयोध्या में दिवाली मनाकर ये संकेत भी दे दिये कि आगे का एजेंडा क्या रहने वाला है.

अयोध्या से शुरुआत

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार योगी आदित्यनाथ निकाय चुनाव के लिए प्रचार अभियान की शुरुआत पहले मुजफ्फरनगर से करने वाले थे. बाद में इसमें बदलाव कर अयोध्या को फाइनल किया गया. अब 14 नवंबर को वो अयोध्या से इसकी शुरुआत करेंगे. अयोध्या के अलावा उसी दिन वो गोंडा और बहराइच में भी चुनावी सभाएं संबोधित करेंगे. 15 नवंबर को कानपुर का कार्यक्रम तय किया गया है. निकाय चुनावों में योगी ही सुपरस्टार कैंपेनर हैं जैसे विधानसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रहे. ऐसे में योगी के सभी 16 नगर पालिकाओं में चुनाव प्रचार की अपेक्षा है. योगी के अलावा बीजेपी के सांसद और विधायक अपने अपने इलाके में उम्मीदवारों के लिए प्रचार करेंगे.

सबका साथ, सबका विकास और...

बीजेपी नेता तो बता तो रहे हैं कि अयोध्या के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए ये फैसला लिया गया है, लेकिन पार्टी का हिंदुत्व एजेंडा इससे ज्यादा साफ हो रहा है. माना जा रहा है कि अयोध्या में दिवाली पर बीजेपी को मिले पब्लिक सपोर्ट से पार्टी बेहद उत्साहित है. यही वजह है कि बाकी जगहों से ज्यादा जोर अयोध्या पर है ताकि ज्यादा से ज्यादा सीटें जीती जा सकें.

फिर सबका साथ...

यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजों से ये तो साफ हो गया था कि लोगों ने नोटबंदी का सपोर्ट किया था, लेकिन जीएसटी को लेकर लगता है बीजेपी में संशय बरकरार है. गुजरात से भी जीएसटी को लेकर व्यापारी तबके में असंतोष की खबरें आ रही हैं. यूपी निकाय चुनाव में बीजेपी ने जिस हिसाब से टिकट दिया है उससे लगता तो ऐसा ही है कि बीजेपी कारोबारी तबके को साधने की कोशिश कर रही है. बीजेपी पहले तो बनिया और ब्राह्मणों की ही पार्टी कही जाती रही, बाद में उसके कट्टर हिंदुत्व के एजेंडे के कारण दूसरी जातियों का भी सपोर्ट मिलने लगा. एक बात और चर्चा में है - योगी के कुर्सी संभालने के बाद से ब्राह्मणों में एक मैसेज ये भी गया है कि इन दिनों उनकी पूछ घट गयी है. असल में, योगी आदित्यनाथ खुद ठाकुर हैं. निकाय चुनाव के लिए मेयर के प्रत्याशियों पर गौर करें तो बनिया और ब्राह्मण की संख्या खासी नजर आ रही है. हालांकि, टिकट पाने वालों में बीजेपी नेताओें के रिश्तेदारों को खास तरजीह मिली है.

लखनऊ, वाराणसी, झांसी, मुरादाबाद, गोरखपुर, आगरा, इलाहाबाद और अलीगढ़ के मेयर प्रत्याशी कारोबारी तबके से हैं, जबकि अयोध्या, फैजाबाद, कानपुर और गाजियाबाद से ब्राह्मणों को टिकट मिला हुआ है.

मुस्लिम समुदाय के प्रति भी बीजेपी का बदला नजरिया दिख रहा है. यूपी विधानसभा चुनावों में बीजेपी की ओर से कोई भी मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में नहीं था, लेकिन निकाय चुनाव के लिए काफी मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट मिला है.

अयोध्या के जरिये बीजेपी जो मैसेज देने की कोशिश कर रही है उसके हिसाब से मुस्लिमों को टिकट देने का फैसला उसके रणनीतिक बदलाव की ओर इशारा करता है. वैसे बीजेपी ने पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में भी कई मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे थे लेकिन कामयाबी नहीं मिली. यूपी में कितने मुस्लिम प्रत्याशी जीत पाते हैं, उससे पार्टी की इस रणनीति का भी टेस्ट हो जाएगा.

योगी आदित्यनाथ को बीजेपी कहीं पोस्टर बॉय तो कहीं स्टार कैंपेनर के रूप में पेश कर रही है और यही वजह है कि यूपी के निकाय चुनाव योगी के लिए अग्नि परीक्षा के रूप में लिये जा रहे हैं. इसके साथ ही एक बात और भी साफ हो जा रही है कि ये चुनाव बीजेपी के 2019 के एजेंडे की प्रयोगशाला भी साबित हो रहा है और बीजेपी उसी हिसाब से सारे एक्सपेरिमेंट भी कर रही है. ताज महल को लेकर पहले बयानबाजी और फिर डैमेज कंट्रोल के लिए योगी का खुद आगरा जाना भी इन्हीं रणनीतियों का हिस्सा नहीं तो क्या है?

आम चुनाव से लेकर निकाय चुनाव तक सभी में समीकरण और मुद्दे बदल जाते हैं. वैसे तो पूरे उत्तर प्रदेश में बीजेपी का प्रदर्शन योगी आदित्यनाथ की साख से जुड़ा है, लेकिन असली इम्तिहान तो गोरखपुर में होना है. गोरखपुर अस्पताल में योगी और उनके मंत्रियों ने जो रवैया अपनाया उसे लोगों ने किस तरीके से लिया चुनाव नतीजों से साफ हो जाएगा.

वैसे निकाय चुनाव से बीजेपी को ये भी मालूम हो जाएगा कि योगी टीम के खिलाड़ी के रूप में ही अच्छे परफॉर्मर हैं या फिर बतौर कप्तान भी मैच जिताऊ साबित हो रहे हैं?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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