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क्यों खलनायक बनाया श्री श्री रविशंकर को?

    • आर.के.सिन्हा
    • Updated: 17 मार्च, 2016 04:51 PM
  • 17 मार्च, 2016 04:51 PM
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श्रीश्री रविशंकर को करीब से जानने वालों को मालूम है कि उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में वास्तव में बहुत ही ठोस और जमीनी कार्य किए हैं. उनके कार्यों की निष्पक्षता से अवलोकन करने की जरूरत थी.

जिस इंसान ने जीवनभर पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में जुझारू प्रतिबद्धता के साथ काम किया, उसे कुछ लोगों ने हाल ही में खलनायक के रूप में पेश किया. हम बात कर रहे हैं श्री श्री रविशंकर की. उनकी संस्था 'आर्ट आफ लिविंग फाउंडेशन' की तरफ से हाल ही में आयोजित विश्व संस्कृति उत्सव पर जिस तरह से तथाकथित धर्मनिरपेक्ष और वामपंथी ताकतों द्वारा हंगामा खड़ा किया गया, उससे देश का बहुसंख्यक तबका निराश जरूर है. साथ ही, उत्सव को बेवजह विवादों में लाने में मीडिया का भी खासकर विदेशी पूंजी वाले मीडिया का भी बड़ा रोल रहा.

यह बहुत दुखद था कि उत्सव के कारण यमुना नदी के बाढ़ग्रस्त इन क्षेत्र के कथित नुकसान और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) की प्रतिक्रिया की रिपोर्टिंग करते वक्त मीडिया ने 'आर्ट आफ लिविंग फाउंडेशन' पर लगातार प्रहार करना जारी रखा. इस बात पर हैरानी होती है कि यमुना के रिवरबेड पर हुए पूर्व के निर्माणों को मीडिया ने किस प्रकार कवर किया था!

यमुना के रिवरबेड पर हुए असंख्य अनाधिकृत निर्माणों को प्रकाश में लाने के लिए मीडिया ने क्या किया था? पूरा कॉमनवेल्थ विलेज यमुना के रिवरबेड पर ही बना है. तो अभी ही हंगामा क्यों? क्या श्री श्री रविशंकर पर निशाना साधा जा रहा है? क्या यह एकतरफा कवरेज आध्यात्मिकता और एक हिंदू गुरु के प्रति पूर्वाग्रह है? इस सवाल का जवाब उन सबको देना होगा जो श्रीश्री के उत्सव की आलोचना कर रहे थे.

सौ एकड़ फसल तबाह!

श्रीश्री के उत्सव में कमी निकालने वाले भूल गए कि पिछले साल केरल में पम्पा नदी के किनारे एशिया का सबसे बड़ा ईसाई सम्मेलन हुआ था, जो एक सप्ताह तक चला. कई सौ एकड़ फसलों को राज्य सरकार ने नष्ट करवा दिया था. तब सभी सेकुलर नेता खामोश थे. यहां तक कि न्यूज चैनल भी इस मुद्दे पर एकदम खामोश रहे. यह पवित्र नदी केरल की सबसे ज्यादा प्रदूषित नदियों में से एक है. तब किसी ने नदी के रिवरबेड में आयोजन और उसके नुकसान की आंशका के मद्देनजर कोई सवाल नहीं खड़ा किया. इसी तरह से ग्रीस के...

जिस इंसान ने जीवनभर पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में जुझारू प्रतिबद्धता के साथ काम किया, उसे कुछ लोगों ने हाल ही में खलनायक के रूप में पेश किया. हम बात कर रहे हैं श्री श्री रविशंकर की. उनकी संस्था 'आर्ट आफ लिविंग फाउंडेशन' की तरफ से हाल ही में आयोजित विश्व संस्कृति उत्सव पर जिस तरह से तथाकथित धर्मनिरपेक्ष और वामपंथी ताकतों द्वारा हंगामा खड़ा किया गया, उससे देश का बहुसंख्यक तबका निराश जरूर है. साथ ही, उत्सव को बेवजह विवादों में लाने में मीडिया का भी खासकर विदेशी पूंजी वाले मीडिया का भी बड़ा रोल रहा.

यह बहुत दुखद था कि उत्सव के कारण यमुना नदी के बाढ़ग्रस्त इन क्षेत्र के कथित नुकसान और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) की प्रतिक्रिया की रिपोर्टिंग करते वक्त मीडिया ने 'आर्ट आफ लिविंग फाउंडेशन' पर लगातार प्रहार करना जारी रखा. इस बात पर हैरानी होती है कि यमुना के रिवरबेड पर हुए पूर्व के निर्माणों को मीडिया ने किस प्रकार कवर किया था!

यमुना के रिवरबेड पर हुए असंख्य अनाधिकृत निर्माणों को प्रकाश में लाने के लिए मीडिया ने क्या किया था? पूरा कॉमनवेल्थ विलेज यमुना के रिवरबेड पर ही बना है. तो अभी ही हंगामा क्यों? क्या श्री श्री रविशंकर पर निशाना साधा जा रहा है? क्या यह एकतरफा कवरेज आध्यात्मिकता और एक हिंदू गुरु के प्रति पूर्वाग्रह है? इस सवाल का जवाब उन सबको देना होगा जो श्रीश्री के उत्सव की आलोचना कर रहे थे.

सौ एकड़ फसल तबाह!

श्रीश्री के उत्सव में कमी निकालने वाले भूल गए कि पिछले साल केरल में पम्पा नदी के किनारे एशिया का सबसे बड़ा ईसाई सम्मेलन हुआ था, जो एक सप्ताह तक चला. कई सौ एकड़ फसलों को राज्य सरकार ने नष्ट करवा दिया था. तब सभी सेकुलर नेता खामोश थे. यहां तक कि न्यूज चैनल भी इस मुद्दे पर एकदम खामोश रहे. यह पवित्र नदी केरल की सबसे ज्यादा प्रदूषित नदियों में से एक है. तब किसी ने नदी के रिवरबेड में आयोजन और उसके नुकसान की आंशका के मद्देनजर कोई सवाल नहीं खड़ा किया. इसी तरह से ग्रीस के विश्वप्रसिद्ध संगीतकार यान्नी दुनिया के सभी आश्चर्यों के प्रांगण में अपना शो करना चाहते थे और उन्होंने सभी जगह किया भी.

ताजमहल के आगे तमाशा

इसी कड़ी में उन्हें 1997 में आगरा में ताजमहल के ठीक बगल में यमुना नदी के खादर में ही शो करने की इजाजत मिल गई. उस समय भी सेना ने यमुना पर चार पुल बनाए थे. तब भी सेकुलर जमात और मीडिया ने खामोशी की मोटी चादर ओढ़ ली थी.

मजेदार तथ्य है कि पम्पा नदी की सफाई में भी श्री श्री के 'आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन' ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और कुछ प्रभावशाली व्यापारियों ने उनके इस काम का विरोध भी किया था. क्योंकि इससे उनके हित प्रभावित हो रहे थे. बहुत खेद की बात है कि ऐसे व्यक्ति और उसके संगठन पर ही पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने का आरोप चस्पा किया जा रहा है.

यमुना की स्थिति क्या है..

दिल्ली में आज यमुना की स्थिति क्या है, सबको पता है. शहर भर के कचरे और उद्योगों के रसायनिक अवशिष्ट ने उसे गंदे नाले में तब्दील कर दिया है. उसमें बीओडी यानी बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड जीरो पर पहुंच गया है. इसका अर्थ यह है कि यमुना में कोई जीव जिंदा रह ही नहीं सकता. न तो इसका पानी पीने लायक है और न ही फसलों की सिंचाई के लिए उपयुक्त है. यह विडंबना ही है कि इस यमुना नदी के इकोलॉजी के नुकसान को लेकर विश्व संस्कृति उत्सव पर सवाल खड़े किए.

हल्ला बोलने वालों की निष्पक्षता..

'आर्ट आॉफ लिविंग फाउंडेशन' की निंदा महज सीमित जानकारी के आधार पर होती रही. यह उम्मीद थी कि श्रीश्री और उत्सव पर हल्ला बोलने वाले निष्पक्षता बरतेंगे. यह भी उम्मीद थी कि श्रीश्री रविशंकर तथा 'आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन' को संदेह का लाभ दिया जाएगा या कम से कम उनके द्वारा दशकों से किए गए पर्यावरण संरक्षण के महत्वपूर्ण कार्यों को ध्यान में रखा जाएगा.

श्रीश्री रविशंकर को करीब से जानने वालों को मालूम है कि उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में वास्तव में बहुत ही ठोस और जमीनी कार्य किए हैं. उनके कार्यों की निष्पक्षता से अवलोकन करने की जरूरत थी. एक आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए निरंतर काम किया है.

पर्यावरण के प्रति उनकी अथक प्रतिबद्धता को असंख्य लोगों ने प्रत्यक्ष रूप से देखा है. उनके मार्गदर्शन में 'आर्ट आॉफ लिविंग फाउंडेशन' ने कर्नाटक में कई नदियों जैसे कुमुदवती, अर्कावती, वेदवती और पलार नदी तथा तमिलनाडु में नगानदी तथा महाराष्ट्र में घरनी, तेरना, बेनीतुरा व जवारजा नदी को नया जीवन प्रदान किया है. इनमें से कई नदियां या तो सूख चुकी थीं या शहरी विकास की वजह से बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी थीं. श्री श्री रविशंकर स्वयं कहते हैं- 'नदियों¨का पुनरुद्धार करना जीवन का पुनरुद्धार करने जैसा है.'

इन सब उपलब्धियों के बावजूद ऐसा लगता है कि श्रीश्री रविशंकर की भूमिका को नकार दिया है. अगर कोई आपकी दस प्रशंसाएं करता है और अगर एक बुरी चीज कहता है तो आपका ध्यान किस पर जाएगा? निस्संदेह नकारात्मक चीज पर. ऐसा लगता कि हमारे यहां के एक वर्ग ने भी अपने व्यवहार को इसी तरह से ढाल लिया है. दरअसल नदियों के पुनरुत्थान और जल संरक्षण के कार्यक्रम चलाने के अलावा श्रीश्री ने सस्टेनेबल फार्मिंग के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण काम किया है. वे पूरी दुनिया में करीब एक करोड़ वृक्ष लगाने के बड़े काम को भी कर रहे हैं अपने साथियों के साथ. ये कार्य वे संयुक्त राष्ट्र मिलेनियम डवलपमेंट प्रोग्राम के साथ मिल कर रहे हैं. जाहिर है, विश्व संस्कृति उत्सव पर विवाद खड़ा करने वालों को श्रीश्री को लेकर ये सारी जानकारी नहीं है या वे ढोंग रचने को ही अपना 'धर्म' मानते हैं. I

अभूतपूर्व पैमाने पर सांस्कृतिक विविधता और विश्व शांति के हिमायती के रूप में भारत को विश्वपटल पर सुर्खियों में लाने वाले इस आयोजन के कुछ दिन पहले इसकी धज्जियां उड़ाई जा रही थी. ऐसा लग रहा था कि उसका एकमात्र उद्देश्य श्री श्री रविशंकर और उनके संगठन को बदनाम करना था. अभी तक इस बात के कोई पुख्ता सबूत नहीं है कि इस उत्सव ने यमुना के रिवरबेड को कोई स्थायी नुकसान पहुंचाया है. फिर भी ऐसा लग रहा कि एक वर्ग ने अपनी राय पहले ही कायम कर ली और आरोपों की निष्पक्ष जांच के पहले ही श्री श्री के आयोजन की निंदा शुरू कर दी.

श्रीश्री एक राष्ट्रीय धरोहर हैं. वह एक ऐसे मनुष्य हैं, जिन्होंने बार-बार और हर बार मानवीय भावनाओं के उत्थान के लिए बिना थके काम किया है. भारत में उनके द्वारा किए गए प्रयास याद रखे जाने लायक हैं. यह बहुत दुखद है कि हमारा एक वर्ग पर्यावरण के प्रति श्री श्री की प्रतिबद्धता पर सवाल उठा रहा है. इससे भी अहम बात है- पूरे मसले का एकतरफा चित्रण, जिससे मीडिया की स्थिति और इरादे पर सवालिया निशान खड़े हो गए हैं.

इस आयोजन के माध्यम से जीवन के सभी क्षेत्रों से जुड़े लोग, जिनमें पूरी दुनिया के लोग शामिल थे- एक साथ एक मंच पर आए और प्राचीन वैदिक शिक्षाओं, जिन्हें श्री श्री संरक्षित करने का काम कर रहे हैं. साथ ही वे इसे वैश्विक समुदाय के पास लेकर जा रहे हैं. यह बहुत दुखद है कि एक ऐसे आयोजन का समर्थन करने की बजाय उसके बारे में नकरात्मक बातें की गईं और उसकी राह में बाधाएं खड़ी की गईं.

इस तरह के सवाल किए गए कि विश्व संस्कृति महोत्सव का उद्देश्य क्या है और क्यों इस आयोजन पर इतने पैसे खर्च किए जा रहे हैं? श्री श्री ध्यान और वैदिक परम्परा में निहित प्राचीन ज्ञान के माध्यम से बस मानवीय मूल्यों के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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