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कश्मीर में बयार बदली तो है - देखें कहां तक खुशनुमा होती है...

    • आईचौक
    • Updated: 09 सितम्बर, 2017 03:04 PM
  • 09 सितम्बर, 2017 03:04 PM
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केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह पहले ही अपना इरादा जता चुके हैं - जाहिर है बातचीत तभी हो पाएगी जब दूसरा पक्ष भी खुले दिमाग से आगे आये. कांग्रेस ने भी कश्मीर पॉलिसी ग्रुप बनाने के बाद आगे बढ़ रही है. अब तक इससे कोई बेअसर है तो वो हैं - फारूक अब्दुल्ला.

कश्मीर में बयार तो बदली है. ये उस बयार का ही असर है कि पाकिस्तान को भी अक्ल आने लगी है. वरना, अब तक किस फौजी को ये कहते सुना गया है कि कश्मीर का राजनीतिक हल ढूंढा जाना चाहिये. तो क्या ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि पाकिस्तान धीरे धीरे घिरता जा रहा है?

केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह कह चुके हैं कि वो खुले दिमाग से कश्मीर जा रहे हैं - और कोई भी उनसे बात कर सकता है. जाहिर है बातचीत तभी हो पाएगी जब दूसरा पक्ष भी खुले दिमाग से आगे आये. शायद ये बदली हुई बयार का ही नतीजा है कि कांग्रेस ने भी कश्मीर पॉलिसी ग्रुप बनाने के बाद आगे बढ़ रही है. अब तक इस बयार से कोई बेअसर है तो वो हैं - फारूक अब्दुल्ला.

एक मिसाल भी काफी है

बकरीद के दूसरे दिन रविवार था. बड़गाम इलाके में सेना की एक गाड़ी दुर्घटना का शिकार हो गयी. चेक-ए-फारो गांव के नौजवानों को जब पता चला तो मदद के लिए जा पहुंचे. ये वाकई एक मिसाल था. अब तक तो यही देखने को मिलता रहा कि हथियारबंद जवानों को या तो परेशान किया जाता रहा या फिर उन पर पत्थर फेंके जाते रहे.

देखते देखते ये वीडियो वायरल हो गया. इस वाकये की सेना और कश्मीर के नेताओं ने भी जी खोल कर तारीफ की. सच में ये कश्मीरियत और इंसानियत की मिसाल है.

पहली बार पाकिस्तान ने बदला स्टैंड

ऐसा पहली बार हुआ है कि पाकिस्तान ने कबूल किया है कि जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे दहशतगर्दी संगठन उसके यहां एक्टिव हैं. मजबूरन पाक विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ को इंटरव्यू में कहना पड़ा है कि अगर पाकिस्तान को शर्मिंदगी से बचना है तो ऐसी तंजीमों पर पाबंदी लगानी ही होगी.

अब समझ में आया...

कश्मीर में बयार तो बदली है. ये उस बयार का ही असर है कि पाकिस्तान को भी अक्ल आने लगी है. वरना, अब तक किस फौजी को ये कहते सुना गया है कि कश्मीर का राजनीतिक हल ढूंढा जाना चाहिये. तो क्या ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि पाकिस्तान धीरे धीरे घिरता जा रहा है?

केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह कह चुके हैं कि वो खुले दिमाग से कश्मीर जा रहे हैं - और कोई भी उनसे बात कर सकता है. जाहिर है बातचीत तभी हो पाएगी जब दूसरा पक्ष भी खुले दिमाग से आगे आये. शायद ये बदली हुई बयार का ही नतीजा है कि कांग्रेस ने भी कश्मीर पॉलिसी ग्रुप बनाने के बाद आगे बढ़ रही है. अब तक इस बयार से कोई बेअसर है तो वो हैं - फारूक अब्दुल्ला.

एक मिसाल भी काफी है

बकरीद के दूसरे दिन रविवार था. बड़गाम इलाके में सेना की एक गाड़ी दुर्घटना का शिकार हो गयी. चेक-ए-फारो गांव के नौजवानों को जब पता चला तो मदद के लिए जा पहुंचे. ये वाकई एक मिसाल था. अब तक तो यही देखने को मिलता रहा कि हथियारबंद जवानों को या तो परेशान किया जाता रहा या फिर उन पर पत्थर फेंके जाते रहे.

देखते देखते ये वीडियो वायरल हो गया. इस वाकये की सेना और कश्मीर के नेताओं ने भी जी खोल कर तारीफ की. सच में ये कश्मीरियत और इंसानियत की मिसाल है.

पहली बार पाकिस्तान ने बदला स्टैंड

ऐसा पहली बार हुआ है कि पाकिस्तान ने कबूल किया है कि जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे दहशतगर्दी संगठन उसके यहां एक्टिव हैं. मजबूरन पाक विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ को इंटरव्यू में कहना पड़ा है कि अगर पाकिस्तान को शर्मिंदगी से बचना है तो ऐसी तंजीमों पर पाबंदी लगानी ही होगी.

अब समझ में आया फौज के वश की बात नहीं...

अब तक पाकिस्तान ऐसी बातों से साफ मुकरता रहा है. पाकिस्तान का ये बदला स्टैंड ब्रिक्स सम्मेलन की बड़ी उपलब्धि है. पाक आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा का ताजा बयान भी उसी की अगली कड़ी है.

अपने ताजा बयान में जनरल बाजवा ने कहा, "हमने आतंकवाद, अतिवाद और आर्थिक नुकसान के रूप में सुपर शक्तियों द्वारा शुरू की गई युद्धों की कीमत चुकाई है. हम अपनी नीति का पालन कर रहे हैं कि हम किसी भी देश के खिलाफ अपनी मिट्टी का इस्तेमाल नहीं करने देंगे, और अन्य देशों से भी हम यही आशा रखते हैं."

न गाली, न गोली - अब तो बस गले लगा लो

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर समस्या के बारे में कहा था कि उसे न तो गोली से न गाली बल्कि गले लगाकर ही सुलझाया जा सकता है. प्रधानमंत्री की ही बात को आगे बढ़ाते हुए गृह मंत्री राजनाथ सिंह रवाना होने से पहले ही कह चुके हैं कि वो खुले दिमाग से जा रहे हैं और कश्मीर की समस्याओं का समाधान चाहते हैं. वैसे श्रीनगर में राजनाथ सिंह की रैली भी होने वाली थी, लेकिन उसे टाल दिया गया. रैली की तैयारियां काफी जोर शोर से चल रही थीं.

राजनाथ अपने कश्मीर दौरे में अनंतनाग, जम्मू और राजौरी भी जाएंगे. वो मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और गवर्नर एनएन वोहरा से अलग अलग मुलाकात और सुरक्षा एजेंसियों के अफसरों से मुलाकात कर हालात का जायजा भी लेंगे. राजनाथ सिंह की यात्रा ऐसे वक्त हो रही है जब टेरर फंडिंग को लेकर कई अलगाववादी नेता राष्ट्रीय जांच एजेंसी के शिकंजे में हैं.

और कोई तो नहीं लेकिन जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला अलगाववादी नेताओं को छोड़ने की मांग कर रहे हैं. फारूक अब्दुल्ला कुछ ऐसे समझा रहे हैं कि अलगाववादी अगर जेल में रहेंगे तो खुले दिल से बात भला किससे होगी? एक अरसे से फारूक अब्दुल्ला न सिर्फ अलगाववादियों को खुला सपोर्ट कर रहे हैं बल्कि उन्हीं की तरह बात भी कर रहे हैं.

अलगाववादियों के हमदर्द...

कश्मीर को लेकर एक ही मुद्दा ऐसा है जिस पर पीडीपी नेता भी फारूक अब्दुल्ला के साथ हो जाते हैं - धारा 35 A. ये मामला भी सुप्रीम कोर्ट में है और नेशनल कांफ्रेंस कश्मीर के लोगों को ये समझाने की कोशिश कर रहा है कि केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी कानूनी रास्ते से इसे खत्म कर सकती है. महबूबा मुफ्ती पर भी इसका इतना असर है कि वो फारूक अब्दुल्ला से मिलने जा पहुंचीं और उन्हें पिता तुल्य भी बताया.

राजनाथ के दौरे में महबूबा इस मसले पर केंद्र सरकार की ओर से कोई ठोस आश्वासन चाहेंगी. श्रीनगर रैली के बारे में भी चर्चा रही कि केंद्र की ओर से लोगों को ऐसा ही कोई मैसेज दिया जाएगा.

आओ सबको गले लगाएं...

पिछले साल भी सितंबर का ही महीना था जब केंद्र की ओर से एक प्रतिनिधिमंडल जम्मू कश्मीर गया था. तब अलगाववादियों ने प्रतिनिधिमंडल के नेताओं को दरवाजे से ही बैरंग लौटा दिया था. इस बार कांग्रेस भी नये सिरे से पहल कर रही है. कांग्रेस की ओर से कश्मीर पॉलिसी ग्रुप बनाया गया है और इसकी अगुवाई पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कर रहे हैं - और वो भी कश्मीर दौरे पर जाने वाले हैं. राजनाथ सिंह और मनमोहन सिंह के दौरे में कुछ दिन ऐसे भी कॉमन होंगे जब दोनों एक साथ कश्मीर में होंगे. कांग्रेस के इस पॉलिसी ग्रुप के मुख्य आर्किटेक्ट तारिक हमीद कर्रा बताये जा रहे हैं जो पहले महबूबा की पार्टी पीडीपी के नेता रहे हैं.

सर्दियां आने वाली हैं. फिर भी लगता है घाटी में बर्फ पिघलने लगी है. ये बर्फ वहां अमन चैन और कश्मीरियत पर चढ़ गयी थी. क्या ये सब अपनेआप हो रहा है? जैसे भी हो अगर कश्मीर में भी अच्छे दिन आ जाते हैं तो समझा जाएगा पूरे मुल्क में आ गये. कश्मीर में बयार बदली तो है - देखें कहां तक खुशनुमा होती है?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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