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राहुल गांधी को सिद्धू जैसे नेता क्यों पसंद आते हैं - और सचिन जैसे नहीं

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 18 जुलाई, 2021 08:08 PM
  • 18 जुलाई, 2021 08:05 PM
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के करीबी नेताओं में कभी सचिन पायलट (Navjot Singh Sidhu) शुमार थे और तब नवजोत सिंह सिद्धू (Sachin Pilot) कट्टर विरोधी बीजेपी में रहे, लेकिन अभी उलटा हो गया है - क्या ये सिर्फ मोदी कनेक्शन की वजह से हो रहा है?

राहुल गांधी के सामने फिलहाल पंजाब और राजस्थान दोनों एक ही जैसे चैलेंज बने हुए हैं. पंजाब का मामला ज्यादा गर्म इसलिए है क्योंकि वहां चुनाव नजदीक हैं.

हो सकता है आगे चल कर राजस्थान में भी सचिन पायलट और अशोक गहलोत फिर से वैसे ही मैदान में कूद पड़ें जैसे फिलहाल नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह तलवार भांज रहे हैं.

कैप्टन अमरिंदर सिंह को लेकर तो समझ में आता है कि राहुल गांधी के साथ जेनरेशन गैप का मामला है. ठीक वही जो बुजुर्ग कांग्रेसियों और राहुल गांधी या उनके करीबियों के बीच सदाबहार टकराव की बड़ी वजह है. पुरानी पीढ़ी जब आत्ममंथन की सलाह देती है तो नयी पीढ़ी कहती है कि आत्ममंथन उस दौर को लेकर होनी चाहिये जब कांग्रेस सत्ता में हुआ करती थी - और ये सब कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी की आंखों के सामने होता है. अगले ही दिन मामला ट्विटर पर पहुंच जाता है और कांग्रेस के ही नेता एक दूसरे को ऐसे कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करते हैं जैसे वे कोई कट्टर राजनीतिक विरोधी हों.

ये भी समझ में नहीं आता कि राहुल गांधी को कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसी शिकायत अशोक गहलोत से क्यों नहीं होती? और नवजोत सिंह सिद्धू की तरह राहुल गांधी आखिर सचिन पायलट के साथ क्यों नहीं खड़े होते? आखिर जो नेता कांग्रेस के हित की बात करते हैं वे राहुल गांधी को क्यों नहीं पसंद आते?

ऐसा क्यों लगता है कि राहुल गांधी को कांग्रेस के हित से कहीं ज्यादा मोदी विरोध का स्टैंड अधिक सही लगता है?

क्या नवजोत सिंह सिद्धू, नाना पटोले और रेवंत रेड्डी जैसे नेता राहुल गांधी को सिर्फ इसलिए पसंद आते हैं - क्योंकि वे किसी न किसी तरीके से मोदी-विरोध की कैटेगरी में फिट हो जाते हैं?

कांग्रेस का हित बनाम मोदी-विरोध की राजनीति

राहुल गांधी जब से होश संभाले...

राहुल गांधी के सामने फिलहाल पंजाब और राजस्थान दोनों एक ही जैसे चैलेंज बने हुए हैं. पंजाब का मामला ज्यादा गर्म इसलिए है क्योंकि वहां चुनाव नजदीक हैं.

हो सकता है आगे चल कर राजस्थान में भी सचिन पायलट और अशोक गहलोत फिर से वैसे ही मैदान में कूद पड़ें जैसे फिलहाल नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह तलवार भांज रहे हैं.

कैप्टन अमरिंदर सिंह को लेकर तो समझ में आता है कि राहुल गांधी के साथ जेनरेशन गैप का मामला है. ठीक वही जो बुजुर्ग कांग्रेसियों और राहुल गांधी या उनके करीबियों के बीच सदाबहार टकराव की बड़ी वजह है. पुरानी पीढ़ी जब आत्ममंथन की सलाह देती है तो नयी पीढ़ी कहती है कि आत्ममंथन उस दौर को लेकर होनी चाहिये जब कांग्रेस सत्ता में हुआ करती थी - और ये सब कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी की आंखों के सामने होता है. अगले ही दिन मामला ट्विटर पर पहुंच जाता है और कांग्रेस के ही नेता एक दूसरे को ऐसे कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करते हैं जैसे वे कोई कट्टर राजनीतिक विरोधी हों.

ये भी समझ में नहीं आता कि राहुल गांधी को कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसी शिकायत अशोक गहलोत से क्यों नहीं होती? और नवजोत सिंह सिद्धू की तरह राहुल गांधी आखिर सचिन पायलट के साथ क्यों नहीं खड़े होते? आखिर जो नेता कांग्रेस के हित की बात करते हैं वे राहुल गांधी को क्यों नहीं पसंद आते?

ऐसा क्यों लगता है कि राहुल गांधी को कांग्रेस के हित से कहीं ज्यादा मोदी विरोध का स्टैंड अधिक सही लगता है?

क्या नवजोत सिंह सिद्धू, नाना पटोले और रेवंत रेड्डी जैसे नेता राहुल गांधी को सिर्फ इसलिए पसंद आते हैं - क्योंकि वे किसी न किसी तरीके से मोदी-विरोध की कैटेगरी में फिट हो जाते हैं?

कांग्रेस का हित बनाम मोदी-विरोध की राजनीति

राहुल गांधी जब से होश संभाले होंगे तब से लेकर 2014 तक कांग्रेस को ही सत्ता में देखते आये थे. बीच बीच में राजनीतिक विरोधी सरकार बनाते रहे, लेकिन वो पीरियड ऐसा लंबा नहीं रहा. ये दौर लंबा तो है ही, राहुल गांधी के लिए ये अंदाजा लगाना भी मुश्किल हो रहा होगा कि कब तक ऐसे ही चलता रहेगा. कोशिशें तो हर चुनाव जीतने की होती है, लेकिन नौबत यहां तक आ जाती है कि अपनी सीट अमेठी भी गंवानी पड़ती है. बाकी विधानसभा चुनावों की हार जो है वो तो अलग है ही.

सत्ता से लंबे समय तक दूर रहने के चलते राहुल गांधी की सोच में भी काफी बदलाव आ गया लगता है. अगर राहुल गांधी अपनी सारी मुश्किलों के पीछे एक ही वजह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पाते हैं तो वो स्वाभाविक भी है. एक तो सत्ता से दूर, मानहानि के जगह जगह मुकदमों में पेशी - और एसपीजी सुरक्षा या और भी जो सुविधाएं बचपन से हासिल रहीं, उनका छूट जाना तकलीफदेह तो होगी ही खासकर तब जब उसकी आदत पड़ चुकी हो.

अब तो मोदी-विरोध ही बन गया है कांग्रेस में राहुल गांधी के करीब होने का रामबाण फॉर्मूला

जब नवजोत सिंह सिद्धू बीजेपी के सांसद हुआ करते थे, तब सचिन पायलट राहुल गांधी के करीबियों में शुमार हुआ करते रहे लेकिन अब तो लगता है जैसे सब उलट पलट गया हो. कांग्रेस में बने हुए और पार्टी के लिए लगातार काम करते आ रहे सचिन पायलट बेगाने से लगते हैं और बीजेपी छोड़ कर आये सिद्धू सबसे प्यारे हो गये हैं - अगर ये दोनों के स्टैंड में फर्क और मोदी कनेक्शन नहीं तो भला क्या है?

हो सकता है कि राहुल गांधी को लगता हो कि सचिन पायलट भी एक दिन वैसे ही कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन कर लेंगे जैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया या फिर जितिन प्रसाद ने अभी अभी किया है.

हैरानी तो तब होती है जब सचिन पायलट डंके की चोट पर कहते हैं कि वो कांग्रेस छोड़ कर कहीं नहीं जा रहे, बस इतना ही चाहते हैं कि चीजें ठीक हो जायें. सचिन पायलट भी तो सिंधिया की ही तरह कह रहे हैं कि चुनावों में लोगों से जो वादे किये गये थे वे पूरे क्यों नहीं हो रहे हैं?

नवजोत सिंह सिद्धू हैं कि खुल कर ऐसी बातें करने लगे हैं जिनके राजनीतिक मतलब सबको समझ में आ रहे हैं. सिद्धू के ट्वीट पर अरविंद केजरीवाल का रिएक्शन भी आ जाता है. आम आदमी पार्टी के चुनाव अभियान पर गोवा पहुंचे अरविंद केजरीवाल को तो सिद्धू के ट्वीट को हाथोंहाथ लेना ही था, 'नवजोत सिंह सिद्धू... वो पंजाब में हैं... मैं खुश हूं कि AAP इतना अच्छा काम कर रही है कि विपक्षी नेता भी हमारी सराहना कर रहे हैं.

आखिर वे क्या कारण हैं कि राहुल गांधी को सिद्धू की इतनी फिक्र होती है कि नाराज होकर कहीं पार्टी छोड़ न दें - और सचिन पायलट, मिलिंद देवड़ा या अपनी पुरानी टोली के नेताओं की कोई परवाह नहीं होती?

जितिन प्रसाद ने भी तो G23 नेताओं के साथ मिल कर कांग्रेस के लिए एक स्थायी अध्यक्ष की डिमांड का सपोर्ट किया था - और एक ऐसा कांग्रेस अध्यक्ष जो वास्तव में काम करता हुआ दिखे भी.

जम्मू-कश्मीर से जुड़े धारा 370 हटाये जाने के कांग्रेस के विरोध को लेकर 7 अगस्त 2019 के कांग्रेस की कार्यकारिणी में सिंधिया और जितिन प्रसाद जैसे नेताओं का यही तो कहना था कि पार्टी का स्टैंड जन भावनाओं के खिलाफ है - हो सकता है दोनों नेताओं के प्रति हद से ज्यादा नाराजगी की वजह यही रही हो.

बेशक राहुल गांधी चाहते होंगे कि सभी आंख मूंद कर उनके मोदी-विरोधी सुर में सुर मिलायें - और यही वजह है कि ऐसे नेताओं की प्रैक्टिकल या पार्टी के हित में की गयी बातें भी राहुल गांधी को पसंद नहीं आती हैं.

राहुल को मोदी विरोध पसंद है

नवजोत सिंह सिद्धू की सबसे बड़ी खासियत तो यही है कि वो बीजेपी से आये हैं और कांग्रेस के मोदी विरोधी चेहरों में से एक लगते हैं. पंजाब में सिद्धू की तरह ही महाराष्ट्र और तेलंगाना के दो नेता भी राहुल गांधी को अपनी एक जैसी खासियत के लिए बेहद प्रिय हैं.

सिद्धू की ही तरह महाराष्ट्र में नाना पटोले और तेलंगाना में रेवंत रेड्डी भी राहुल गांधी को हद से ज्यादा पसंद हैं - और ये दोनों अपने अपने राज्यों में कांग्रेस की कमान संभाल रहे हैं.

नवजोत सिंह सिद्धू, नाना पटोले और रेवंत रेड्डी तीनों ही कांग्रेस आस पास ही ज्वाइन किये थे. बीजेपी छोड़ चुके सिद्धू 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में आये थे और उसी साल रेवंत रेड्डी ने भी कांग्रेस का हाथ थाम लिया था - नाना पटोले ने बीजेपी तो 2017 में ही छोड़ दी थी, लेकिन 2018 की शुरुआत में कांग्रेस में शामिल हुए थे.

नाना पटोले की सबसे बड़ी उपलब्धि जो राहुल गांधी को पंसद आती है, वो है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ उनकी बयानबाजी. 2014 में एनसीपी के प्रफुल्ल पटेल को भंडारा-गोंदिया संसदीय सीट पर शिकस्त देकर लोक सभा पहुंचे नाना पटोले ने ये कहते हुए बीजेपी में बगावत की थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ होने वाली मीटिंग में किसी को बोलने नहीं दिया जाता. अपने बारे में भी बताया था कि जब भी बोलने की कोशिश की चुप करा दिया जाता था.

मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि मोदी विरोध की बात से राहुल गांधी इतने गदगद हुए कि पहली मुलाकात में ही नाना पटोले से पूछ बैठे थे कि वो कांग्रेस में कौन सी पोजीशन चाहेंगे. जब महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार बनी तो कांग्रेस के हिस्से में स्पीकर आया था और राहुल गांधी की पसंद को देखते हुए नाना पटोले को आगे कर दिया गया, लेकिन फिर वो राहुल गांधी को ये समझाने में कामयाब रहे कि गठबंधन छोड़ कर वो महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार बनवा सकते हैं - फिर क्या था राहुल गांधी ने नाना पटोले के महाराष्ट्र कांग्रेस की कमान सौंप दी.

रेवंत रेड्डी के भी तेलंगाना में कांग्रेस की कमान सौंपे जाने की वही वजह है. रेवंत रेड्डी ने राजनीति की शुरुआत RSS के छात्र संगठन ABVP से की थी, लेकिन कांग्रेस में आने से पहले मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की टीआरएस और टीडीपी में भी रह चुके हैं - रेवंत रेड्डी का तेलंगाना में कांग्रेस नेताओं का विरोध झेलना पड़ रहा है और उसकी एक ही वजह है उनका संघ और बीजेपी की पृष्ठभूमि से आकर प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बन जाना, लेकिन कोई कुछ इसलिए नहीं कर पा रहा है क्योंकि वो राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं.

और अब तो खबर ये भी आ रही है कि पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू को भी कांग्रेस की कमान सौंपी जा सकती है - फिर तो राहुल गांधी के करीब होने के लिए कांग्रेस के हित की चिंता छोड़ कर जब भी मौका मिले प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ कुछ न कुछ बोलते रहने भर की जरूरत है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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