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भारत-अफगानिस्तान को रास्‍ता देने के पीछे पाकिस्तान की असली मंशा क्या है?

    • आईचौक
    • Updated: 18 सितम्बर, 2018 04:30 PM
  • 18 सितम्बर, 2018 04:30 PM
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भारत की सबसे बड़ी चिंता ये है कि क्या वो इस मार्ग का इस्तेमाल व्यापार के इतर अपने सामरिक हितों और रक्षा समझोतों के लिए कर पायेगा क्योंकि पाकिस्तान के पुराने रवैये को देखते हुए इसकी गारंटी तो अमेरिका भी नहीं दे सकता.

पाकिस्तान भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापार रास्ते को खोलने को लेकर विचार कर रहा है. पिछले कई दशकों से भारत वाघा-अटारी और तुर्ख़म रास्ते को खोलने की मांग करता रहा है लेकिन पाकिस्तान ने हर बार भारत की मांग को खारिज कर दिया और इसका कारण वो अफगानिस्तान में भारतीय सामरिक हितों को पाकिस्तान विरोधी बताता रहा है. अमेरिका ने हाल ही में पाकिस्तान से मांग की थी कि भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापार मार्ग को फौरन बहाल किया जाए. अमेरिका पिछले 15 वर्ष से पाकिस्तान से ये मांग कर रहा है कि हक़्क़ानी नेटवर्क को ठिकाने लगाया जाए और इसके लिए उसने पाकिस्तान सरकार को पिछले 15 वर्षों में 33 अरब डॉलर की राशि भी मुहैया करवाई लेकिन पाकिस्तान ने इसके विपरीत हक़्क़ानी नेटवर्क का पालन-पोषण किया और अमेरिकी हितों की हमेशा अवहेलना की. लेकिन आज अचानक से पाकिस्तान इतना आज्ञाकारी कैसे हो गया और अमेरिका के एक आह्वान पर भारत और अफगानिस्तान के ट्रेड रूट को बहाल करने के लिए तैयार हो गया.

भारत चाबहार एयरपोर्ट के रास्ते पहले ही अफगानिस्तान पहुंचने की तैयारी कर चुका है.

अफगानिस्तान में भारत की मौजूदगी हमेशा से पाकिस्तान के लिए चिंता का विषय रहा है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि जिस कारण से पाकिस्तान अब तक भारत और अफगानिस्तान के सामरिक हितों के बीच में एक अवरोध की तरह खड़ा था आज वो अचानक से भारत की एंट्री को लेकर राजी कैसे हो गया. पाकिस्तान के अनुसार भारत अफगानिस्तान में अपनी मौजूदगी को इसलिए बढ़ाना चाहता है ताकि पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में रॉ और इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारियों के द्वारा पाकिस्तान को अस्थिर किया जा सके. व्यापार मार्ग बहाल हो जाने के बाद पाकिस्तान की उस पुरानी चिंता का क्या होगा जिसका ढिंढोरा वो अक्सर पीटता आया है. दरअसल पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था इस समय अपनी अंतिम सांसें गिन रही है. अगर भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापार बहाल होता है तो पाकिस्तान को चुंगी और रोड टैक्स के द्वारा सालाना 2 अरब डॉलर की कमाई होगी. जिससे वो अपने ढहते अर्थव्यवस्था को कुछ समय तक जरूर थाम लेगा.

पाकिस्तान भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापार रास्ते को खोलने को लेकर विचार कर रहा है. पिछले कई दशकों से भारत वाघा-अटारी और तुर्ख़म रास्ते को खोलने की मांग करता रहा है लेकिन पाकिस्तान ने हर बार भारत की मांग को खारिज कर दिया और इसका कारण वो अफगानिस्तान में भारतीय सामरिक हितों को पाकिस्तान विरोधी बताता रहा है. अमेरिका ने हाल ही में पाकिस्तान से मांग की थी कि भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापार मार्ग को फौरन बहाल किया जाए. अमेरिका पिछले 15 वर्ष से पाकिस्तान से ये मांग कर रहा है कि हक़्क़ानी नेटवर्क को ठिकाने लगाया जाए और इसके लिए उसने पाकिस्तान सरकार को पिछले 15 वर्षों में 33 अरब डॉलर की राशि भी मुहैया करवाई लेकिन पाकिस्तान ने इसके विपरीत हक़्क़ानी नेटवर्क का पालन-पोषण किया और अमेरिकी हितों की हमेशा अवहेलना की. लेकिन आज अचानक से पाकिस्तान इतना आज्ञाकारी कैसे हो गया और अमेरिका के एक आह्वान पर भारत और अफगानिस्तान के ट्रेड रूट को बहाल करने के लिए तैयार हो गया.

भारत चाबहार एयरपोर्ट के रास्ते पहले ही अफगानिस्तान पहुंचने की तैयारी कर चुका है.

अफगानिस्तान में भारत की मौजूदगी हमेशा से पाकिस्तान के लिए चिंता का विषय रहा है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि जिस कारण से पाकिस्तान अब तक भारत और अफगानिस्तान के सामरिक हितों के बीच में एक अवरोध की तरह खड़ा था आज वो अचानक से भारत की एंट्री को लेकर राजी कैसे हो गया. पाकिस्तान के अनुसार भारत अफगानिस्तान में अपनी मौजूदगी को इसलिए बढ़ाना चाहता है ताकि पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में रॉ और इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारियों के द्वारा पाकिस्तान को अस्थिर किया जा सके. व्यापार मार्ग बहाल हो जाने के बाद पाकिस्तान की उस पुरानी चिंता का क्या होगा जिसका ढिंढोरा वो अक्सर पीटता आया है. दरअसल पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था इस समय अपनी अंतिम सांसें गिन रही है. अगर भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापार बहाल होता है तो पाकिस्तान को चुंगी और रोड टैक्स के द्वारा सालाना 2 अरब डॉलर की कमाई होगी. जिससे वो अपने ढहते अर्थव्यवस्था को कुछ समय तक जरूर थाम लेगा.

चीन का दबाव

कुछ समय पहले चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग का बयान आया कि वे भारत और पाकिस्तान के बीच शांतिपूर्ण संबंध चाहते हैं. चीनी प्रवक्ता का यह भी कहना था कि वे इसके लिए रचनात्मक भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं. चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का एक हिस्सा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भी है. चीन पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को भी विकसित कर रहा है और चीन नहीं चाहता है कि भारत ईरान में चाबहार को विकसित कर उसका इस्तेमाल चीनी सामरिक हितों के खिलाफ करे. चीन एशिया से लेकर अफ्रीका तक बड़े पैमाने पर ढांचागत विकास कर रहा है और इसके लिए उसने दुनिया के 80 से ज्यादा देशों को अपने 'वन बेल्ट वन रोड' प्रोजेक्ट का हिस्सा बनाया है. चीन को मालूम है कि अगर उसे दुनिया की महाशक्ति के रूप में उभरना है तो भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों को सामान्य करना होगा.

अमरीका नवंबर के महीने से ईरान की मुकम्मल आर्थिक नाकाबंदी करना चाहता है. ये घेराबंदी तब तक कामयाब नहीं हो सकती जब तक ईरान से भारत के आर्थिक संबंधों में नुक़सान की किसी हद तक भरपाई नजर नहीं आये. अटारी-तोरख़म रास्ता खुल जाए तो अमरीका के ख़्याल में भारत चाबहार प्रोजेक्ट में निवेश करना फ़िलहाल रोक ले और ईरान की बजाय सऊदी और ईराक़ी तेल लेने पर राज़ी हो जाए. अमेरिका ने ईरान को पूरी तरह से दबोचने के लिए पाकिस्तान को इस मार्ग को खोलने को कहा है ताकि भारत को ईरान के नजदीक जाने से रोका जा सके. अमेरिका और चीन के अपने साझे हित हैं और पाकिस्तान को इस व्यापार मार्ग से आय का श्रोत दिख रहा है इसीलिए पाकिस्तान ने इस रुट को खोलने को लेकर उत्साह दिखाया है.

हाल-फिलहाल में कोई क्रांतिकारी पहल नहीं हुई है

इमरान खान ने जब से पाकिस्तान की सत्ता संभाली है उन्होंने भारत के साथ अपने रिश्तों को सुधारने की बात कही है. लेकिन बयानों के अलावा अभी तक कोई ठोस कदम पाकिस्तान सरकार की तरफ से उठाये नहीं गए हैं. भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापार मार्ग को बहाल करने के उनके फैसले को गुडविल के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. पाकिस्तान सरकार को आर्थिक मजबूती के लिए 12 अरब डॉलर की फौरन जरुरत है. और हो सकता है कि ये फैसला देश को आर्थिक संकट से निकालने के लिए फौरी तौर पर ली गई हो. पाकिस्तान के पुराने रिकॉर्ड को देखते हुए इसमें कोई शक नहीं है कि पाकिस्तान कभी भी पाला बदल सकता है.

भारत की सबसे बड़ी चिंता ये है कि क्या वो इस मार्ग का इस्तेमाल व्यापार के इतर अपने सामरिक हितों और रक्षा समझोतों के लिए कर पायेगा क्योंकि पाकिस्तान के पुराने रवैये को देखते हुए इसकी गारंटी तो अमेरिका भी नहीं दे सकता. दरअसल हकीकत यही है कि यह मार्ग चाबहार मार्ग का विकल्प नहीं हो सकता क्योंकि भारत की गतिविधियां पाकिस्तान सरकार की चौकस निगरानी का हिस्सा होंगी. भारत इस रुट के खुलने के कारण उत्साह दिखा सकता है लेकिन पाकिस्तान के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए आश्वस्त नहीं हो सकता है. अमेरिका, चीन और पाकिस्तान के साझा हितों को देखते हुए भारत को अपना हर कदम फूंक-फूंक कर रखना होगा.

कंटेंट- विकास कुमार (इंटर्न- आईचौक)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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