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डॉ. राधाकृष्णन का जन्मदिन टीचर्स डे के रूप में मनाना, शिक्षक के मान से ज्यादा नेता का सम्मान है

    • धीरेंद्र राय
    • Updated: 05 सितम्बर, 2021 06:01 PM
  • 05 सितम्बर, 2021 05:27 PM
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राष्ट्रपति बनने के बाद डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपने कुछ शिष्यों को सलाह दी कि वे उनका बर्थडे सेलिब्रेट करने के बजाए 5 सितंबर को शिक्षक दिवस (Teachers Day) के रूप में मनाएं. लेकिन, शिक्षक और शिष्य के बीच हुई ये चर्चा तत्कालीन सरकार के राष्ट्रीय कार्यक्रम का हिस्सा कैसे बन गई?

पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में क्यों मनाया जाता है? क्योंकि, वो 'भूतो न भविष्यति' टाइप शिक्षक थे, या शिक्षा के क्षेत्र में योगदान दे चुके थे? वैसे, इतिहासवेत्ता 'शिक्षक दिवस क्यों मनाया जाता है' के सवाल का जवाब गरिमामयी बनाने की कोशिश करते हैं. कहानी कहती है कि जब डॉ. राधाकृष्णन ने देश के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली तो उनके कुछ शिष्य सौजन्य मुलाकात के लिए पहुंचे. उन्होंने अपने सर से इच्छा जाहिर की कि वे उनका जन्मदिन (5 सितंबर) कुछ 'स्पेशल' ढंग से मनाना चाहते हैं. तो डॉ. राधाकृष्णन ने सलाह दी कि बर्थडे सेलिब्रेट करने के बजाए, 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए तो समाज के प्रति शिक्षक के योगदान को समझा जा सके. अब ये कहानी कुछ सवाल और खड़े कर देती है, कि जैसे शिक्षक दिवस मनाने को लेकर बात डॉ राधाकृष्णन और उनके स्टूडेंट्स के बीच हुई, तो ये दिवस राष्ट्रीय कार्यक्रम का हिस्सा कैसे बन गया?

शिक्षा के क्षेत्र में सर्वपल्ली राधाकृष्णन के योगदान को बिल्कुल भी भूला नहीं जा सकता

1962 से शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है, तो क्या उससे पहले किसी शिक्षक के नाम ये 'दिवस' आवंटित न किया जाना महज सरकारी भूल रही? भारत में गुरु-शिष्य परंपरा को देखें तो एक से बढ़कर एक गुरु हुए हैं, जिनके सबक हमारे संस्कार/आचरण का हिस्सा हैं, तो उनकी जयंती पर शिक्षक दिवस क्यों नहीं? और, वैसे सनातनी शिक्षक दिवस तो गुरु पूर्णिमा है, तो ये दोहराव क्यों?

चलिए, वापस डॉ. राधाकृष्णन पर लौटते हैं. दरअसल, जिस समय मैंने स्कूलिंग की तब शुरुआत में टीचर्स डे (शिक्षक दिवस) की छुट्टी होती थी. बाद में ये छुट्टी खत्म हो गई. और टीचर्स को 'हैप्पी टीचर्स डे' कहने की परंपरा शुरू हुई. कुछ स्टूडेंट शिक्षकों को...

पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में क्यों मनाया जाता है? क्योंकि, वो 'भूतो न भविष्यति' टाइप शिक्षक थे, या शिक्षा के क्षेत्र में योगदान दे चुके थे? वैसे, इतिहासवेत्ता 'शिक्षक दिवस क्यों मनाया जाता है' के सवाल का जवाब गरिमामयी बनाने की कोशिश करते हैं. कहानी कहती है कि जब डॉ. राधाकृष्णन ने देश के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली तो उनके कुछ शिष्य सौजन्य मुलाकात के लिए पहुंचे. उन्होंने अपने सर से इच्छा जाहिर की कि वे उनका जन्मदिन (5 सितंबर) कुछ 'स्पेशल' ढंग से मनाना चाहते हैं. तो डॉ. राधाकृष्णन ने सलाह दी कि बर्थडे सेलिब्रेट करने के बजाए, 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए तो समाज के प्रति शिक्षक के योगदान को समझा जा सके. अब ये कहानी कुछ सवाल और खड़े कर देती है, कि जैसे शिक्षक दिवस मनाने को लेकर बात डॉ राधाकृष्णन और उनके स्टूडेंट्स के बीच हुई, तो ये दिवस राष्ट्रीय कार्यक्रम का हिस्सा कैसे बन गया?

शिक्षा के क्षेत्र में सर्वपल्ली राधाकृष्णन के योगदान को बिल्कुल भी भूला नहीं जा सकता

1962 से शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है, तो क्या उससे पहले किसी शिक्षक के नाम ये 'दिवस' आवंटित न किया जाना महज सरकारी भूल रही? भारत में गुरु-शिष्य परंपरा को देखें तो एक से बढ़कर एक गुरु हुए हैं, जिनके सबक हमारे संस्कार/आचरण का हिस्सा हैं, तो उनकी जयंती पर शिक्षक दिवस क्यों नहीं? और, वैसे सनातनी शिक्षक दिवस तो गुरु पूर्णिमा है, तो ये दोहराव क्यों?

चलिए, वापस डॉ. राधाकृष्णन पर लौटते हैं. दरअसल, जिस समय मैंने स्कूलिंग की तब शुरुआत में टीचर्स डे (शिक्षक दिवस) की छुट्टी होती थी. बाद में ये छुट्टी खत्म हो गई. और टीचर्स को 'हैप्पी टीचर्स डे' कहने की परंपरा शुरू हुई. कुछ स्टूडेंट शिक्षकों को देने के लिए फूल लेकर भी आते थे. भेड़चाल वाला सेलिब्रेशन होता था. न कोई पूछता था, और न ही कोई बताता था कि डॉ राधाकृष्णन ने ऐसा क्या किया, जिसके कारण उनके जन्मदिन पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है.

शिक्षक को राष्ट्रपति बनने की प्रेरणा ही देती है डॉ. राधाकृष्णन की कहानी

आज भी बहुत खोजने पर यही मिलता है कि 1888 में जन्मे डॉ. राधाकृष्णन मेधावी छात्र रहे. 1909 में टीचर बन गए. ऑक्सफोर्ड में प्रोफेसर बनने वाले पहले भारतीय बने. बाद में अंग्रेजों ने उन्हें आंध्र यूनिवर्सिटी का वाइस चांसलर बनाया. इस बीच उन्हें ब्रिटेन की महारानी से नाइटहूड भी मिला. उसके बाद वे बीएचयू के वाइस चांसलर रहे. भारत के आजाद होने पर उन्होंने शिक्षा क्षेत्र को अलविदा कह दिया. वे आजाद भारत में सोवियत रूस के राजदूत बनाए गए. इसी के साथ उन्होंंने बीएचयू की वाइस चांसलरी छोड़ दी.

वे कुछ समय संयुक्त राष्ट्र में भी भारत के राजदूत रहे, और फिर भारत आकर उपराष्ट्रपति बने. और बाद में राष्ट्रपति. एक कामयाब व्यक्ति का इससे चमकता बायोडाटा और क्या हो सकता है. डॉ. राधाकृष्णन के करिअर से शिक्षक राष्ट्रपति पद तक पहुंचने की प्रेरणा तो लेकर सकते हैं, लेकिन इस यशोगाथा में वो हिस्सा मिसिंग है, जहां से शिक्षक अच्छा शिक्षक बनने की प्रेरणा ले.

यानी, बुनियादी सवाल अब भी वहीं का वहीं रहा, कि डॉ राधाकृष्णन की जयंती शिक्षक दिवस का आधार कैसे बनी. वैसे तो डॉ राधाकृष्णन से पहले राष्ट्रपति रहे डॉ राजेंद्र प्रसाद भी शिक्षक थे, और मेधावी छात्र भी. हां, शायद उनके किसी छात्र ने उनका जन्मदिन सेलिब्रेट करने का प्रस्ताव न दिया होगा. जिससे वो अपना जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में सेलिब्रेट कराने का कह पाते.

चूंकि, ये दिवस डॉ राधाकृष्णन के खाते में आना था, इसलिए कालांतर में शिक्षक से राष्ट्रपति बने एपीजे अब्दुल कलाम और प्रणब मुखर्जी भी 5 सितंबर को ही बाकी देश की तरह शिक्षक दिवस मनाते रहे.

बाल दिवस से मिलती जुलती है शिक्षक दिवस की कहानी

बाल दिवस के बारे में बचपन से एक ही बात सुनी है- 'पं. नेहरू के जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में भी मनाया जाता है, क्योंकि चाचा नेहरू बच्चों से बहुत प्यार करते थे.' तो उससे पहले और बाद के राष्ट्राध्यक्ष बच्चों से नफरत करते थे? बच्चों को लेकर पं. नेहरू के योगदान का सिर्फ इतना ही है कि वो बच्चों से बहुत प्यार करते थे.

हां, योगदान तो नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी का ज्यादा है, लेकिन बाल दिवस तो आवंटित हो चुका. अब बाल दिवस के बहाने सिर्फ चाचा नेहरू को याद करते हैं. उसी तरह जैसे शिक्षक दिवस के बहाने डॉ राधाकृष्णन को. भले उससे हांसिल कुछ न हो.

चलते-चलते...

कल्पना कीजिये, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्पित कार्यकर्ता उनसे आग्रह करते कि वे उनका जन्मदिन कुछ स्पेशल ढंग से मनाना चाहते हैं. और वे सलाह देते कि मेरा जन्मदिन मनाने के बजाय मेरे जन्मदिन को 'चाय दिवस' के रूप में मनाइये. और इस तरह हर साल 17 सितंबर चाय दिवस के रूप में मनाया जाता. देशभर में इस दिन चाय पिलाने के उत्सव होते. और नाम होता मोदी का. लेकिन, अब ये ख्वाब, ख्वाब ही रहेगा. 2005 में यूपीए सरकार के दौर में नई दिल्ली में 21 मई को पहला 'अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस' मनाया जा चुका है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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