• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

महागठबंधन को गांठने में क्यों फेल हुए राहुल...

    • मौसमी सिंह
    • Updated: 28 जुलाई, 2017 08:39 PM
  • 28 जुलाई, 2017 08:39 PM
offline
नीतीश कुमार के महागठबंधन से अलग हो जाने पर गांव के बड़े-बूढ़े कांग्रेस को यही कहेंगे अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत? यह मुहावरा राहुल पर सटीक बैठता है. क्योंकि...

विपक्ष की एकजुटता को छिन्न-भिन्न करते हुए नीतीश कुमार ने भाजपा का दामन थाम लिया. नीतीश ने राहुल गांधी को धोखा दिया या फिर वो टीम के सबसे विश्वसनीय साथी का भरोसा नहीं जीत पाये? कुछ समय से महागठबंधन पर मुसीबत के बादल मंडरा रहे थे. इसका अंदाज़ा लगाने में क्या फेल रहे कांग्रेस के कप्तान? महागठबंधन के लिए खराब मौसम के क्या थे संकेत?

संकेत 1: 12 तुगलक लेन में चाय पर चर्चा

चाय पर चर्चा तो हुई लेकिन चल नहीं पाए

पिछले शनिवार की दोपहर 12 तुगलक लेन पर लगभग 3:30 बजे बिहार के सीएम नीतीश कुमार कांग्रेस उपाध्यक्ष से मिलने आये. किसको पता था कि उसके पांच दिन बाद नीतीश ट्विटर पर मोदी की बधाई स्वीकार कर रहे होंगे. फिर उसी शनिवार के दोपहर पर वापस चले आईये... दोनों की मुलाकात कुछ आधे घंटे चली. तमाम मुद्दों के बीच लालू के मामले को लेकर बात उठी तो नीतीश ने राहुल को याद दिलाया कि वो ना भूले की एक वक्त था जब राहुल गांधी ने लालू को बचानेवाला ऑर्डिनेंस फाड़ दिया था. राहुल ने जवाब में कहा था कि बस एफआईआर हो जाने पर उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का इस्तीफा मांगना कहां तक जायज़ है? नीतीश राहुल को परख रहे थे. समझदार को इशारा काफी है. नीतीश के मन की बात पढ़ने का राहुल के पास ये मौका था. 5 दिन बाद राहुल को भी शायद एहसास होगा कि वो मौका उन्होंने गवां दिया.

संकेत 2: जब मोदी के मेहमान बने नीतीश

राजनीति में स्थाई ना तो दोस्ती होती है नाही दुश्मनी

कुछ दो महीने पहले 26 मई को विपक्षी पार्टियों की...

विपक्ष की एकजुटता को छिन्न-भिन्न करते हुए नीतीश कुमार ने भाजपा का दामन थाम लिया. नीतीश ने राहुल गांधी को धोखा दिया या फिर वो टीम के सबसे विश्वसनीय साथी का भरोसा नहीं जीत पाये? कुछ समय से महागठबंधन पर मुसीबत के बादल मंडरा रहे थे. इसका अंदाज़ा लगाने में क्या फेल रहे कांग्रेस के कप्तान? महागठबंधन के लिए खराब मौसम के क्या थे संकेत?

संकेत 1: 12 तुगलक लेन में चाय पर चर्चा

चाय पर चर्चा तो हुई लेकिन चल नहीं पाए

पिछले शनिवार की दोपहर 12 तुगलक लेन पर लगभग 3:30 बजे बिहार के सीएम नीतीश कुमार कांग्रेस उपाध्यक्ष से मिलने आये. किसको पता था कि उसके पांच दिन बाद नीतीश ट्विटर पर मोदी की बधाई स्वीकार कर रहे होंगे. फिर उसी शनिवार के दोपहर पर वापस चले आईये... दोनों की मुलाकात कुछ आधे घंटे चली. तमाम मुद्दों के बीच लालू के मामले को लेकर बात उठी तो नीतीश ने राहुल को याद दिलाया कि वो ना भूले की एक वक्त था जब राहुल गांधी ने लालू को बचानेवाला ऑर्डिनेंस फाड़ दिया था. राहुल ने जवाब में कहा था कि बस एफआईआर हो जाने पर उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का इस्तीफा मांगना कहां तक जायज़ है? नीतीश राहुल को परख रहे थे. समझदार को इशारा काफी है. नीतीश के मन की बात पढ़ने का राहुल के पास ये मौका था. 5 दिन बाद राहुल को भी शायद एहसास होगा कि वो मौका उन्होंने गवां दिया.

संकेत 2: जब मोदी के मेहमान बने नीतीश

राजनीति में स्थाई ना तो दोस्ती होती है नाही दुश्मनी

कुछ दो महीने पहले 26 मई को विपक्षी पार्टियों की मीटिंग दिल्ली में बुलाई गई. मौका था राष्ट्रपति चुनाव पर विपक्ष को जोड़ने का. ममता, मायावती, अखिलेश, शरद पवार, सीताराम यचुरी और राहुल गांधी समेत 17 पार्टियों के कद्दावर नेता मौजूद थे. नदारद थे तो सिर्फ नीतीश कुमार. नीतीश ने अपने प्रतिनिधी के तौर पर शरद यादव को भेजा लेकिन जब उसके बदले में खुद पीएम मोदी द्वारा आयोजित मौरिशस पीएम के भोज में हिस्सा लिया तभी राहुल के कान खड़े हो जाने चाहिए थे कि मोदी-नीतीश की कुछ तो खिचड़ी पक रही है.

संकेत 3: दो पार्टनर की अनबन तो तीसरा चुप क्यों?

स्वच्छ, सरल छवि वाले नीतीश कुमार के लिये लालू के कुनबे को ढोना मुश्किल हो रहा था. लालू का अक्खड़पन और दखलअंदाज़ी नीतीश के कामकाज में बार बार रोड़ा उत्पन्न कर रही थी. नीतीश ने कुछ एक महीने पहले सोनिया से मुलाकात में इसके संकेत भी दिए. राहुल ने खुद ये माना कि उनको तीन-चार महीने से इस बात का अंदाज़ा था. तो सवाल ये उठता है कि उन्होंने इस ब्रेकअप को रोकने के लिए क्या कोशिश की? कांग्रेस की ही मान लें तो अगर महागठबंधन को वजूद में लाने में राहुल का अहम योगदान था तो उसको बनाये रखने में किसी और के इंतज़ार में क्यों बैठे थे कांग्रेस उपाध्यक्ष?

संकेत 4: मुद्दों पर मेल नहीं

क्या से क्या हो गया!

नीतीश के महागठबंधन से अलग हो जाने पर गांव के बड़े-बूढ़े कांग्रेस को यही कहेंगे अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत? यह मुहावरा राहुल पर सटीक बैठता है. क्योंकि जब राहुल नोटबंदी के खिलाफ एटीएम की कतार में खड़े थे तब नीतीश कुमार केंद्र सरकार के ऐतिहासिक कदम की प्रशंसा कर रहे थे. इशारा नोटबंदी से लेकर जीएसटी तक साफ था. नीतीश जैसे मंझे हुए खिलाड़ी ने मौके पर चौका लगाने में कभी देर नहीं की. बिहार चुनाव के दौरान मोदी की डीएनए पर गुगली को बखूबी खेलते हुए नीतीश ने इसको बिहार की प्रतिष्ठा से जोड़ कर पासा पलट दिया था. राहुल अगर पिछले डेढ़ सालों में मिले सियासी मौकों पर सक्रियता दिखाते तो शायद नीतीश विधानसभा से ये ना कहते मैने कांग्रेस को कहा था.

खैर छोड़िए हम क्यों खामखां गड़े मुर्दे उखाड़ें, जब कांग्रेस को अपने भीतर झांकने के बजाए एक छोटे बच्चे की तरह बिलखना ही है. कांग्रेस की नाक के नीचे से भाजपा ने पहली बार थाली नहीं छीनी है. अब-जब, अगर-मगर राहुल बिहार का विश्लेषण कर रहे होंगे, उस वक्त पीएम मोदी के गुजरात के राज्यसभा चुनाव में भाजपा हैट्रिक मारने की तैयारी पूरी कर चुकी होगी. बाद में फिर राहुल कहेंगे मुझे पहले से पता था. तो नीरो की तरह राहुल गांधी भी बांसुरी तो बजा रहे हैं पर नीरो की तरह वो अनजान नहीं हैं. उनको सब सब पता है. रोम जल रहा है...

ये भी पढ़ें-

राहुल गांधी को मुफ्त की 11 सलाहें... ये मजाक नहीं, सीरियसली

लालू के खिलाफ नीतीश ने इस्तीफे का ब्रह्मास्त्र छोड़ा है, लपेटे में पूरा थर्ड फ्रंट

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲