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सियासत

क्या भाजपा वाममोर्चा के गढ़ त्रिपुरा में कमल खिला पाएगी?

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 18 फरवरी, 2018 12:16 PM
  • 18 फरवरी, 2018 12:05 PM
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इस साल उत्तर पूर्वीय राज्य त्रिपुरा में चुनाव होने हैं और चल रही तैयारियों को देखकर कहा जा सकता है कि आने वाले वक़्त में भाजपा राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री माणिक सरकार के गले की हड्डी बनने वाली है.

इस साल का पहला विधानसभा चुनाव उत्तर पूर्व भारतीय राज्य त्रिपुरा में 18 फरवरी को हो रहा है. वाममोर्चा के गढ़ के रूप में बचे आखिरी किले में, पहली बार वाममोर्चा और भाजपा आमने सामने होंगे, यानि यहां लड़ाई दो विपरीत विचारधारओं के बीच रहेगी. त्रिपुरा में जहां वाममोर्चा 25 सालों से लगातार सत्ता पर काबिज़ है वहीं भारत के सबसे गरीब मुख्यमंत्री माणिक सरकार पिछले 20 वर्षों से राज्य की बागडोर संभाले नजर आ रहे हैं. बात अगर भाजपा की हो तो, इस बार भाजपा लेफ्ट के इस दुर्ग में सेंधमारी करने में कोई भी चूक करने के मूड में नहीं दिख रही है.

भाजपा त्रिपुरा को लेकर बेहद गंभीर नजर आ रही है

भाजपा का बढ़ता ग्राफ

पिछले साल यानी 2017 में, भाजपा ने 5 विधानसभा चुनावों में पंजाब को छोड़कर 4 राज्यों में सरकार बनायी थी. जिसमें पूर्वोत्तर का मणिपुर राज्य भी शामिल था. अब चूंकि इस साल का पहला विधानसभा चुनाव त्रिपुरा का है. ऐसे में भाजपा, लेफ्ट का किला कहे जाने वाला इस राज्य में सारी ताक़त झोंकती नजर आ रही है. एक तरफ जहां भाजपा अध्यक्ष अमित शाह राज्य में पूरे चुनाव प्रचार के दौरान यहां डेरा डाले रहे वहीं प्रधानमंत्री ने भी यहां दो चुनावी सभाओं को सम्बोधित किया था.

भाजपा लेफ्ट के इस दुर्ग में सेंधमारी करने के लिए कितनी बेताब है. इसका अंदाज़ इसी से लगाया जा सकता है कि, भाजपा ने यहां की स्थानीय जनजातीय पार्टी इंडीजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा से गठजोड़ भी किया है. त्रिपुरा की 60 सदस्यीय विधानसभा सीटों के लिए जहां भाजपा ने 51 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है वहीं इंडीजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा शेष 9 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. भाजपा ने 2013 के विधानसभा चुनावों में 1.54 फीसदी वोट शेयर को बढ़ाकर 2014 के लोकसभा चुनावों में 6 फीसदी...

इस साल का पहला विधानसभा चुनाव उत्तर पूर्व भारतीय राज्य त्रिपुरा में 18 फरवरी को हो रहा है. वाममोर्चा के गढ़ के रूप में बचे आखिरी किले में, पहली बार वाममोर्चा और भाजपा आमने सामने होंगे, यानि यहां लड़ाई दो विपरीत विचारधारओं के बीच रहेगी. त्रिपुरा में जहां वाममोर्चा 25 सालों से लगातार सत्ता पर काबिज़ है वहीं भारत के सबसे गरीब मुख्यमंत्री माणिक सरकार पिछले 20 वर्षों से राज्य की बागडोर संभाले नजर आ रहे हैं. बात अगर भाजपा की हो तो, इस बार भाजपा लेफ्ट के इस दुर्ग में सेंधमारी करने में कोई भी चूक करने के मूड में नहीं दिख रही है.

भाजपा त्रिपुरा को लेकर बेहद गंभीर नजर आ रही है

भाजपा का बढ़ता ग्राफ

पिछले साल यानी 2017 में, भाजपा ने 5 विधानसभा चुनावों में पंजाब को छोड़कर 4 राज्यों में सरकार बनायी थी. जिसमें पूर्वोत्तर का मणिपुर राज्य भी शामिल था. अब चूंकि इस साल का पहला विधानसभा चुनाव त्रिपुरा का है. ऐसे में भाजपा, लेफ्ट का किला कहे जाने वाला इस राज्य में सारी ताक़त झोंकती नजर आ रही है. एक तरफ जहां भाजपा अध्यक्ष अमित शाह राज्य में पूरे चुनाव प्रचार के दौरान यहां डेरा डाले रहे वहीं प्रधानमंत्री ने भी यहां दो चुनावी सभाओं को सम्बोधित किया था.

भाजपा लेफ्ट के इस दुर्ग में सेंधमारी करने के लिए कितनी बेताब है. इसका अंदाज़ इसी से लगाया जा सकता है कि, भाजपा ने यहां की स्थानीय जनजातीय पार्टी इंडीजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा से गठजोड़ भी किया है. त्रिपुरा की 60 सदस्यीय विधानसभा सीटों के लिए जहां भाजपा ने 51 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है वहीं इंडीजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा शेष 9 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. भाजपा ने 2013 के विधानसभा चुनावों में 1.54 फीसदी वोट शेयर को बढ़ाकर 2014 के लोकसभा चुनावों में 6 फीसदी कर लिया. भाजपा को इंडीजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा से गठबंधन का भी फायदा मिलने के आसार हैं क्योंकि यहां आदिवासियों के लिए विधानसभा की एक तिहाई सीटें रिजर्व हैं.

लेकिन भाजपा के लिए 'माणिक सरकार' सरकार को टक्कर देना इतना आसान भी नहीं होगा क्योंकि मुख्यमंत्री माणिक सरकार के बारे में छवि बनी हुई है कि वे देश के सबसे गरीब मुख्यमंत्री और ईमानदार राजनेताओं में से एक हैं. अगर किसी तरह से भाजपा यहां चुनाव जितने में कामयाब हो जाती है तो वामपंथी पार्टियों के लिए गहरा झटका होगा और भाजपा का पूर्वोत्तर भारत में उसकी पकड़ और मजबूत होगी.

हालांकि वाममोर्चा अपना अभेद्य दुर्ग बचाने में कामयाब होगा या फिर भाजपा पूर्वोत्तर के एक और राज्य में कमल खिला पाने में सफल होगी ये तो तीन मार्च को ही पता चल पायेगा जब वहां की जनता के जनादेश का परिणाम आएगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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