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मुगालते से बाहर आइए, सदस्यता भारत को मिलनी थी मोदी को नही

    • आदर्श तिवारी
    • Updated: 25 जून, 2016 06:09 PM
  • 25 जून, 2016 06:09 PM
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कितनी विकट स्थिति है जब देश को कूटनीतिक मामले में वैश्विक स्तर पर बड़ा झटका लगा हो तो कुछ राजनीतिक दल व कथित बुद्धिजीवी इसे मोदी सरकार की विफलता बताते हुए फूले नहीं समा रहे.

परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह देशों में भारत को शामिल होने की उम्मीदों को करारा झटका लगा है. एनएसजी की सियोल बैठक में भारत को शामिल करने को लेकर चल रही जद्दोजहद में भारत को निराशा हाथ लगी है. 48 देशों के समूह में भारत को एनएसजी का सदस्य बनाने को लेकर चली चर्चा में भारत के लिए सबसे बड़े विरोधी के रूप में चीन ने आवाज़ बुलंद की.

चीन के ब्राजील, तुर्की, आस्ट्रिया समेत दस देशों ने भारत के खिलाफ मतदान किया. चीन अपनी पूरी शक्ति लगाकर न केवल खुद भारत का विरोध किया बल्कि जिन देशों पर उसका वर्चस्व है उसका लाभ लेते हुए उनको भी भारत के खिलाफ लामबंध करने में सफलता अर्जित की.

स्विटजरलैंड जो पहले भारत के पक्ष में था अचानक वो भी भारत के विरोध में खड़ा दिखा . भारत, चीन से साथ रिश्तों को लेकर नरम रुख अख्तियार करता रहा है. चीन से साथ भारत की कूटनीति हमेशा से उदारवाद जैसे रही हैं. जिसमें छल-कपट के लिए कोई जगह नहीं होती हैं. लेकिन चीन इसके ठीक विपरीत व्यहवार भारत से करता रहा है. जब भी मौका मिला चीन ने हमारे पीठ पर खंजर घोपने का काम किया हैं. हम पाकिस्तान की तरह चीन की नीति को लेकर भी काफी हद तक सफल नहीं हो पाए, हमारे कूटनीति के रणनीतिकार शुरू से ही इस मामले में विफल रहें हैं.

भारत के प्रधानमंत्री मोदी सत्ता संभालने के बाद एक के बाद कई देशों का दौरा किया. इससे भारत की साख वैश्विक स्तर पर न केवल मजबूत हुई बल्कि अमेरिका जैसे देश ने हमारे साथ खुलकर कंधे से कंधा मिलाकर चलने की बात कही. अमेरिका ने और भी देशों से भारत का साथ देने की अपील की. अब इस मसले को कुटनीतिक परिदृश्य को समझें तो एक बात सामने आती है कि हमारी कूटनीति में सामंजस्यता की कमी हैं. हम जिसके करीब जाने की कोशिश करते उससे बहुत करीब चले जाते हैं लेकिन जिससे हमारे संबंधो में दरार है हम उस दरार को पाटने की बजाय खाई तैयार कर लेतें हैं.

बहरहाल ,ये समूचे भारत के लिए एक तगड़ा झटका था. लेकिन कितनी विकट स्थिति है जब देश को कूटनीतिक मामले में वैश्विक स्तर पर बड़ा झटका लगा हो तो कुछ राजनीतिक...

परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह देशों में भारत को शामिल होने की उम्मीदों को करारा झटका लगा है. एनएसजी की सियोल बैठक में भारत को शामिल करने को लेकर चल रही जद्दोजहद में भारत को निराशा हाथ लगी है. 48 देशों के समूह में भारत को एनएसजी का सदस्य बनाने को लेकर चली चर्चा में भारत के लिए सबसे बड़े विरोधी के रूप में चीन ने आवाज़ बुलंद की.

चीन के ब्राजील, तुर्की, आस्ट्रिया समेत दस देशों ने भारत के खिलाफ मतदान किया. चीन अपनी पूरी शक्ति लगाकर न केवल खुद भारत का विरोध किया बल्कि जिन देशों पर उसका वर्चस्व है उसका लाभ लेते हुए उनको भी भारत के खिलाफ लामबंध करने में सफलता अर्जित की.

स्विटजरलैंड जो पहले भारत के पक्ष में था अचानक वो भी भारत के विरोध में खड़ा दिखा . भारत, चीन से साथ रिश्तों को लेकर नरम रुख अख्तियार करता रहा है. चीन से साथ भारत की कूटनीति हमेशा से उदारवाद जैसे रही हैं. जिसमें छल-कपट के लिए कोई जगह नहीं होती हैं. लेकिन चीन इसके ठीक विपरीत व्यहवार भारत से करता रहा है. जब भी मौका मिला चीन ने हमारे पीठ पर खंजर घोपने का काम किया हैं. हम पाकिस्तान की तरह चीन की नीति को लेकर भी काफी हद तक सफल नहीं हो पाए, हमारे कूटनीति के रणनीतिकार शुरू से ही इस मामले में विफल रहें हैं.

भारत के प्रधानमंत्री मोदी सत्ता संभालने के बाद एक के बाद कई देशों का दौरा किया. इससे भारत की साख वैश्विक स्तर पर न केवल मजबूत हुई बल्कि अमेरिका जैसे देश ने हमारे साथ खुलकर कंधे से कंधा मिलाकर चलने की बात कही. अमेरिका ने और भी देशों से भारत का साथ देने की अपील की. अब इस मसले को कुटनीतिक परिदृश्य को समझें तो एक बात सामने आती है कि हमारी कूटनीति में सामंजस्यता की कमी हैं. हम जिसके करीब जाने की कोशिश करते उससे बहुत करीब चले जाते हैं लेकिन जिससे हमारे संबंधो में दरार है हम उस दरार को पाटने की बजाय खाई तैयार कर लेतें हैं.

बहरहाल ,ये समूचे भारत के लिए एक तगड़ा झटका था. लेकिन कितनी विकट स्थिति है जब देश को कूटनीतिक मामले में वैश्विक स्तर पर बड़ा झटका लगा हो तो कुछ राजनीतिक दल व कथित बुद्धिजीवी इसे मोदी सरकार की विफलता बताते हुए फूले नहीं समा रहे. ये हमारे देश का दुर्भाग्य है कि ऐसे समय पर भी हम राष्ट्रीय एका दिखाने की बजाय तू-तू , मैं-मैं ,आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति करने में व्यस्त हैं.

 अगर हम भारत की एनएसजी में सदस्यता नहीं मिलने के ठोस कारण पर चर्चा करें तो विरोध करने वाले अधिकांश देश भारत के परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं करने का हवाला दे रहे हैं. उनका विरोध तो समझ में आता है. लेकिन हमारे देश में जो लोग ख़ुशी से इतरा कर यह बोल रहें कि मोदी की विफलता है उनका क्या?

 झटका पूरे देश के लिए है...

ये लोग कब इस मुगालते से बाहर निकलेंगे कि एनएसजी में भारत को सदस्यता मिलनी थी संघ या बीजेपी को नही! जाहिर सी बात है हर सरकार राष्ट्र को प्रगति पर ले जाने तथा वैश्विक स्तर पर देश साख मजबूत करने की हर संभव कोशिश करती है किंतु मोदी विरोध करने के लिए कुछ लोग ऐसे अंधे हो गए हैं कि सरकार की नीतियों तथा योजनाओं में कमियां निकालने की बजाय व्यक्ति विशेष की निंदा करते हुए सभी मर्यादाओं को तार–तार कर रहे हैं.

ये लोग भूल गये हैं कि जब भी देश में इस प्रकार की स्थिति आए तो हमे एक साथ मिलकर देश का जयघोष करना चाहिए. उचित सुझाव देने चाहिए किंतु स्थिति इसके ठीक विपरीत है . बहरहाल, इसबार एनएसजी पर भारत की बात नहीं बन पाई हैं लेकिन भविष्य के लिए भारत के मार्ग खुले हुए हैं. हमारे लिए अब ये आवश्यक है कि जिन 38 देशों से हमारा समर्थन किया हैं हम उनके साथ अपने संबध और प्रगाढ़ करें यहीं नही हमने बाकी इन दस देशों से भी कूटनीतिक स्तर पर जवाब देना चाहिए.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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