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क्या शहाबुद्दीन के बाहर आने का असर महागठबंधन पर दिखेगा..

    • अभिनव राजवंश
    • Updated: 10 सितम्बर, 2016 07:33 PM
  • 10 सितम्बर, 2016 07:33 PM
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जेल से बाहर आते ही शहाबुद्दीन ने कहा कि नीतीश महागठबंधन के नेता और मुख्यमंत्री हैं, वे मेरे नेता नहीं हैं. ऐसे में देखना होगा कि नीतीश सत्ता की बागडोर लालू और शहाबुद्दीन को साथ लेकर संभाल पाते हैं या ये महागठबंधन में फूट का कारण बन जायेगा...

पूर्व राजद सांसद शहाबुद्दीन ने जेल से बाहर आते ही जो सबसे बड़ी बात कही वो ये कि नीतीश महागठबंधन के नेता और मुख्यमंत्री हैं, वे मेरे नेता नहीं हैं. मैंने न कभी नीतीश के नेतृत्व में काम किया है, न कर रहा हूं और न करूंगा. शहाबुद्दीन ने साफ तौर पर नीतीश को नेता मानने से इंकार कर दिया. शहाबुद्दीन के तल्ख़ तेवर यह बताने के लिए काफी हैं कि उनका बाहर आना नीतीश कुमार के लिए चिंता का सबब हो सकता है.

अभी तक बिहार में नीतीश कुमार की छवि सुशाशन बाबु की रही है और नीतीश कुमार के विरोधी भी मानते हैं की उनके सत्ता में आने के बाद बिहार के अपराध के ग्राफ में भारी कमी देखी गई थी. कभी अपहरण उद्योग के रूप में तब्दील हो चुके इस राज्य में नीतीश ने आपराधिक मामलों में कमी लाने के लिए न केवल आपराधियों पर नकेल कसा बल्कि नीतीश ने कई आपराधिक छवि के नेताओं को भी सलांखों के पीछे पहुंचाया. पिछले साल ही लालू यादव की पार्टी के साथ गठबंधन कर सत्ता में आने के बाद सबसे पहले बिहार में संपूर्ण शराबबंदी का फैसला लिया.

इसके उलट शहाबुद्दीन की छवि एक ऐसे नेता की है जिन्हें कानून के कायदे में अपने को बांधना पसंद नहीं. शहाबुद्दीन अपने इलाके में अपना सामानांतर सरकार चलाने के लिए भी जाने जाते हैं.

 शहाबुद्दीन फैक्टर बिहार की राजनीति में क्या नया रंग लाएगा...

इसी साल अप्रैल में शहाबुद्दीन को लंबे अरसे के बाद राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी जगह दे दी गयी है. सहाबुद्दीन ने भी जेल से निकलने के साथ ही जहां नीतीश को आड़े हाथों लिया तो वहीं लालू यादव को अपना नेता बताते हुए आजीवन उनका साथ देने की बात भी कह डाली.

नीतीश के विरोधी और विपक्ष महागठबंधन की...

पूर्व राजद सांसद शहाबुद्दीन ने जेल से बाहर आते ही जो सबसे बड़ी बात कही वो ये कि नीतीश महागठबंधन के नेता और मुख्यमंत्री हैं, वे मेरे नेता नहीं हैं. मैंने न कभी नीतीश के नेतृत्व में काम किया है, न कर रहा हूं और न करूंगा. शहाबुद्दीन ने साफ तौर पर नीतीश को नेता मानने से इंकार कर दिया. शहाबुद्दीन के तल्ख़ तेवर यह बताने के लिए काफी हैं कि उनका बाहर आना नीतीश कुमार के लिए चिंता का सबब हो सकता है.

अभी तक बिहार में नीतीश कुमार की छवि सुशाशन बाबु की रही है और नीतीश कुमार के विरोधी भी मानते हैं की उनके सत्ता में आने के बाद बिहार के अपराध के ग्राफ में भारी कमी देखी गई थी. कभी अपहरण उद्योग के रूप में तब्दील हो चुके इस राज्य में नीतीश ने आपराधिक मामलों में कमी लाने के लिए न केवल आपराधियों पर नकेल कसा बल्कि नीतीश ने कई आपराधिक छवि के नेताओं को भी सलांखों के पीछे पहुंचाया. पिछले साल ही लालू यादव की पार्टी के साथ गठबंधन कर सत्ता में आने के बाद सबसे पहले बिहार में संपूर्ण शराबबंदी का फैसला लिया.

इसके उलट शहाबुद्दीन की छवि एक ऐसे नेता की है जिन्हें कानून के कायदे में अपने को बांधना पसंद नहीं. शहाबुद्दीन अपने इलाके में अपना सामानांतर सरकार चलाने के लिए भी जाने जाते हैं.

 शहाबुद्दीन फैक्टर बिहार की राजनीति में क्या नया रंग लाएगा...

इसी साल अप्रैल में शहाबुद्दीन को लंबे अरसे के बाद राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी जगह दे दी गयी है. सहाबुद्दीन ने भी जेल से निकलने के साथ ही जहां नीतीश को आड़े हाथों लिया तो वहीं लालू यादव को अपना नेता बताते हुए आजीवन उनका साथ देने की बात भी कह डाली.

नीतीश के विरोधी और विपक्ष महागठबंधन की सरकार बनने के साथ ही बिहार में बढ़ते अपराध को लेकर नीतीश कुमार की सरकार को घेरते आएं हैं. ऐसे में शहाबुद्दीन की बेल मिलने से विपक्ष को एक और मौका दे दिया है. सुशील मोदी ने तो यहां तक कह गए कि एक तय रणनीति के तहत ही शहाबुद्दीन के केस को कमजोर कर दिया गया है.

अब ऐसे में यह देखना होगा की नीतीश कुमार कैसे इस स्थिति से निपटते हैं. क्या नीतीश लालू और शहाबुद्दीन को साथ लेकर सत्ता की बागडोर संभाल सकते हैं या फिर शहाबुद्दीन फैक्टर महागठबंधन में फूट का कारण बन जायेगा.

यह भी पढ़ें- शहाबुद्दीन के जेल से बाहर आने के मायने....

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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