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#MeToo की चपेट में आये मोदी के मंत्री अकबर को लेकर इतना सन्नाटा क्यों?

    • आईचौक
    • Updated: 11 अक्टूबर, 2018 03:58 PM
  • 11 अक्टूबर, 2018 03:58 PM
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मोदी सरकार में विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर पर अब तक छह महिलाएं यौन शोषण के आरोप लगा चुकी हैं, लेकिन सन्नाटा पसरा हुआ है. मोदी कैबिनेट में भी महिला मंत्रियों की तादाद कोई कम नहीं, लेकिन मेनका गांधी के अलावा सब चुप हैं. आखिर ऐसा क्यों?

एमजे अकबर के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी से किसी को कोई ऐतरात या शिकायत नहीं है. हां, बेटी बचाने से लेकर गरीब महिलाओं को धुएं से बचाने के दावे के साथ साथ मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ दिलाने का दम भरने वाले प्रधानमंत्री मोदी के एक्शन का इंतजार जरूर है. यौन उत्पीड़न के आरोपों में घिरे विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर मोदी कैबिनेट का हिस्सा बने रहेंगे या जाएंगे?

मोदी कैबिनेट के साथियों में अब तक सिर्फ मेनका गांधी अकेली हैं जो इस मामले में मुखर नजर आ रही हैं, वरना हर कोई खामोशी अख्तियार किये हुए हैं. #MeToo पर सबसे पहले विचार व्यक्त करने वाले बीजेपी सांसद उदित राज को 'अभिव्यक्ति की आजादी' की दुहाई देते हुए उमा भारती सही ठहराने की कोशिश कर रही हैं.

गंभीर बात ये है कि पत्रकारिता और राजनीति में बारी बारी सक्रिय रहे एमजे अकबर के खिलाफ अब तक आधा दर्जन महिलाओं ने संगीन आरोप लगाया है, जिसमें महिलाओं को मीटिंग के नाम पर होटल के कमरे में बुलाना और केबिन बंद कर जबरन किस करने जैसे इल्जाम हैं.

ऐसा सन्नाटा क्यों?

राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों से कैसा सलूक हो, ये मामला सुप्रीम कोर्ट ने संसद और सरकार पर छोड़ दिया है. अब सरकार को तय करना है कि राजनीति में अपराधियों को आने से कैसे रोका जाये?

जो इल्जाम विदेश मंत्री एमजे अकबर पर लगा है वो आपराधिक श्रेणी का ही है, लेकिन जांच के बगैर किसी को अपराधी मान लेना भी न्याय का घला घोंटने जैसा ही होता है.

बच जाएंगे या बाहर हो जाएंगे एमजे अकबर?

MeToo मुहिम की चपेट में आये विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर पर लगे इल्जाम भी उनकी लेटेस्ट राजनीतिक पारी से पहले के हैं. अपने लंबे कॅरियर में एमजे अकबर राजनीति और पत्रकारिता में सुविधानुसार स्वीच करते रहे हैं. राजनीतिक...

एमजे अकबर के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी से किसी को कोई ऐतरात या शिकायत नहीं है. हां, बेटी बचाने से लेकर गरीब महिलाओं को धुएं से बचाने के दावे के साथ साथ मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ दिलाने का दम भरने वाले प्रधानमंत्री मोदी के एक्शन का इंतजार जरूर है. यौन उत्पीड़न के आरोपों में घिरे विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर मोदी कैबिनेट का हिस्सा बने रहेंगे या जाएंगे?

मोदी कैबिनेट के साथियों में अब तक सिर्फ मेनका गांधी अकेली हैं जो इस मामले में मुखर नजर आ रही हैं, वरना हर कोई खामोशी अख्तियार किये हुए हैं. #MeToo पर सबसे पहले विचार व्यक्त करने वाले बीजेपी सांसद उदित राज को 'अभिव्यक्ति की आजादी' की दुहाई देते हुए उमा भारती सही ठहराने की कोशिश कर रही हैं.

गंभीर बात ये है कि पत्रकारिता और राजनीति में बारी बारी सक्रिय रहे एमजे अकबर के खिलाफ अब तक आधा दर्जन महिलाओं ने संगीन आरोप लगाया है, जिसमें महिलाओं को मीटिंग के नाम पर होटल के कमरे में बुलाना और केबिन बंद कर जबरन किस करने जैसे इल्जाम हैं.

ऐसा सन्नाटा क्यों?

राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों से कैसा सलूक हो, ये मामला सुप्रीम कोर्ट ने संसद और सरकार पर छोड़ दिया है. अब सरकार को तय करना है कि राजनीति में अपराधियों को आने से कैसे रोका जाये?

जो इल्जाम विदेश मंत्री एमजे अकबर पर लगा है वो आपराधिक श्रेणी का ही है, लेकिन जांच के बगैर किसी को अपराधी मान लेना भी न्याय का घला घोंटने जैसा ही होता है.

बच जाएंगे या बाहर हो जाएंगे एमजे अकबर?

MeToo मुहिम की चपेट में आये विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर पर लगे इल्जाम भी उनकी लेटेस्ट राजनीतिक पारी से पहले के हैं. अपने लंबे कॅरियर में एमजे अकबर राजनीति और पत्रकारिता में सुविधानुसार स्वीच करते रहे हैं. राजनीतिक विचारधारा में के मामले में भी पाला बदलने में भी उनका रवैया तकरीबन वैसा ही नजर आता है.

एमजे अकबर पर आरोप वैसे ही जैसे बाबाओं और नामी गिरामी योग गुरुओं की अपराध कथायें सुनने और पढ़ने को मिलती हैं. ये समाज के इज्जतदार तबके का बहुत ही बुरा स्याह पक्ष है जो बेहद निराशाजनक है.

एमजे अकबर के खिलाफ लगे आरोपों में कई बातें कॉमन हैं. जिन्होंने भी एमजे अकबर पर शोषण का आरोप लगाया है, कहा है कि किस कदर वे उनकी अंग्रेजी और विद्वत्ता के कायल रहे. आरोप लगाने से पहले करीब करीब सभी पीड़ितों ने माना है कि वे एमजे अकबर से सीखना चाहते थे. एमजे अकबर जैसा बनना चाहते थे, हालांकि, तात्कालिक तौर पर आरोपों में घिरे अकबर जैसा तो शायद ही कोई बनना चाहे.

नेताओं के रंगरेलियां मनाते हुए सीडी तो बहुत आयी हैं. यहां तक कि राजभवन को ऐशगाह बनाते लोगों की करतूतें भी लोगों के सामने आ चुकी हैं. हालांकि, राजनीति में एक दूसरे का कॅरियर खत्म करने की भी ऐसी तमाम कोशिशें हुई हैं.

हैरानी की बात ये है कि एक मंत्री के खिलाफ इतने गंभीर आरोप लगे होने के बावजूद सत्ता के गलियारों में लगता है सियापा छाया हुआ है. पीड़ितों और उनके लिए इंसाफ मांगने के बहाने राजनीतिक रोटी सेंकने वाले विपक्ष की आवाज भी नक्कारखाने में तूती ही साबित हो रही है.

आखिर इतना सन्नाटा क्यों है? क्या काउंटर के लिए कोई खास रणनीति तैयार हो रही है? क्या और बड़ा मुद्दा आएगा और लोग इसे भुला कर उस नये टॉपिक पर बहस में जुट जाएंगे?

मेनका जरूर जांच चाहती हैं

ललित मोदी की मदद को लेकर जब विपक्ष इस्तीफे की मांग पर अड़ा हुआ था तो अरुण जेटली के साथ रविशंकर प्रसाद भी बचाव में मीडिया के सामने आये थे. सुषमा के खिलाफ आरोपों को रविशंकर प्रसाद ने मजबूत लहजे में सिरे से खारिज कर दिया था. इस बार ऐसा नहीं हुआ. हुआ ये कि कैबिनेट की मीटिंग के बारे में रविशंकर प्रसाद आये तो #MeToo का सवाल भी उठा.

#MeToo के सवाल पर रविशंकर प्रसाद का सिर्फ इतना ही कहना रहा कि प्रश्न 'आज के मंत्रिमंडल के विषय से संबंधित नहीं' है. एमजे अकबर के सवाल पर उनकी सीनियर सुषमा स्वराज का भी ऐसा ही रवैया देखा गया.

बीजेपी सांसद उदित राज ने तो #MeToo मुहिम पर ही सवाल खड़े कर दिये - और जब उमा भारती को ये बात याद दिलायी गयी तो उन्होंने उदित राज के बयान को 'फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन' से जोड़ दिया.

रोहित वेमुला के मामले में मायावती के सामने गला काट कर समर्पित करने देने की बात करने वाली मोदी सरकार की तेजतर्रार नेता स्मृति ईरानी भी चुप हैं. #MeToo को लेकर अब तक कोई सामने आया है तो वो हैं - मेनका गांधी.

एमजे अकबर पर लगे आरोपों के सिलसिले में मेनका गांधी जरूर जांच पर जोर दे रही हैं. मेनका का कहना है कि जो लोग मजबूत पदों पर होते हैं वे अक्सर ऐसा करते हैं - और ये बात मीडिया से लेकर राजनीति और कॉरपोरेट जगत तक सभी क्षेत्र में लागू होती है.

एक इंटरव्यू में मेनका गांधी ने कहा, "महिलाएं बोलने से डरती हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि लोग उनका मजाक उड़ाएंगे... और उनके चरित्र पर संदेह करेंगे... लेकिन अब जब वे बात कर रही हैं तो हमें प्रत्येक आरोप के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए."

मोदी सरकार में विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर वक्त और जरूरत के हिसाब से पत्रकारिता और राजनीति को चुनते रहे हैं. 2014 के आम चुनाव से पहले ही एमजे अकबर बीजेपी में शामिल हुए और 2015 में झारखंड से राज्य सभा के जरिये संसद पहुंचे. किसी जमाने में राजीव गांधी के खास और प्रवक्ता रहे एमजे अकबर 1989 और 1991 में लोक सभा का चुनाव लड़ चुके हैं. 1989 में तो बिहार के किशनगंज लोक सभा सीट से जीत गये लेकिन दो साल बाद चुनाव हारकर अपने मूल पेशे पत्रकारिता में लौट गये.

एमजे अकबर की छवि बड़े संपादक और विद्वान पत्रकार की रही है जो बेहतरीन अंग्रेजी लिखता हो और अपने ज्ञान के आभामंडल से किसी को भी प्रभावित करने की क्षमता रखता हो - आज वही छवि दागदार होकर धीरे धीरे धूमिल होती जा रही है. अब इससे भी बड़ी त्रासदी क्या होगी कि जिस अंग्रेजी अखबार को एमजे अकबर ने खड़ा किया, वही द टेलीग्राफ अपने संस्थापक संपादक की कथित करतूतों की खबर छापने को मजबूर है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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