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बसपा की सल्‍तनत संभालने के लिए मायावती ने ढूंढा उत्‍तराधिकारी !

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 14 अप्रिल, 2017 11:04 PM
  • 14 अप्रिल, 2017 11:04 PM
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मायावती ने अपने भाई आनंद कुमार को बीएसपी में उपाध्यक्ष बनाया है. उनका कहना है कि भाई को बीएसपी में वो सशर्त लाई हैं - वो न तो सांसद-विधायक बनेंगे, न ही कभी मुख्यमंत्री.

बीएसपी नेता मायावती ने यूपी में संभावित महागठबंधन के लिए 'हां' कर दी है. साथ ही, अपने भाई को बीएसपी में शामिल किया है जिसके पीछे उन्हें उत्तराधिकारी बनाना या और कोई मकसद है, तस्वीर अभी साफ नहीं है. लेकिन मायावती अपने लिखे हुए भाषण पढ़ने पर सफाई क्यों पेश की है, समझ से परे हैं.

क्या कमजोर पड़ीं मायावती?

कांग्रेस तो यूपी चुनाव से पहले ही यूपी में भी बिहार जैसा गठबंधन चाहती थी, लेकिन अपनी जीत के प्रति अति आश्वस्त मायावती ने जरा भी तवज्जो नहीं दी. यूपी चुनाव के नतीजों के बाद समझा गया कि समाजवादी पार्टी और बीएसपी के साथ आने पर बिहार के महागठबंधन जैसी स्थिति और फिर नतीजे हो सकते थे.

बीएसपी नेता मायावती के ऐलान के बाद महागठबंधन का रास्ता साफ हो गया है. ये महागठबंधन खासतौर पर यूपी के लिए हो सकता है - और बीजेपी के खिलाफ पूरे देश में भी. नीतीश कुमार और ममता बनर्जी के अलावा शरद पवार इस मुहिम में जोर शोर से जुटे हुए हैं.

भाई का भविष्य?

यूपी में एग्जिट पोल के बाद ही अखिलेश यादव ने मायावती के साथ हाथ मिलाने की बात कह दी थी, लेकिन बीएसपी नेता की ओर से अब तक कोई ग्रीन सिग्नल नहीं मिला था. वैसे भी मायावती को गेस्ट हाउस कांड के चलते दिक्कत मुलायम सिंह यादव से ही ज्यादा थी अखिलेश से नहीं.

2012, 2014 और फिर 2017 में बीएसपी की लगातार हार ने निश्चित रूप से मायावती को झकझोर दिया होगा. इसके अलावा यूपी चुनाव के दौरान स्वामी प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक जैसे मायावती के भरोसेमंद सहयोगी बीएसपी छोड़ कर चले गये. मायावती के एक अन्य सहयोगी उनके पूर्व ओएसडी के साथ मिल कर एक मंच की भी तैयारी में हैं जो बीएसपी के ओरिजिनल स्वरूप को लेकर फिर से आगे बढ़े - और समान विचार वाले नेताओं को साथ लेकर चल सके.

मौजूदा...

बीएसपी नेता मायावती ने यूपी में संभावित महागठबंधन के लिए 'हां' कर दी है. साथ ही, अपने भाई को बीएसपी में शामिल किया है जिसके पीछे उन्हें उत्तराधिकारी बनाना या और कोई मकसद है, तस्वीर अभी साफ नहीं है. लेकिन मायावती अपने लिखे हुए भाषण पढ़ने पर सफाई क्यों पेश की है, समझ से परे हैं.

क्या कमजोर पड़ीं मायावती?

कांग्रेस तो यूपी चुनाव से पहले ही यूपी में भी बिहार जैसा गठबंधन चाहती थी, लेकिन अपनी जीत के प्रति अति आश्वस्त मायावती ने जरा भी तवज्जो नहीं दी. यूपी चुनाव के नतीजों के बाद समझा गया कि समाजवादी पार्टी और बीएसपी के साथ आने पर बिहार के महागठबंधन जैसी स्थिति और फिर नतीजे हो सकते थे.

बीएसपी नेता मायावती के ऐलान के बाद महागठबंधन का रास्ता साफ हो गया है. ये महागठबंधन खासतौर पर यूपी के लिए हो सकता है - और बीजेपी के खिलाफ पूरे देश में भी. नीतीश कुमार और ममता बनर्जी के अलावा शरद पवार इस मुहिम में जोर शोर से जुटे हुए हैं.

भाई का भविष्य?

यूपी में एग्जिट पोल के बाद ही अखिलेश यादव ने मायावती के साथ हाथ मिलाने की बात कह दी थी, लेकिन बीएसपी नेता की ओर से अब तक कोई ग्रीन सिग्नल नहीं मिला था. वैसे भी मायावती को गेस्ट हाउस कांड के चलते दिक्कत मुलायम सिंह यादव से ही ज्यादा थी अखिलेश से नहीं.

2012, 2014 और फिर 2017 में बीएसपी की लगातार हार ने निश्चित रूप से मायावती को झकझोर दिया होगा. इसके अलावा यूपी चुनाव के दौरान स्वामी प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक जैसे मायावती के भरोसेमंद सहयोगी बीएसपी छोड़ कर चले गये. मायावती के एक अन्य सहयोगी उनके पूर्व ओएसडी के साथ मिल कर एक मंच की भी तैयारी में हैं जो बीएसपी के ओरिजिनल स्वरूप को लेकर फिर से आगे बढ़े - और समान विचार वाले नेताओं को साथ लेकर चल सके.

मौजूदा हालात में क्या मायावती कुछ अकेली और कमजोर महसूस करने लगी होंगी? आखिर इतने समय बाद अपने भाई भाई आनंद कुमार को बीएसपी में लाने के पीछे मायावती की क्या सोच रही होगी?

भाई को प्रोटेक्शन या उत्तराधिकारी?

एक चुनावी रैली में मायावती ने साफ कर दिया था कि सतीशचंद्र मिश्रा कभी भी उनके उत्तराधिकारी नहीं बन सकते. मिश्रा को तो वो बस कानूनी मुश्किलों से निजात दिलाने के लिए हमेशा अपने साथ रखती हैं - ये भी उन्होंने समझाया था.

मायावती ने उसी वक्त ये भी साफ कर दिया था कि बीएसपी में उनका उत्तराधिकारी कोई दलित या मुस्लिम ही हो सकता है. जैसी उन्हें उम्मीद रही चुनाव में मुस्लिम वोट तो मिले नहीं, फिर उस पर नये सिरे से सोची जा सकती है.

मायावती ने अपने भाई आनंद कुमार को बीएसपी में उपाध्यक्ष बनाया है. उनका कहना है कि भाई को बीएसपी में वो सशर्त लाई हैं - वो न तो सांसद-विधायक बनेंगे न ही कभी मुख्यमंत्री.

लेकिन मायावती ने ऐसी कोई शर्त नहीं बताई कि आनंद कुमार उनके उत्तराधिकारी भी नहीं होंगे. खैर, जब इस बारे में कोई सफाई नहीं आ जाती तब तक तो माना जा सकता है कि भविष्य में आनंद कुमार मायावती के उत्तराधिकारी हो भी सकते हैं.

क्या मायावती को अपने खास नेताओं के पार्टी छोड़ कर चले जाने के बाद बीएसपी को संभालने में दिक्कत हो रही थी? क्या इसीलिए मायावती ने भाई आनंद कुमार को बीएसपी का पदाधिकारी बनाई हैं ताकि वो पार्टी को फिर से खड़ा करने में उनके लिए मददगार बन सकें?

या मायावती को अब दूसरों पर से भरोसा उठ गया है? या मायावती को लगने लगा है कि राजनीति में भी सगा ही अपना होता है, बाकियों का क्या भरोसा? तमिलनाडु में जेल जाने से पहले शशिकला द्वारा टीटीवी दिनाकरन को कमान सौंपे जाने के पीछे यही वजह थी.

आनंद कुमार को लेकर एक बात और गौर करने लायक है. हाल ही में आयकर विभाग के अफसरों ने आनंद कुमार से जुड़ी फर्मों और कारोबार के दर्जन भर जगहों पर छापा मारकर जांच पड़ताल की थी.

मीडिया में ये खबर जरूर आई कि मायावती के भाई के यहां आयकर विभाग के छापे पड़े हैं. बात आई गई हो गई. लेकिन अगर आगे भी ऐसा ही हुआ फिर तो आनंद कुमार को सिर्फ मायावती के भाई के तौर पर लिया नहीं जाएगा. अब तो ऐसी कोई भी कार्रवाई हुई तो वो बीएसपी नेता के खिलाफ मानी जाएगी.

अब मायावती अपने भाई को प्रोटेक्शन देने के लिए पार्टी में लाई हैं या फिर उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाने का इरादा है, असल बात तो तब तक नहीं मालूम होगी जब तक मायावती खुद खुल कर इस बारे में न बताएं.

ऐसी सफाई क्यों?

सोनिया गांधी को बरसों से लिखा हुआ भाषण पढ़ते देखा जा रहा है. राहुल गांधी तो सवाल पूछने के लिए भी संसद में नोट्स लेकर पहुंचते हैं और लोगों के बीच जो कहानियां वो सुनाते हैं कोई लड़का उन्हें लिख कर देता है. भला मायावती के लिखा भाषण पढ़ने पर किसी को क्यों आपत्ति रही होगी. इस देश में ऐसे भी नेता हैं जिनकी पूरी राजनीति सिर्फ भाषण पर टिकी होती है और ऐसे भी जो भाषण देते वक्त क्या बोलते हैं हर किसी के समझ में भी नहीं आता और राजनीतिक के माहिर माने जाते हैं.

मायावती ने बताया कि 1996 में उनके गले का बड़ा ऑपरेशन हुआ था और पूरी तरह खराब हो चुके एक ग्लैंड निकाल दिया गया. इसके बाद डॉक्टरों ने उन्हें तेज आवाज से बचने की सलाह दी. मायावती का कहना है कि भाषण लिखा न हो तो ऊंचा बोलना पड़ता है.

बहरहाल, जब मायावती ने लिखा हुआ भाषण पढ़ने की मेडिकल वजह बता ही दी फिर तो किसी को इस पर ऐतराज नहीं होना चाहिये. और अब तो सबको मान लेना चाहिये कि लिखा भाषण पढ़ने की हर किसी की अपनी मजबूरी होती है.

वैसे महत्वपूर्ण बात ये है कि मायावती ने इस बात की सफाई क्यों दी. क्या यूपी की लगातार हार ने मायावती को ऐसा बना दिया है. जो मायावती मीडिया के सवालों का परवाह तक नहीं करती थीं, वो लिखे हुए भाषण पर सफाई दे रही हैं - भला क्यों?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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