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मातम पर बधाई की ये कैसी राजनीतिक मजबूरी !

    • आईचौक
    • Updated: 12 अक्टूबर, 2016 06:13 PM
  • 12 अक्टूबर, 2016 06:13 PM
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हैपी दशहरा, हैपी दिपावली, हैपी ईद इत्यादि के बधाई पोस्टरों से राजनीति के मैदानों को पाट दिया जाता है. लेकिन क्या अब आप मुहर्रम की भी बधाई दे देंगे?

हम एक सेकुलर देश हैं. यहां धर्म का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हमारे लोकतांत्रिक व्यवस्था के चुनावी दंगल में धर्म का कोई रोल नहीं है. वास्तव में चुनाव में धर्म और उसके साथ-साथ जाति का बड़ा अहम किरदार है.

अब हमारे नेता ठहरे सेकुलर. और धार्मिक मौकों पर वोटर से सीधा संवाद करने का एक बेहतरीन मौका मिलता है. हैपी दशहरा, हैपी दिपावली, हैपी ईद के बधाई पोस्टरों से मैदान पाट दिया जाता है. लिहाजा धर्म की बधाई पर राजनीति न करें.

लेकिन सवाल यह है कि आखिर इस बधाई को देने के पहले क्या कुछ हकीकत जान लेना ठीक नहीं होगा. अब इस पोस्टर में नेता जी, पार्टी और सभी तस्वीरों की ऐसी क्या मजबूरी कि वह किसी मातम के मौके पर भी बधाई दे डालें. बधाई की ये कैसी रेलम-पेल.

अब यह पोस्टर और सोशल मीडिया पर चल रहे कई बधाइयां एक नई हकीकत दिखा रही हैं. राजनीतिक दलों ने धर्म को वोट बैंक के लिए पहचान लिया है. लेकिन वोटरों के उस तबके को जानते सिर्फ इतना हैं कि उनके मातम के त्यौहार पर भी बधाई दे डाल रहे हैं.

इसे भी पढ़ें: 'इस्लामी आतंकवाद भी इस्लाम का एक रूप है'

कृपया जानिए क्या है मोहर्रम और कैसे मनाया जाता है?....

मुहर्रम के शोक को समझने के लिए जानें

1. मुहर्रम, या कहें महीने का वह दसवां दिन मुहर्रम जब शोक मनाया जाता है. इस महीने को रमजान के बाद सबसे पाक महीना माना जाता है और इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक यह चार पाक महीनों में एक है. पूरी दुनिया में मुसलमान मुहर्रम पर शोक जताते हैं.

2. यह दिन असुर का एक धार्मिक दिन है और मुहर्रम शब्द का मतलब वर्जित और अधर्म से युक्त है.

3. प्रोफेट मोहम्मद...

हम एक सेकुलर देश हैं. यहां धर्म का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हमारे लोकतांत्रिक व्यवस्था के चुनावी दंगल में धर्म का कोई रोल नहीं है. वास्तव में चुनाव में धर्म और उसके साथ-साथ जाति का बड़ा अहम किरदार है.

अब हमारे नेता ठहरे सेकुलर. और धार्मिक मौकों पर वोटर से सीधा संवाद करने का एक बेहतरीन मौका मिलता है. हैपी दशहरा, हैपी दिपावली, हैपी ईद के बधाई पोस्टरों से मैदान पाट दिया जाता है. लिहाजा धर्म की बधाई पर राजनीति न करें.

लेकिन सवाल यह है कि आखिर इस बधाई को देने के पहले क्या कुछ हकीकत जान लेना ठीक नहीं होगा. अब इस पोस्टर में नेता जी, पार्टी और सभी तस्वीरों की ऐसी क्या मजबूरी कि वह किसी मातम के मौके पर भी बधाई दे डालें. बधाई की ये कैसी रेलम-पेल.

अब यह पोस्टर और सोशल मीडिया पर चल रहे कई बधाइयां एक नई हकीकत दिखा रही हैं. राजनीतिक दलों ने धर्म को वोट बैंक के लिए पहचान लिया है. लेकिन वोटरों के उस तबके को जानते सिर्फ इतना हैं कि उनके मातम के त्यौहार पर भी बधाई दे डाल रहे हैं.

इसे भी पढ़ें: 'इस्लामी आतंकवाद भी इस्लाम का एक रूप है'

कृपया जानिए क्या है मोहर्रम और कैसे मनाया जाता है?....

मुहर्रम के शोक को समझने के लिए जानें

1. मुहर्रम, या कहें महीने का वह दसवां दिन मुहर्रम जब शोक मनाया जाता है. इस महीने को रमजान के बाद सबसे पाक महीना माना जाता है और इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक यह चार पाक महीनों में एक है. पूरी दुनिया में मुसलमान मुहर्रम पर शोक जताते हैं.

2. यह दिन असुर का एक धार्मिक दिन है और मुहर्रम शब्द का मतलब वर्जित और अधर्म से युक्त है.

3. प्रोफेट मोहम्मद के नाती इमाम हुसैन अली जो शिया समुदाय के तीसरे इमाम थे का कत्ल आज के दिन हुआ था.

4. यह कत्ल 680 ईस्वी में कर्बला के युद्ध के दौरान (आज के ईराक में) खलीफा यजीद की सेना द्वारा किया गया था.

मुहर्रम पर मातम मनाते मुसलमान

5. मुहर्रम पर दुनियाभर में शिया समुदाय के लोग इस कत्ल के शोक में खुद को नुखीले हथियारों के कोड़ों से पीट पीटकर घायल कर लेते हैं. इस तरह अपनी शरीर को काटकर और आग के अंगारों पर चलकर शिया कर्बला के उस युद्ध का रूपांतरण किया जाता है. इस मौके पर कुछ लोग कर्बला में इमाम हुसैन की दरगाह पर जाते हैं.

6. ये और बात है कि मुहर्रम पर खुद को चोट पहुंचाने को गैरइस्लामी बताते हुए कई फतवे दिए गए हैं. दुनिया के सबसे बड़े शिया देश ईरान में ऐसी कोई परंपरा नहीं है.

7. इमाम हुसैन के कत्ल को शिया समुदाय अन्याय, अत्याचार और उत्पीड़न का प्रतीक मानते हैं.

इसे भी पढ़ें: आतंकी हमलों के लिए धर्म नहीं, खुली सरहदें हैं जिम्मेदार

8. जहां शिया मुसलमान इस दिन खुद को घायल कर शोक मनाते हैं वहीं सुन्नी मुसलमान इस महीने के 9वें, 10वें और 11 वें दिन भूखे रहकर आने वाले दिनों के पाप पर प्रायश्चित करते हैं.

9. वहीं सुन्नी मुसलमानों के लिए यह महीना उस दिन का प्रतीक है जब मोसेज और उसके यहूदी भक्तों का जीवन ईश्वर ने रेड सी रोककर बचाया था.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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