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देवरिया-दिल्ली रूट पर राहुल का जंक्शन बनेगा लखनऊ या महज हाल्ट

    • आईचौक
    • Updated: 29 सितम्बर, 2016 05:16 PM
  • 29 सितम्बर, 2016 05:16 PM
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यूपी में दलित-मुस्लिम का गठजोड़ करने के साथ ही ब्राह्मण वोटों को अपने पक्ष में करने की लड़ाई चल रही है. इस बात को सबसे पहले समझा बीएसपी और कांग्रेस ने.

25 हजार किलोमीटर के सफर में राहुल गांधी को ब्रेक लेना पड़ा. असल में, आरएसएस की मानहानि से जुड़े एक मामले में उन्हें गुवाहाटी कोर्ट में पेश होना था.

27 साल यूपी बेहाल के नारे के साथ देवरिया से निकले राहुल गांधी का सफर लखनऊ के करीब पहुंचने वाला है. राहुल की रैली सीरीज का फाइनल लखनऊ में हो या दिल्ली - अभी साफ नहीं हो सका है.

किसान संवाद

रायबरेली के एक डिग्री कॉलेज में आयोजित उस खाट सभा में किसान राहुल गांधी का इंतजार कर रहे थे. करीब ढाई घंटे देर से राहुल गांधी पहुंचे और सपाट भाषण की बजाये संवाद के अंदाज में सवाल पूछा, "आपके ऊपर कर्ज कितना है?"

जिस किसान से जवाब अपेक्षित था वो बोला, "एक लाख रुपये."

फिर राहुल ने अगला सवाल किया, शायद इस उम्मीद के साथ कि जवाब हां में आएगा, "क्या आप चाहते हैं कि कर्ज माफ हो?" सोचा हुआ कम ही होता है, यहां भी ऐसा ही हुआ.

किसान का जवाब था, "नहीं". हर कोई सकते में था, लेकिन किसान अपनी बात पर कायम रहा और आगे कहा, "हमें सुविधाएं दे दी जाएं हम कमाकर लोन चुका देंगे. हम नहीं चाहते कि कर्ज माफ हो, हमें खेती की सुविधाएं चाहिये."

इसे भी पढ़ें: अयोध्या यात्रा से राहुल गांधी को क्या मिलेगा?

राहुल गांधी ही नहीं किसी के लिए भी ऐसी अजीब स्थिति को हैंडल करना मुश्किल हो सकता है. फिर भी राहुल गांधी कोशिश करते हैं और स्थिति को संभालते हैं. अगले सवाल में वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बीच में लाते हैं - और फिर माहौल को अपने अनुकूल कर लेते हैं.

यात्रा के दौरान राहुल गांधी बताते भी हैं कि किस तरह 2008 में उन्होंने किसानों का कर्ज माफ किया था. ऐसा करके वो भविष्य के वादे को पुरानी बातों से सपोर्ट करने की कोशिश करते हैं. लेकिन लोगों को ये भी याद दिलाने की...

25 हजार किलोमीटर के सफर में राहुल गांधी को ब्रेक लेना पड़ा. असल में, आरएसएस की मानहानि से जुड़े एक मामले में उन्हें गुवाहाटी कोर्ट में पेश होना था.

27 साल यूपी बेहाल के नारे के साथ देवरिया से निकले राहुल गांधी का सफर लखनऊ के करीब पहुंचने वाला है. राहुल की रैली सीरीज का फाइनल लखनऊ में हो या दिल्ली - अभी साफ नहीं हो सका है.

किसान संवाद

रायबरेली के एक डिग्री कॉलेज में आयोजित उस खाट सभा में किसान राहुल गांधी का इंतजार कर रहे थे. करीब ढाई घंटे देर से राहुल गांधी पहुंचे और सपाट भाषण की बजाये संवाद के अंदाज में सवाल पूछा, "आपके ऊपर कर्ज कितना है?"

जिस किसान से जवाब अपेक्षित था वो बोला, "एक लाख रुपये."

फिर राहुल ने अगला सवाल किया, शायद इस उम्मीद के साथ कि जवाब हां में आएगा, "क्या आप चाहते हैं कि कर्ज माफ हो?" सोचा हुआ कम ही होता है, यहां भी ऐसा ही हुआ.

किसान का जवाब था, "नहीं". हर कोई सकते में था, लेकिन किसान अपनी बात पर कायम रहा और आगे कहा, "हमें सुविधाएं दे दी जाएं हम कमाकर लोन चुका देंगे. हम नहीं चाहते कि कर्ज माफ हो, हमें खेती की सुविधाएं चाहिये."

इसे भी पढ़ें: अयोध्या यात्रा से राहुल गांधी को क्या मिलेगा?

राहुल गांधी ही नहीं किसी के लिए भी ऐसी अजीब स्थिति को हैंडल करना मुश्किल हो सकता है. फिर भी राहुल गांधी कोशिश करते हैं और स्थिति को संभालते हैं. अगले सवाल में वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बीच में लाते हैं - और फिर माहौल को अपने अनुकूल कर लेते हैं.

यात्रा के दौरान राहुल गांधी बताते भी हैं कि किस तरह 2008 में उन्होंने किसानों का कर्ज माफ किया था. ऐसा करके वो भविष्य के वादे को पुरानी बातों से सपोर्ट करने की कोशिश करते हैं. लेकिन लोगों को ये भी याद दिलाने की कोशिश होती है कि मोदी के 15 लाख के जुमले और कांग्रेस के वादे में बड़ा फर्क है. कांग्रेस कार्यकर्ता इसके लिए तरह तरह की तरकीबें भी अपनाते हैं. मसलन, फेक चेक बांटा जाना.

पहली बार एक सभा में ऐसा चेक देख कर लोग हैरान हो गये. चेक पर बैंक का नाम लिखा था - कंगाल बैंक इंटरनेशनल जिसे भारतीय जुमला पार्टी की ओर से जारी किया हुआ दिखाया गया. चेक का नंबर 420 दिया गया और तारीख रही - 32/13/5015.

राहुल की रैली में चाहे जूता चले चाहे माला पहनाने को लेकर कार्यकर्ता एसपीजी से भिड़ पड़ें - कई बार उन्हें खुद आगे आकर सिचुएशन संभालनी पड़ती है.

किसान मैनिफेस्टो

राहुल गांधी की यात्रा में उन किसानों को खास तौर पर बुलाया जाता है जो कर्ज में डूबे हुए हैं. जिस घर में वो पहली बार खाने के लिए गए उसके बारे में भी उधार लेकर खिलाने की खबर आई थी.

बिजली बिल हाफ, कर्ज पूरा माफ...

यात्रा की शुरुआत में ही राहुल एक ऐसे किसान के घर पहुंचे थे जिसका 10 हजार का बिजली बिल बकाया था. राहुल ने उसे भरोसा दिलाया, "अगर यूपी में कांग्रेस की सरकार बनती है तो बकाया माफ कर दिया जाएगा."

राहुल गांधी के साथ कार्यकर्ताओं की एक प्रशिक्षित टीम भी चलती है जिनके पासकिसान मांग पत्र, मोबाइल और दीवार पर लगाने वाले स्टिकर होते हैं. ये लोग किसानों से मांग पत्र भरवाते हैं - कई बार राहुल गांधी खुद भी अपने हाथों से ये काम करते हैं. जब किसान मांग पत्र भर लेते हैं तो उसे संभाल कर रखने को कहा जाता है.

मुफ्त के वादे

मुफ्त वाले वादे बड़े कारगर होते हैं. तमिलनाडु में जयललिता बरसों से ऐसे एक्सपेरिमेंट करती आई हैं. इस साल तो जयललिता के साथ साथ बंगाल में ममता बनर्जी ने भी ये नुस्खा अपनाया और उन्हें फायदा भी मिला. 2012 में अखिलेश यादव ने मुफ्त में लैपटॉप देने का वादा किया था - इस बार उन्होंने मुफ्त स्मार्टफोन देने की बात कही है.

आगे का तो नहीं पता, फिलहाल कांग्रेस किसानों से ऐसे ही वादे कर रही है. राहुल गांधी खुद कहते हैं, "कांग्रेस की सरकार बनी तो बिजली बिल हाफ होगा और किसानों का कर्जा माफ़ होगा."

केंद्र में 2009 में यूपीए की वापसी मनरेगा की बड़ी भूमिका मानी गयी थी. इस मुद्दे पर भी राहुल मोदी सरकार को घेरते हैं, “27 सालों में यूपी में सरकारों ने लोगों का विश्वास तोड़ा है. ब्राजील के राष्ट्रपति ने मनरेगा की तारीफ की. विदेशों तक में मनरेगा की चर्चा थी. हमने मनरेगा कमजोर और गरीब के भले के लिए चलाई, लेकिन मौजूदा केंद्र सरकार आहिस्ता-आहिस्ता मनरेगा का गला घोंट रही है.”

मोदी सरकार पर हमले के साथ साथ राहुल बारी बारी से समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को भी निशाना बनाते हैं.

इसे भी पढ़ें: सिर्फ खाट नहीं बल्कि कांग्रेस की बची-खुची साख लुटी है!

समाजवादी पार्टी को टारगेट करने का राहुल का अंदाज कुछ ऐसा होता है, “यूपी में साइकिल पंक्चर हो गई है. साढ़े चार साल में जब अखिलेश साइकिल की मरम्मत करने निकले तो टायर ही फेंक दिया, लेकिन मुलायम सिंह ने फिर से टायर जोड़ दिया." राहुल की ये टिप्पणी अखिलेश यादव द्वारा बर्खास्त मंत्री की मुलायम सिंह यादव द्वारा बहाली से जोड़ कर देखी गयी.

अखिलेश और मुलायम की ही तरह राहुल गांधी अपनी सभाओं में मायावती को भी टारगेट करते हैं - लेकिन नाम लेने से बचते हैं, “यूपी में एक हाथी है जो स्कूल, सड़क, एनआरएचएम सब खा जाता है.”

सूबे में चौथे नंबर की पार्टी के लिए सत्ता की सीढ़ी नामुमकिन जैसी है ये बात राहुल गांधी को भी समझ आ रही होगी और प्रशांत किशोर को भी. इसीलिए किंगमेकर बनने पर ज्यादा फोकस नजर आता है.

यूपी में दलित-मुस्लिम का गठजोड़ करने के साथ ही ब्राह्मण वोटों को अपने पक्ष में करने की लड़ाई चल रही है. इस बात को सबसे पहले समझा बीएसपी और कांग्रेस ने. बाद में समाजवादी पार्टी भी इन वोटों पर अपने तरीके से काम करने लगी. बीजेपी भी अब प्रगतिशील पंचायत के जरिये मुस्लिम समुदाय के करीब पहुंचने की कोशिश में है.

ब्रेक के बाद राहुल की यात्रा फिर चालू होगी और 5 अक्टूबर को खत्म होगी. 6 अक्टूबर को कांग्रेस की ओर से मेगा रैली की तैयारी है जिसमें किसानों को सरकार बनने पर 10 दिन में कर्ज माफ करने का वादा किया जा सकता है. सवाल ये है कि सरकार कहां लखनऊ में या दिल्ली में?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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