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ड्रोन तो ले आओगे, लेकिन आतंकियों को खत्‍म करने का साहस... ?

    • आलोक रंजन
    • Updated: 09 सितम्बर, 2016 06:05 PM
  • 09 सितम्बर, 2016 06:05 PM
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भारतीय नौसेना ने अमेरिकी डिफेंस डिपार्टमेंट से तकनीकी क्षमता से लैस 22 मल्टी मिशन प्रेडेटर गार्जियन यूएवी (ड्रोन) खरीदने की इच्छा जताई है. इस डील से क्या वाकई हमारी रक्षा शक्ति बढ़ जाएगी?

खबर आ रही है कि अमेरिका भारत के तरफ से की गयी ड्रोन सौदे मामले में सकारात्मक रुख अपना सकता है. फरवरी 2016 में भारतीय नौसेना ने अमेरिकी डिफेंस डिपार्टमेंट से तकनीकी क्षमता से लैस 22 मल्टी मिशन प्रेडेटर गार्जियन यूएवी खरीदने की इच्छा जताई थी. और इसके लिए अनुरोध पत्र भी भेजा था.

जून 2016 में भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा मिले थे और उसी के बाद अमेरिका ने भारत को एक प्रमुख रक्षा साझेदार का दर्जा दिया था. अगस्त 2016 में इस सौदे को लेकर तेजी आयी जब भारतीय रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और अमेरिकी रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर ने भारतीय रक्षा मंत्री के अमेरिका दौरे के दौरान इस डील पर चर्चा की और उसे आगे बढ़ाने का आश्वासन दिया. 

जनवरी 2017 में अमेरिकी राष्ट्रपति का टर्म खत्म होने वाला है. मोदी और ओबामा के सम्बन्ध काफी अच्छे है और भारत चाहता है की ओबामा के राष्ट्रपति रहते ही ये डील फाइनल हो जाये. सर्विलांस के साथ साथ ये अनआर्म्ड हाईटेक मल्टी-मिशन ड्रोन बड़े हमले को भी अंजाम दे सकता है. डिफेन्स एक्सपर्ट्स के अनुसार अगर ये डील हो जाती है तो भारत की सामुद्रिक रक्षा शक्ति बढ़ जाएगी. भारत इस ड्रोन का इस्तेमाल हिंद महासागर में समुद्री निरीक्षण के लिए कर सकता है. और तब अमेरिका को भी कोई दिक्कत नहीं होगी सहमति देने में क्योंकि एशिया-पैसिफिक रीजन में अमेरिका की भी दिलचस्पी है.

यह भी पढ़ें: चीन की धरती पर पहुंचते ही ओबामा को मिला कड़ा संदेश!

अब असली सवाल ये है की अगर अम्रेरिका से ड्रोन मिल भी जाते है तो क्या भारत को आतंक से लड़ाई लड़ने में मदद मिलेगी. क्या पाकिस्तान में बैठे हुए आतंक के सौदागरों जैसे हाफिज सईद, मसूद अज़हर, दाऊद इब्राहिम आदि को हम मारने में कामयाब हो पाएंगे? ड्रोन को लेकर...

खबर आ रही है कि अमेरिका भारत के तरफ से की गयी ड्रोन सौदे मामले में सकारात्मक रुख अपना सकता है. फरवरी 2016 में भारतीय नौसेना ने अमेरिकी डिफेंस डिपार्टमेंट से तकनीकी क्षमता से लैस 22 मल्टी मिशन प्रेडेटर गार्जियन यूएवी खरीदने की इच्छा जताई थी. और इसके लिए अनुरोध पत्र भी भेजा था.

जून 2016 में भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा मिले थे और उसी के बाद अमेरिका ने भारत को एक प्रमुख रक्षा साझेदार का दर्जा दिया था. अगस्त 2016 में इस सौदे को लेकर तेजी आयी जब भारतीय रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और अमेरिकी रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर ने भारतीय रक्षा मंत्री के अमेरिका दौरे के दौरान इस डील पर चर्चा की और उसे आगे बढ़ाने का आश्वासन दिया. 

जनवरी 2017 में अमेरिकी राष्ट्रपति का टर्म खत्म होने वाला है. मोदी और ओबामा के सम्बन्ध काफी अच्छे है और भारत चाहता है की ओबामा के राष्ट्रपति रहते ही ये डील फाइनल हो जाये. सर्विलांस के साथ साथ ये अनआर्म्ड हाईटेक मल्टी-मिशन ड्रोन बड़े हमले को भी अंजाम दे सकता है. डिफेन्स एक्सपर्ट्स के अनुसार अगर ये डील हो जाती है तो भारत की सामुद्रिक रक्षा शक्ति बढ़ जाएगी. भारत इस ड्रोन का इस्तेमाल हिंद महासागर में समुद्री निरीक्षण के लिए कर सकता है. और तब अमेरिका को भी कोई दिक्कत नहीं होगी सहमति देने में क्योंकि एशिया-पैसिफिक रीजन में अमेरिका की भी दिलचस्पी है.

यह भी पढ़ें: चीन की धरती पर पहुंचते ही ओबामा को मिला कड़ा संदेश!

अब असली सवाल ये है की अगर अम्रेरिका से ड्रोन मिल भी जाते है तो क्या भारत को आतंक से लड़ाई लड़ने में मदद मिलेगी. क्या पाकिस्तान में बैठे हुए आतंक के सौदागरों जैसे हाफिज सईद, मसूद अज़हर, दाऊद इब्राहिम आदि को हम मारने में कामयाब हो पाएंगे? ड्रोन को लेकर क्या नीति रहती है ये भी देखने वाली बात है. साथ ही क्या अमेरिका भारत को ड्रोन से जुडी तमाम टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करती है या नहीं ये भी देखने वाली बात है.

सवाल सबके मन में ये भी है की क्या अमेरिका भारत को ये इज़ाज़त देगी की इस ड्रोन का इस्तेमाल हमलो के लिए कर सके. अभी तक जो संकेत उभर कर आ रहे है इससे तो यही लगता है की भारत इसका इस्तेमाल केवल सर्विलांस के लिए ही करेगा.

क्या भारत अमेरिकी ड्रोन से खत्म कर पाएगा आतंकवाद?

ये बात किसी से छुपी हुई नहीं है की अमेरिका कैसे कई सालो तक ड्रोन द्वारा ओसामा बिन लादेन पर निगरानी करता रहा था और इसी सर्विलांस के आधार पर आख़िरकार 2011 में उसे मारने पर कामयाब हो पाया था. एक डाटा के अनुसार 2005 से अभी तक करीब 300 से अधिक अमेरिकी ड्रोन हमलो में करीब 2500 से अधिक आतंकवादियो का खात्मा पाकिस्तान में हुआ है. अमेरिका द्वारा ज्यादातर हमले अफ़ग़ानिस्तान से सटे पाकिस्तान वाले इलाके में हुआ है. 

आपको ये भी बता देते है की अमेरिका ने इसी तरह के ड्रोन के हमले से ISIS के नकाबपोश आतंकी जिहादी जॉन का अंत नवम्बर 2015 में किया था. क्या भारत भी ये ड्रोन हासिल कर इस आतंक की लड़ाई में अमेरिका जैसा विजय पा सकता है. क्या भारत के अंदर ये क्षमता है की वो भी गुप्त आपरेशन कर पाकिस्तान में बैठे आतंक के आकाओ को मार सके. सभी जानते है की पाकिस्तान में हालात कैसे है. आतंकियों का बोलबाला वहां पर सत्ता से ज्यादा है.

भारत पाकिस्तान के विरुद्ध कोई भी कारवाही करने से पहले इसलिए हिचकता है क्योंकि वो जानता है कि पाकिस्तान में सैन्य- आईएसआई-आतंकवादियो की गठजोड़ काफी हावी है और वहां पर सरकार जिसकी भी रहेगी वो ऐसे मौको पर भारत के खिलाफ नूक्लीअर आर्मामेंट तक इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचकिचायेगा. इस डील को लेकर भारत में उत्साह बहुत है.

कई समीक्षक तो यह भी कह रहे है की ड्रोन भारत को अभी मिले भी नहीं हैं फिर भी पाकिस्तान की चिताएं बढ़ गई हैं और उसे डर सताने लगा है कि भारत इसका इस्तेमाल उसके खिलाफ कर सकता है. एक अनुमान के अनुसार इस ड्रोन डील की कुल कीमत 2 बिलियन डॉलर है.

सबके मन में एक सवाल उभर रहा है कि भारत क्या स्ट्रेटेजी अपनाता है, अगर उसे ये ड्रोन प्राप्त हो जाते हैं. ये भारत के लिए आतंक के विरुद्ध धारधार हथियार बनने में कामयाब हो पाते हैं या नहीं, अभी देखना बाकी है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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